डॉ. अहमद अली बर्क़ी आज़मी का परिचय
शहरे आज़मगढ़ है बर्क़ी मेरा आबाई वतन
जिसकी अज़मत के निशां हैं हर तरफ जलवा-फ़ेगन
मेरे वालिद थे वहां पर मरक़ज़-ए अहले- नज़र
जिनके फ़िक्रो-फ़न का मजमूआ है `तनवीरे- सुख़न'
नाम था रहमत इलाही और तख़ल्लुस `बर्क़' था
ज़ौफ़ेगन थी जिनके दम से महफ़िले शेरो-सुख़न
आज मैं जो कुछ हूँ वह है उनका फ़ैज़ाने नज़र
उन विरसे में मिला मुझको शऊरे-फ़िक्र-ओ-फ़न
राजधानी देहली में हूँ एक अर्से से मुक़ीम
कर रहा हूँ मैं यहां पर ख़िदमते अहले वतन
रेडियो के फ़ारसी एकाँश से हूँ मुंसलिक
मेरा असरी आगही बर्क़ी है मौज़ूए सुख़न .
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी, ज़ाकिर नगर, नई दिल्ली
शहरे आज़मगढ़ है बर्क़ी मेरा आबाई वतन
जिसकी अज़मत के निशां हैं हर तरफ जलवा-फ़ेगन
मेरे वालिद थे वहां पर मरक़ज़-ए अहले- नज़र
जिनके फ़िक्रो-फ़न का मजमूआ है `तनवीरे- सुख़न'
नाम था रहमत इलाही और तख़ल्लुस `बर्क़' था
ज़ौफ़ेगन थी जिनके दम से महफ़िले शेरो-सुख़न
आज मैं जो कुछ हूँ वह है उनका फ़ैज़ाने नज़र
उन विरसे में मिला मुझको शऊरे-फ़िक्र-ओ-फ़न
राजधानी देहली में हूँ एक अर्से से मुक़ीम
कर रहा हूँ मैं यहां पर ख़िदमते अहले वतन
रेडियो के फ़ारसी एकाँश से हूँ मुंसलिक
मेरा असरी आगही बर्क़ी है मौज़ूए सुख़न .
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी, ज़ाकिर नगर, नई दिल्ली
आज ग्रसित है प्रदूषण से हमारा वर्तमान
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
है प्रदूषण की समस्या राष्ट्रव्यापी सावधान
कीजिए मिल जुल के जितनी जल्द हो इसका निदान
है गलोबलवार्मिंग अभिषाप अन्तर्राष्ट्रीय
इससे छुटकारे की कोशिश कार्य है सबसे महान
हो गई है अब कयोटो सन्धि बिल्कुल निष्क्रिय
ग्रीनहाउस गैस है चारोँ तरफ अब विद्यमान
आज विकसित देश क्यूँ करते नहीँ इस पर विचार
विश्व मेँ हर व्यक्ति को जीने का अवसर है समान
हर तरफ प्रकृति का प्रकोप है चिंताजनक
ले रही है वह हमारा हर क़दम पर इम्तेहान
पूरी मानवता तबाही के दहाने पर है आज
इस से व्याकुल हैँ निरन्तर बच्चे बूढे और जवान
ग्रामवासी आ रहे हैँ अब महानगरोँ की ओर
है प्रदूषण की समस्या हर जगह बर्क़ी समान
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
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है प्रदूषण की ज़रूरी रोक थाम
डॉ. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
है प्रदूषण की ज़रूरी रोक थाम
सब का जीना कर दिया जिसने हराम
आधुनिक युग का यह एक अभिशाप है
जिस पे आवश्यक लगाना है लगाम
है कयोटो सन्धि बिल्कुल निष्क्रिय
है ज़रूरी जिसका करना एहतेराम
अब बडे शहरोँ मेँ जीना है कठिन
ज़हर का हम पी रहे हैँ एक जाम
है प्रदूषित हर जगह वातावरण
काम हो जाए न हम सब का तमाम
बढ़ रहा है दिन बदिन ओज़ोन होल
है ज़ुबाँ पर हर किसी की जिसका नाम
है गलोबल वार्मिंग का सब को भय
लेती है प्राकृकि से जो इंतेक़ाम
आज मायंमार है इसका शिकार
कल न जाने हो कहाँ यह बेलगाम
इसका जारी हर जगह प्रकोप है
हो नगर 'अहमद अली' या हो ग्राम
डॉ. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
है प्रदूषण की ज़रूरी रोक थाम
सब का जीना कर दिया जिसने हराम
आधुनिक युग का यह एक अभिशाप है
जिस पे आवश्यक लगाना है लगाम
है कयोटो सन्धि बिल्कुल निष्क्रिय
है ज़रूरी जिसका करना एहतेराम
अब बडे शहरोँ मेँ जीना है कठिन
ज़हर का हम पी रहे हैँ एक जाम
है प्रदूषित हर जगह वातावरण
काम हो जाए न हम सब का तमाम
बढ़ रहा है दिन बदिन ओज़ोन होल
है ज़ुबाँ पर हर किसी की जिसका नाम
है गलोबल वार्मिंग का सब को भय
लेती है प्राकृकि से जो इंतेक़ाम
आज मायंमार है इसका शिकार
कल न जाने हो कहाँ यह बेलगाम
इसका जारी हर जगह प्रकोप है
हो नगर 'अहमद अली' या हो ग्राम
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
16 comments:
डॉ. अहमद अली बर्की आज़मी की कवितायें
बाँच कर अच्छा अनुभव हुआ ।
आज जबकि प्रदूषण के चलते पूरी दुनिया के
आगे अस्तित्व बचाए रखने का सवाल आ खड़ा हुआ है
ऐसे में चिन्ता होना स्वाभाविक है
दोनों कवितायें उम्दा सटीक और सार्थक लगीं
बधाई !
