Friday 20 November 2009

भारत से प्रकाश सिंह 'अर्श' की नज़्म और ग़ज़ल

प्रकाश सिंह 'अर्श' कुछ वर्षों से ग़ज़ल के शिल्प और संरचना के गुरु, साहित्यकार श्री पंक सुबीर से बारीकियां सीखने में रत हैं. इसके अतिरिक्त, अर्श जी को समय समय पर वरिष्ठ ग़ज़लकार, समीक्षक और कहानीकार श्री प्राण शर्मा जी का आशीर्वाद भी मिलता रहा है. आजकल ब्लॉग की दुनिया में उनकी ग़ज़लें और दूसरी रचनाएं काव्य-प्रेमियों को आकर्षित कर रही हैं. 'अर्श' मूलत: बिहार से हैं, प्रारम्भिक पढ़ाई झारकंड में हुई, मुज़फ्फरपुर में विज्ञान की शिक्षा और दिल्ली से एम.बी.ए. करने के बाद अब एक प्रतिष्ठित कंपनी में सीनियर मेनेजर के पद पर कार्यरत हैं.
हमारी यही कामना है कि 'अर्श' ग़ज़ल की दुनियां में अपना विशिष्ट स्थान बना कर नाम रोशन करें.


नज़्म
सूखी धरती सूनापन खलिहानों में
आँगन अब तब्दील हुए शमशानों में
बूढ़ा पीपल रो रो कर यह कहता है
नीम अभागा बचपन से दुःख सहता है
सावन अबके हार गया है बूंदों से
कतरा क्या होता है पूछो रिन्दों से
आँख बरसती है सब देख इंसानों में
सुखी धरती सूनापन खलिहानों में ...
बाबा अबकी सोच रहे थे लाडो की
डोली उसकी उठवायेंगे वादो की
छुटकी तो बस नाचेगी जी भर के रे
संग सहेली छेड़ें आते जाते रे
क्या सन्देश नहीं पहुंचा भगवानों में
सुखी धरती सूनापन खलिहानों में

प्रकाश सिंह 'अर्श'
***************************

ग़ज़ल
इश्क मोहब्बत आवारापन।
संग हुए जब छूटा बचपन
मैं माँ से जब दूर हुआ तो ,
रोया घर, आँचल और आँगन
शीशे के किरचे बिखरे हैं ,
उसने देखा होगा दर्पण
परदे के पीछे बज-बज कर ,
आमंत्रित करते हैं कंगन
चन्दा ,सूरज ,पर्वत, झरना ,
पावन पावन पावन पावन
बिकता हुस्न है बाज़ारों में ,
प्यार मिले है दामन दामन
कौन कहे बिगड़े संगत से ,
देता सर्प को खुश्बू चंदन
दुनिया उसको रब कहती है ,
मैं कहता हूँ उसको साजन॥

प्रकाश सिंह 'अर्श'
*********************


'महावीर' का आगामी अंक:
2६ नवम्बर २००९:

यू.के. से पुष्पा भार्गव की रचना

126 comments: