Saturday 20 June 2009

संजीव वर्मा 'सलिल' की रचनाएँ

संक्षिप्त परिचय:
शिक्षा: अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ., एल.एल. बी., नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा, बी. . एम. आई. ., विशारद, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कम्प्यूटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा.
सम्प्रति: आप .प्र. सड़क विकास निगम में उप महाप्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं.
कृतियाँ: 'कलम के देव'(भक्ति गीत संग्रह), 'लोकतंत्र का मकबरा', 'मीत मेरे', 'भूकंप के साथ जीना सीखें'. आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं स्मारिकाओं का भी संपादन किया है। अनेक पत्रिकाओं में विविध विषयों में लगातार लेखन.
सम्मान: आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि। पिंगल साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट अवदान के लिए 'वाग्विदान्वर सम्मान'.























गीतिका-१

तुमने कब चाहा दिल दरके?

हुए दिवाने जब दिल-दर के।

जिन पर हमने किया भरोसा

वे निकले सौदाई जर के..

राज अक्ल का नहीं यहाँ पर

ताज हुए हैं आशिक सर के।

नाम न चाहें काम करें चुप

वे ही जिंदा रहते मर के।

परवाजों को कौन नापता?

मुन्सिफ हैं सौदाई पर के।

चाँद सी सूरत घूँघट बादल

तृप्ति मिले जब आँचल सरके।

'सलिल' दर्द सह लेता हँसकर

सहन न होते अँसुआ ढरके।

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

********************************

गीतिका-२

आदमी ही भला मेरा गर करेंगे।

बदी करने से तारे भी डरेंगे.

बिना मतलब मदद कर दे किसी की

दुआ के फूल तुझ पर तब झरेंगे.

कलम थामे, न जो कहते हकीक़त

समय से पहले ही बेबस मरेंगे।


नरमदा नेह की जो नहाते हैं

बिना तारे किसी के ख़ुद तरेंगे।


न रुकते जो 'सलिल' सम सतत बहते

सुनिश्चित मानिये वे जय वरेंगे।

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*********************************

(अभिनव प्रयोग)

दोहा गीतिका

तुमको मालूम ही नहीं शोलों की तासीर।

तुम क्या जानो ख़्वाब की कैसे हो ताबीर?

बहरे मिलकर सुन रहे गूँगों की तकरीर

बिलख रही जम्हूरियत, सिसक रही है पीर।

दहशतगर्दों की हुई है जबसे तक्सीर

वतनपरस्ती हो गयी ख़तरनाक तक़्सीर

फेंक द्रौपदी ख़ुद रही फाड़-फाड़ निज चीर

भीष्म द्रोण कूर कृष्ण संग, घूरें पांडव वीर।

हिम्मत मत हारें- करें, सब मिलकर तदबीर

प्यार-मुहब्बत ही रहे मज़हब की तफ़सीर

सपनों को साकार कर, धरकर मन में धीर।

हर बाधा-संकट बने, पानी की प्राचीर।

हिंद और हिंदी करे दुनिया को तन्वीर।

बेहतर से बेहतर बने इन्सां की तस्वीर।

हाय! सियासत रह गयी, सिर्फ़ स्वार्थ-तज़्वीर।

खिदमत भूली, कर रही बातों की तब्ज़ीर।

तरस रहा मन 'सलिल' दे वक़्त एक तब्शीर।

शब्दों के आगे झुके, जालिम की शमशीर।

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

********************************************


आगामी अंक: २९ जून २००९
भारत से सुशील कुमार की कविता:
'इस शहर में रोज़'

25 comments:

Yogesh Verma Swapn said...

ati sunder rachnaon ke liye aabhaar.

Vinay said...

बहुत ख़ूबसूरत

---
चर्चा । Discuss INDIA

PRAN SHARMA said...

BHAVON SE YUKT ACHARYA "SALIL" KEE
RACHNAAYEN PADHKAR BAHUT ACHCHHA
LAGAA HAI.KASH,UNKEE IN PANKTIYON
PAR SANSAR ANUSARAN KAR PAATAA--
BINA MTLAB MADAD KAR DE KISEE KEE
DUA KE PHOOL TUJHPAR TAB JHARENGE
----------
NAAM N CHAAHEN KAAM KAREN CHUP
VE HEE ZINDA RAHTE MARKKE
---------
HIMMAT MAT HAAREN,KAREN
SAB MILKAR TADBEER
PYAR MUHABBAT HEE RAHE
MAJHAB KEE TAFSEER
TARAS RAHAA MUN "SALIL" DE
WAQT EK TABSHEER
SHABDON KE AAGE JHUKE
ZAALIM KEE SHAMSHEER
KYA HEE ACHCHHA HOTA
AGAR ACHARYA JEE URDU-FARSEE KE
LAFZON KE ARTH HINDI MEIN DETE!

"अर्श" said...

नाम न चाहें काम करें चुप

वे ही जिंदा रहते मर के।

YE DO LINE KITANI SACHHAAYEE LIYE HUYE HAI YE AACHARYA SAHIB HI LIKH SAKTE HAI .... KITANI KAMAAL KI BAAT KARI HAI UNHONE ... TINO HI RACHANAYEN HAM SIKHNE WAALON KE LIYE SAHEJANE LAYAK HAI ...
BAHOT BAHOT BADHAAYEE AACHARYA JI KO AUR AAPKO SAADAR PRANAAM GURU DEV...


