परिचय : कवि कुलवंत सिंह
प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा : करनैल गंज, गोंडा (उ. प्र.)
उच्च शिक्षा : अभियांत्रिकी, आई. आई. टी., रुड़की (रजत पदक एवं ३ अन्य पदक)
पुस्तकें प्रकाशित : 'निकुंज' (काव्य संग्रह), परमाणु एवं विकास (अनुवाद), विज्ञान प्रश्न मंच, कण क्षेपण (प्रकाशाधीन), चिरंतन (काव्य संग्रह), हवा नू गीत (काव्य संग्रह 'निकुंज' का गुजराती अनुवाद), शहीद-ए-आज़म भगत सिंह (खंड काव्य), 'क़ज़ा' ग़ज़ल संग्रह एवं अन्य - इन्टरनेट संस्करण २०१०)
रचनाएं प्रकाशित : साहित्यिक पत्रिकाओं, परमाणु ऊर्जा विभाग, राज भाषा विभाग, केंद्र सरकारकी विभिन्न पत्रिकाओं, वैज्ञानिक, विज्ञान, आविष्कार, अंतरजाल पत्रिकाओं में अनेक साहित्यिक एवं वैज्ञानिक रचनाएं.
पुरस्कृत : काव्य, लेख, विज्ञान लेखों एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत, विभागीय हिंदी सेवा के लिए 'राज भाषा गौरव सम्मान.
सेवायें : 'हिन्दी विज्ञान परिषद' से १५ वर्षों से संबधित व्यवस्थापक 'वैज्ञानिक' त्रैमासिक पत्रिका, विज्ञान प्रश्न मंचों का परमाणु ऊर्जा विभाग एवं अन्य संस्थानों के लिए अखिल भारत के स्तर पर आयोजन, क्विज़ मास्टर, कवि सम्मेलनों में काव्य-पाठ.
संप्रति : वैज्ञानिक अधिकारी, पदार्थ संसाधन, प्रभाग, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुंबई - ४०००८५.
ई मेल : kavi.kulvant@gmail.com / singhkw@barc.gov.in
कवि कुलवंत सिंह
चाँद सूरज आसमां धरती हवा मिलते सभी को,
आदमी ने जो बनाया, क्यों न मिलता हर किसी को।
राह में कांटे मिले तो जो मुसाफ़िर डर गया,
वह भला कैसे बताये रास्ता भटके किसी को।
जब मैं खुशियाँ बांटता था, शख्श हर मिलता गले था,
दास्तां सुनने दुखों की, है न फ़ुर्सत अब किसी को।
ज़िंदगी को मैंने समझा राह इस सीधी सी है,
ज़िंदगी को जिसने समझा, ज़िंदगी जाने उसी को।
मेरी ग़ुरबत ने दिया हक़ छोड़ जाओ तुम मुझे,
अब है हक़ मेरा सताऊँ, याद बन कर मैं तुम्हीं को।
हो चुके झगड़े बहुत अब नस्ल औ मज़हब के नाम,
आ गया हूँ बांटने अब पुर मुहब्बत मैं सभी को।
भर निगाहें शोख़ियां, मुझको है छेड़ा जब से उसने,
कौन हूँ, आया कहां से, पूछो मुझसे अब मुझी को।
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ग़ज़ल
कवि कुलवंत सिंह
दीन दुनिया धर्म का अंतर मिटा दे
जोत इंसानी मोहब्बत की जला दे।
ऐ ख़ुदा बस इतना तूँ मुझ पर रहम कर,
दिल में लोगों के मुझे थोड़ा बसा दे।
दिल में छाई है उदासी आज गहरी,
मुझको इस क़ुर-आन की आयत सुना दे।
जब भी झाँकूँ अपने अंदर तुम को पाऊँ,
बाँट लूँ दुख दीन का जज़्बा जगा दे।
रोशनी से तेरी दमके जग ये सारा,
नूर में इसके नहा ख़ुद को भुला दे।
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10 comments:
बढ़िया है.
sundar gazalein hain.
कवि कुलवंत जी को पढ़ कर अच्छा लगा.
जब मैं खुशियाँ बांटता था, शख्श हर मिलता गले था,
दास्तां सुनने दुखों की, है न फ़ुर्सत अब किसी को।....
....दोनों ही गज़लें बहुत सुंदर हैं
ZINDGEE KO JAANAA JISNE
ZINDGEE JAANE USEE KO
KYAA DIL KO CHHOO LENE WALA
MISRAA HAI ! BADHAAEE , DHER SAAREE
BADHAAEE.
bahut achchhi gajlen hain pad kar mun khush ho gaya, badhai Kulwant jee ko itni sundar gajlon ke liye
mujhko rachnayen rucheen.
दोनो गज़लें बहुत अच्छी लगें धन्यवाद्
many thansk dear friends..
with love..
चाँद सूरज आसमां धरती हवा मिलते सभी को,
आदमी ने जो बनाया, क्यों न मिलता हर किसी को।
बहुत सुन्दर सच बात , देखने के लिए आँख चाहिए ।
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