परायों के घर
कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई;
ज़िन्दगी की आंखों से देखा तो,
तुम थी,
मुझसे मेरी नज़्में मांग रही थी,
उन नज़्मों को, जिन्हें संभाल रखा था, मैंने तुम्हारे लिए,
एक उम्र भर के लिए....
आज कहीं खो गई थी, वक्त के धूल भरे रास्तोंमें.........
शायद उन्हीं रास्तों में .....
जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो......
क्या किसी ने तुम्हे वताया नहीं कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते.......
विजय कुमार सप्पत्ती
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तस्वीर
तेरी तस्वीर बना लूं इस दुनिया के लिए,
क्योंकि मुझमें तो है तू, हमेशा के लिए....
पर तस्वीर बनाने का साजो सामान, ज़िंदगी के बाज़ार में.......
बहुत ढूंढा, पर कहीं नहीं मिला; फिर किसी मोड़ पर किसी दरवेश ने कहा
आगे है कुछ मोड़, तुम्हारी उम्र के,
उन्हें पार कर लो....
वहाँ एक अंधे फकीर की मोहब्बत की दुकान है;
वहां, मुझे प्यार कर हर सामान मिल जायेगा....
मैने वो मोड़ पार किए, सिर्फ़ तेरी यादों के सहारे!!
वहाँ अँधा फकीर खड़ा था,
मोहब्बत का सामान बेच रहा था,
मुझ जैसे,
तुझ जैसे
कई लोग थे वहाँ अपने अपने यादों के सलीबों और सायों के साथ.....
लोग हर तरह के मौसम को सहते वहाँ खड़े थे.
उस फकीर की मरजी का इंतज़ार कर रहे थे.....
फकीर बड़ा अलमस्त था......
अंधा था......
मैंने पूछा तो पता चला कि
मोहब्बत ने उसे अंधा कर दिया है!!
या अल्लाह! क्या मोहब्बत इतनी बुरी होती है....
मैं भी किस दुनिया में भटक रहा था ...
खैर; जब मेरी बारी आई
तो, उस अंधे फकीर ने,
तेरा नाम लिया, और मुझे चौंका दिया,
मुझ से कुछ नहीं लिया....और
तस्वीर बनाने का साज़ो सामान दिया....
सच.... कैसे कैसे जादू होते हैं ज़िन्दगी के बाज़ारों में!!!!
मैं अपने सपनों के घर आया..
तेरी तस्वीर बनाने की कोशिश की,
पर ख़ुदा जाने क्यों... तेरी तस्वीर न बन पाई.
कागज़ पर कागज़ ख़त्म हो गये....
पूरी उम्र गुज़र गई
पर
तेरी तस्वीर न बनी,
उसे न बनना था, इस दुनिया के लिए...न बनी!!
जब मौत आई तो, मैंने कहा, दो घड़ी रुक जा;
वक्त का एक आखरी कागज़ बचा है ...
उस पर मैं "उसकी" तस्वीर बना लूं!
मौत ने हंसते हुए उस कागज़ पर,
तेरा और मेरा नाम लिख दिया;
औ मुझे अपने आगोश में ले लिया.
उसने उस कागज़ को मेरे जनाजे पर रक दिया,
और फिर....
इस दुनिया से एक और मोहब्बत की रूह फ़ना हो गई....
विजय कुमार सप्पत्ती
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12 comments:
महावीर जी दोनो कविताये एक से बढ कर एक है, बहुत सुंदर भाव लिये, आप का धन्यवाद आप ने हम तक पहुचाई,
विजय कुमार सप्पत्ती का बहुत बहुत धन्यवाद
Achchhee kavitaon ke liye
vijay kumaar jee ko badhaaee.
बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
क्या किसी ने तुम्हे वताया नहीं कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते....
wah bahut hi sundar baat kahi hai...
वहाँ एक अंधे फकीर की मोहब्बत की दुकान है;.....एक और मोहब्बत की रूह फ़ना हो गई
wah!khuub !
vijay ji ki dono kavitayen bahut hi achchee lagin.
बढ़िया कविताएं महावीर जी अच्छी कविताएं पढ़्वाने के लिए आपका आभार।
महावीर जी को चरण-स्पर्श और इन दो मोहक कविताओं को पढ़वाने का शुक्रिया..
टिप्पणी करने वाला बटन ठीक से नजर नहीं आता महावीर जी,एक बार देख लें कृपया
आपका सहयोग चाहूँगा कि मेरे नये ब्लाग के बारे में आपके मित्र भी जाने,
ब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है अवश्य अवगत करायें
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
आनन्द बख्शी ब्लॉग से जुड़ने के लिए, शुक्रिया!
vijay ji ke kavitaon me kafi dam hota hai har shabd apne aap me ek purn kavita hoti hai..........mahavir jo aapko bhi namaskar aur dhero bad ji hai ke aapke sahyog matra se vijay ki behad umda kavita ko padh paya.....apni nai gazal pe aapki pasand na-pasand awashya janana chahunga........
regards
arsh
क्या किसी ने तुम्हे वताया नहीं कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते.......
... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति।
कविता में
कविता होने के लिए
जो भी जरूरी है सामान
सब यहां मिलता है
सीखने वाला चाहे तो
कविता करना भी ...
सच्चाई और कल्पना का
अद्भुत और मनमोहक संगम
है कविता, जान गया हूं
क्या बतला रहे हैं आप
सच, पहचान गया हूं।
विजय जी की कविताओं
की बहुत ही सटीक भाषा है
बहुत सही निशाने पर पहुँचने वाली
विजय जी ,
बहुत बधाई
आदरणीय महावीर शर्मा जी,
आभार.
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