यू.के. से पुष्पा भार्गव के काव्य-संग्रह 'लहरें' से दो कविताएं
मरुस्थल:
इस रेत के ढेरों में लिखी
हैं विचित्र कहानियाँ।
काफिले कितने चले थे
हमसफ़र की आश में
थक के पहुंचे दूर
मरूद्यान की तलाश में
पा सके न प्यार, यूँ ही
लुट गई जवानियाँ ।
चल पड़े थे पड़ाव से
तारों भरी एक रात में,
बिछुड़ कर भटके, रहा न
साथी कोई साथ में।
शीघ्र ही चुभने लगी
वहां रात की तनहाईयाँ
दूर तक निर्जन मरुस्थल
भयावह वीरान में
धूप की गर्मी से तपते
रेत के मैदान में
दीखतीं हर बार केवल
अपनी ही परछाईयाँ।
रेत के टीलों को बदला
आँधियों ने राह में
बिछुड़े राही ढूँढते
पद-चिन्ह भूली राह में
खो गए वीरान में
न मिल सकीं निशानियाँ
इन रेत के ढेरों में लिखी
हैं विचित्र कहानियाँ।
पुष्पा भार्गव
******************
नया युग
यह हवाएं
नव युगों की
खींच कर ले जाएँगी
किस ओर अब मेरा बसेरा
बदलते यह रंग जग के
बदलती यह धारणाएं
तीव्र झोंको में हवा के
खो चुकी कल की कथाएं
चिर प्रथा प्राचीन युग की
बाँध कर भवितव्यता से
पाएगा संतुष्ट जग को
क्या कभी कल का सवेरा
दूर उड़ कर व्योम में
खोज अन्य भू-मंडलों को
चाँद में बसने के सपने
छोड़ सुरभित उपवनों को
चाँद में बस कर क्या होगी
चांदनी रातें सुहानी
क्या जलाशय होंगे जिसमें
तैरेंगी नौका दीवानी
बादलों की गरजनों में
विद्युता क्या साथ होगी
क्या बुझाने प्यास को
सलिल की बरसात होगी
सूखे मंगल ग्रह में क्या कुछ
जीव का आवास होगा
लाल धूमिल रजकणों में
सूर्य का परिहास होगा
निशा के तम में चमकते
उन सितारों के चमन में
कौन-सा ग्रह अब बनेगा
देस व परदेस मेरा?
पुष्पा भार्गव
**********************
इस रेत के ढेरों में लिखी
हैं विचित्र कहानियाँ।
काफिले कितने चले थे
हमसफ़र की आश में
थक के पहुंचे दूर
मरूद्यान की तलाश में
पा सके न प्यार, यूँ ही
लुट गई जवानियाँ ।
चल पड़े थे पड़ाव से
तारों भरी एक रात में,
बिछुड़ कर भटके, रहा न
साथी कोई साथ में।
शीघ्र ही चुभने लगी
वहां रात की तनहाईयाँ
दूर तक निर्जन मरुस्थल
भयावह वीरान में
धूप की गर्मी से तपते
रेत के मैदान में
दीखतीं हर बार केवल
अपनी ही परछाईयाँ।
रेत के टीलों को बदला
आँधियों ने राह में
बिछुड़े राही ढूँढते
पद-चिन्ह भूली राह में
खो गए वीरान में
न मिल सकीं निशानियाँ
इन रेत के ढेरों में लिखी
हैं विचित्र कहानियाँ।
पुष्पा भार्गव
******************
नया युग
यह हवाएं
नव युगों की
खींच कर ले जाएँगी
किस ओर अब मेरा बसेरा
बदलते यह रंग जग के
बदलती यह धारणाएं
तीव्र झोंको में हवा के
खो चुकी कल की कथाएं
चिर प्रथा प्राचीन युग की
बाँध कर भवितव्यता से
पाएगा संतुष्ट जग को
क्या कभी कल का सवेरा
दूर उड़ कर व्योम में
खोज अन्य भू-मंडलों को
चाँद में बसने के सपने
छोड़ सुरभित उपवनों को
चाँद में बस कर क्या होगी
चांदनी रातें सुहानी
क्या जलाशय होंगे जिसमें
तैरेंगी नौका दीवानी
बादलों की गरजनों में
विद्युता क्या साथ होगी
क्या बुझाने प्यास को
सलिल की बरसात होगी
सूखे मंगल ग्रह में क्या कुछ
जीव का आवास होगा
लाल धूमिल रजकणों में
सूर्य का परिहास होगा
निशा के तम में चमकते
उन सितारों के चमन में
कौन-सा ग्रह अब बनेगा
देस व परदेस मेरा?
