Wednesday, 25 March 2009

विजय कुमार सपत्ति की दो कविताएं

विजय कुमार सपत्ति की दो कविताएं



मुझे यकीन है ....

विजय कुमार सपत्ति


तुम कहती हो कि ,

तुम मुझसे प्यार नही करती हो

फिर क्यों तुम,

अक्सर मेरे ख़तों के इंतजार में ,

अपने दरवाज़े पर खड़े होकर ;

अपने खुले हुए गेसुओ में ;

अपनी नाज़ुक उँगलियाँ ,

कुछ बैचेनी से अनजाने में लपेटते हुए

ख़त लाने वाले का इंतजार करती हो ..

तुम कहती हो कि ,

तुम मुझसे प्यार नही करती हो

फिर क्यों तुम,

अक्सर धुंधलाती हुई शामों में

धूल से भरी सडको पर .

बेसब्री से , भरी हुई आँखों में

आंसुओं को थामे , कुछ सिसकते हुए..

हर आते जाते हुए सायो में .

किसी अपने के साये का इंतजार करती हो ..

तुम कहती हो कि ,

तुम मुझसे प्यार नही करती हो

फिर क्यों तुम,

अक्सर मेरी आवाज सुनने को बैचेन रहती हो

दौड़ दौड़ कर ,एक यकीन के साथ

कुछ मेरी यादो के साथ

कुछ अपने मोहब्बत के सायों से लिपटे हुए

मदहोश सी , मेरी आवाज़ सुनने चली आती हो..

तुम कहती हो कि ,

तुम मुझसे प्यार नही करती हो

फिर क्यों तुम,

रातों को जब सारा जहाँ सो जाये

तो, तुम तारो से बातें करती हो

कुछ अपने बारें में ,कुछ मेरे बारें में

कुछ गिले शिकवे , कुछ प्यार

ये सब कुछ ,मेरी नज़मो / ख़तों को पढ़ते हुए

मुझे याद करते हुए , क्यों तकियों को भिगोती हो

तुम कहती हो कि ,

तुम मुझसे प्यार नही करती हो

पर मुझे यकीन है कि

तुम मुझे प्यार करती हो......

**********************

कोई एक पल

विजय कुमार सपत्ति


कभी कभी यूँ ही मैं ,

अपनी ज़िन्दगी के बेशुमार

कमरों से गुजरती हुई ,

अचानक ही ठहर जाती हूँ ,

जब कोई एक पल , मुझे

तेरी याद दिला जाता है !!!

उस पल में कोई हवा बसंती ,

गुजरे हुए बरसो की याद ले आती है

जहाँ सरसों के खेतों की

मस्त बयार होती है

जहाँ बैशाखी की रात के

जलसों की अंगार होती है

और उस पार खड़े ,

तेरी आंखों में मेरे लिए प्यार होता है

और धीमे धीमे बढता हुआ ,

मेरा इकरार होता है !!!

उस पल में कोई सर्द हवा का झोंका

तेरे हाथो का असर मेरी जुल्फों में कर जाता है ,

और तेरे होठों का असर मेरे चेहरे पर कर जाता है ,

और मैं शर्मा कर तेरे सीने में छूप जाती हूँ ......

यूँ ही कुछ ऐसे रूककर ; बीते हुए ,

आँखों के पानी में ठहरे हुए ;

दिल की बर्फ में जमे हुए ;

प्यार की आग में जलते हुए ...

सपने मुझे अपनी बाहों में बुलाते है !!!

पर मैं और मेरी जिंदगी तो ;

कुछ दुसरे कमरों में भटकती है !

अचानक ही यादो के झोंके

मुझे तुझसे मिला देते है .....

और एक पल में मुझे

कई सदियों की खुशी दे जाते है ...

काश

इन पलो की उम्र ;

सौ बरस की होती ................

***************************

13 comments:

Anonymous said...

PREM PAR DO KAVITAYEN.SHIKWA BHEE
HAI,GILAA BHEE HAI,PYAAR BHEE HAI
AUR SWEEKRITI BHEE HAI.SAHAJ AUR
SUNDAR ABHIVYAKTI KE LIYE MEREE
BADHAAEE.

"अर्श" said...

shreshth aur bishishth shri mahaavir ji ko mera pranaam,
haalaki main vijay ji ko pahale bhi padhaa hun... fir se unhe padhana aapke blog pe bahot hi achha laga... prem pe likhi behatar abhibyakti aur prastuti vijay ji ke taraf se kamaal ki baat hai... sabse achhi baat to ye hai ke aapke blog pe unko padh raha hun....

abhaar
arsh

vijay kumar sappatti said...

आदरणीय महावीर जी ,
प्रणाम;
आपके शानदार ब्लॉग पर मेरी दो कवितायें देखकर मुझे बहुत ही अधिक आनंद हो रहा है.. मेरे लिए ये बहुत बड़ा आशीर्वाद है आपका .. आपने इतना मान दिया .. मेरा नमन है आपको !

ये दोनों कवितायें बहुत ही emotional शब्दचित्र प्रस्तुत करतें है .. specially "कोई एक पल " तो बहुत अच्छी नज़्म है .. मुझे ख़ुशी है की आपने मेरी प्रिय कविताओं को अपने ब्लॉग पर प्रतुत किया है ..

मुझे यकीन है की पाठको को ये कवितायें एक अलग दुनिया में ले जाएँगी ..!

आपका धन्यवाद
आपका
विजय

सुशील छौक्कर said...

विजय जी क्या खूब लिखा है मैं तो डूब ही गया इनको पढते हुए। जो एक लय बनी है सच उस पर झूमने का मन है कई बार पढ गया पहली वाली को। ऐसे ही लिखकर हमें झूमने के लिए मजबूर करते रहिए।

दिगम्बर नासवा said...

सुन्दर लिखा है विजय जी ने......
प्यार का रंग यूँ तो छाया रहता है सब पर....पर न मानना तो उनका हठ है बस

ताऊ रामपुरिया said...

पढते २ गहन भावों मे ले जाती हैं ये रचनाएं. बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

सीमा रानी said...

सपने मुझे अपनी बाहों में बुलाते है !!!

पर मैं और मेरी जिंदगी तो ;

कुछ दुसरे कमरों में भटकती है !

अचानक ही यादो के झोंके

मुझे तुझसे मिला देते है .....

और एक पल में मुझे

कई सदियों की खुशी दे जाते है ...

काश

इन पलो की उम्र ;

सौ बरस की होती .........


vijay ji ye aapki behatreen rachanaon men se ek hai .aapke blog par to ise padha hi tha par aaj padh kar alag hi anubhooti hui .
aap to prem kavitayen hi likha karen aisa mera nivedan hai.

कडुवासच said...

सुन्दर रचनाएँ, प्रेम की अभिव्यक्ति भावपूर्ण है।

गौतम राजऋषि said...

सुंदर शब्दों की अनूठी प्रेम-अभिव्यक्ति

योगेन्द्र मौदगिल said...

बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकारें

Dr. Sudha Om Dhingra said...

भावपूर्ण रचनाएँ , मैं तो पढ़ते -पढ़ते खो गई.

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Bahut hi badhiya
aapka blog padhke bahut hi acha laga

Anonymous said...

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