श्याम सखा ‘श्याम’
जन्म: २८ अगस्त १९४८ रोहतक
सम्प्रति: अनिवार्य-चिकित्सा ऐच्छिक-पठन-लेखन,छायांकन,घुमक्क्ड़ी
शिक्षा: एम.बी;बी,एस, एफ़.सी.जी.पी
पुरस्कार: दोस्तो की गालियां रिश्तेदारों की जलन व डाह मूल.
निवास: रूह कुछ टूटे दिलों में पार्थिव शरीर-आधा दिन गोहाना, अस्पताल में रात-रोहतक शेष, वक़्त-सफर में.
लेखन: भाषा -हिन्दी,पंजाबी,अंग्रेजी,पंजाबी लेखन
सम्मान: (१) पं.लखमी चंद पुरस्कार [हरियाणा साहित्य अकादमी का लोक-साहित्य पर सर्वोच्च पुरस्कार. (२) अब तक हिन्दी पंजाबी हरयाण्वी की ६ पुस्तकें व ५ कहानियां हिन्दी व पंजाबी अकादमी द्वारा पुरस्कृत. (३) पद्मश्री मुकुटधर पांडेय[छ्त्तीस गढ़ सृजन सम्मान २००७]. (४) अम्बिका प्रसाद दिव्य रजत अलंकरण कथा सं अकथ हेतु २००७. (५) कथा-बिम्ब कथा पुर.मुम्बई, राष्ट्र धर्म कथा पु २००५ लखनऊ.(६) सम्पाद्क शिरोमणि पु श्रीनाथ द्वारा साहित्य मंडल राजस्थान चिकित्सा क्षेत्र- चिकित्सा रत्न सम्मान-इन्डियन मेडिकल एशोसिएसन हरियाणा का सर्वोच्च सम्मान विशेष एक उपन्यास कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के एम,ए फाइनल पाठ्यक्र्म मे साहित्य पर अब तक पी,एच,डी हेतु एक शोध व एम फिल हेतु ३ लघु शोध सम्पन्न है.
श्याम सखा ‘श्याम’
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी से छीनना था
मौत का कैसा हंसी ये मश्ग़ला था
वक़्त ने कुछ इस तरह मुझको छला था
था कभी मैं आदमी अब बुलबुला था
हुस्न का तेरे गज़ब था जादू यारब
देखकर हर कोई जिसको मर मिटा था
थी ज़मीं महफ़िल वहाँ शे’रो-सुख़न की
शे‘र जो भी था वो साँचे में ढला था
रूठना मेरा मनाना रोज़ उसका
सोचिये कितना हसीं वो सिलसिला था
बन रहा था सख़्तजां बाहर से लेकिन
वो तो अन्दर से सरासर मोम सा था
थी हर इक रुख़ पर हँसी चिपकी हुई-सी
पर हर इक दिल में ही पसरा कर्बला था
उनकी महफ़िल का बयां अब क्या करें हम
जो भी था बजता हुआ इक झुनझुना था
सोचते होंगे कभी वो भी तो दिल में
‘श्याम’ को बरबाद करके क्या मिला था
श्याम सखा ‘श्याम’
****************************
ग़ज़ल
श्याम सखा ‘श्याम’
उसे वहाँ कोई अपना नज़र नहीं आता
तभी तो देर तलक वो भी घर नहीं आता
हमारे बीच ये दीवार क्यों है आन खड़ी
उधर मैं जाता नहीं, वो इधर नहीं आता
हमेशा जाती है मिलने नदी समुन्दर से
समुन्दर उससे तो मिलने मगर नहीं आता
ये कैसे मानूँ कि मुझसे तुझे मुह्ब्बत है
तेरी नज़र में वो मंज़र नज़र नहीं आता
ये चुपके-चुपके ही आ बैठता है बस दिल में
कि रंजो-ग़म कभी देकर ख़बर नहीं आता
मैं ख़ुद ही उससे मुलाक़ात को हूँ चल देता
कि मुझसे मिलने कभी ग़म अगर नहीं आता
हुई क्या बात कोई तो बताये ‘श्याम’ हमें
क्यों रात-रात तू घर लौटकर नहीं आता
श्याम सखा ‘श्याम’
**************************
19 comments:
ग़ज़लें बहुत अच्छी लगीं।
bhavbhini gazlein.
भावपूर्ण गज़लें
ये शे'र दिल में घर कर गया.
ये चुपके-चुपके ही आ बैठता है बस दिल में
कि रंजो-ग़म कभी देकर ख़बर नहीं आता
आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.
संजय कुमार
Fatehabad
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
Dono hi gazalen lajawaab lagin...harek sher par munh se apne aap daad nikal padi....
Behtareen gazalen padhwane ke liye bahut bahut aabhar....
Behtreen Gazlen....wahwa..wahwa
... दोनों ही गजलें ... वाह-वाह ...वाह-वाह !!
आप की दोनो गजले बहुत पसंद आई
बन रहा था सख़्तजां बाहर से लेकिन
वो तो अन्दर से सरासर मोम सा था
शेर सीधे दिल में उतर गये साहब..
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
बन रहा था सख़्तजां बाहर से लेकिन
वो तो अन्दर से सरासर मोम सा था
शेर सीधे दिल में उतर गये साहब..
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
श्याम सखा जी दोनों ग़ज़लें बहुत खूब ..
वाह ! जनाब आप ने तो मेरा ही दर्द लिख दिया --
मैं ख़ुद ही उससे मुलाक़ात को हूँ चल देता
कि मुझसे मिलने कभी ग़म अगर नहीं आता
और फिर -
ये चुपके-चुपके ही आ बैठता है बस दिल में
कि रंजो-ग़म कभी देकर ख़बर नहीं आता
बधाई --
उसे वहाँ कोई अपना नज़र नहीं आता
तभी तो देर तलक वो भी घर नहीं आता
हमेशा जाती है मिलने नदी समुन्दर से
समुन्दर उससे तो मिलने मगर नहीं आता.......
श्याम सखा की गजलों ने तो शमा बांध दिया......भाई वाह!
आप की दोनो ग़ज़लें बहुत अच्छी लगीं...बधाई!!
आप सभी का आभार
बहुत भाविभोर करती रचना मन को हर कोण से छूती है '
आपकी दोनों ग़ज़लें बहुत अच्छी हैं बहुत बहुत बधाई
dilkash gazalen. badhaee.
मैं ख़ुद ही उससे मुलाक़ात को हूँ चल देता
कि मुझसे मिलने कभी ग़म अगर नहीं आता
हुई क्या बात कोई तो बताये ‘श्याम’ हमें
क्यों रात-रात तू घर लौटकर नहीं आता
Bahut gahre bhav....
गणतन्त्र दिवस की शुभकामनायें
off white jordan
hermes bags
off white
supreme hoodie
kd 12
off white outlet
100% real jordans for cheap
kyrie 7
cheap jordans
Post a Comment