"यू.के. के कवियों की रचनाओं की शृंखला" में प्राण शर्मा की एक रोमांटिक कविता और कुछ साहित्य समाचार
जीवन में एक बार कभी जो
वक्त मिले तो देखने जाना
ताजमहल के एक पत्थर पर
मैंने तेरा नाम लिखा है
वक्त मिले तो देखने जाना
ताजमहल के एक पत्थर पर
मैंने तेरा नाम लिखा है
तू क्या जाने तब भी मैंने
दुनिया का हर सुख बिसरा कर
तुझ को मन से ही था चाहा
तू क्या जाने तब भी मैंने
खुद से क्या जग से भी बढ़ कर
तेरा था हर काम सराहा
तू क्या जाने तेरी यादें
मन की छोटी मंजूषा में
अब तक सम्भाले बैठा हूँ
तेरी गर्वीली अंगड़ाई
तेरी प्यार भरी पहुनाई
जीवन में पाले बैठा हूँ
तेरी सुविधा की खातिर ही
नाम अपना घनश्याम लिखा है.
दुनिया का हर सुख बिसरा कर
तुझ को मन से ही था चाहा
तू क्या जाने तब भी मैंने
खुद से क्या जग से भी बढ़ कर
तेरा था हर काम सराहा
तू क्या जाने तेरी यादें
मन की छोटी मंजूषा में
अब तक सम्भाले बैठा हूँ
तेरी गर्वीली अंगड़ाई
तेरी प्यार भरी पहुनाई
जीवन में पाले बैठा हूँ
तेरी सुविधा की खातिर ही
नाम अपना घनश्याम लिखा है.
जीवन में एक बार कभी जो
वक्त मिले तो देखने जाना
ताजमहल के एक पत्थर पर
मैंने तेरा नाम लिखा है
वक्त मिले तो देखने जाना
ताजमहल के एक पत्थर पर
मैंने तेरा नाम लिखा है
याद मुझे है अब तक सब कुछ
ताजमहल के पिछवाड़े में
तेरा मेरा मिलना जुलना
याद मुझे है अब तक सब कुछ
धीरे धीरे मेरे मन का
तेरे सुन्दर मन से खुलना
याद मुझे है अब तक सब कुछ
पीपल की शीतल छाया में
तेरा मेरा बैठे रहना
याद मुझे है अब तक सब कुछ
आँखों ही आँखों से मन की
प्यारी प्यारी बातें कहना
प्यार सदा जीवित रहता है
मैंने यह पैग़ाम लिखा है
ताजमहल के पिछवाड़े में
तेरा मेरा मिलना जुलना
याद मुझे है अब तक सब कुछ
धीरे धीरे मेरे मन का
तेरे सुन्दर मन से खुलना
याद मुझे है अब तक सब कुछ
पीपल की शीतल छाया में
तेरा मेरा बैठे रहना
याद मुझे है अब तक सब कुछ
आँखों ही आँखों से मन की
प्यारी प्यारी बातें कहना
प्यार सदा जीवित रहता है
मैंने यह पैग़ाम लिखा है
जीवन में एक बार कभी जो
वक्त मिले तो देखने जाना
ताजमहल के एक पत्थर पर
मैंने तेरा नाम लिखा है
वक्त मिले तो देखने जाना
ताजमहल के एक पत्थर पर
मैंने तेरा नाम लिखा है
जी करता है अब भी वैसे
लाल, गुलाबी फूलों जैसे
दिन अपनी ख़ुशबू बिखराएं
जी करता है अब भी वैसे
सावन के बादल नर्तन कर
प्यार भरी बूँदें बरसायें
जी करता है अब भी वैसी
सोंधी सोंधी मस्त हवाएं
तन मन दोनों को लहरायें
वैसे ही हम नाचें झूमें
वैसे ही हम जी भर घूमें
वैसी ही मस्ती बिखराएँ
तुझ से मिलने की खातिर ही
एक जरूरी काम लिखा है.
लाल, गुलाबी फूलों जैसे
दिन अपनी ख़ुशबू बिखराएं
जी करता है अब भी वैसे
सावन के बादल नर्तन कर
प्यार भरी बूँदें बरसायें
जी करता है अब भी वैसी
सोंधी सोंधी मस्त हवाएं
तन मन दोनों को लहरायें
वैसे ही हम नाचें झूमें
वैसे ही हम जी भर घूमें
वैसी ही मस्ती बिखराएँ
तुझ से मिलने की खातिर ही
एक जरूरी काम लिखा है.
