ग़ज़ल:
डॉ. गौतम सचदेव
डॉ. गौतम सचदेव
फूल बेमतलब खिले, खिलते रहे
लोग मतलब से मिले, मिलते रहे
ज़िंदगी है सिर्फ़ दामन क्यों सभी
फाड़ते या बिन सिले, सिलते रहे
ज़ख़्म ये कैसे भरे हैं वक़्त ने
कुछ उसी से फिर छिले, छिलते रहे
लोग चलते हैं न अपने दम सभी
कुछ लुढ़कते या ठिले, ठिलते रहे
पेड़ कटते देखकर सहमे हुए
पात ये सारे हिले, हिलते रहे
घाव बातों से न ‘गौतम’ के भरे
वे मगर उनसे छिले, छिलते रहे
- गौतम सचदेव
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लोग मतलब से मिले, मिलते रहे
ज़िंदगी है सिर्फ़ दामन क्यों सभी
फाड़ते या बिन सिले, सिलते रहे
ज़ख़्म ये कैसे भरे हैं वक़्त ने
कुछ उसी से फिर छिले, छिलते रहे
लोग चलते हैं न अपने दम सभी
कुछ लुढ़कते या ठिले, ठिलते रहे
पेड़ कटते देखकर सहमे हुए
पात ये सारे हिले, हिलते रहे
घाव बातों से न ‘गौतम’ के भरे
वे मगर उनसे छिले, छिलते रहे
- गौतम सचदेव
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साँझ मिली हँसकर रोती
रात बिखरती बन मोती
अल्हड़ भोर पकड़ तारे
चली किधर को सब खोती
फूल न यूँ ज़ख़्मी रहते
ओस अगर दिल से धोती
ख़ुश्बू ने पी लीं किरणें
सुबह मगर अब तक सोती
कली हँस पड़ी मुग्धा-सी
घुटी-घुटी थी दुख ढोती
फूल भरे घट उबटन के
काँटे बीँध गये मोती
धूल ओढ़ ली टहनी ने
खिसकी पत्तों की धोती
सी कर फूलों की पलकें
किसको है पीड़ा होती
होगी ही बंजर आशा
ये सपनों ने है जोती
क़िस्मत कभी न आयेगी
‘गौतम’ तूने क्यों न्योती
- गौतम सचदेव
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10 comments:
बढ़िया है.
dono laajwaab!!
Goutam jee bahut achchha likhte hain isee liye unki gajle seedhe-seedhe man ko chhu jaati hain,-
hogee hee banjar aashaa
ye sapno ne hai jotee.
unki yahee visheshtaa unko apne samay ke achchhe gajal kaaron me sathapit kartee hai,badhai
डॉ. गौतम सचदेव जी की लेखनी को प्रणाम करता हूँ. बहुत ही सुन्दर शब्दों में दोनों ग़ज़लों को सजाया है. ख़याल और बयान का खूबसूरत ताल-मेल है.
घाव बातों से न ‘गौतम’ के भरे
वे मगर उनसे छिले, छिलते रहे
वाह! बहुत सुन्दर.
महावीर शर्मा
उत्तम ग़ज़लों के लिए...शुक्रिया।
-डॉ० डंडा लखनवी
achchi gazalen..
दोनों गजलों को पढ़ना अच्छा लगा सर..
(ई मेल द्वारा)
दोनों ग़ज़लें न केवल अपने आप में अत्यंत सुंदर हैं बल्कि वे जीवन-दर्शन से संबंधित एक बहुत गंभीर और बहुमूल्य उपदेश भी हैं।
मेरी ओर से आपको धन्यवाद और प्राण जी को हार्दिक बधाई!
महेंद्र दवेसर 'दीपक'
पेड़ कटते देखकर सहमे हुए
पात ये सारे हिले, हिलते रहे
anubhuti mein shabd be saksham roop mein saath de rahe hain. Kala ka sunder pradarshan...khoob kaha hai!
आदरणीय दादा प्रणाम
साखी पर आपने ग़ज़लों को जो अपना स्नेह प्रदान किया उसके लिए मैं बेहद कृतज्ञ हूं. इस बहाने आपको प्रणाम निवेदित करने का सुअवसर भी प्राप्त हुआ. आपका स्नेह आगे भी प्राप्त होता रहेगा ऐसी कामना करता हूं.
पुनः प्रणाम सहित -संजीव गौतम
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