हिन्दी के मात्रिक छंद 'पीयूष वर्ष' / बहरे-रमल में 'प्राण शर्मा' की तीन ग़ज़लें:
हिंदी के कवि और शायर हिंदी के छंदों और ग़ज़ल की बहरों में साम्यता लाने का प्रयास कर रहे हैं। हिंदी के छंद, पहले से ही, हिंदी-उर्दू दोनों ही भाषाओं में कही जाने वाली ग़ज़लों में प्रयुक्त हो रहे हैं।
'प्राण शर्मा' की तीन ग़ज़लें मात्रिक छंद 'पीयूष वर्ष' में लिखी गई हैं जिसमें १९ मात्राएं होती हैं और अंत में लघु गुरू होती हैं। तीनों ग़ज़लें उर्दू की ग़ज़ल 'बहरे-रमल' में भी लागू होती हैं जिसकी 'अरकान' है:
फ़ा इ ला तुन फ़ा इ ला तुन फ़ा इ लुन
ग़ज़ल १:
नित नई नाराज़गी अच्छी नहीं
प्यार में रस्सा-कशी अच्छी नहीं
दिल्लगी जिन्दादिली से कीजिए
दिलजलों से दिल्लगी अच्छी नहीं
एक रब है और हैं मज़हब कई
बात दुनिया में यही अच्छी नहीं
ज़िन्दगी से प्यार करते हो मगर
कहते हो कि ज़िन्दगी अच्छी नहीं
मुस्कुराओ कुछ तो जीवन में कभी
हर घड़ी संजीदगी अच्छी नहीं
'प्राण' मिलते हैं कहां ये रोज़ रोज़
दोस्तों से दुश्मनी अच्छी नहीं
'प्राण' शर्मा
******************
ग़ज़ल २:
डालियां झंझोड़ कर जाना तेरा
पत्तियों पर ज़ुल्म है ढाना तेरा
कब मुझे भाया है कि भायेगा अब
वक्त और बेवक्त घर आना तेरा
शुबह में कुछ डाल देता है मुझे
कस्मों पे कस्में सदा खाना तेरा
कहता है उसको, सुनाता है मुझे
बात है या है कोई ताना तेरा
नित नए ही रूप में मिलता है तू
राज़ आसां है कहां पाना तेरा
लगता है ऐ 'प्राण' फ़ितरत है तेरी
उलझनों को और उलझाना तेरा
'प्राण' शर्मा
******************
ग़ज़ल ३:
आपको रोका है कब मेरे जनाब
शौक से पढ़िए मेरे दिल की किताब
बात सोने पर सुहागा सी लगे
सादगी के साथ हो कुछ तो हिजाब
साथ दुख के होता है सुख कुछ न कुछ
कब जुदा रहता है कांटे से गुलाब
छोड़ अब दिन रात का गुस्सा सभी
कम न पड़ जाए तेरे चेहरे की आब
धुन्ध बस्ती की हटे तो बात हो
कुछ नज़र आए दिलों के आफ़ताब
रोज़ ही इक ख़्वाब से आए हैं तंग
'प्राण' परियों वाला हो कोई तो ख़ाब
'प्राण' शर्मा
***********************
नित नई नाराज़गी अच्छी नहीं
प्यार में रस्सा-कशी अच्छी नहीं
दिल्लगी जिन्दादिली से कीजिए
दिलजलों से दिल्लगी अच्छी नहीं
एक रब है और हैं मज़हब कई
बात दुनिया में यही अच्छी नहीं
ज़िन्दगी से प्यार करते हो मगर
कहते हो कि ज़िन्दगी अच्छी नहीं
मुस्कुराओ कुछ तो जीवन में कभी
हर घड़ी संजीदगी अच्छी नहीं
'प्राण' मिलते हैं कहां ये रोज़ रोज़
दोस्तों से दुश्मनी अच्छी नहीं
'प्राण' शर्मा
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ग़ज़ल २:
डालियां झंझोड़ कर जाना तेरा
पत्तियों पर ज़ुल्म है ढाना तेरा
कब मुझे भाया है कि भायेगा अब
वक्त और बेवक्त घर आना तेरा
शुबह में कुछ डाल देता है मुझे
कस्मों पे कस्में सदा खाना तेरा
कहता है उसको, सुनाता है मुझे
बात है या है कोई ताना तेरा
नित नए ही रूप में मिलता है तू
राज़ आसां है कहां पाना तेरा
लगता है ऐ 'प्राण' फ़ितरत है तेरी
उलझनों को और उलझाना तेरा
'प्राण' शर्मा
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ग़ज़ल ३:
आपको रोका है कब मेरे जनाब
शौक से पढ़िए मेरे दिल की किताब
बात सोने पर सुहागा सी लगे
सादगी के साथ हो कुछ तो हिजाब
साथ दुख के होता है सुख कुछ न कुछ
कब जुदा रहता है कांटे से गुलाब
छोड़ अब दिन रात का गुस्सा सभी
कम न पड़ जाए तेरे चेहरे की आब
धुन्ध बस्ती की हटे तो बात हो
कुछ नज़र आए दिलों के आफ़ताब
रोज़ ही इक ख़्वाब से आए हैं तंग
'प्राण' परियों वाला हो कोई तो ख़ाब
'प्राण' शर्मा
***********************
23 comments:
... गजलें पढकर मन प्रसन्न हो गया, तीनों गजलें दिल को छूने वाली व अत्यंत प्रसंशनीय हैं।
shreshth aur vishishth sri mahaavir ji ko mera saadar charan sparsh,
bahare ramal ki tino gazalen aapne jo gazal pitamah ki padhwaaee uske liye kaise shukriya aada karu samajh nahi aaraha hai ... saath me bahot hi umda jaankaari bhi aapne di jo mulatah ham jaise navsikhion ke liye kafi mahatwapurn hai....
