Saturday, 7 March 2009

होली के रंग


होली के रंगा रंग पर्व पर कवि और कवयित्रियाँ गुलाली और
रंग भरी रचनाओं से तरह तरह के बिखरे रंगों से आपको रंगने
आरहें हैं:


नज़ीर अकबराबादी, पूर्णिमा वर्मन, प्राण शर्मा, लावण्या शाह,

पुष्पा भार्गव, योगेन्द्र मौदगिल, सुधा ओम ढींगरा, महावीर शर्मा

और अंत में मनोशी चैटर्जी की मधुर आवाज़ में उनकी कविता



नज़ीर अकबराबादी

होली

जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की।
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की
ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की।
महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारें होली की।

हो नाच रंगीली परियों का, बैठे हों गुलरू रंग भरे
कुछ भीगी तानें होली की, कुछ नाज़-ओ- अदा के ढंग भरे
दिल फूले देख बहारों को, और कानों में अहंग भरे
कुछ तबले खड़कें रंग भरे, कुछ ऐश के दम मुंह चंग भरे
कुछ घुंगरू ताल छनकते हों, तब देख बहारें होली की

गुलज़ार खिलें हों परियों के और मजलिस की तैयारी हो।
कपड़ों पर रंग के छीटों से खुश रंग अजब गुलकारी हो।
मुँह लाल, गुलाबी आँखें हो और हाथों में पिचकारी हो।
उस रंग भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो।
सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की।

और एक तरफ़ दिल लेने को, महबूब भवइयों के लड़के,
हर आन घड़ी गत फिरते हों, कुछ घट घट के, कुछ बढ़ बढ़ के,
कुछ नाज़ जतावें लड़ लड़ के, कुछ होली गावें अड़ अड़ के,
कुछ लचके शोख़ कमर पतली, कुछ हाथ चले, कुछ तन फड़के,
कुछ काफ़िर नैन मटकते हों, तब देख बहारें होली की।।

ये धूम मची हो होली की, ऐश मज़े का झक्कड़ हो
उस खींचा खींची घसीटी पर, भड़वे खन्दी का फक़्कड़ हो
माजून, रबें, नाच, मज़ा और टिकियां, सुलफा कक्कड़ हो
लड़भिड़ के 'नज़ीर' भी निकला हो, कीचड़ में लत्थड़ पत्थड़ हो
जब ऐसे ऐश महकते हों, तब देख बहारें होली की।।

नज़ीर अकाबराबादी

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होली के दोहे पूर्णिमा वर्मन

रंग रंग राधा हुई, कान्हा हुए गुलाल
वृंदावन होली हुआ सखियाँ रचें धमाल

होली राधा श्याम की और होली कोय
जो मन रांचे श्याम रंग, रंग चढ़े कोय

नंदग्राम की भीड़ में गुमे नंद के लाल
सारी माया एक है क्या मोहन क्या ग्वाल

आसमान टेसू हुआ धरती सब पुखराज
मन सारा केसर हुआ तन सारा ऋतुराज

बार बार का टोंकना बार बार मनुहार
धुम धुलेंडी गांव भर आंगन भर त्योहार

फागुन बैठा देहरी कोठे चढ़ा गुलाल
होली टप्पा दादरा चैती सब चौपाल

सरसों पीली चूनरी उड़ी हवा के संग
नई धूप में खुल रहे मन के बाजूबंद

महानगर की व्यस्तता मौसम घोले भंग
इक दिन की आवारगी छुट्टी होली रंग

अंजुरी में भरपूर हों सदारूप रस गंध
जीवन में अठखेलियाँ करता रहे बसंत

पूर्णिमा वर्मन

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प्राण शर्मा

होली

मेरे ईश्वर मेरे अल्लाह

काश कभी वो सपना सच हो
जिसको मैंने कल देखा था।
एक तरफ़ हिन्दू बिरादर
खुशथे कितने ईद मनाकर
शिकवे और गिले सब भूले
इक दूजे को गले मिला कर
छोटे और बड़े सब के सब
मस्त थे कितने खा के सिवैयां
झूम रहे थे नाच रहे थे
डाले सब के सब गलबैयां
गूंज रही थी सब की सदाएं
ईद मुबारक! ईद मुबारक!
शाद रहो आबाद रहो तुम
तन में दम है यारों जब तक
मेरे ईश्वर मेरे अल्लाह

