संक्षिप्त परिचय:
नीरा त्यागी, लीड्स, यू. के
नई दिल्ली में जन्मीं नीरा मिरांडा हाऊस, दिल्ली यूनिवर्सिटी से विज्ञान में स्नातक हैं। ब्रिटेन के सरकारी प्रोजेक्ट्स में मैनेजर की नौकरी कर रही हैं। पिछले कुछ समय से ब्रिटेन की हिंदी बिरादरी और हलचल में कविताओं और कहानियों के जरिये कोशिश जारी है। कवयित्री मानती हैं कि लिखना सिर्फ आसमान और वज़ूद की तलाश नहीं है, जमीन और जड़ों से जुड़ने का प्रयास भी है। काहे को ब्याहे बिदेस नाम से ब्लॉग भी लिखती हैं। हिन्द-युग्म के अप्रैल 2010 की यूनिकवि प्रतियोगिता के तीसरे स्थान की कविता की कवयित्री नीरा त्यागी ने पहली बार इस प्रतियोगिता में भाग लिया है।
गायब हो जाता है ...
नीरा त्यागी, लीड्स,यू. के.
नीरा त्यागी, लीड्स,यू. के.
दिन
मुझे ठगता है
हर राहगीर में एक चेहरा दिखा
अँधेरे में जा छिपता है...
शाम
मुझे नंगे पाँव
बर्फ पर दौड़ाती है
यादों के पेड़ पर लिखा एक नाम
पते - पत्ते पर पढ़वाती है...
अंगुलियाँ
जबरन बटन दबा
उसे पास बुलाती हैं..
धड़कने
दिन भर उसे कोस
रात को खुशबू में
उसकी
चुपचाप सो जाती हैं..
वजूद मुझे
अंगूठा दिखा
उसका हाथ पकड़
इतराता है ..
दिल के भीतर
तिजोरी तोड़
वो मेरा चैन
रेजगारी समझ ले जाता है...
मुझे तुमसे मुहब्बत है
मेज़ पर जमी धूल
पर लिख
वो फिर गायब हो जाता है...
नीरा त्यागी
***************
मुझे ठगता है
हर राहगीर में एक चेहरा दिखा
अँधेरे में जा छिपता है...
शाम
मुझे नंगे पाँव
बर्फ पर दौड़ाती है
यादों के पेड़ पर लिखा एक नाम
पते - पत्ते पर पढ़वाती है...
अंगुलियाँ
जबरन बटन दबा
उसे पास बुलाती हैं..
धड़कने
दिन भर उसे कोस
रात को खुशबू में
उसकी
चुपचाप सो जाती हैं..
वजूद मुझे
अंगूठा दिखा
उसका हाथ पकड़
इतराता है ..
दिल के भीतर
तिजोरी तोड़
वो मेरा चैन
रेजगारी समझ ले जाता है...
मुझे तुमसे मुहब्बत है
मेज़ पर जमी धूल
पर लिख
वो फिर गायब हो जाता है...
नीरा त्यागी
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तब और अब
नीरा त्यागी, लीड्स,यू. के.
नीरा त्यागी, लीड्स,यू. के.
आकाश का उजास,
माटी का इतर,
कलियों का वसंत,
चाँद का कंगन ,
वो पिटारे से निकाल
बार -बार दिखाता है
उसके हाथ पर गुदा
चांदनी का नाम
दुनिया को सफ़ेद,
सपनों को छूमंतर,
वजूद का नामो निशाँ
मिटा जाता है ..
दिल का मालिक
अजनबी नज़र आता है
छूने से पिघली,
एक लहर उछली,
एक बूंद हथेली पर,
हजार पल जी चुकी .....
अब
मानसून में भी सूखी,
जंगल से भयभीत
चट्टान हुई नदी
आँखें बंद किये
पहाड़ों से फिसली ..
