१६ अप्रैल,बृहस्पतिवार को श्री तेजेंद्र शर्मा की दो गज़लें पढ़ियेगा।
दो ग़ज़लें: दो रंग
महावीर शर्मा
पहला रंग:
ये ग़ज़ल हिन्दी छंद 'पीयूष वर्ष' और उर्दू ग़ज़ल की बहरे-रमल दोनों में
प्रयुक्त की गई है। 'पीयूष वर्ष' छंद में १९ मात्राएँ और अंत में लघु-गुरु
होते हैं। इसी समकक्ष उर्दू की इस ग़ज़ल की अरकान है:
फ़ा इ ला तुन फ़ा इ ला तुन फ़ा इ लुन (२१२२ २१२२ २१२)
ग़म की दिल से दोस्ती होने लगी
ज़िन्दगी से दिल्लगी होने लगी
जब मिली उसकी निगाहों से मिरी
उसकी धड़कन भी मिरी होने लगी
ज़ुल्फ़ की गहरी घटा की छाँव में
ज़िन्दगी में ताज़गी होने लगी
बेसबब जब वो हुआ मुझ से ख़फ़ा
ज़िन्दगी में हर कमी होने लगी
बह न जायें आंसू के सैलाब में
साँस दिल की आखिरी होने लगी
आंसुओं से ही लिखी थी दासतां
भीग कर क्यों धुन्दली होने लगी
जाने क्यों मुझ को लगा कि चांदनी
तुझ बिना शमशीर सी होने लगी
आज दामन रो के क्यों गीला नहीं ?
आंसुओं की भी कमी होने लगी
तश्नगी बुझ जायेगी आंखों की कुछ
उसकी आंखों में कमी होने लगी
डबडबायी आंखों से झांको नहीं
इस नदी में बाढ़ सी होने लगी
इश्क़ की तारीक़ गलियों में जहाँ
दिल जलाया, रौशनी होने लगी
आ गया क्या वो तसव्वर में मिरे?
दिल में कुछ तस्कीन सी होने लगी
मरना हो, सर यार के काँधे पे हो
मौत में भी दिलकशी होने लगी
महावीर शर्मा
दूसरा रंग:
कभी कभी इंसान कुछ ऐसे हालात का शिकार हो जाता है कि चाहते
हुए भी पीने पर मजबूर हो जाता है। इस ग़ज़ल में ऐसे ही ८ शरीफ़
आदमियों की मजबूरियां देखिये जिसकी वजह से 'पीनी पड़ गई'।
ग़ज़ल अभी अधूरी है, आशा है कि आप ही इसे पूरा करेंगे:
१) हम कहाँ पीते, मगर इक बार पीनी पड़ गई
मिल गए कुछ ब्लोगियाई यार, पीनी पड़ गई
२) हम ने तो कर ली थी तौबा सिर्फ़ पीकर एक बार
इश्क़ में जब हो गए बीमार, पीनी पड़ गई
३) डाल कर बाहें गले में, हंस के बोले साक़िया
दिल न तोड़ो, पी भी लो सरकार! पीनी पड़ गई
४) मुस्कुरा, नीची नज़र से होंट पे ख़म ला के बोलीं
पीजिये! है मय में मेरा प्यार, पीनी पड़ गई
५) चश्म के पैमाने थे या जाम दो लबरेज़ थे
देख कर ना कर सके इनकार, पीनी पड़ गई
६) देख शोखे-मैकदा को, हम तो बिस्मिल हो गए
लुट गए हम, जब किया इज़हार, पीनी पड़ गई
७) नाम मेरा प्यार से अपनी हथेली पर लिखा
हाथ छूकर वस्ल का इक़रार, पीनी पड़ गई
८) हाथ में इक जाम देकर, जाते जाते कह गया
ग़म की बातें दिल पे मत ले यार, पीनी पड़ गई
आप से गुज़ारिश है:
टिप्पणी में आप भी अपनी बताएं दोस्तो
हो गए मजबूर जो हर बार पीनी पड़ गई
महावीर शर्मा
( यह ग़ज़ल हिन्दी छंद 'गीतिका' और इसी समकक्ष उर्दू की ग़ज़ल की
