ग़ज़ल:
-उषा राजे सक्सेना
जिंदगी को स्वार्थ का नश्तर लगा
ढेर था ईंटों का उसको घर लगा
हादसा यह क्या हुआ, इस शहर में
आते-जाते को बड़ा ही डर लगा
जब कहीं भी प्यार की मैयत उठी
मेला नफरत का वहां अक्सर लगा
उफ़, हमारे दौर की ये सभ्यता
दिल में आता है, उसे ठोकर लगा
दिन में चलकर थक गई है तू "उषा"
रात हो आयी है, चल बिस्तर लगा
**************************
ग़ज़ल:
चाहत जब दौलत तक आयी
समझो वो फितरत तक आयी
साजिश, साजिश केवल साजिश
उनकी हर आदत तक आयी
मानव खुद जब बम बन बैठा
ये दुनिया दहशत तक आयी
ऊंचे महलों की कीरत से
ये दुनिया गुरबत तक आयी
टकराई फिर जमकर बरसी
बदली जब परबत तक आयी
उषा राजे सक्सेना
********************************
अगला अंक: १ नवम्बर २००९
अमेरिका से 'देवी' नागरानी की दो ग़ज़लें
*********************************
जिंदगी को स्वार्थ का नश्तर लगा
ढेर था ईंटों का उसको घर लगा
हादसा यह क्या हुआ, इस शहर में
आते-जाते को बड़ा ही डर लगा
जब कहीं भी प्यार की मैयत उठी
मेला नफरत का वहां अक्सर लगा
उफ़, हमारे दौर की ये सभ्यता
दिल में आता है, उसे ठोकर लगा
दिन में चलकर थक गई है तू "उषा"
रात हो आयी है, चल बिस्तर लगा
**************************
ग़ज़ल:
चाहत जब दौलत तक आयी
समझो वो फितरत तक आयी
साजिश, साजिश केवल साजिश
उनकी हर आदत तक आयी
मानव खुद जब बम बन बैठा
ये दुनिया दहशत तक आयी
ऊंचे महलों की कीरत से
ये दुनिया गुरबत तक आयी
टकराई फिर जमकर बरसी
बदली जब परबत तक आयी
उषा राजे सक्सेना
********************************
अगला अंक: १ नवम्बर २००९
अमेरिका से 'देवी' नागरानी की दो ग़ज़लें
*********************************
26 comments:
अहा दोनों ही गज़लें मुकम्मल हैं... पहली ग़ज़ल में रदीफ़ का खूब खुबसूरत प्रयोग देखनो को मिल रहा है और इस ग़ज़ल का मक्ता उस्तादों से ऊपर बिठा रहा है ... दूसरी ग़ज़ल का यह शे'र
टकराई फिर जमकर बरसी
बदली जब परबत तक आयी
क्या खूब अन्दाजें बयान हैं .. बहुत ही बारीक नज़र से कही गयी है दोनों ही गज़लें .. उस्ताद शईरों को पढ़ना अपने आप में एक सुखद अनुभूति है...
अर्श
bahut behatrin ghazale sachmuch lajawaab
http/jyotishkishore.blogspot.com
USHA RAJE SAXENA HINDI KEE CHARCHIT
KAHANIKAAR ,NIBANDHKAAR AUR
KAVYITRI HAIN.GAZALEN UNOHNNE KAM
HEE KAHEE HAIN LEKIN JO KAHEE HAIN
VE KHOOBSOORTEE KEE MISAAL HAIN.
CHHOTEE BAHAR MEIN UNKE IS
SHER MEI JITNEE OONCHAAEE HAI UTNEE
HEE GAHRAAEE BHEE HAI--
TAKRAAEE PHIR JAMKAR BARSEE
BADLEE JAB PARBAT TAK AAYEE
Behtreen......Gazalen bhi or Prastuti bhi....
बहुत सुंदर कविताये.
धन्यवाद
दोनों ही गज़लें ख़ूबसूरत है आभार.....