पुष्पा भार्गव
**********************
15 comments:
उत्तम कवितायें
बाँच कर आनन्द आ गया....
पुष्पाजी को नमन !
दोनों ही कृतियाँ सुन्दर हैं
पुष्पा जी,
आपकी दोनों कवितायेँ मनोरम थी..
धन्यवाद...
आदरणीय महावीर जी.
सादर प्रणाम!
दोनों कवितायेँ बेहद प्रभवित करने वाली है.अगली पोस्ट में गुरुदेव का इन्तजार करेंगे..
आभार!
कई दिन से कम्प्यूटर तंग कर रहा था इस लिये पिछली पोस्ट नहीं देख पाई पुश्पा जी की दोनो कवितायें बहुत सुन्दर हैं मन को छूने वाले गहरे भाव लिये बहुत बहुत बधाई
कई दिन से कम्प्यूटर तंग कर रहा था इस लिये पिछली पोस्ट नहीं देख पाई पुश्पा जी की दोनो कवितायें बहुत सुन्दर हैं मन को छूने वाले गहरे भाव लिये बहुत बहुत बधाई
सूखे मंगल ग्रह में क्या कुछ
जीव का आवास होगा
लाल धूमिल रजकणों में
सूर्य का परिहास होगा
निशा के तम में चमकते
उन सितारों के चमन में
कौन-सा ग्रह अब बनेगा
देस व परदेस मेरा
Ati Sunder, Ati sunder, Ati sunder
Dr. Shareef, Karachi
Doosri Kavita bahut oonchi hai-badhai.
बदलते यह रंग जग के
बदलती यह धारणाएं
तीव्र झोंको में हवा के
खो चुकी कल की कथाएं
चिर प्रथा प्राचीन युग की
बाँध कर भवितव्यता से
पाएगा संतुष्ट जग को
क्या कभी कल का सवेरा
...........
यही प्रश्न मुझे भी मथा करता है........
आपकी रचनाओं ने विभोर कर दिया....बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर...
आभार स्वीकारें.
आ . महावीर जी ,
आपके जाल घर पर आकर विशिष्ट कवियों की रचनाएं पढ़ना
वास्तव में अत्यंत सुखकर रहता है - आज भी सुश्री पुष्पा जी की
दोनों कविता पढ़कर बहुत प्रसन्नता हुई - इस अहसास के लिए ,
आप सभी का ( आ. प्राण भाए साहब भी ) आभार -
सादर, स - स्नेह,
- लावण्या
रचनाएँ मन को रुचीं.
achchhi kavitaa ke liye badhai sweekar karen vakei man ko chhu gai hein
ashok andrey
सूखे मंगल ग्रह में क्या कुछ
जीव का आवास होगा.nice
Ati Sunder sher apne aap mein ek sandesh liye hue
मिलेंगे कहाँ ख़ाक में जानने को
बहुत ख़ाक दर-दर की हम छानते हैं
Sach ke dwar par dastak deta hua ueh sher bahut acha laga
Devi nangrani
khoooob likha hai ji ek se badhkar ek ...
surabhi
Post a Comment