बहरे-रमल में लिखी गई है। 'गीतिका' में प्रति चरण १४-१२ के विश्राम
से २६ मात्राएँ और तीसरी, दसवीं, सत्रहवीं और चौबीसवीं मात्राएँ लघु
होती हैं। इस ग़ज़ल की बहरे-रमल की अरकान है:
फ़ा इ ला तुन फ़ा इ ला तुन फ़ा इ ला तुन फ़ा इ लुन (२१२२ २१२२ २१२२ २१२)।
महावीर शर्मा
पहला रंग:
ये ग़ज़ल हिन्दी छंद 'पीयूष वर्ष' और उर्दू ग़ज़ल की बहरे-रमल दोनों में
प्रयुक्त की गई है। 'पीयूष वर्ष' छंद में १९ मात्राएँ और अंत में लघु-गुरु
होते हैं। इसी समकक्ष उर्दू की इस ग़ज़ल की अरकान है:
फ़ा इ ला तुन फ़ा इ ला तुन फ़ा इ लुन (२१२२ २१२२ २१२)
ग़म की दिल से दोस्ती होने लगी
ज़िन्दगी से दिल्लगी होने लगी
जब मिली उसकी निगाहों से मिरी
उसकी धड़कन भी मिरी होने लगी
ज़ुल्फ़ की गहरी घटा की छाँव में
ज़िन्दगी में ताज़गी होने लगी
बेसबब जब वो हुआ मुझ से ख़फ़ा
ज़िन्दगी में हर कमी होने लगी
बह न जायें आंसू के सैलाब में
साँस दिल की आखिरी होने लगी
आंसुओं से ही लिखी थी दासतां
भीग कर क्यों धुन्दली होने लगी
जाने क्यों मुझ को लगा कि चांदनी
तुझ बिना शमशीर सी होने लगी
आज दामन रो के क्यों गीला नहीं ?
आंसुओं की भी कमी होने लगी
तश्नगी बुझ जायेगी आंखों की कुछ
उसकी आंखों में कमी होने लगी
डबडबायी आंखों से झांको नहीं
इस नदी में बाढ़ सी होने लगी
इश्क़ की तारीक़ गलियों में जहाँ
दिल जलाया, रौशनी होने लगी
आ गया क्या वो तसव्वर में मिरे?
दिल में कुछ तस्कीन सी होने लगी
मरना हो, सर यार के काँधे पे हो
मौत में भी दिलकशी होने लगी
महावीर शर्मा
दूसरा रंग:
कभी कभी इंसान कुछ ऐसे हालात का शिकार हो जाता है कि चाहते
हुए भी पीने पर मजबूर हो जाता है। इस ग़ज़ल में ऐसे ही ८ शरीफ़
आदमियों की मजबूरियां देखिये जिसकी वजह से 'पीनी पड़ गई'।
ग़ज़ल अभी अधूरी है, आशा है कि आप ही इसे पूरा करेंगे:
१) हम कहाँ पीते, मगर इक बार पीनी पड़ गई
मिल गए कुछ ब्लोगियाई यार, पीनी पड़ गई
२) हम ने तो कर ली थी तौबा सिर्फ़ पीकर एक बार
इश्क़ में जब हो गए बीमार, पीनी पड़ गई
३) डाल कर बाहें गले में, हंस के बोले साक़िया
दिल न तोड़ो, पी भी लो सरकार! पीनी पड़ गई
४) मुस्कुरा, नीची नज़र से होंट पे ख़म ला के बोलीं
पीजिये! है मय में मेरा प्यार, पीनी पड़ गई
५) चश्म के पैमाने थे या जाम दो लबरेज़ थे
देख कर ना कर सके इनकार, पीनी पड़ गई
६) देख शोखे-मैकदा को, हम तो बिस्मिल हो गए
लुट गए हम, जब किया इज़हार, पीनी पड़ गई
७) नाम मेरा प्यार से अपनी हथेली पर लिखा
हाथ छूकर वस्ल का इक़रार, पीनी पड़ गई
८) हाथ में इक जाम देकर, जाते जाते कह गया
ग़म की बातें दिल पे मत ले यार, पीनी पड़ गई
आप से गुज़ारिश है:
टिप्पणी में आप भी अपनी बताएं दोस्तो
