ग़ज़ल
- प्राण शर्मा
बेहाल खुद को रोज़ बताया नहीं करो
खुश हो तो दुःख की बात सुनाया नहीं करो
मन तो तुम्हारे फूल से कोमल हैं दोस्तो
सोचों का बोझ इनसे उठाया नहीं करो
कहते हैं, चिट्ठी लिख के बताना जरूरी है
चुपके से दूर गाँव से आया नहीं करो
माना कि भूल जाना कभी होता है मगर
हर बार मेरी बात भुलाया नहीं करो
उड़ जाएगा वो आप ही कुछ देर बैठ कर
यूँ ही कोई परिंदा उड़ाया नहीं करो
हर बच्चा देख के इन्हें डर जाता है हजूर
गुस्से में लाल आँखें दिखाया नहीं करो
अपनी भले ही कसमों को खाया करो मगर
ऐ "प्राण" माँ की कसमों को खाया नहीं करो
प्राण शर्मा
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- प्राण शर्मा
बेहाल खुद को रोज़ बताया नहीं करो
खुश हो तो दुःख की बात सुनाया नहीं करो
मन तो तुम्हारे फूल से कोमल हैं दोस्तो
सोचों का बोझ इनसे उठाया नहीं करो
कहते हैं, चिट्ठी लिख के बताना जरूरी है
चुपके से दूर गाँव से आया नहीं करो
माना कि भूल जाना कभी होता है मगर
हर बार मेरी बात भुलाया नहीं करो
उड़ जाएगा वो आप ही कुछ देर बैठ कर
यूँ ही कोई परिंदा उड़ाया नहीं करो
हर बच्चा देख के इन्हें डर जाता है हजूर
गुस्से में लाल आँखें दिखाया नहीं करो
अपनी भले ही कसमों को खाया करो मगर
ऐ "प्राण" माँ की कसमों को खाया नहीं करो
प्राण शर्मा
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ग़ज़ल
- प्राण शर्मा
अनूठी बात से सबको लुभाया कीजिये साहिब
अनूठी बात ही सबको सुनाया कीजिये साहिब
किसी की राह में पलकें बिछाया कीजिये साहिब
समर्पण भी कभी अपना दिखाया कीजिये साहिब
हजारों बार छोटी - छोटी बातें सुननी पड़ती हैं
भला क्योंकर उन्हें दिल से लगाया कीजिये साहिब
बहुत सुनते हैं बाहर मुस्कराना आपका लेकिन
कभी घर में भी अपने मुस्कराया कीजिये साहिब
खुशी में झूमता है, नाचता है हर कोई खुलकर
खुशी में आप भी कुछ झूम जाया कीजिये साहिब
ये माना,आप अपने को सजाते हैं बड़ा लेकिन
मज़ा तब है कि घर को भी सजाया कीजिये साहिब
जिसे तक कर सभी ऐ "प्राण" आँखें मींच लें अपनी
न ऐसा खेल दुनिया को दिखाया कीजिये साहिब
प्राण शर्मा
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- प्राण शर्मा
अनूठी बात से सबको लुभाया कीजिये साहिब
अनूठी बात ही सबको सुनाया कीजिये साहिब
किसी की राह में पलकें बिछाया कीजिये साहिब
समर्पण भी कभी अपना दिखाया कीजिये साहिब
हजारों बार छोटी - छोटी बातें सुननी पड़ती हैं
भला क्योंकर उन्हें दिल से लगाया कीजिये साहिब
बहुत सुनते हैं बाहर मुस्कराना आपका लेकिन
कभी घर में भी अपने मुस्कराया कीजिये साहिब
खुशी में झूमता है, नाचता है हर कोई खुलकर
खुशी में आप भी कुछ झूम जाया कीजिये साहिब
ये माना,आप अपने को सजाते हैं बड़ा लेकिन
मज़ा तब है कि घर को भी सजाया कीजिये साहिब
जिसे तक कर सभी ऐ "प्राण" आँखें मींच लें अपनी
न ऐसा खेल दुनिया को दिखाया कीजिये साहिब
प्राण शर्मा
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35 comments:
दोनों ही गज़ले बहुत उम्दा. आनन्द आ गया पढ़कर.
मन तो तुम्हारे फूल से कोमल हैं दोस्तो
सोचों का बोझ इनसे उठाया नहीं करो
और
ये माना,आप अपने को सजाते हैं बड़ा लेकिन
मज़ा तब है कि घर को भी सजाया कीजिये साहिब
क्या कहने..बेहतरीन!!
kya baat hai... dil se nikalkar dil men utarta huaa kalaam. ustad shayar kee masterpiece rachna.