जीवन में एक बार कभी जो
वक्त मिले तो देखने जाना
ताजमहल के एक पत्थर पर
मैंने तेरा नाम लिखा है
प्राण शर्मा
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वक्त मिले तो देखने जाना
ताजमहल के एक पत्थर पर
मैंने तेरा नाम लिखा है
प्राण शर्मा
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प्रसिद्ध साहित्यकार दिव्या माथुर को भारतीय उच्चायोग, लन्दन
(इंडियन हाई कमीशन, लन्दन) की ओर से २०१० का
"हरिवंश राय बच्चन पुरस्कार" से १७ मार्च २०१० को सम्मानित
किया गया।
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उल्लेखनीय है की २००७, २००८ और २००९ का यही पुरस्कार क्रमश:
लब्ध प्रतिष्ठ साहित्यकार डॉ. सत्येन्द्र श्रीवास्तव, तेजेंद्र शर्मा
और डॉ. गौतम सचदेव को नवाज़ा गया.बाएं से : डॉ. सत्येन्द्र श्रीवास्तव, तेजेंद्र शर्मा, डॉ. गौतम सचदेव, दिव्या माथुर *********************************************
लब्ध प्रतिष्ठ साहित्यकार डॉ. सत्येन्द्र श्रीवास्तव, तेजेंद्र शर्मा
और डॉ. गौतम सचदेव को नवाज़ा गया.बाएं से : डॉ. सत्येन्द्र श्रीवास्तव, तेजेंद्र शर्मा, डॉ. गौतम सचदेव, दिव्या माथुर *********************************************
बाएं से : तेजेंद्र शर्मा, रमा पाण्डेय, काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी,
मोनिका मोहता, यावर अब्बास, कैलाश बुद्धवार, अचला शर्मा
कथा यू.के. द्वारा 17 मार्च 2010 को लन्दन के नेहरू सेंटर में निर्माता, निर्देशिका व
लेखिका रमा पाण्डेय की भारतीय मुस्लिम महिलाओं की ज़िंदगी पर
लिखे नाटक संकलन 'फैसले' एवं उन नाटकों पर बने २६ डी वी डी
के विमोचनका आयोजन किया गया।
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21 comments:
आदरणीय ,वंदे मातरम
श्रृंगार रस में बिना फूहड़पन के लिखना स्वयं में एक अद्वितीय कला है ,जिस के तक़ाज़ों को पूरा करते हुए एक बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत की है आप ने ,
जीवन में एक बार कभी जो
वक्त मिले तो देखने जाना
ताजमहल के एक पत्थर पर
मैंने तेरा नाम लिखा है
तू क्या जाने तब भी मैंने
दुनिया का हर सुख बिसरा कर
तुझ को मन से ही था चाहा
तू क्या जाने तब भी मैंने
खुद से क्या जग से भी बढ़ कर
तेरा था हर काम सराहा
बहुत ही सुंदर पंक्तियों का सृजन हुआ है
याद मुझे है अब तक सब कुछ
आँखों ही आँखों से मन की
प्यारी प्यारी बातें कहना
प्यार सदा जीवित रहता है
मैंने यह पैग़ाम लिखा है
बहुत सच्चा पैग़ाम है ये
बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें
शर्मा जी आप शब्दों के शिल्पकार हैं. आपकी रचना मुझे बेहद पसंद आई है.
प्राण जी की अन्य रचनाओं में भाव पक्ष सहज व प्रभावी होता है, इस रचना में दिल पर दिमाग को वरीयता मिलती महसूस हुई. शेष रचना बढ़िया है.
ये रूप और ये रंग तो प्राण भाई साहब का पहली बार ही देखने को मिला है । ताजमहल के एक पत्थर पर मैंने तेरा नाम लिखा है । तेरी गर्वीली अंगड़ाई तेरी प्यार भरी पहुंनाई जीवन में पाले बैठा हूं । प्रेम की सुधियों के चम्पा भरे बाग में मानो कोई हौले हौले टहल रहा हो और प्रेम के उन मदिर पुष्पों की गंध को अपने प्राणों में एकाकार कर रहा हो । पूरा का पूरा गीत मन के गलियारे में चंदन की गंध छोड़ता हुआ इस प्रकार से गुजर जाता है कि देर तक वो चंदन महकता रहता है । जी करता है अब भी वैसे लाल गुलाबी फूलों जैसे दिन अपनी खुश्बू बिखराएं । मन ठिठक जाना चाहता है उसी समय में जब दिन गुलाबी होते थे । जब सावन के बादल नर्तन करते हुए प्यार भरी बूंदें बरसाते थे । जब पीपल की शीतल छाया में एक मन किसी दूसरे मन के साथ खुलता था और घुलता था । प्यार के सदा जीवित रहने का प्रतीक है ये गीत । इस गीत में दर्द है और आनंद है दोनों हैं । हम में से हर किसी के जीवन में प्रेम अपनी यादें छोड़ कर गया होता है । ये गीत उन यादों में खोने का गीत है । यादें जो दर्द और आनंद दोनों की पालकी ढोती हैं । एक बहुत ही सुंदर गीत पढ़वाने के लिये दादा भाई का आभार और प्राण भाई साहब आपको क्या कहूं । बस ये कि आप तो हर बार चौंका देते हैं । कभी इस रंग में कभी उस रंग में ।
दिव्या जी को बधाई वे इस सम्मान की सच्ची हकदार हैं । मेरी भावनाएं उन तक दादा भाई के ब्लाग के माध्यम से पहुंचें ।
बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!
itni gazab ki rachna padhwane ke liye aabhar.