हो गए मजबूर जो हर बार पीनी पड़ गई
महावीर शर्मा
( यह ग़ज़ल हिन्दी छंद 'गीतिका' और इसी समकक्ष उर्दू की ग़ज़ल की
बहरे-रमल में लिखी गई है। 'गीतिका' में प्रति चरण १४-१२ के विश्राम
से २६ मात्राएँ और तीसरी, दसवीं, सत्रहवीं और चौबीसवीं मात्राएँ लघु
होती हैं। इस ग़ज़ल की बहरे-रमल की अरकान है:
फ़ा इ ला तुन फ़ा इ ला तुन फ़ा इ ला तुन फ़ा इ लुन (२१२२ २१२२ २१२२ २१२)।
33 comments:
डबडबायी आंखों से झांको नहीं
इस नदी में बाढ़ सी होने लगी
आदरणीय महावीर जी सादर प्रणाम,
अभी तो मैं सिर्फ पहले वाले ग़ज़ल के लिए ही टिपण्णी दे रहा हूँ मगर क्या लिखूं ये समझ नहीं आरहा है आपके शे'र और ग़ज़लों के बारे में मैं नाचीज क्या कहूँ ... बस सलाम करता चलूँ...
दुसरे ग़ज़ल के लिए शाम को आता हूँ...
आभार
अर्श
हम कहाँ पीते, मगर इक बार पीनी पड़ गई
मिल गए कुछ ब्लोगियाई यार, पीनी पड़ गई
ग़र न पीते हम तो कहलाते कि इस क़ाबिल नहिं।
अंजुमन मै बैठे थानेदार , पीनी पड गई।
कहेते थे कैसे ना पीओगे ये हम भी देख़लें,
वरना ख़ाओगे हमारी मार, पीनी पड गई।
aadarniy mahaveer ji , is baar to kuch alag hi khushbu hai aapke gazalo ki , waah ji waah .. kya kahun ..
dusri gazal ko padhte padhte bahut baar muskaraya hoon ..
maza aa gaya ..
pahli gazal bahut hi umda hai aur man ko kahin chooti hui si hai ..
आ गया क्या वो तसव्वर में मिरे?
दिल में कुछ तस्कीन सी होने लगी
aapko dil se badhai . sir aap bahut dino se mere blog par nahi aaye hai ..
aapka
vijay
प्यार के रंगों को ग़ज़ल बना दिया
गुनगुनाने का इक बहाना बना दिया.........
................................
बहाने ही बहाने मिले पीने के लिए
नशा यूँ बढा हम भी लड़खडाने लगे ...........
बहुत बढिया.....
जाने क्यों मुझ को लगा कि चांदनी
तुझ बिना शमशीर सी होने लगी
आपकी दोनों की गज़लें............अनोखा रंग, मीठ एहसास लिए हुवे हैं
एक शेर मेरी तरफ से भी जोड़ देता हूँ.........
कसम ये खाई थी तेरे हाथ से ही पियेंगे
छोड़ गयी तू मेरा घर-बार पीनी पड़ गयी
दोनों ग़जलें अपने अपने रंगों में खूब हैं । दूसरी वाली में काफिया और रदीफ का खूब निर्वाहन है । और एक मजेदार रदीफ का उतना ही सुन्दर प्रयोगों के साथ बहाव है। गुणी जनों की ग़ज़लों में ये रंग न आयेगा तो क्या हमारी ग़ज़लों में आयेगा । मेरा प्रणाम ।
पीनी पड़ गई ...
I shared this with my friends and we enjoyed it too much. this is really cool stuff.
Thanks
-Sharad
DO GAZALEN AUR DO RANG.DONON RANG
EK-DOOSRE PAR HAAVEE HAIN.BAHUT
DINON KE BAAD GAZAL KAA ASLEE ROOP
NAZAR AAYAA HAI.BADHAAEEYAN.
