इस वर्ष "राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त मेमोरियल ट्रस्ट" का "राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त प्रवासी पुरस्कार" हिन्दी की प्रतिष्ठित कवयित्री और कहानीकार दिव्या माथुर के काव्य-संग्रह 'झूठ, झूठ और झूठ' को दिया जायेगा. इस पुरस्कार की राशि २१००० रुपये है. हमारी ओर से दिव्या माथुर को ढेरों बधाइयां!
प्राण शर्मा द्वारा "झूठ, झूठ और झूठ" की समीक्षा नीचे दिए हुए लिंक पर पढ़ सकते हैं:
"झूठ, झूठ और झूठ"
प्राण शर्मा द्वारा "झूठ, झूठ और झूठ" की समीक्षा नीचे दिए हुए लिंक पर पढ़ सकते हैं:
"झूठ, झूठ और झूठ"
झूठ १
दिव्या माथुर
झटका
झिंझोड़ा
अटका, पटका
भटकाए न भटका
गले में अटका
गया न सटका
मन में खटका
चेहरा लटका
कम्बख़्त आँख से
झटपट टपका
झूठ मेरा !
****************************
दिव्या माथुर
झटका
झिंझोड़ा
अटका, पटका
भटकाए न भटका
गले में अटका
गया न सटका
मन में खटका
चेहरा लटका
कम्बख़्त आँख से
झटपट टपका
झूठ मेरा !
****************************
झूठ -२
दिव्या माथुर
बेचारे के थे
न पाँव न पँख
गोद खिलाया
काँधे बिठाया
नाशुक्रा निकला
ये निगोड़ा
सर पर चढ़
मेरे ही बोला
देखो तो ज़रा
ये झूठ मेरा !
************************
दिव्या माथुर
बेचारे के थे
न पाँव न पँख
गोद खिलाया
काँधे बिठाया
नाशुक्रा निकला
ये निगोड़ा
सर पर चढ़
मेरे ही बोला
देखो तो ज़रा
ये झूठ मेरा !
************************
झूठ -3
दिव्या माथुर
मेरी ख़ामोशी
एक गर्भाशय है
जिसमें पनप रहा है
तुम्हारा झूठ
एक दिन जनेगी ये
तुम्हारी अपराध भावना को
मैं जानती हूँ कि
तुम साफ़ नकार जाओगे
इससे अपना रिश्ता
यदि मुकर न भी पाए तो
उसे किसी के भी
गले मढ़ दोगे तुम
कोई कमज़ोर तुम्हें
फिर बरी कर देगा
पर तुम
भूल के भी न इतराना
क्यूंकि मेरी ख़ामोशी
एक गर्भाशय है जिसमें पनप रहा है
तुम्हारा झूठ !
****************************
दिव्या माथुर
मेरी ख़ामोशी
एक गर्भाशय है
जिसमें पनप रहा है
तुम्हारा झूठ
एक दिन जनेगी ये
तुम्हारी अपराध भावना को
मैं जानती हूँ कि
तुम साफ़ नकार जाओगे
इससे अपना रिश्ता
यदि मुकर न भी पाए तो
उसे किसी के भी
गले मढ़ दोगे तुम
कोई कमज़ोर तुम्हें
फिर बरी कर देगा
पर तुम
भूल के भी न इतराना
क्यूंकि मेरी ख़ामोशी
एक गर्भाशय है जिसमें पनप रहा है
तुम्हारा झूठ !
****************************
झूठ -4
दिव्या माथुर
झूठ
सर पर चढ़ के
बोलता है
यही सोच के
ख़ामोश हूँ मैं
ये न समझना
कि मेरे मुंह में
ज़ुबान नहीं .
**********************
दिव्या माथुर
झूठ
सर पर चढ़ के
बोलता है
यही सोच के
ख़ामोश हूँ मैं
ये न समझना
कि मेरे मुंह में
ज़ुबान नहीं .
