जय वर्मा
जन्म स्थान : जिवाना, मेरठ, उत्तर प्रदेश, भारत।
शिक्षा : मेरठ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य, अर्थशास्त्र एवं आर्ट्स में बी.ए.। ब्रिटेन से बी.टेक (वित्त), नॉटिंघम विश्वविद्यालय से एडवांस डिप्लोमा (सर्विस मैनेजमेंट) एवं पोस्ट ग्रेजुएट सर्टिफिकेट (प्रेक्टिस मैनेजमेंट)।
कार्य-क्षेत्र : 1971 से ब्रिटेन में हिंदी भाषा, साहित्य एवं भारतीय कला में सेवारत। 1976 से 15 वर्षों तक हिंदी शिक्षण तथा हिंदी पाठ्यक्रम का विकास एवं अनुवाद। बी.बी.सी. रेडियो नॉटिंघम पर हिंदी कार्यक्रम प्रस्तुति। टेलिविजन के कार्यक्रमों में भागीदारी। 12 वर्ष तक बेडमिंटन शिक्षण। नॉटिंघम इंडियन विमन्स एसोसिएशन तथा नेशनल काऊँसल ऑफ विमेन्स ऑफ ग्रेट ब्रिटेन की सदस्य। प्रवासी टूडे पत्रिका की प्रतिनिधी, संस्कृति यू.के. की संपादकीय सलाहकार एवं ब्रिटेन हिंदी लेखक संघ की कोषाध्यक्ष। भारत एवं ब्रिटेन की विभिन्न पत्रिकाओं एवं अनेक काव्य संकलनों में लेख एवं कविताएं प्रकाशित। अंर्तऱाष्ट्रिय दक्षिणी एशियाई भाषा संबंधी सम्मेलन मास्को (2006) एवं अलीगढ विश्वविध्यालय (2008) में आलेख प्रस्तुती। न्यूयार्क के आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन में आलेख प्रस्तुती एवं सक्रियता। अंर्तऱाष्ट्रिय हिंदी एसोसिएशन अमेरिका के छठे साहित्यिक सम्मेलन में लेख प्रस्तुती एवं पाठ्यक्रम लेखन समिति में सक्रिय भागीदारी। सन् 2003 से प्रतिवर्ष नॉटिंघम में अंर्तराष्ट्रीय वार्षिक कवि सम्मेलन का आयोजन, एशियन सुनामी अपील कवि सम्मेलन (2005), अंर्तराष्ट्रीय समकालीन साहित्य सम्मेलन (2006) की मुख्य संयोजिका। गीतांजलि कहानी कार्यशाला बर्मिघंम में सहायक। गीतांजलि ट्रैंट हिंदी-उर्दू कविता कार्यशाला नॉटिंघम (2007) में संयोजन। भारत एवं पाकिस्तान के साठवें आज़ादी दिवस (2007) तथा नेशनल हैल्थ सर्विस की साठवीं वर्षगाँठ 2008 के उपलक्ष में कवि सम्मेलन का आयोजन तथा संचालन। सन् 1989 से नेशनल हैल्थ सर्विस के प्रेक्टिस मुख्य प्रबंधक पद पर कार्यरत। गीतांजलि बहुभाषीय साहित्यिक समुदाय ट्रैंट की संस्थापक एवं अध्यक्ष। ऩॉटिंघम एशियन आर्ट्स काऊँसल की भूतपूर्व कार्यकारी अध्यक्ष।
सम्मान : नॉटिंघम के लॉर्ड मेयर द्वारा कविता एवं हिंदी गतिविधियों के लिए मार्च 2006 में सम्मानित। सरस्वती साहित्यिक संस्था भारत द्वारा हिंदी एवं भारतीय संस्कृति की अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर सेवाओं के लिये 2007 में सम्मान। अक्षरम द्वारा आयोजित सातवें अन्तरराष्ट्रीय हिंदी उत्सव 2008 में ‘अक्षरम प्रवासी हिंदी सेवा सम्मान’। हिंदी काव्य संग्रह ‘सहयात्री हैं हम’ दिसंबर 2008 में प्रकाशित एवं भारतीय उच्चायोग लंदन द्वारा नवोदित लेखन पुरस्कार। अगस्त 2009 राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त मेमोरियल ट्रस्ट (दिल्ली) के द्वारा ‘राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त प्रवासी भारतीय साहित्यकार-सम्मान’। दिसम्बर 2009 में अखिल भारतीय मंचीय कवि पीठ उत्तर प्रदेश द्वारा ‘महीयसी महादेवी वर्मा सम्मान’। 22 दिसम्बर 2009 को चौ0 चरण विश्वविद्यालय के द्वारा सम्मानित।
विशेष रूचिःचित्रकारी, योग, बैडमिंटन, टेनिस, गोल्फ, ब्रिज खेलना एवं शाकाहारी भारतीय रसोई।
चिराग़
जय वर्मा
...
तेरी रहमत से जी रहे हैं हम
परिधि में रहकर
चिराग़ों से ज़रा पूछ
अपनी मर्ज़ी से न वे जलते हैं
और न बुझते हैं
उनकी लौ को देख
अपने पास न वे कुछ रखते हैं
लाल अग्नि में जलकर ख़ामोश हो जाते हैं
रोशनी किसको मिली वे नहीं पूछते
अंधेरों में कौन खो गए वे नहीं जानते
उनका काम था रह दिखाना
वे दिखाते रहे
उनकी फ़ितरत थी जलना
वे जलते रहे.