बेसबब जब वो हुआ मुझ से ख़फ़ा
ज़िन्दगी में हर कमी होने लगी
दोनों गज़लों का रंग जुदा अंदाज जुदा .......कौन से शेर की तारीफ करू और कौन से की नहीं कशमश में हु ......सभी की अपनी बात है अपनी ही अदा है......आभार
Regards
आँखें जब बात करती है, तो सब सुनते है । बोलता कोई नही । वहां शब्दों की जरुरत नही । उन आंखों में गजब का आकर्षण होता है । कहानी ख़ुद ब ख़ुद बयां हो जाती है ....i came here first time...nice moment..
क्या कहेँ बहुत खूब !! आनँदम्` आदरणीय महावीर जी की दोनोँ गज़लोँ का ऐसा असर हुआ
सोचते हम रह गये रुह ने हमारे आज आफताबे जाम मानोँ पी ली
- लावण्या
pahlee गजल bahur sundar lagee
हम पीते नहीं इसलिए doosree गजल के विषय में कुछ नहीं कह सकते
वीनस केसरी
"जाने क्यों मुझ को लगा कि चांदनी/तुझ बिना शमशीर सी होने लगी" और फिर "इश्क़ की तारीक़ गलियों में जहाँ/दिल जलाया, रौशनी होने लगी"
बेमिसाल शेर हैं गुरूवर...
और दूसरी ग़ज़ल तो बस उफ़....
तमाम तारिफ़ों से परे है, जाने किस-किस को पिलायेगी ये ग़ज़ल...
जाम से था वास्ता अपना न कोई दूर तक
ये ग़ज़ल तेरी सुनी तो यार पीनी पड़ गयी
महावीर जी,
वाह! आप तो महारथी हैं ग़ज़ल लिखने के। बहर-वज़न-रदीफ़-क़ाफ़िया तो ख़ैर है ही, हर एक शेर इतना सुंदर और गहरा...
दूसरी गज़ल हुई तो शुरु हँसी हँसी में मगर हर शेर उम्दा...वाह!
"... धर्म-कर्म को छोड गया हूँ
जात-पात को भूल गया हूँ
प्याला हाथ में उठा लिया हूँ
सब से हाथ मिला लिया हूँ
गोरे-काले की बात नही है
ऊँच-नीच का भेद नही है
जाम-से-जाम लडा रहा हूँ
पी-पी कर अब झूम रहा हूँ ...।"
दोनों ग़ज़लें अति उत्तम- किसकी तारीफ करूँ.
डबडबायी आंखों से झांको नहीं
इस नदी में बाढ़ सी होने लगी
महावीर जी दोनों ग़ज़लें भिन्न रंग रूपता लिए हुए
एक-एक शे'र लाजवाब...
कुछ कह नहीं पा रही बस आभार ...
आप की दोनो ग़ज़ल पड़कर बहुत खुशी हुई /
आप जो हिन्दी मे टाइप करने केलिए कौनसी टूल यूज़ करते हे...? रीसेंट्ली मे यूज़र फ्रेंड्ली इंडियन लॅंग्वेज टाइपिंग टूल केलिए सर्च कर रहा ता, तो मूज़े मिला " क्विलपॅड " / आप भी " क्विलपॅड " यूज़ करते हे क्या...?
www.quillpad.in
दोनों गजले अपने रंग में खूब जमी ..बहुत अच्छी लगी दोनों ..पढ़वाने का शुक्रिया
बहुत सुन्दर अशआर!
बहुत डूब कर पढ़ी आपकी ये मतवाली गज़ल
टिपियाने जो हम बैठे इस पार,पीनी पड़ गई.
--बहुत खूब, दोनों ही!!
आदरणीय महावीर जी प्रणाम...दो अलग रंगों की ग़ज़लें पढ़ कर जो आनंद आया है उसे लफ्जों में कैसे बयां करूँ ये ही सोच रहा हूँ...आप की महफिल से मैं कभी खाली हाथ नहीं जाता हमेशा कोई न कोई नयी बात सीखने को मिलती है... शुक्रिया आपका...
