Friday, 4 June 2010

यू.के. से अरुणा सब्बरवाल की दो कविताएँ


"यू.के. के कवियों की रचनाओं की शृंखला" में अरुणा सब्बरवाल की दो रचनाएँ

अरुणा सब्बरवाल
जन्म : : दिल्ली में जन्म.
शिक्षा :दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.ए. ऑनर्स, बर्मिंघम विश्वविद्यालय (यू.के.) से बी.एड. तथा पोस्ट ग्रेजुएशन, संगीत विशारद, प्रयाग संगीत समिति (भारत).
कार्यक्षेत्र :२५ वर्षों तक यू.के. मुख्यधारा विद्यालयों में शिक्षण कार्य.
साहित्यिक एवं सांस्कृतिक योगदान : विद्यालय एवं विश्वविद्यालय जीवन में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन. १९८७-२००० सोसाइटी ऑफ़ एशियन आर्ट्स बर्मिंघम की कोषाध्यक्ष. २००७ से गीतांजली बहुभाषी साहित्यिक समुदाय, बर्मिंघम तथा यू.के. हिंदी समिति, लन्दन की सदस्य. विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कविता पाठ न्यू जर्सी (अमेरिका), कनाडा, दिल्ली, देहरादून, अक्षरम काव्य गोष्ठी में सक्रीय भागीदारी.
प्रकाशन :'सांसों की सरगम' (कविता संग्रह) , 'कहा अनकहा' (कहानी संग्रह), भारत एवं यू.के. की विभिन्न पत्रिकाओं में.
सम्मान :उत्तरांचल सरकार द्वारा सम्मानित २००८; चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ द्वारा सम्मानित २००८; अक्षरम ७वां अंतर्राष्ट्रीय हिंदी उत्सव में सम्मानित. अनेक संस्थाओं से सम्बद्ध.

विशेष रूचि : चित्रकारी, शास्त्रीय संगीत, लेखन.

रिक्शा वाला
अरुणा सब्बरवाल

हर मौसम में
देखती हूँ
गेट पर
उस रिक्शा वाले को
पाँव में चप्पल
तन पर अध-फटे कपड़ों से
पसीने की महक
उसकी सूखी अंतड़ियाँ
पेट की भूक
चेहरे की लकीरें
इन्तज़ार करती हैं मेरा.
क्योंकि मैं उसे
भाड़े में तीन नहीं
पाँच रुपये देती हूँ.
उसके शरीर के रोयें
मुझे देते हैं दुआएँ.
पेट भरे या न भरे
रात को शराब पीकर
वह चैन से सोता है
एक नई सुबह
की आस में
तीन या पाँच
की तलाश में.
**************
ओढ़नी
अरुणा सब्बरवाल

मन-उपवन की
घास पर, उगे
डेज़ी के फूलों
और डंडियों से
पिरोया एक सूत्र
मधुर बंधन का.
पनपने से पहले ही
किया
न जाने किसने
रेशा-रेशा.
समय का
उफान भी उसे
तोड़ न पाया.
पुन: सींचा उसे
स्नेह की बौछार से.
बुनी एक ओढ़नी
कबीर की
मिलकर.
'वह' चला गया
कमली हिरणी
फिरती है
ओढ़े ओढ़नी
कस्तूरी की
तलाश में.
***********

13 comments:

PRAN SHARMA said...

KHOOB LIKHA HAI ARUNA JEE NE.
BADHAAEE.

कडुवासच said...

....सुन्दर रचनाएं !!!

Unknown said...

dono hi kavitaayein acchi lagin..
aruna ji ko badhai tatha aapka aabhaar..

'ada'

ashok andrey said...

dono kavitaen padin bahut achchha likha hai lekin pehli kavita ne kaphi prabhavit kiya hai,Aruna jee ko badhai deta hoon in sundar rachnaon ke liye

Vinay said...

बहुत ही सुन्दर हैं दोनों रचनाएँ

Divya Narmada said...

yatharthparak rachnayen.

kavi kulwant said...

aruna ji ko padh kar achcha laga..

Narendra Vyas said...

बेहद संवेदनशील और यथार्थपरक रचनाएँ ! साधुवाद अरुणा जी !! आदरजोग महावीर जी को कोटिशः प्रणाम !

आचार्य उदय said...

आईये जानें .... मन क्या है!

आचार्य जी

योगेन्द्र मौदगिल said...

achhi kavita hai......aap dono ko badhai....

Devi Nangrani said...

Aruna ji ke kavya sarita se pyaas bujhne ki bajay aur bad gayi. ati sunder shabdavali se goonthi gayi rachanyein. daad ke saath

अविनाश वाचस्पति said...

पहली कविता के अंत में एक,दो व तीन पंक्तियां मैं जोड़ता हूं :
जिससे न बदले लाश में
न रिक्‍शा और न ही
रिक्‍शावाला मुफलिसी में जीने वाला।

और दूसरी कविता में जोड़ता हूं :
जब मिलती है कस्‍तूरी
तो बदल दिया जाता है
लाश में कस्‍तूरीधारक को।

रंजना said...

मर्म को छूती अतिसुन्दर कवितायेँ...