नीरा त्यागी
**************
18 comments:
रेगिस्तान में बह निकली एक नदी, नाम नीरा त्यागी।
नीरा जी, आपकी दोनों कविताएँ शानदार हैं।
'मेरा चैन रेज़गारी समझ ले जाता है',
'चट्टान हुई नदी आंखें बंद किए पहाड़ों से फिसली'
॰ ॰ ॰ इतनी सुंदर और मन को छू जाने वाली अभिव्यक्ति जिस में गहराई भी है और आकाश की उड़ान भी! एक हज़ार बढ़ाइयाँ भी कम हैं।
एक हज़ार धन्यवाद,
महेंद्र दवेसर 'दीपक'
mujhko rachnayen rucheen.
umda ............
acchhi rachnaayen !
वाह नीरा जी भावपूर्ण रचना साधुवाद स्वीकारें
नीरा जी की कविताएं अच्छी लगीं, भीतर तक स्पर्श करती हैं ये। बधाई !
प्रिय नीरा जी ,आज नेट खोला तो महावीर शर्मा जी का मेल देखा ...यू के से नीरा त्यागी कि कविता ..अंदाजा नहीं था कि आप होंगी ..कविता पढ़ी ...बस दिन रोमानी होगया ...धन्यवाद ...आपकी कविता में लिए गये बिम्ब जुदा और अद्भुत हेँ इसमें शब्द का वैभव और विशिष्टपन एक दुःख के साथ कविता के माध्यम से मन पर तारी हो जाता है ...जैसे कोई मंद मंद हवा शिखर से नीचे बहती हुई फैल रही हो ...उदा के लिए निम्न्पंक्तियों ने मन मोहा है ...दिल के भीतर तिजोरी तोड़ वो मेरा चैन रेजगारी समझ ले जाता है..मुझे तुमसे मुहब्बत है मेज़ पर जमी धूल पर लिख वो फिर गायब हो जाता है.और दूसरी हैं ...आकाश का उजास, माटी का इतर, कलियों का वसंत, चाँद का कंगन ,वो पिटारे से निकाल बार -बार दिखाता है ...बहुत बढ़िया ...परुस्कार के लिए भी बधाइयां
बिंब सुंदर हैं
ati sumdar
पहली कविता तो अच्छी थी ही पर दूसरी कुछ और बेहतर लगी.. शायद दो विभिन्न हालात रखने की वजह से..
neera jee ki dono kavitaen sundar ban padeen hain, apne gehre bhavo se mun ko chhu jaati hain badhai
neera jee ki dono kavitaen sundar ban padeen hain, apne gehre bhavo se mun ko chhu jaati hain badhai
..सुन्दर रचनाएं !!!
आदरणीय नीरा जी की दोनो ही कविताएं बहुत पसन्द आई । पहली कविता की ये पंक्तियां
''दिल के भीतर
तिजोरी तोड़
वो मेरा चैन
रेजगारी समझ ले जाता है''
नए प्रयोग के साथ सुन्दर अभव्यक्ति है ।
दूसरी कविता सुन्दर भावों के साथ यमकात्मक अलंकरण लिये अधिक प्रभावशाली बन पडी है ।
आदरजोग श्री महावीर जी को प्रणाम और आभार पढवाने के लिये ।
वाह...वाह....वाह..... अतिसुन्दर !!!
NEERA JEE KEE KAVITAAON KEE
BHAVABHIVYAKTI SUNDAR AUR
SAHAJ HAI.
कविता पढ़ने और प्रोत्साहन के लिए आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया और यह मंच प्रदान करने के लिए महावीर जी का आसीम आभार!!
जो रेजगारी ले जा रहा है
आपने बतलाया नहीं
अपने रूपये छोड़कर जा रहा है
आपकी चिल्लर के साथ।
और दूसरी कविता में पर्यावरण के रोष के लिए इंसान को दोषी ठहराना, अच्छा और सच्चा लगा।
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