Saturday, 8 May 2010

यू.के. से तोषी अमृता की कविताएँ

"यू.के. के कवियों की रचनाओं की शृंखला" में तोषी अमृता की रचनाएँ

तोषी अमृता
संक्षिप्त परिचय :
तोषी अमृता का जन्म भारत के पंजाब प्रांत में हुआ. पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से संस्कृत में प्रथम श्रेणी में एम. ए. और यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन से छात्रवृत्ति प्राप्त करके पुरातन इतिहास एवं संस्कृति पर पी.एच डी. करने में संलग्न हुई.
उच्च शिक्षा के पश्चात लगभग एक दशक दरास्सला जानिया, ईस्ट अफ्रीका में शिक्षण कार्य किया.
तोषी जी के पिता पंडित आशुराम आर्य वेदों के प्रकांड पंडित थे, जिन्होंने वेदों का उर्दू भाषा में अनुवाद किया तथा तत्कालीन भारत के राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किये गए.
अपने घर में अध्ययन चिंतन का माहौल होने के कारण तोषी अमृता की बचपन से ही साहित्य-सृजन में रूचि रही. इनकी कवितायें, कहानियां विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, सरिता, सारिका, कादम्बिनी, साप्ताहिक हिन्दुस्तान आदि में छपती रही हैं. भारतीय आकाशवाणी से उनकी कवितायेँ प्रसारित होती रही हैं. पंजाब शिक्षा-विभाग के तरुण परिषद् की ओर से आयोजित कविता, निबंध तथा कहानी-लेखन की प्रतियोगिता में पुरस्कार जीते.
अब पिछले तीन दशकों से आप स्थाई रूप से लन्दन में रहकर ब्रिटेन की प्रशासकीय सेवा में रत हैं. बी.बी.सी. लन्दन की हिन्दी सर्विस के साथ भी आपका संपर्क रहा.
लन्दन में रहते हुए भी तोषी अमृता का अपनी मातृ-भाषा हिन्दी से प्रेम बना हुआ है. नए परिवेश, स्थान, व्यवधान तथा परिस्थितियों के फलस्वरूप पठन-पाठन तथा लेखन में थोड़ा विराम आ गया था परन्तु तोषी अमृता ने फिर से कलम उठा कर लिखना आरंभ किया है.

'पर एकाकीपन वैसा ही है'
तोषी अमृता
...

झूम उठी चम्पक की शाख़ें
लहराता आया मलयानिल
सरक गया है आज भोर में
किसी यौवना का आँचल.
पर बगिया का फीकापन वैसा ही है.
चाँद सलोना उभरा नभ पर
पुलक-पुलक मुस्काये रजनी
प्रात रश्मि के छेड़ छाड़ से
लेती है अंगड़ाई अवनी.
पर अंबर का रीतापन वैसा ही है.
वर्षा की रिमझिम बूंदों ने
महासिंधु को तोय पिलाया
बल खाती सरिताओं ने आ
जाने कितना अर्ध्य चढ़ाया .
पर सागर का खारापन वीसा ही है.
मृदु मधुमास मधुप मंडराए
कोकिल मदमाती - सी डोले
थका-थका सा कहीं पपीहा
पिऊ-पीऊ रह रह कर बोले .
पर विरहणि का एकाकीपन वैसा ही है.
कुछ ऐसा ही जीवन सबका
मानस सा लहराया करता
अपना मन बहलाने को यह
जल तरंग सा गाया करता .
पर पनघट का सूनापन वैसा ही है.

तोषी अमृता
************************************

'अनबुझ प्यास'
तोषी अमृता
...

संयम खो बैठा सागर सहसा
बलखाती सरिता को देख.
बाहों में भरने को आतुर, बोला:
सरिते! क्यों ठिठक गई, यूं मत शरमाओ,
बस नर्तन करती, इठलाती,
बढ़ती हुई आओ पास, पास और ......पास
विस्तृत है मेरा बाहु पाश.
मैं अन्तस्तल तक जल ही जल हूँ.
पल भर में बुझा दूंगा तेरी प्यास!
पर ऐसा संभव हुआ नहीं, न होगा ही.
सरिता सदियों से प्यासी थी,
और आज भी प्यासी है.
खारे पानी से किसकी प्यास बुझी है अब तक?

तोषी अमृता
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13 comments:

तिलक राज कपूर said...
This comment has been removed by the author.
तिलक राज कपूर said...

'पर एकाकीपन वैसा ही है' अनसुलझी कविता रह गयी कि आखिर ऐसा क्‍यूँ है और 'अनबुझ प्यास' ने एक पत्‍नी की सारी व्‍यथा-कथा कह दी।
अबला जीवन हाय तुम्‍हारी यही कहानी
ऑंचल में है दूध और ऑंखों में पानी।

कडुवासच said...

...प्रभावशाली रचनाएं !!!

सहज साहित्य said...

तोषी जी की'अनबुझ प्यास' मन को छूने वाली कविता है ।रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Narendra Vyas said...

बहुत प्रभावशाली अभिव्‍यक्ति| ये ही रहस्‍य है सब कुछ होते हुए भी ना होना, पाकर भी ना पाने का अहसास, और यही शायद पूर्णता का भी द्योतक है| इन दोनो के बीच के इस एकाकीपन में ही वो मूल तत्‍व है जो ना होने पर भी सर्वथा 'है' | सरिता की इस प्‍यास में ही उसी तृप्ति भी है|
बहुत ही अच्‍छी लगी आपकी रचना | साधुवाद तोषी का ।।

PRAN SHARMA said...

TOSHI JEE,
DONO UMDAA KAVITAAON PAR
AAPKO IS PAKTI KE SAATH BADHAAEE
AUR SHUBH KAMNA--
KHAARE PANI SE KISKEE PYAAS
BUJHEE HAI AB TAK

योगेन्द्र मौदगिल said...

Behtreen prastuti....

ashok andrey said...

Toshi jee ki dono kavitaen pad kar mun khush ho gaya bahut hee sundar rachnaen hain-
khare paani se kiski pyaas bujhi hai ab tak?
badhai

देवमणि पाण्डेय said...

वर्षा की रिमझिम बूंदों ने
महासिंधु को तोय पिलाया
बल खाती सरिताओं ने आ
जाने कितना अर्घ्य चढ़ाया .
पर सागर का खारापन वैसा ही है.

तोषी जी की कविता में व्यक्त चिंतन अच्छा लगा। बधाई।

देवमणि पाण्डेय (मुम्बई)

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा रचनायें..आनन्द आया. बधाई.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

सरिता सदियों से प्यासी थी,
और आज भी प्यासी है.
खारे पानी से किसकी प्यास बुझी है अब तक...
दोनों कविताएं प्रभावशाली....ये पंक्तियां यादगार हैं.

विधुल्लता said...

कुछ ऐसा ही जीवन सबका
मानस सा लहराया करता
अपना मन बहलाने को यह
जल तरंग सा गाया करता .बधाई.

अविनाश वाचस्पति said...

सूनापन तो रोज बढ़ेगा
क्‍योंकि
प्‍यास तो बुझती नहीं है।