Saturday 19 November 2011

महावीर स्मृति सप्ताह-3


जिस प्रकार आप सबने ब्लॉग पुनरारंभ को एक सराहनीय कदम कहा है तो कदम-कदम पर आप सबका सहयोग भी जरूर मिलेगा. मेरी आप सबसे दरख्वास्त है कि अपनी रचनाओं में से कुछ को इस ब्लॉग को सींचने का माध्यम बनाइये. खासकर इस सप्ताह के लिए मैं ग्रेट ब्रिटेन में हिन्दी की अलख जगाये रखने वाले/ महावीर जी के संपर्क में रहे विद्वानों की तरफ़ एक बार फिर आशा भरी नज़रों से देख रहा हूँ.

आज पेश करता हूँ श्री महावीर जी का ही एक मनभावन, प्रेरक गीत. जहाँ तक मुझे पता है यह गीत श्री महावीर जी को स्वयं में बहुत पसंद था. तो लीजिये प्रस्तुत है आपके सामने-

अब धरती के गान लिखो

अब धरती के गान लिखो

लिख चुके प्यार के गीत बहुत कवि अब धरती के गान लिखो।
लिख चुके मनुज की हार बहुत अब तुम उस का अभियान लिखो ।।

तू तो सृष्टा है रे पगले कीचड़ में कमल उगाता है,
भूखी नंगी भावना मनुज की भाषा में भर जाता है ।
तेरी हुंकारों से टूटे शत्‌ शत्‌ गगनांचल के तारे,
छिः तुम्हें दासता भाई है चांदी के जूते से हारे।

छोड़ो रम्भा का नृत्य सखे, अब शंकर का विषपान लिखो।।

उभरे वक्षस्थल मदिर नयन, लिख चुके पगों की मधुर चाल,
कदली जांघें चुभते कटाक्ष, अधरों की आभा लाल लाल।
अब धंसी आँख उभरी हड्‍डी, गा दो शिशु की भूखी वाणी ,
माता के सूखे वक्ष, नग्न भगिनी की काया कल्याणी ।

बस बहुत पायलें झनक चुकीं, साथी भैरव आह्‍वान लिखो।।

मत भूल तेरी इस वाणी में, भावी की घिरती आशा है,
जलधर, झर झर बरसा अमृत युग युग से मानव प्यासा है।
कर दे इंगित भर दे साहस, हिल उठे रुद्र का सिहांसन ,
भेद-भाव हो नष्ट-भ्रष्ट, हो सम्यक्‌ समता का शासन।


लिख चुके जाति-हित व्यक्ति-स्वार्थ , कवि आज निधन का मान लिखो।।
महावीर शर्मा

प्रस्तुतकर्ता- दीपक मशाल

2 comments:

sanjiv salil said...

मत भूल तेरी इस वाणी में, भावी की घिरती आशा है,
जलधर, झर झर बरसा अमृत युग युग से मानव प्यासा है।
कर दे इंगित भर दे साहस, हिल उठे रुद्र का सिहांसन ,
भेद-भाव हो नष्ट-भ्रष्ट, हो सम्यक्‌ समता का शासन।

बहुत खूब ... कविवर महावीर शर्मा जी की लेखनी से नि:सृत यह कालजयी रचना मन को छू गयी. उनकी पुण्य तथा प्रेरक स्मृति को शत-शत नमन.
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

"अर्श" said...

छोड़ो रम्भा का नृत्य सखे, अब शंकर का विषपान लिखो।। तुम धरती का गान लिखो....

पहले तो नहीं सुना इस गीत को , बहुत ही खूबसूरत गीत है,,,, शुक्रिया दीपक भाई दादा साहब के इस गीत को हम तक पहुंचाने के लिये!..

अर्श