ARSH

राज भाटिय़ा said...

लाजबाव, बहुत सुंदर
आभार

मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे

Vinay said...

महावीर जी मेरे नये प्रयास चर्चा । Discuss INDIA पर आपकी एक नज़र की चाह है

Udan Tashtari said...

दोनों रचनाऐं पसंद आई और तीसरी जिसमें दोहों के साथ एक बेहतरीन प्रयोगकर गीतिका के रुप में प्रस्तुत किया गया है, उसने तो मन मोह लिया. वाह!!

दिगम्बर नासवा said...

Lajawaab .......... thank you for poems

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आचार्य श्री की सुन्दर रचनाएं ,
मन को, सदैव आनंद
व तृप्ति दे जाती हैं
आदरणीय महावीर जी ,
आभार !
इन्हें हम तक पहुंचाने के लिए -
सद`भाव सहित,
- लावण्या

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचनाएं है।बहुत पसंद आई।आशा है इसी तरह रचनाएं पढने को मिलती रहेगी।धन्यवाद।

Sushil Kumar said...

अच्छी रचना। नव- गीतिका ज्यादा भायी।

Prakash Badal said...

महावीर जी आचार्य जी को कौन नहीं जानता, उनकी रचनाएँ पहले भी पढ़ी हैं और आपके ब्लॉग़ पर उनकी रचनाएँ पढ़ कर आनंद आया, आचार्य जी की रचनाएँ पढ़वाने का शुक्रिया!

Prakash Badal said...
This comment has been removed by the author.
daanish said...

बहरे मिलकर सुन रहे गूँगों की तकरीर

बिलख रही जम्हूरियत, सिसक रही है पीर।

kisi bhi mahatvapoorn baat ko km.se.km shabdoN meiN kaise prabhaavshali dhang se kahaa jata hai, iska spasht aur steek udaaharan hai aadarneey Aacharyaji ki lekhan shaili........
har baat vandaneey, anukaraneey.
abhivaadan svikaareiN.
---MUFLIS---

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

चनाऐं पसंद आई ....
आप का ब्लाग अच्छा लगा...बहुत बहुत बधाई....

neeraj1950 said...

नाम न चाहें काम करें चुप
वे ही जिंदा रहते मर के।

बिना मतलब मदद कर दे किसी की
दुआ के फूल तुझ पर तब झरेंगे.

सादा जबान में कहे गए ये शेर पढने वाले के सीधे दिल में उतर जाते हैं...बहुत बहुत शुक्रिया महावीर जी, आपने उनकी रचनाओं को पढने का मौका जो हमें दिया ...सलिल साहेब को भी इन कमाल की रचनाओं के लिए बधाई...
नीरज

महावीर said...

ई मेल द्वारा मुकेश कुमार तिवारी का सन्देश :

आदरणीय श्री महावीर जी,
बड़ा ही सार्थक ब्लॉग प्रबंध किया है और रचनाओं से संपादन का स्तर किसी स्थापित साहित्यिक पत्रिका से ऊँचा ही लगा।

विदेश में रह हिन्दी सेवा के लिये आदर सहित चरण स्पर्श।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी

Dev said...

Bahut sundar rachana..Bahut gahri fellings...
Regards.

DevPalmistry|Know about Ur Hand

योगेन्द्र मौदगिल said...

बेहतरीन ग़ज़लों की प्रस्तुति के लिये बधाई..

vijay kumar sappatti said...

aadarniy mahaveer ji

namaskar .. deri se aane ke liye maafi chahunga...

aacharya ji ki rachnaay shreshth hoti hai har parameter par .. chahe wo technical ho ya phit sorf bhaavo ki abhivyakti ...

unki rachnaaye raspoorn hoti hai ... waah

mera naman hai unhe ...
aapko bhi dhanywad deta hoon ki aapne unki rachnaao ko padhwaaya...

aabhar..
aapka
vijay

Murari Pareek said...

laajwaab hai ji alfaajon main bayaan nahi hota

Divya Narmada said...

रचनाएँ भाईं जिन्हें

वे भावों के मीत.

शत-शत वंदन कर उन्हें,

धन्य गीतिका-गीत.

'सलिल' स्नेह पा तर गया,

सबको नम्र प्रणाम.

महावीर जी बीच में

इत तुलसी-उत राम.

गौतम राजऋषि said...

आह सलील जी को पढ़ना तो किसी आँखों, मन-मस्तिष्क के लिये किसी ट्रीट से कम नहीं..
दोहे के अनूठे प्रयोग ने चकित किया तो वहीं दोनों गीतिका ने मन मोह लिया है।

Dr. Ghulam Murtaza Shareef said...

Salil ji, jaisey aap sidhey-sadey, bhole bhale hain wasi hi aapki kavita hai. saral shabdon mein gagar bhar di hai aapney.

Shubh Kamanaoon sahit

Dr. Shareef
Karachi(Pakistan)
gms_checkmate@yahoo.com

रंजना said...

आचार्वर की कृति पढना ,एक परम सुखद अनुभूति है.....माता का वरद हस्त है इनपर....इनकी लेखनी को शत शत नमन....

आदरणीय महावीर जी, आपका यह ब्लॉग तो बस उत्कृष्ट रचनाओं का ऐसा नंदन वन है,जिसमे विचरण मन आँखों और आत्मा को तृप्ति दे जाता है.....

कोटिशः आभार आपका,इस सुन्दर मंगलकारी प्रयास हेतु .....