बहुत बढ़िया पोस्ट, चित्र व जानकारी
जी करता है अब भी वैसे
लाल, गुलाबी फूलों जैसे
दिन अपनी ख़ुशबू बिखराएं
जी करता है अब भी वैसे
सावन के बादल नर्तन कर
प्यार भरी बूँदें बरसायें..
मन मोह लिया यादों सी इस रचना ने.
खूबसूरत प्राणमयी रचना... वाह दादा वाह... दिव्या जी को भी ढेरों बधाई ...
आदरणीय प्राण जी,
आपकी रोमांटिक कविता अत्यंत सहज , सरल और प्रवाहमयी है. इतनी सुन्दर कविता लिखने के लिए हार्दिक बधाई.
रूपसिंह चन्देल
जीवन में एक बार कभी जो
वक्त मिले तो देखने जाना
ताजमहल के एक पत्थर पर
मैंने तेरा नाम लिखा है
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ.................
आ. प्राण भाई साहब की कविता पवित्र रिश्ते की अति कोमल यादों को समेटे हुए , ताज महल के प्रणय प्रतीक के संग
मदमस्त प्यार के एहसास के पलों में खो जाने के लिए , हमें चुपके से ले चलती हुई बहुत सहज , सिन्दार लगी --
आप दोनों को मेरी बधाई , साहित्यिक भी और मनोरम भी हो ऐसा पढवाना , ये आपके जालघर पर ही बहुधा मिलता रहता है
आपके प्रयास जारी रहें और हमें इसका आनंद मिलता रहे .. प्रिय दिव्या जी को हार्दिक बधाई ....रमा जी के ' फैसले ' के लिए उन्हें भी बधाई .........मेरे जालघर पर आईयेगा ..और .सुमधुर माता अम्बा के गीत सुनिएगा ...
विनीत,
- लावण्या
श्रधेय महावीर जी सादर प्रणाम,
मेरी टिपण्णी कहाँ गयी ,? खैर ... ग़ज़ल पितामह की यह शक्ल उफ्फ्फ वाली बात हिया ... कमाल की बातें की है ... इस पहलू से इंजान था सो आपने मिलवा दिया ...
ताजमह और उसका नाम ... ये वाक्य पढ़ कर ही अचंभित हूँ ...
आदरणीय दिव्या माथुर जी को बधाई इस उपलब्धि के लिए ...
अर्श
प्राण साहब की दोनों ग़ज़लों ने बहुत ही प्रभावित किया.. माना कि आदमी को हँसाता है आदमी....ख़ुशी अपनी सांझी बता कोई किससे करे...वाह ! पढ़ कर मजा आ गया..
आदरणीय महावीर जी को श्री प्राण जी की बेहतरीन कविता पढ़ाने के लिए आभार, दिव्या जी को और रमा जी को बधाई..
आज जब मुद्रित पत्रिकाओं का चलन समाप्त होता जा रहा है, रस आधारित काव्य का सृजन और पठन और पाठन सीमित दायरे की गोष्ठियों तक सीमित हो चला है, श्रंगार की यह अभिव्यक्ति कम ही पढ़ने को मिलती है।
आदरणीय प्राण शर्मा जी को लेखन के लिये श्रद्धेय महावीर शर्मा जी को इस श्रंगारिक प्रस्तुति के लिये हार्दिक बधाई।
जीवन में एक बार कभी जो
वक्त मिले तो देखने जाना
ताजमहल के एक पत्थर पर
मैंने तेरा नाम लिखा है
बहुत-बहुत सुन्दर रचना. बधाई.
priya bhai Pran jee ki iss khubsurat rachna ke liye badhai
भाई साहब,
देर से हाज़री लगवाई है, क्षमा प्रार्थी हूँ ..
आप का यह रंग बहुत भाया..
तेरी गर्वीली अंगड़ाई
तेरी प्यार भरी पहुनाई
जीवन में पाले बैठा हूँ
वह क्या बात है....
इस्मत जी की बातों से पूर्ण सहमत हूँ...
सचमुच श्रृंगार रस में सौम्यता रख पाना सबके बस में नहीं होता....
यह मधुर गीत जिस कोमल सौम्य प्रणय भावों की रसधार बहती है,मन उसमे रमे और बहे बिना रह ही नहीं सकता....
बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर गीत...मन मुग्ध हो गया पढ़कर....
Aaadarniya mahaveer ji aur pran ji ,aap dono ko mera pranaam.
mujhe yaad hai , bahut dino pahle pran ji se baat ho rahi thi , tab unhone mujhe iski pankhtiyan sunayi thi .. tab main sammohit ho gaya tha , is kavita ki saadgi aur mohaabbat ke rang par ....
waah waah waah ....aur kuch kaha nahi jaata ..
जीवन में एक बार कभी जो
वक्त मिले तो देखने जाना
ताजमहल के एक पत्थर पर
मैंने तेरा नाम लिखा है
pran saheb , aapne mujhe kuch kaha tha is kavita ke baare me .....
aapka
vijay
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