टकराई फिर जमकर बरसी
बदली जब परबत तक आयी.nice
उशा जी के ये शेर हमारे आज की हकीकत का सच्चा बयान करते हैं :
>हादसा यह क्या हुआ, इस शहर में
>आते-जाते को बड़ा ही डर लगा
>उफ़, हमारे दौर की ये सभ्यता
>दिल में आता है, उसे ठोकर लगा
-------
दूसरी गज़ल का यह शेर बहुत प्यारा लगा :
>टकराई फिर जमकर बरसी
>बदली जब परबत तक आयी
दो खूबसूरत ग़ज़लों के लिये धन्यवाद
उषा जी की दोनों श्रेष्ठ गजलें पढ़कर मजा आ गया. दिवाली के अभिनव आयोजन हेतु महावीर जी को साधुवाद.
दोनों ग़ज़लें मन को सुकून दे गयीं....
दोनों ही ग़ज़लें खूबसूरत हैं। कई शेर उल्लेखनीय हैं।
उषाजी को अरसे से पड़ते हुए हर मोड़ पर फिर भी एक नयापन, अचूतापन मिला . शब्दों का प्रयोग आम बोलचाल की भाषा jaisa उसे मानव मन पर अंकित करता है.
जब कहीं भी प्यार की मैयत उठी
मेला नफरत का वहां अक्सर लगा
के सामने आइना हो जैसे.!!दाद हो!.
साजिश, साजिश केवल साजिश
उनकी हर आदत तक आयी
ग़ज़ल का हर शेर अपने आप में एक तस्वीर है जो निखर आयिया है.
बहुत बहुत अछी ग़ज़ल पेश करने के लिए महावीरजी और प्राण शर्माजी का बहुत धन्यवाद.
देवी नागरानी
वाह !
वाह !
किसी भी ख़ास शे'र का ज़िक्र नहीं करूंगा क्योंकि दोनों ही गज़लों के सभी शे'र अपने आप में लामिसाल हैं । मैं आपको बधाई देने की यो नहीं रखता..........
इसलिए प्रणाम भर कर लेता हूँ , आपका अभिनन्दन कर लेता हूँ
वाह ! आनन्द आ गया बाँच कर.............
उषा जी , क्या खूब कहा आपने -
आज के समाज के साथ इंसान का
क्या वजूद है ये , साफ़ बयाँ कर दिया --
वाह
स स्नेह,
- लावण्या
उषा जी की दोनों ग़ज़लें बेहद खूबसूरती से कही गयी हैं...शब्दों का प्रयोग और उन्हें गहरे भावः में गूथने की कला में उनका कोई सानी नहीं...महावीर जी आपको बहुत बहुत धन्यवाद इन ग़ज़लों को पढ़वाने के लिए...
नीरज
ushaa jee ki dono gajlen bahut hee umdaa kism kee hain aur man ko chhutee hain
jab kaheen bhee pyaar kee maiyat uthee
melaa naphrat kaa vhaan aksar lagaa
tathaa-
chaahat jab doulat tak aaee
samjho vo phitrat tak aaee
bahut khoob meri aur se aapko is tarah kee achchhi gajal padvaane ke liye tathaa ushaa jee ko unki khubsurat gajlon ke liye badhai
ashok andrey
दोनों ग़ज़लें जिंदगी के आस पास बिखरी हुयी हैं ....... अपने आप में पूरी नए अंदाज़ के शेरों के साथ ........ प्रणाम है मेरा ....
दोनों ही गज़लें बढिया है।बधाई।
बहुत करारी वार करती ग़ज़ल बिलकुल सटीक और रोम खड़े करने वाली !!
ऊशा जी क्ी गज़लों की मैं क्या तारीफ कर सकती हूँ। निशब्द हूँ।
जब कहीं भी प्यार की मैयत उठी
मेला नफरत का वहां अक्सर लगा
उफ़, हमारे दौर की ये सभ्यता
>दिल में आता है, उसे ठोकर लगा
लाजावब क्या खूब कहा। ऊशा जी को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें
Dono hi gazlen man ko gahre chhoti hui hain...
Prakashit karne hetu aabhar..
... jabardast, prasanshaneeya gazalen !!!!!!
अति सुन्दर रचनाएँ.
usha ji ki gazle wakai bhaut hi umda hain.
jaising
ऊंचे महलों की कीरत से
ये दुनिया गुरबत तक आयी
bahut badhuyaa
Post a Comment