श्रद्देय महावीर जी सादर प्रणाम
आदरणीय प्राण शर्मा जी के अनमोल अश’आर पेश किए हैं आपने
मन तो तुम्हारे फूल से कोमल हैं दोस्तो
सोचों का बोझ इनसे उठाया नहीं करो
सकारात्मक.....काश इस पर अमल हो जाए....
माना कि भूल जाना कभी होता है मगर
हर बार मेरी बात भुलाया नहीं करो
ऐसी गुस्ताख़ी.....हम तो नहीं करेंगे.
बहुत सुनते हैं बाहर मुस्कराना आपका लेकिन
कभी घर में भी अपने मुस्कराया कीजिये साहिब
ये शायद सबसे कीमती शेर हो गया है प्राण साहब.
परम आदरणीय महावीरजी , प्राणजी ,
सादर प्रणाम !
प्राणजी की नयी ग़ज़लें पढ़वाने के लिए आभार !
दोनों ग़ज़लें एक से बढ़कर एक हैं ।
पहली ग़ज़ल का मक़्ता दिल छू लेने वाला है …
अपनी भले ही कसमों को खाया करो मगर
ऐ "प्राण" माँ की कसमों को खाया नहीं करो
मेरी पसंदीदा बह्रे हज़ज की ग़ज़ल के भी सारे शे'र लाजवाब हैं ।
आपकी इस हिदायत पर ईमानदारी से अमल करना सीख रहा हूं …
बहुत सुनते हैं बाहर मुस्कराना आपका लेकिन
कभी घर में भी अपने मुस्कराया कीजिये साहिब
पुनः आभार …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
आनंद आया पढ़कर.. आप दोनों पूज्यों की साधना को नमन..
दोनों ग़ज़लें बहुत ख़ूब हैं
लेकिन ये दो शे'र बिल्कुल ज़बानज़द हो गए.
सूक्तियों की तरह.
बहुत सुनते हैं बाहर मुस्कराना आपका लेकिन
कभी घर में भी अपने मुस्कराया कीजिये साहिब
ये माना,आप अपने को सजाते हैं बड़ा लेकिन
मज़ा तब है कि घर को भी सजाया कीजिये साहिब
प्राण साहब को बधाई
आपका आभार इस प्रस्तुति के लिए
उड़ जाएगा वो आप ही कुछ देर बैठ कर
यूँ ही कोई परिंदा उड़ाया नहीं करो
बहुत सुनते हैं बाहर मुस्कराना आपका लेकिन
कभी घर में भी अपने मुस्कराया कीजिये साहिब
ये माना,आप अपने को सजाते हैं बड़ा लेकिन
मज़ा तब है कि घर को भी सजाया कीजिये साहिब
वाह भाई साहिब के ये शेर पढ कर आनन्द आ गया। बहुत अच्छी गज़लें । साधुवाद।
उड़ जाएगा वो आप ही कुछ देर बैठ कर
यूँ ही कोई परिंदा उड़ाया नहीं करो
*
जिसे तक कर सभी ऐ "प्राण" आँखें मींच लें अपनी
न ऐसा खेल दुनिया को दिखाया कीजिये साहिब
ग़ज़ल का मामला हो तो भाईसाहब के एक-एक शब्द में जान होती है। ऐसा लगने लगता है कि बहुत दिनों के बाद कोई ग़ज़ल पढ़ी है।
aadarniya Pran saHeb,
namaste!
हजारों बार छोटी - छोटी बातें सुननी पड़ती हैं
भला क्योंकर उन्हें दिल से लगाया कीजिये साहिब
बहुत सुनते हैं बाहर मुस्कराना आपका लेकिन
कभी घर में भी अपने मुस्कराया कीजिये साहिब
bahut khoob!
in khoobsoorat ghazloN ke liye meree dad qabool keejiye. darj ashaar behad pasand aaye.
मन आनंदित हो गया आज दो बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ कर....
आदरणीय प्राण शर्मा जी के ग़ज़ल दिल के अन्दर तक उतर जाते हैं.
उड़ जाएगा वो आप ही कुछ देर बैठ कर
यूँ ही कोई परिंदा उड़ाया नहीं करो
बहुत सुनते हैं बाहर मुस्कराना आपका लेकिन
कभी घर में भी अपने मुस्कराया कीजिये साहिब
ये माना,आप अपने को सजाते हैं बड़ा लेकिन
मज़ा तब है कि घर को भी सजाया कीजिये साहिब
...!!!
