Thursday, 10 June 2010

यू.के. से शैल अग्रवाल की दो रचनाएं


"यू.के. के कवियों की रचनाओं की शृंखला" में शैल अग्रवाल की रचनाएँ

शैल अग्रवाल
जन्म : : 21 जनवरी 1947, वाराणसी, भारत.
शिक्षा :आज भी. यूँ पहले कभी, संस्कृत, कला और अंग्रेजी साहित्य में स्नातक ऑनर्स के साथ प्रथम श्रेणी में(1965) तदुपरान्त एम. ए. अँग्रेजी साहित्य,(1967) बनारस हिन्दू विश्वविध्यालय से।
सन 1968 से आजतक भारत से दूर, सपरिवार ब्रिटेन में।

लेखन :बचपन के छिटपुट लेखन के बाद पिछले एक दशक से हिन्दी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में निरंतर स्वतंत्र लेखन और देश विदेश की विभिन्न और मान्य व प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। कई रचनाएं, दूरभाष, दूरदर्शन और इन्द्रजाल पर भी। लेख और परिचर्चाएँ देश-विदेश के विभिन्न वैचारिक मंचों पर। चन्द कहानियों और कविताओं का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद। चन्द पर शोधकार्य।
विधा : कहानी, लघुकथा, कविता, हाइकू, लेख, नाटक,बाल साहित्य व उपन्यास । (प्रथम उपन्यास शेष-अशेष व कविता संग्रह नेतिनेति प्रकाशन की ओर)
रुझान :दार्शनिक कलात्मक और मानवीय संवेदनाओं से भरपूर। कला, साहित्य, संगीत, दर्शन और पर्यटन के साथ-साथ(जिसके जीवन में कई और अभूतपूर्व अवसर मिले) जीवन और मृत्यु और इन दोनों के बीच के हर रहस्य व गुत्थी में गहरी रुचि। लिखना आदत और मजबूरी दोनों ही।
संक्षेप में सत्यं शिवं और सुन्दरम् को साथ लेकर जीने की चाह। इसी प्रयास में अंग्रेजी भाषा में लिखा लेख (2002)औक्सफाम के शिक्षा प्रचार में पोस्टर के रूप में इस्तेमाल किया गया व कविता रिफ्यूजी को (2002)बरमिंघम की आर्ट काउन्सिल ने अपना रिप्यूजी सप्ताह मनाने के लिए प्रचार-पत्र के लिए चुना व छापा।

प्रकाशित कृतियाँ : ध्रुवतारा--कहानी संग्रह (रेवती प्रकाशन-2003) जोधपुर। चन्द कहानियाँ मराठी और नेपाली भाषा में क्षेत्रीय लेखकों द्वारा अनुवादित व संकलित।
समिधा :काव्य संग्रह (रेवती प्रकाशन-2003) जोधपुर।
लंदन पाती :सामयिकी निबंध संग्रह ( रेवती प्रकाशन सहयोग विश्वनाथ प्रकाशन-2007) वाराणसी।
श्री लक्ष्मीमल सिंघवी अँतर्राष्ट्रीय कविता सम्मान-2006 से सम्मानित।
मार्च 2007 से लेखनी. नेट नामक द्विभाषिक (हिन्दी व अंग्रेजी) मसिक ई.पत्रिका का सम्पादन व प्रकाशन। 2007 के लिए ही फरवरी सन 2009 में उत्कृष्ट साहित्य सृजन व हिन्दी प्रचार व प्रसार के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा भी सम्मानित।

एक और सच
-शैल अग्रवाल


सूर्यवंशी होना ही सब कुछ नहीं
ये कवच और कुंडल तो हमेशा
दान ही हुए हैं या फिर छीने गए हैं
हर शक्ति और गरिमा से
बात बस एक है
जरा शब्दों का फेर है
युद्ध में शस्त्रों की जगह
माँ का आँचल था
और था अनाथ के पास
बिन पिए दूध का कर्ज
लड़ाई धर्म की हो या समाज की
हमेशा अर्जुन ही जीतता है।
यह ढाल और कवच बेकार हैं
मिथ्या है सत्य का तुमुलनाद
और साधना का अमित प्रसाद
कर्ण के परित्यक्त जीवन में तो
एक कठिन एकाकी सफर से
दूसरे खामोश लम्बे सफर तक
हर युग में बस सन्यास है।

-शैल अग्रवाल
******************************
उलझन
शैल अग्रवाल


समय की आँच पर
चढ़ा मन का पतीला
कालिख से लिपा-पुता
उबलता-उफनता

खुरच डाली हैं मैंने
वे जली-भुनी तहें
पोंछा है इसे अपने
हाथों से रगड़-रगड़

पर कैसे परोसूँ
प्यार की रसोई
शब्दों की मिठाई
नेह का जल...

वह जली महक
तो जाती नहीं
तन-से-मन-से।

-शैल अग्रवाल
***************************

"यू.के. के रचनाकारों की रचनाओं की शृंखला" का समापन हम शैल अग्रवाल की कविताओं के साथ कर रहे हैं. यू.के. के अधिकाँश कवियों ने हमारे निमंत्रण पर कवितायें भेज कर हमारे ब्लॉग की जो गरिमा बढ़ाई है, उनका हम हृदय से आभारी हैं. हम आशा करते हैं कि भविष्य में भी इनका सहयोग मिलता रहेगा.
हमारे जिन सम्मानित कवियों ने हमें सहयोग दिया है उन सब के नाम हैं:
डॉ. सत्येन्द्र श्रीवास्तव, डॉ. गौतम सचदेव, मोहन राणा, सोहन 'राही', दिव्या माथुर,उषा राजे सक्सेना, शैल अग्रवाल, जय वर्मा, उषा वर्मा, पुष्पा भार्गव, रिफ़त शमीम,बासित कानपुरी, डॉ. इंदिरा आनंद, डॉ. वंदना मुकेश, नीरा त्यागी, अरुणा सब्बरवाल,तोषी अमृता, स्वर्ण तलवाड़, दीपक चौरसिया 'मशाल, प्राण शर्मा, महावीर शर्मा.
महावीर शर्मा
प्राण शर्मा
********************************************************

15 comments:

डॉ० डंडा लखनवी said...