बहुत बहुत बधाई !
अहमद अली साहब,
अस्सलाम अलैकुम
आपके विचार, उच्चतम हिंदी शब्दों का प्रयोग तथा शैली के लिए मेरी ओर से बधाई
स्वीकार करें
आशा है भविष्य में भी अच्छी शैली पढ़ने का अवसर मिलेगा
डॉ. शरीफ
कराची ( पाकिस्तान )
Dr. AHMED ALI BARQEE AAZMEE KEE
PRADOOSHAN LIKHEE KAVITAAYEN HUM
SAB KE LIYE CHETAAVNEE KE ROOP MEIN
SANDESH HAIN.KOEE SANDEH NAHIN KI
PRADOOSHAN KAA PRAKOP VINAASH KAA
KAARAN HO JAAYEGA.
ACHCHHEE KAVITA KE LIYE
MEREE BADHAAEE.
आपकी शुभकामनाऐँ चाहिऐँ
करता हूँ आभार मैँ सब का व्यक्त
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
प्रिय शर्मा जी बहुत प्रसन्न हूँ मै आप से
आपका आख़िर करूँ मैँ किस तरह आभार व्यक्त
आपकी दरयादिली का फिर भी आभारी हूँ मै
आपकी हिंदी जगत मेँ यह ब्लागिंग है सशक्त
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
डॉ. 'बर्क़ी' साहब ने 'प्रदूषण' की ज्वलंत समस्या की बड़ी ही सटीक तस्वीर दी है.
पूरी मानवता तबाही के दहाने पर है आज
इस से व्याकुल हैँ निरन्तर बच्चे बूढे और जवान
बड़े प्रभावशाली शब्दों में चेतावनी दी है:
आज मायंमार है इसका शिकार
कल न जाने हो कहाँ यह बेलगाम
और इन पंक्तियों में विकसित देशों को चुनौती देते हुए कहते हैं:
आज विकसित देश क्यूँ करते नहीँ इस पर विचार
विश्व मेँ हर व्यक्ति को जीने का अवसर है समान
'बर्क़ी' साहब, आपकी रचनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद.
अहमद अली वर्की जी ने बहुत ही सश्क्त शब्दोम मे प्रदूषण के खिलाफ आवाज़ बुलन्द कर सभी को चुनौती देते हुये सावधान किया है बहुत सुन्दर रचनायें हैं वर्की जी को बधाई और अपका आभार्
Bahut badi samsya hai prdushan
inki kavitayen agar kuch logon ko cheta kar jaga sake to bahut achha hoga
Mahavir sir bahut bahut dhanyvad inhe padhwane ke liye
बर्की साहब की लेखनी के तो हम कबसे कायल हैं आज उनकी प्रदुषण पर लिखी दोनों रचनाएँ पढीं . कितनी खूबसूरती से उन्होंने आने वाले समय में प्रदुषण से पैदा होने वाले संकट का जिक्र किया है...बेहद सादा ज़बान में कितनी गहरी बात कह गए हैं बर्की साहेब...वाह वा...तहे दिल से हमारी दाद कबूल फरमाएं....
नीरज
महावीर जी प्रणाम . कविता और गजल सुनाने तक ही नाता है वो भी कभी कभी .आपके जज्बे को नमन
माफ़ कीजियेगा सुनने तक
maine pahali bar Barki Saheb ko padha hai. bahut hi umda ghazale laikhi hain. lekin mujhe unka parichay dene ka andaz bhi kam pyara nahi laga. Is tarah main unhe 3 rachanaon ke liye bahayee deta hun.
Kaabile tareef hain ye rachnaayen.
( Treasurer-S. T. )
हर तरफ प्रकृति का प्रकोप है चिंताजनक
ले रही है वह हमारा हर क़दम पर इम्तेहान
सही कहा अहमद अली बर्क़ी आज़मी जी ने यह चिंताजनक
विषय ही है वर्ना ये दुनिया तबाह की ओर ही है ....!!
शर्मा जी मुझे तो आपका परिचय पढ़कर अच्छा लगा । ब्लॉग पर आप अच्छी सामग्री दे रहे हैं यह प्रसन्नता की बात है ।
good
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