बहुत सुनते हैं बाहर मुस्कराना आपका लेकिन
कभी घर में भी अपने मुस्कराया कीजिये साहिब
वाह...वा...बेमिसाल...ऐसे अशआर जो पढ़ते ही दिल पर चस्पां हो जाएँ आदरणीय प्राण साहब की लेखनी से ही निकल सकते हैं. उनकी ये दो बेहतरीन ग़ज़लें हम तक पहुँचाने के लिए आपका जितना शुक्रिया किया जाये कम है.
नीरज
शिल्पगतरूप में सुगठित एवं भावसंपन्न गजलों के लिए बधाई स्वीकारें।
Pran ji ko padhana hamesha hi sukhad rahta hai...
priya bhai Pran jee aapki itnii achchhi gajlen pad kar man ek sukhad ehsaas se bhar gayaa-
hajaaron baar chhoti-chhoti baten
sunnanii padti hain
bhala kyonkar oonhen se lagaaya kiijiye saahib.
badhai, bahut-bahut.
dono hi gazal mann ko khushi deti hai....hamesha ki tarah bahut hi badhiyaa
उड़ जाएगा वो आप ही कुछ देर बैठ कर
यूँ ही कोई परिंदा उड़ाया नहीं करो
लाजवाब पंक्ति .
अति उत्तम दोनों ही गजले .....बहुत आनंद आया पढ़ कर .
अपनी भले ही कसमों को खाया करो मगर
ऐ "प्राण" माँ की कसमों को खाया नहीं करो
जिसे तक कर सभी ऐ "प्राण" आँखें मींच लें अपनी
न ऐसा खेल दुनिया को दिखाया कीजिये साहिब
प्राण जी,
मन को छू जाने वाली गज़लें हैं. बेहद खूबसूरत.
चन्देल
प्राण साहिब की ग़ज़लें पढ़कर एक सुकून मिलता है। दोनों ग़ज़लों के कई अशआर बहुत उम्दा हैं। प्राण साहिब को बधाई !
बहुत सुनते हैं बाहर मुस्कराना आपका लेकिन
कभी घर में भी अपने मुस्कराया कीजिये साहिब
2
उड़ जाएगा वो आप ही कुछ देर बैठ कर
यूँ ही कोई परिंदा उड़ाया नहीं करो
सम्मानिय प्राण साब ,
प्रणाम !
दोनों गज़ले अच्छी है नगर मेरी पसंद के दो शेर मैंने आप कि नज़र पेश किये है , सुंदर !
साधुवाद !
आदरणीय प्राण जी की दोनो ग़ज़लें लाजवाब हैं ... आनंद आ जाता है इतनी सुलझी हुई ग़ज़लें पढ़ कर ....
ये माना,आप अपने को सजाते हैं बड़ा लेकिन
मज़ा तब है कि घर को भी सजाया कीजिये साहिब
ग़ज़ब की बात है इस शेर में ... अपने आप को तो सभी संभालते हैं ... घर, समाज और देश की चनटा भी ज़रूरी है ... बहुत सादगी से अपनी बात को रखते हैं प्राण जी ... दिल में उतार जाती हैं उनकी ग़ज़लें ..
आ. महावीर जी व आ. प्राण भाई साहब,
नमस्ते
ज्ञानोदय में जो पापा की कविता आनेवाली है कृपया उसका लिंक भी भेजिएगा
आपकी दोनों ग़ज़लें पढ़कर बेसाख्ता
" वाह वाह "= दाद,
निकल ही जाती है -
पहली में , "क्या नहीं करना चाहीये "
यह तरीके से समझा दिया है आपने
और दूसरी में
"क्या करो " ये बात--
किस खूबी और प्यार से,
समझा दी आपने भई वाह !
ऐसा कमाल तो ,
ब स आपकी कलम का जादू ही कर सकता है !
आपको बधाई व
आ. महावीर जी को भी
आभार व सादर प्रणाम ......
स स्नेह, सादर,
- लावण्या
दोनों ही अंतर्मन को छूती हुई मुकम्मल ग़ज़लें. हर शेर उम्दा. फिर भी मुझे जो शेर खास कर भाये -
अपनी भले ही कसमों को खाया करो मगर
ऐ "प्राण" माँ की कसमों को खाया नहीं करो
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जिसे तक कर सभी ऐ "प्राण" आँखें मींच लें अपनी
न ऐसा खेल दुनिया को दिखाया कीजिये साहिब
प्राण साहब की गजलों की ही खूबी है कि वे हिंदी का प्रयोग कर इतने सरल और सहज अंदाज़ में शेरों के अश'आरों को ढाल कर रदीफ़ और काफियों को करीने से सजाते हैं..