काश कभी वो सपना सच हो
जिसको मैंने कल देखा था-

दूजी तरफ़ से मुसलमाँ भाई
उनके चेहरों पर खुशियां थीं

जैसे कोयल की कू कू हो
ऐसी ही उनकी बतियां थीं

लाल गुलाबी नीले पीले
रंगों के जैसे ही खिलकर

क्या बच्चे क्या बूढ़े सब ही
होली खेल रहे थे मिलकर
क्या बतलाऊं मेरे ईश्वर
क्या बतलाऊं मेरे अल्लाह

दोनों तरफ़ था दिलकश मंज़र
ऐसा दिलकश मंज़र जिसको

तकता रहा था मैं जी भरकर
मेरे ईश्वर मेरे अल्लाह
काश कभी वो सपना सच हो

जिसको मैंने कल देखा था।
प्राण शर्मा

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लावण्या

फागुन आया रे !


पकी पकी फसल लहराये ओढे पीली सरसोँ की चुनरिया

तेरे खेत मेँ मक्का बजरा , मेरे गेऊँ की बलियाँ -

गाँव गाँव घूम रही टोलियाँ, होलिका दहन तैयारी

किसी की खाट, किसी का पाट, किसी के हाथ, लकडियाँ !

नीला, पीला, हरा, जामुनी, नारँगी, लाल रँग सजा है,

प्रकृति ने करवट बदली है, टेसु सा रँग खिला है !

डारी डारी कूक रही है, हूक उठाती, कारी कारी कोयलिया

किसलय के चिकने पात छिप, झाँक रही शर्मिली गौरैया !

मँद सुगँध पुरवा से मिलकर, परिमल पाँव पसारे,

आम्र मँजरी ऊँची टहनी से, फागुन की तान सुनावै !

"पिहु, पिहु...कहाँ मोरे पिय ?" पपीहा बैन पुकारे,

गोरी का प्रेम अगन, नयनन जल पी, ज्वाला बन दहकावे !

" हे विधाता ! क्योँ भेज्योफागुन ? " बिरहा जिया पुकारे .

" पियु बिन कैसी होरी ? कैसी आई ये ऋत अलबेली ? "

फागुन फगुनाया, हँस पडी कमलिनी पोखर मेँ ~

हाथ बढाकर, उसे तोडकर, चढा दिया, शिव पूजन मेँ !

" माँगुँ, तुमसे, भोले बाबा ! मेरे पिया मोहे लौटा दो !

दिया फागुन का वर, तो शँभु ! प्रियतम भी लौटा दो ! "

नेत्र मूँद कर नई दुलहनिया, मँदिर मेँ दीप जलावे,

बिछुडे पिय की माला जपती, मन ही मन मँद ~ मँद मुस्कावै !

- लावण्या

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पुष्पा भार्गव
आज होली का त्योहार।


उड़े अबीर, गुलाल
पड़ रही रंगों की बौछार
आज है होली का त्योहार।

पीली सरसों फैली बन में

मधु ऋतु की सुगंध उपवन में

टेसू डाकी पर खिलते
फागुन की चले बयार
आज है होली का त्योहार।

हर आंगन और चौराहे पर
साँझ पड़े जब जले होलिका

झूम झूम सब घुल मिल जाएँ
गीत बसन्त बहार

आज है होली का त्योहार।

सब जन रंगों की उमंग में
ले कर प्यार गुलाल संग में
मन मुटाव तज करें निशंक हो
आपस में मनुहार
आज है होली का त्योहार।


पुष्पा भार्गव, लन्दन

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योगेन्द्र मौदगिल

दो छंद...


होली के बहाने करें गोरियों के गाल लाल
अंग पे अनंग की तरंग आज छाई सी
बसंत की उमंग, मन होली के बहाने चढ़ी
भंग की तरंग रंग ढंग बल खाई सी

सजना मलंग हुए सजनी मृदंग हुई
रास रति रंग रत हवा लहराई सी
दंग हुए देख लोग प्रेम के प्रसंग आज
छुइ मुइ जोड़ियां भी कैसी मस्ताई सी


मीठी मीठी बोलियों के भीगी भीगी चोलियों के

होली के नजारे सब आंखों को सुहाते हैं
रस रंग भाव रंग लय रंग ताल रंग
देख के उमंग को अनंग मुस्काते हैं
सारे मगरूर हुए भंग के नशे में चूर
प्रेम के पुजारी हो मलंग इठलाते हैं
लाग ना लपेट कोई ईर्ष्या ना द्वेष कोई