शब्द-छ्लों में किस प्रकार सत्य का
गला घोटा गया है यह दर्द आपकी
रचना में उभरा है। प्रशंसनीय प्रस्तुति.....
बधाई स्वीकारें। सद्भावी- डॉ० डंडा लखनवी
///////////////////////////////////
एक मुक्तक
सुबेरे को नकारा अब कुबेरे कह रहे रहे हैं।
उजाले में धरा क्या है अंधेरे कह रहे हैं।।
हवस ऐसी महल ख़ुद को बसेरे कह रहे हैं।
लुटेरे आज अपने को कमेरे कह रहे हैं।।
///////////////////////////////////

PRAN SHARMA said...

SAHITYA KEE HAR VIDHA MEIN SHAIL
AGARWAL JEE KEE LEKHNI KHOOB
CHALTEE HAI.UNKEE RACHNAAON KO
PADHNAA BADAA HEE SUKHAD LAGTAA
HAI.UNKEE YE KAVITAAYEN MAIN BADE
MANOYOG SE PADH GAYAA HOON.
KAVITAAYEN HRIDAY MEIN UTAR GAYEE
HAIN. SHAIL JEE KO BADHAAEE AUR
SHUBH KAMNA.

सुभाष नीरव said...

शैल जी की दोनों कविताएं प्रभावकारी लगीं।

तिलक राज कपूर said...

कृष्‍ण अर्जुन और कर्ण के संदर्भ में तो बहुत बदलाव आ चुका है, नाम और चरित्र को धारा जा रहा है नकारा जा रहा है। सत्‍य असत्‍य के बीच झूलता भ्रम का पेंडुलम दिग्‍भ्रमित किये हुए है।
समय की ऑंच पर चढ़े पतीले में न कुछ ऊफनने दें न कालिख चढ़ने दें बाद की समस्‍याऍं पैदा नहीं होगी।

हॉं काव्‍य की दृष्टि से दोनों कवितायें बहुत अच्‍छी हैं।

kavi kulwant said...

good creation

Devi Nangrani said...

युद्ध में शस्त्रों की जगह
माँ का आँचल था
और था अनाथ के पास
बिन पिए दूध का कर्ज
Maan ka zikr har pal, har daur mein, har padav par aaan alazmi hai , shayad uske anchal ki chanv hamein duniyaan ki tamman garmion se bachati hai. Shailji ne ise bade hi navneet srijanatmak swaroop mein pesh kiya hai. Unki Kalam hi unka shastra hai..

ashok andrey said...

Shail jee ki kavitaen ek vayang ke saath apni baat kehti hain,bahut khoob,badhai

रूपसिंह चंदेल (ई मेल द्वारा) said...

आदरणीय शर्मा जी,
शैल जी की दोनों कविताएं पढ़ीं. उल्लेखनीय कविताएं. आप दोनों को बधाई.

रूपसिंह चन्देल

Anonymous said...

प्रभावपूर्ण भावाभिव्यक्ति-डॉ वंदना मुकेश

निर्मला कपिला said...

दोनो कवितायें बहुत अच्छी लगी शैल जी को बधाई। धन्यवाद्

सुनील गज्जाणी said...

बात बस एक है
जरा शब्दों का फेर है
युद्ध में शस्त्रों की जगह
माँ का आँचल था
और था अनाथ के पास
बिन पिए दूध का कर्ज
2

खुरच डाली हैं मैंने
वे जली-भुनी तहें
पोंछा है इसे अपने
हाथों से रगड़-रगड
ऊपर की दोनों पंक्तियों का उलेख करते हुए आप को सम्मानीय शैल मेम ,मेरा प्रणाम स्वीकार करियेगा ,
दोनों कविताओं का रूप अलग अलग था मगर द्वन्द लगा मुझे , जिसे खूब सूरती से आप ने अभिव्यक्त किया ,
आदर जोग महावीर साब को भी प्रणाम ,
मेम , पुनः आप को साधुवाद ,
आभार

अविनाश वाचस्पति said...

अद्भुत अनुभूतियों से पगी, पहली कविता का सच ही सदा का तीसरा सच है और उलझन में झनझनाहट, झनक झनक बरतन बाजे की तरह खनखनाती हुई, सीधे रसोई से बाहर निकल कर, तन मन में समाती जा रही है।

रंजना said...

दोनों ही कवितायेँ प्रभावशाली हैं...

कर्ण का दुर्भाग्य और दर्द बखूबी उतरा है पंक्तियों में...

महावीर said...

शैल अग्रवाल जी 'महवीर' ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
दोनों रचनाएं उत्कृष्ट हैं.
आशा है इसी प्रकार 'महावीर' ब्लॉग के लिए आपका सहयोग मिलता रहेगा.
सधन्यवाद
महावीर शर्मा

शारदा अरोरा said...

दोनों कवितायें मन को छू गईं । समय की आँच परचढ़ा मन का पतीला ...क्या शुरुवाद क्या है ..कविता की लहर कहाँ से उठेगी ..ये तो कवि मन ही जान सकता है ।