bahot bahot aabhaar aapka ke aap mere blog pe aaye aur meri gazal ke kuchh asaaar aapko achhe lage...
abhaar aapka
arsh
मन को छू कर निकल गयीं तीन गज़लें.........
बहुत ही बेहतरीन हैं तीनों की तीनों
teenoN ghazaleiN umdaa aur meaari haiN...
khaaliq ke adab-shnaas hone ki tasdeeq karti haiN....
ye tehreer hm tk pahunchaane ke liye aapka shukriyaa.
---MUFLIS---
आदरणीय प्राण सर ,
तीनों गज़ल बहुत अच्छी लगी । प्रथम दो गज़ल के हर शेर को बार पढ़ने का मन हुआ और हर बार वाह वाह अपने आप निकलता रहा ।
दाद कबूल करें ।
सादर
हेम ज्योत्स्ना
आ. प्राण भाई साहब की तीनोँ गज़लेँ नायाब नगीने सी चमचमाती हुई यहाँ प्रस्तुत करने के लिये आदरणीय महावीर जी का शुक्रिया और आशा करते हैँ कि इसी तरह प्राण भाई साहब की लेखनी चलती रहेगी ..
- लावण्या
कहता है उसको, सुनाता है मुझे
बात है या है कोई ताना तेरा
नित नए ही रूप में मिलता है तू
राज़ आसां है कहां पाना तेरा
प्राण जी लाजवाब......!!
रोज़ ही इक ख़्वाब से आए हैं तंग
'प्राण' परियों वाला हो कोई तो ख़ाब
वाह वाह ......!!
बस दाद दिए जाता हूँ अब और क्या कहूं मैं
एक रब है और हैं मज़हब कई
बात दुनिया में यही अच्छी नहीं
इस शेर की तो बात ही कुछ और है
वीनस केसरी
प्राण साहब की तीनों ग़ज़लें पढ़ीं- तीनों एक से बढ़ कर एक...
पर ये शे'र अंदर कहीं अटक गए---
एक रब है और हैं मज़हब कई
बात दुनिया में यही अच्छी नहीं
ज़िन्दगी से प्यार करते हो मगर
कहते हो कि ज़िन्दगी अच्छी नहीं
बहुत खूब...
सुधा
आदरणीय प्राण जी की हर गजलो मे कुछ ऐसा एहसास होता है ...जो मन को भा ले जाता है....हर शेर अपनी एक ऐसे दास्ताँ प्रस्तुत करता है की मेरा दिल सोचने पे मजबूर हो जाता है की ये सब जिन्दगी से कितना जुडा हुआ है.....हर शब्द हर शेर सभी कुछ तो...........
अब मेरी नजर ने इन तीन शेरो को एक बार में ही अलग कर डाला , इनमे जो अर्थ छुपा है के वो हमारी रोजमर्रा के जीवन से सम्बंधित नहीं????? चाहे हम अपने आप से जोड़े , मायूसी se, प्यार से, नफरत से, याद से, रिश्तों से हर जगह ये पंक्तियाँ अपनी सार्थकता प्रकट करती हैं......
ज़िन्दगी से प्यार करते हो मगर
कहते हो कि ज़िन्दगी अच्छी नहीं
कब मुझे भाया है कि भायेगा अब
वक्त और बेवक्त घर आना तेरा
छोड़ अब दिन रात का गुस्सा सभी
कम न पड़ जाए तेरे चेहरे की आब
इस ब्लॉग पर इन्हें प्रस्तुत करने का आभार.....
Regards
एक रब है और हैं मज़हब कई
बात दुनिया में यही अच्छी नहीं
शुबह में कुछ डाल देता है मुझे
कस्मों पे कस्में सदा खाना तेरा
साथ दुख के होता है सुख कुछ न कुछ
कब जुदा रहता है कांटे से गुलाब
सुभान अल्लाह...ये ग़ज़लें नहीं ..ज़िन्दगी जीने का अंदाज़ सिखाने वाली बातें हैं...सादा जबान में कहे गए अनमोल शेर पढने वालों के दिल में बेरोक टोक घुस जाते हैं ,प्राण साहेब की शायरी की येही खासियत उन्हें सारे नए पुराने शायरों से अलग करती है...इश्वर उन्हें लम्बी उम्र और अच्छी सेहत अता फरमाए....