प्रेम के त्यौहार ही प्रसंग सुलझाते हैं

-योगेन्द्र मौदगिल

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सुधा ओम ढींगरा

मिलन


शोख रंगों में
नये -खिले फूलों ने
धरती को फुलकारी ओढ़ा
फूलों की रंगोली बना
बसंत उत्सव के
स्वागत की
तैयारी कर ली.
ऋतुराज ने भी
मुस्करा कर बसंत ऋतु को
बांहों में भर लिया
पूरे बरस की विरह
के बाद
मिलन था ना .
सुधा ओम ढींगरा
*********************


महावीर शर्मा

फागुन की मस्त बयार चले

चारों तरफ होली का वातावरण! सभी अपने

प्रिय को तरह तरह के रंगों से भिगो कर अपना

प्यार उंडेल रहे हैं। इस विरहन की घुटन देखिए

जिसका प्रियतम परदेस में है।

फागुन की मस्त बयार चले, विरह की अगन जलाये रे

हरे वसन के घूंघट से तू सरसों क्यों मुस्काये रे?

नगर नगर और ग्राम ग्राम में अबीर के बादल छाये
प्रियतम तो परदेस बसे हैं, नयन नीर बरसाये रे।

चाँद की शीतल किरनों से शृंगार किया मैं ने अपना
अँसुवन से नयनों का काजल, बार बार धुल जाये रे।

फगुआ, झूमर चौताला जब परवान चढ़ी जाये
ढोल, मँजीरे और मृदंगा , तुम बिन जिय धड़काये रे।

बीत ना जाये ये फागुन भी, जियरा तरसे होली खेलन
गीतों की गमक, नृत्यों की धमक, सब तेरी याद दिलाये रे।

कागा इतना शोर मचाये, लाया है सन्देश पिया का
मधुकर भी मधु-रस पी पी कर, फूलों पर मँडराये रे।

हरे वसन के घूंघट से सरसों भी मुख चमकाये रे ! !

महावीर शर्मा

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मानोशी चैटर्जी

होली गीत

सरर सरर सर मारी पिचकारी
ऐसा रंग डारा पी ने
मैं तन मन हारी

बइयाँ खींची मोरी
पकड़ी कलाई
गुलाल मले मुख पे जो
छूटी रुलाई
भीगी चोली और घाघर मोरी
खेलूँ कैसे मैं पी संग होरी

समझे न पी मोरी
इक भी बात
घर कैसे जाऊँ
रंग लै के साथ
जाने जग सारा मैंने लाज तो छोड़ी
पर कैसे खेलूँ मैं पी संग होरी

मानोशी चैटर्जी


मानोशी चैटर्जी के मधुर सुरों में होली सुनिए:

हमारा प्लेयर भी होली की मस्ती में - सैकंड के बाद शुरू
होता है। प्लेयर को चालू करने के बाद थोड़ा धैर्य रखिए:

22 comments:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आदरणीय महावीर जी ,
नमस्ते !

बढिया होली के रँग सजाये हैँ आपने !
आपका ये होली पर्व पर तोहफा मन्भावन बन पडा है
पूर्णिमा जी,
प्राण शर्मा जी,
पुष्पा जी,
योगेन्द्र भाई साहब,
सुधा जी,
मानोशी
व आप की कविताओँ से मन आनँदित है
नज़ीर सा'ब की कविताने गँगा जमुनी तेहजीब से टेसु के रँग घोले...
जिन्हेँ प्राण जी ने भी देखेँ और परोसे
और
मानोशी ने सुमधुर् स्वर दिये ..
वाह जी !!
महिला दिवस व होली पर्व की सपरिवार शुभकामनाएँ आपको

सादर, स -स्नेह,
- लावण्या

कडुवासच said...

होली के अवसर पर सुन्दर-सुन्दर रचनाओं का समावेश सतरंगी "इन्द्रधनुष" की भाँति मनमोहक है,होली पर्व की शुभकामनाएँ।

दिनेशराय द्विवेदी said...

इस लघु होली पत्रिका का रूप ले कर आप का ब्लाग सजा है। आनन्दमय होली पर्व की बहुत बहुत बधाइयाँ।

Anonymous said...

लावणा जी से यह कड़ी मिली।आनन्द आ गया।शुभ होली।

Anita kumar said...