नीरज
bahut sundar prastuti apko shukria
क्षमा करें महावीर जी, काफी दिनों से आपके ब्लॉग पर न आ पाया। लेकिन जब आया तो इन तो ग़ज़लों ने मेरा मन हरा कर दिया। वाह वाह! किसी एक शेर की तारीफ करूँ तो कैसे सभी बेहतर और रसभरे हैं।
दोनों गज़ले बहुत बढिया है।बधाई।
दोनों गज़ले बहुत बढिया है।बधाई।
तो फिर सुनिए.............मेहमान.....कद्रदान.......साहेबान.......निगहबान......खासो-आम..........ज़रा नोश फरमाए....इक ज़रा यह पान तो थूक लूं....वरना.......!!
था शुक्र मुझपे इतना कि खुशियों का हाय
कुछ ख़ुशी कम करने को पीनी पड़ गयी !!
पता नहीं क्यूँ ऊपर वाले ने भेजा मुझे यहाँ
जिन्दगी जीने की खातिर जीनी पड़ गयी !!
लानत है मुझपे कि वक्ते-हयात पिया न गया
जन्नत में खुदा के साथ को पीनी पड़ गयी !!
मैं अपने साथ लाया था कुछ सुख की शराब
ना चाहते हुए भी आदम को पीनी पड़ गयी !!
मैं अपनी कब्र पे बैठा सोचा किया "गाफिल"
ये कैसी जिन्दगी थी जो मुझे जीनी पड़ गयी !!
.............जनाब आगे से हमें ना उकसायियेगा..........अच्छा सलाम.....राम-राम.....!!
Adarneeya Mahavirji
aapki donon gazal bemisaal hai.
ज़ुल्फ़ की गहरी घटा की छाँव में
ज़िन्दगी में ताज़गी होने लगी
sach mein
धूप भी है, छाँव भी है जिंदगी
हर सफ,र में साया बनती ज़िंदगी
देवी नागरानी
आदरणीय महावीर जी , नमस्कार .
दोनों गज़लें पढीं ,
मन में कहीं गहरे असर छोड़ गईं .
pehli ग़ज़ल क mei ये शेर.....
"बेसबब जब वो हुआ मुझ से ख़फ़ा
ज़िन्दगी में हर कमी होने लगी..."
वाक़ई.... रवायती ग़ज़ल की बेहतर अक्कासी करता है ....
आप तो अदब-शनास ,
आलिम-फ़ाज़िल शख्सियत हैं ,
आपकी तख्लीक़ात से गुज़रना अपने आप में एक तज्रबा होता है .....
दूसरी ग़ज़ल के लिए .....
"शिद्दते-ग़म , शिद्दते-हालात से घबरा गए ,
हादिसों से जब हुए दो-चार , पीनी पड़ गयी "
"देख कर उस हाथ में साग़र, नज़र में मस्तियाँ ,
कर लिया तौबा से भी इनकार , पीनी पड़ गयी "
"रास आने ही लगी हो जब खुमारी नाम की ,
जिंदगी में फिर तो बारम्बार पीनी पड़ गयी "
"खुशनुमा,पुर-कैफ हो महफिल 'महावीर' आपकी ,
क्यूं न हो 'मुफलिस'भला सरशार,पीनी पड़ गयी "
chaliye isi bahaane...aapki nek raah-numaaee ke zer-e-asar ek ghazal ho jaane ke imkaan ho gye haiN...
दुआओं और अक़ीदत के साथ. . . . .
---मुफलिस---
Sir Bahut achchhi Gazal
जाने क्यों मुझ को लगा कि चांदनी
तुझ बिना शमशीर सी होने लगी
Aap ki rachanao se mujhe kuchh sikhane ko milta hai ki kaise sabdo ka use kare, kaise bhavon ko shabdo me dhale...aapke margdarshan ki mujhe hamesha jarurat rahegi...
Regards
mahavir ji
speechless
kis khoobsurti se aapne shabd diye hai gazal ko..yakinan dil ke kariib
ek behatriin gazal ke liye naachiiz ki taraf se dhero bandhaiii
महावीर शर्मा की ग़ज़लोँ मेँ हैँ
बहुत दि नशीँ ओर उत्तम विचार
उन्हेँ देख कर चाहता है यह दिल
उन्हेँ यूँ ही पढते रहेँ बार बार
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
नई दिल्ली-110025
जिनकी खातिर छोड़कर पीना जीना सीखा था
छोड़ गए वो ही ये संसार, पीनी पड़ गयी
राघवेन्द्र शास्त्री
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