नीरज
pran ji apke dil ki kitab hamare jahan ke panno par ankit ho gayee hai lazvaab gazalen hai bahut bahut badhai
आदरणीय महावीर जी,
सादर प्रणाम। यदि आज आपने आदरणीय प्राण साहब की प्राणवायु प्रदान करती हुई ये तीन बेशक़ीमती ग़ज़लें पेश की हैं निश्चित तौर पर आप सेहतमंद और नौजवानों को सदा की भांति प्रेरित करने वाले सुन्दर मूड में होंगे ही और यही हम सबकी दुआ भी है के आपके ये प्रिय आशीर्वाद हम सबको सदा इसी तरह मिलते रहें। वास्तव में आज की ये तीनों ग़ज़लें दरिया-ए-नूर हैं। ख़ास तौर पर ये अश’आर बेहद गहरे हैं :-
नित नई नाराज़गी अच्छी नहीं
प्यार में रस्सा-कशी अच्छी नहीं
ज़िन्दगी से प्यार करते हो मगर
कहते हो कि ज़िन्दगी अच्छी नहीं
'प्राण' मिलते हैं कहां ये रोज़ रोज़
दोस्तों से दुश्मनी अच्छी नहीं
शुबह में कुछ डाल देता है मुझे
कस्मों पे कस्में सदा खाना तेरा
नित नए ही रूप में मिलता है तू
राज़ आसां है कहां पाना तेरा
लगता है ऐ 'प्राण' फ़ितरत है तेरी
उलझनों को और उलझाना तेरा
आपको रोका है कब मेरे जनाब
शौक से पढ़िए मेरे दिल की किताब
धुन्ध बस्ती की हटे तो बात हो
कुछ नज़र आए दिलों के आफ़ताब
और एक शेर न जाने क्यूँ हम यूँ पढ़ गए मुआफ़ कीजिएगा-
दिल्लगी ज़िंदादिलों से कीजिए
दिलजलों से दिल्लगी अच्छी नहीं
बहुत सुन्दर गजलें हैं और सबंधित जानकारियाँ। बहुत कुछ सीखने के लिये है यहाँ।धन्यवाद आदरणीय प्राण शर्मा जी।
प्राण साब की गज़लों को पढ़ना और फिर कुछ कहना....पढ़ने के बाद फिर इस लायक हम बचते ही कहाँ कि कुछ कह सकें...
बेमिसाल गज़लें तेनों की तीनों
कुछ शेर जो खास कर भाये "ज़िन्दगी से प्यार करते हो मगर /कहते हो कि ज़िन्दगी अच्छी नहीं" और फिर ये "कब मुझे भाया है कि भायेगा अब
वक्त और बेवक्त घर आना तेरा " और ये "बात सोने पर सुहागा सी लगे / सादगी के साथ हो कुछ तो हिजाब "
दूसरी गज़ल का मतला तो जानलेवा है...वाह!
प्राण साब को नमन और आदरणीय महावीर जी को ढ़ेरों शुक्रिया
kis gazal ki taarif karun
kya kahun,kya na kahun
prashansa ki baat rahne dijiye
baar-baar is gazal ko padhne dijiye......
प्राण साहब,तीनो गजले किसी तारीफ़ की मोहताज नही, इन्हे पढ कर मुंह से खुद वा खुद वाह वाह निकलती है, लाजवाब...बेहतरीन...बहुत सुंदर
धन्यवाद
नायाब पेशकश!
बहुत ही बढ़िया लगी यह पेशकश ...सभी शेर लफ्ज़ दिल के करीब से हो कर गुजरे .शुक्रिया इसको पढ़वाने के लिए .
साथ दुख के होता है सुख कुछ न कुछ
कब जुदा रहता है कांटे से गुलाब
बहुत खूब लगा यह
Ek se badhker ek ..... sabhi lajavaab....
aadarniya pran ji ki saari gazalon ne dil choo liya .. waah ji waah .. ek se bhadkar ek sher hai aur sabhi zindagi ke kareeb hai ..
waah , dil se badhai sweekar karen ..
aapkii teeno gajle padiin jo man ko kaaphi gehre chhune men safal rhiin hain aap vakei achhe gajal kar hain jisme koi sandeh nahi hai isiliye aapki gajlon ka intjar rehta hai padne ke liye
ashok andrey
मेहनत प्राण जी की, प्रतिभा प्राण जी की, ग़ज़लें प्राण जी की और कैसा न्याय है कि फल मुझे मिल रहा है। टिप्पणियों में लोग उनकी ग़ज़लों के साथ साथ मेरा भी धन्यवाद दे रहे हैं। भई, मैं तो पहले ही प्राण जी का अहसानमंद हूं कि अपनी ख़ूबसूरत ग़ज़लों से इस ब्लाग की शान बढ़ा रहे हैं।
आशा है आपने जिस तरह से ग़ज़ल की शमाअ जलाई है, उसकी रौशनी में ग़ज़ल के विद्यार्थियों को सही राह मिलती रहेगी।
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