साधुवाद आदरणीया प्राण साहब. आदरजोग महावीर जी का आभा और सादर वंदन !
दोनों ही गज़लें बहुत पसंद आयीं.
'हजारों बार छोटी - छोटी बातें सुननी पड़ती हैं
भला क्योंकर उन्हें दिल से लगाया कीजिये साहिब '
और
उड़ जाएगा वो आप ही कुछ देर बैठ कर
यूँ ही कोई परिंदा उड़ाया नहीं करो
खास पसंद आये.
उड़ जाएगा वो आप ही कुछ देर बैठ कर
यूँ ही कोई परिंदा उड़ाया नहीं करो
ये बात सोचने वाली लगी ...क्यों नाहक ही उड़ाते हैं , जब खुद ही साथ छोड़ जाना है । गहरी बात , बधाई स्वीकारें ।
श्रद्धेय महावीर जी इतनी लाजवाब ग़ज़ल पढ़वाने के लिए धन्यवाद.
मन तो तुम्हारे फूल से कोमल हैं दोस्तो
सोचों का बोझ इनसे उठाया नहीं करो
वाह क्या लखनौवा नज़ाकत है!!!!!!!!!!!!!!
अपनी भले ही कसमों को खाया करो मगर
ऐ "प्राण" माँ की कसमों को खाया नहीं करो
बहुत बेहतरीन लाज़वाब .
उड़ जायगा वह आप ही कुछ देर बैठ कर
यूँ ही कोई परिंदा उड़ाया न करो.
प्राण शर्मा जी ,आप में सादगी के साथ ग़ज़ल को गहराई देने की कला है हार्दिक बधाई .
प्राण शर्मा जी की ग़ज़ल पर मैं क्या कहूँ, लेकिन कहे बिना तो बात अधूरी रह जायेगी।
ग़ज़ल कहने का ये अंदाज़ बहुत ही खूबसूरत है
कभी फु़र्सत में हमको भी सिखाया कीजिये साहब।
AAderniya Bhai Shri Mahaveer ji Sharma and Shri Pran Sharma ji,
Donon ghazalen padhkar aanand aa gaya.Mian to aapke blog par aaj pahali baar aya hoon. Itni sunder ghazalen padvaane ke liye apko dhanyawad deta hoon.
ud jaayega wo aap hi kuchh der baith kar, yoon hi koi parinda udaaya na kijiye aur
kisi ki raah men palaken bichhaya kijiye sahib samarpan bhi kabhi apna dikhaya kijiye sahib.
Bahut sunder sher. is prastuti ke liye men punah hardik badhai deta hoon
chandrabhan bhardwaj
वैसे तो शर्मा साहब की पूरी ग़ज़ल शानदार है मगर यह शेर तो लाजवाब लगा
उड़ जाएगा वो आप ही कुछ देर बैठ कर
यूँ ही कोई परिंदा उड़ाया नहीं करो
....क्या बात है सर, काश कि हम भी कुछ ऐसा लिख पाते....!
उड़ जाएगा वो आप ही कुछ देर बैठ कर
यूँ ही कोई परिंदा उड़ाया नहीं करो
बहुत सुन्दर शेर. दोनों ही गज़लें बहुत सुन्दर हैं. आभार.
दोनों ही गज़लें बहुत अच्छी हैं.
धन्यवाद.
प्राण शर्मा जी की ग़ज़लें पढ़कर आनंद आ गया.
अपनी भले ही कसमों को खाया करो मगर
ऐ "प्राण" माँ की कसमों को खाया नहीं करो
ग़ज़ब का ख़याल है और उस पर शब्दों का चयन जैसे नगीने जड़े हों.
मन तो तुम्हारे फूल से कोमल हैं दोस्तो
सोचों का बोझ इनसे उठाया नहीं करो
और
बहुत सुनते हैं बाहर मुस्कराना आपका लेकिन
कभी घर में भी अपने मुस्कराया कीजिये साहिब
वाह!! मज़ा आ गया. बधाई.
मन तो तुम्हारे फूल से कोमल हैं दोस्तो
सोचों का बोझ इनसे उठाया नहीं करो
Bahut hi sunder sher, man ko raahat pradaan karta hua..shabdon ka rakh rakhaav sher mein dum bhar deta hai aur is nageenedari mein Pran ji ki dakshata hai.. Bahut sunder!!!
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