**********************
झूठ -5
दिव्या माथुर
तुम्हारे छोटे, मँझले
और बड़े झूठ
उबलते रहते थे मन में
दूध पर मलाई सा
मैं जीवन भर
ढकती रही उन्हें
पर आज उफन के
गिरते तुम्हारे झूठ
मेरे सच को
दरकिनार कर गए
तुम मेरी ओट लिए
साधु बने खड़े रहे
और झूठ की चिता पर
सती हो गया सच.
******************************
दिव्या माथुर
तुम्हारे छोटे, मँझले
और बड़े झूठ
उबलते रहते थे मन में
दूध पर मलाई सा
मैं जीवन भर
ढकती रही उन्हें
पर आज उफन के
गिरते तुम्हारे झूठ
मेरे सच को
दरकिनार कर गए
तुम मेरी ओट लिए
साधु बने खड़े रहे
और झूठ की चिता पर
सती हो गया सच.
******************************
13 comments:
bahut der se divya ji ki kavitaaye padh raha hoon aur man me ek ufaan sa shuru hua hai , inki kaviato ne bahut kuch sochne par mazboor kar diya hai .
RASHTRA KAVI MAITHILEE SHARAN GUPTA
PRAVAASEE BHARTIY PURASKAAR MILNE
PAR DIVYA MATHUR JEE KO HARDIK
BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA.
DIVYA MATHUR KE KAVYA SANGARAH
KEE SABHEE KAVITAAYEN MAINE BADE
MANOYOG SE PADH RAKHEE HAIN.UNKEE
HAR KAVITA MEIN ZINDGEE KAA SAAR
HAI.
चारों ही रचनाएं आँखों को बाँधने मन को झकझोरने वाली हैं...
बहुत बहुत सुन्दर....
दिव्या जी को सम्मान दिये जाने के लिये मेरी शुभकामनाएं. दिव्या जी की कविताओं से गुजरते हुए एक नया अनुभव होता है. ऐसा लगता है कि जीवन के चुने हुए अनुभवों के मंत्र कुंड से गुजर रहा हूं. रचना में इतनी सहजता है कि वह अनुभवों को नयी ध्वनि देने में कामयाब होती हैं. इन अच्छी रचनाओं की प्रस्तुति के लिये आदरणीय महावीर जी को नमन और रचनाकार को साधुवाद.
Paanchon rachnaayein atyadhik pasand aayin. झूठ -4 sabse adhik! Divya ji ko dhero badhayiyaan evam shubhkaamnaayein!
RC
मेरी खामोशी
एक गर्भाशय है
यह बिम्ब ही दिव्या जी की कविता की गहराई का परिचायक है। इसमें केवल सच,सच और सच ही हो सकता है कि उनकी अभिव्यक्ति का कोई जोड़ नहीं।
झूठ के लिए आमतौर पर बहुत सारे शब्दों की जरूरत पड़ती है। पर दिव्या जी ने बहुत मितव्ययिता से अपनी बात कही है,प्रभावी ढंग से। ये चार रचनाएं पढ़कर पूरा संग्रह पढ़ने का मन हो आया है। कैसे प्राप्त किया जा सकता है।
bahut saargarbhit rachnaen padne ko miliin Divya jee ko bahut-bahut badhai
दिव्या जी को सम्मानित कर साहित्य जगत स्वयं सम्मानित है यह उनकी प्रकाशित रचनाओं की बानगी से स्पष्ट है। अपने अनुभवों को एक नया अनुभव जो दिव्या जी ने दिया है वह अद्भुत है।
Wah Ji wah..
Gazab ke sachche jhooth....
Divya ji ko haardik badhayee....
Many conratulations to Divya ji for her Rastriya Mathlisharan Gupt Samman on 3rd August 2010. We are very proud of her.
Jai Verma
झूठ की इतनी सटीक व्याख्या इतने सुंदर शब्दों में...
सबसे पहले दिव्या जी !
आपको बधाई.....
मन को छूती हुई आपकी रचनाएँ....मेरा मन द्रवित हो उठा....
आभार और ढेर सारी
शुभ कामनाएँ..
सादर
गीता
Post a Comment