जय वर्मा
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नारी
जय वर्मा
...
आँखों में पीड़ा
एक भय
एक शर्म
छिपाती हुई
बेबस
साँसों की आवाज़ को
सीने में दबाये हुए
उसे नहीं है ज्ञात
कि क्या है कारण परेशानी का
बीमारी का !
उसके परिवार की स्तिथि का
या उसके बच्चे के स्वभाव का
जिसके एक रोने की आवाज़ से ही
वह हो जाती है बेचैन
वह अपनी बीमारी भूलकर
बच्चे को सहलाती है
चुप कराने के लिए,
ख़ुश करने के लिए उसे
देती है एक मुस्कराहट
ख़ूब सारा प्यार
फिर भूल जाती है
वो डॉक्टर के यहाँ
स्वयं को दिखाने आई थी
मगर बच्चे की तरफ़ देखकर
करुणा-भरी आवाज़ में कहती है
संक्षेप में एक बात
'डॉक्टर, मैं तो ठीक हूँ
बस मेरे बच्चे का कर दो इलाज'.
जय वर्मा
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18 comments:
एक अच्छा पाठ लिये 'चिराग़' और एक सार्वभौमिक ममतामयी दर्द लिये 'नारी', दो ही कविताओं अभिव्यक्त कर दी दुनिया सारी।
बधाई।
दोनों कवितायेँ बेहद खूबसूरत हैं ... खास कर दूसरी कविता बहुत मर्मस्पर्शी है ... एक माँ की ममता को बहुत सही ढंग से प्रस्तुत किया गया है !
dono kavitayen hruday sparshi.. maarmik...
jayaa ji, ijtanaa achchha likhati hai,utanaa yaa kahen ki usase zyadaa sunadar hai unkaa vyavahaar. man unse mil chukaa hoo.landon me, aur bharat me bhi. unkee kavitayen parh kar ek baar fir ve jaise saamane aakar khadee ho gayee hai.
बेहद प्रभावशाली...मार्मिक कविताएं.
जया जी को बधाई.
JAYA VERMA JEE KEE DONO KAVITAYEN
MUN KO BHARPOOR CHHOO GAYEE HAIN.
KAVITAAON KEE BHAVABHIVYAKTI ATI
SUNDAR AUR SAHAJ HAI.MEREE DHERON
BADHAAEEYAN.
सार्थक रचनाएँ. साधुवाद.
इन दोनों रचनाएँ के लिए क्या कहूँ...लफ्ज़ ही नहीं हैं....बस पढ़ रहा हूँ और गुण रहा हूँ
कितना खूबसूरत ख्याल है!
बधाई...
विवेक सोलंकी.
बहुत ही सुन्दर सन्देश लिए हुए 'चिराग' की भावाभिव्यक्ति और 'नारी' में आपने एक नारी की त्यागमयी, ममतामयी मूर्ति स्थापित की है और मैं प्रसाद जी की शब्दों में कहना चाहूंगा
''नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजन नग पगतल में|
पीयूष श्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में||
दोनो ही रचनाएं सार्थक बन पडी है, बहुत बधाई और कोटिश: आभार ।।
Jay verma jee ki dono kavitaen padiin aur achchhi lageen apni pehchaan ko khubhsurat dhang se shabdon men piro jaati hain bahut sundar, badhai.
इतनी अच्छी कविताएं पढने को कम ही मिलती हैं। जय जी ने चिराग और नारी दोनों के गुणों को बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है। आप इसी तरीके से लिखती रहें। शुभकामनाओं सहीत - मही
दिल को छू लेने वाली रचनाएँ हैं जी दोनों। बहुत बहुत आभार आपका इनसे रूबरू कराने के लिए।
behad sunder lagi dono kavitae , aabhar ,, jaya jee ko oonki lekhani k liye. aue adar jog mahaver jee ko adhuwad hume tak pahuchane ke liye.
aabhar
बेहद संवेदनशील कवियत्री सुश्री जय जी की
२ उम्दा कवितायें पढवाने के लिए
आपका आभार
- लावण्या
dono hi kavitayen ek dusre ki poorak lagti hain.
jaise naari ne diye ko dekhkar swam jalna aur dusro ko roshni dena seekh liya. ya diyon ne naari ke sayyam ko dekhkar toofano me bhi dhary rakhkar jalna seekh liya...
NAARI kavita hmae un palo ke samaksh le jaati hain, jab humara bachpan hamari maa ke aanchal me bara hua tha.
abhootpoorva kavitayen........
badhai....
london me rehete huye bhi , hindi bhasha ka ina prachar karna aur itni sundar kavitaon ki rachna karna hindi sabhyta ke liye amulya yogdaan hai.
bahaut bahaut badhai...aapke is prayas...par
अति सुन्दर!!
तेरी रहमत से जी रहे हैं हम
परिधि में रहकर
चिराग़ों से ज़रा पूछ
अपनी मर्ज़ी से न वे जलते हैं
और न बुझते हैं
उनकी लौ को देख
अपने पास न वे कुछ रखते हैं
लाल अग्नि में जलकर ख़ामोश हो जाते हैं
रोशनी किसको मिली वे नहीं पूछते
अंधेरों में कौन खो गए वे नहीं जानते
उनका काम था रह दिखाना
वे दिखाते रहे
उनकी फ़ितरत थी जलना
वे जलते रहे......पूरी कविता ही- एक जिन्दगी की लो में जलने की तासीर को लेकर रची बुनी गई है आपको सलाम ..आभार इतनी संवेदनशील कविता पढ़ वाने के लिए
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