लावण्याजी मजा आ गया है, एक से बढ़ कर एक रचनाएं है। होली की आप सबको शुभकामनाएं

ताऊ रामपुरिया said...

मान. लावण्या जी के सौजन्य से यहां की लिंक मिली. होली के मुबारक मौके पर यह भावपुर्ण और प्रेमपुर्ण महफ़िल का आनन्द लेने का मौका उपलब्ध कराया इसके लिये मान.लावण्या जी का बहुत आभार.

सभी रचनाकारों कि रचनाओं ने आल्हादित कर दिया और इस होली पर्व को यादगार बना दिया.

आप सभी को होली की शुभकामनाएं.

रामराम.

सुजाता said...

बहुत खूब ! आप सभी को होली की शुभकामनाएँ !

Vinay said...

महावीर जी चरणस्पर्श,
होली की आपको एवं स्वजनों को बहुत-बहुत बधाई

रंजू भाटिया said...

होली की बहुत बहुत बधाई ..सभी रचनाये बहुत खूब बहुत अच्छी लगी ..

योगेन्द्र मौदगिल said...

सभी ब्लाग-मंचस्थ साथियों को अबीरी प्रणाम..
संयोजक जी को कबीरी प्रणाम...
और
इस ब्लाग के पाठकों को,
होली की राम-राम..
फाग की श्याम-श्याम..

वाह, महावीर जी,
दादा...बहुत ही शानदार प्रस्तुति है....
प्रणाम...!!!

नीरज गोस्वामी said...

आदरणीय महावीर जी
होली का असली मजा आ गया सभी दिग्गजों की रचनाएँ पढ़कर...एक से बढ़ कर एक...बहुत बहुत शुक्रिया इन महान हस्तियों को एक मंच पर लाने का...
होली की रंग बिरंगी शुभकामनाएं.
नीरज

मीनाक्षी said...

रंग बिरंगी कविताओं ने तो होली के रंगो को और सुन्दर बना दिया...आप सब को होली मुबारक हो ..

मीनाक्षी said...

रंग बिरंगी कविताओं ने तो होली के रंगो को और सुन्दर बना दिया...आप सब को होली मुबारक हो ..

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

रंगों की इस अनूठी महफिल की भव्य प्रस्तुति के लिए व होली के पर्व पर आपको बहुत-बहुत बधाई.

Anonymous said...

PURNIMA ,LAVANYA,PUSHPA,SUDHA,
MANOSHI ,MAHAVIR AUR NAZIR AADI
NE HOLI KE AESE PAKKE RANG BIKHERE
HAIN JO SHAYAD HEE AGLEE HOLI TAK
CHHOTEN.

प्रवीण त्रिवेदी said...

होली कैसी हो..ली , जैसी भी हो..ली - हैप्पी होली !!!

होली की शुभकामनाओं सहित!!!

प्राइमरी का मास्टर
फतेहपुर

Anonymous said...

आदरणीय महावीर जी,

बहुत खूब ,रंग बिरंगी एक से बढ़ कर एक रचनाएं है।
आप सभी को होली की शुभकामनाएँ !

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

सभी की रंग बिरंगी प्रस्तुति मन को रंग गई। आपको होली की अनेकानेक शुभकामनायें।

vijay kumar sappatti said...

mahaveer ji deri se aane ke liye maafi chahta hoon..

march ke business fever ne holi ka rang kuch feekha kar diya hai ,

phir bhi yahan is post ko padhkar maza aa gaya . wah ji wah

kya baat hai , itne saare lekhko ki itni saari rachnaayen..

ye to bonus ho gaya sir

bahut badhai ho ji

aapka

vijay

daanish said...

NAMASKAAR !
Holi ke paavan avsar par ek khoobsurat kaavya-sammelan se
ru-b-ru karva diya aapne....
shukriya lafz bahut chhota aur thodaa lagta hai........
naman . . . . .
---MUFLIS---

Satish Chandra Satyarthi said...

मजा आ गया.
इतने धुरंधर लोगों को एक जगह पढ़कर.

दिगम्बर नासवा said...

होली की इतनी sundar kavitaayen एक ही blog पर pahli बार padhne को मिली.
लगा जैसे होली का अबीर छाया हुवा है चारों और. अलग अलग रंगों में सजी है एक से badh कर एक रचना

आपका बहुत बहुत शुक्रिया