Sunday, 4 October 2009

आचार्य 'सलिल' जी के पूज्य पिताश्री की स्मृति में उनका एक गीत


आचार्य संजीव 'सलिल' के पूज्य पिताश्री का आज त्रयोदश संस्कार है. इस शोक के अवसर पर दिवंगत आत्मा की शान्ति के लिए "महावीर" ब्लॉग की टीम के सदस्य ईश्वर से प्रार्थना करते हैं


स्व. पिताश्री की स्मृति में आचार्य 'सलिल' जी का एक गीत प्रस्तुत है:

पितृव्य हमारे
नहीं रहे....
*
वे
आसमान की
छाया थे.
वे
बरगद सी
दृढ़ काया थे.
थे-
पूर्वजन्म के
पुण्य फलित
वे,
अनुशासन
मन भाया थे.
नव
स्वार्थवृत्ति लख
लगता है
भवितव्य हमारे
नहीं रहे.
पितृव्य हमारे
नहीं रहे....
*
वे
हर को नर का
वन्दन थे.
वे
ऊर्जामय
स्पंदन थे.
थे
संकल्पों के
धनी-धुनी-
वे
आशा का
नंदन वन थे.
युग
परवशता पर
दृढ़ प्रहार.
गंतव्य हमारे
नहीं रहे.
पितृव्य हमारे
नहीं रहे....
*
वे
शिव-स्तुति
का उच्चारण.
वे राम-नाम
भव-भय तारण.
वे शांति-पति
वे कर्मव्रती.
वे
शुभ मूल्यों के
पारायण.
परसेवा के
अपनेपन के
मंतव्य हमारे
नहीं रहे.
पितृव्य हमारे
नहीं रहे....
संजीव 'सलिल'

4 comments:

"अर्श" said...

आचार्य जी के स्वर्गीय पिता जी को भावभीनी श्रधांजलि और नमन... कविता अपने आप में अद्भूत है , अब आचार्य जी के बारे में कुछ कहना मेरे बस की बात तो नहीं है .. आपको सदर चरण स्पर्श


अर्श

रश्मि प्रभा... said...

shradha suman arpit karte hain hum

vijay kumar sappatti said...

acharya ji

mere shradha sunman ..

vijay

Divya Narmada said...

की सराहना आपने, बहुत-बहुत आभार.
'सलिल' धन्य उसको मिला, श्रेष्ठ जनों का प्यार..