महावीर शर्मा
गीत तो गाए बहुत जाने अजाने
स्वर तुम्हारे पास पहुंचे या ना पहुंचे कौन जाने!
उड़ गए कुछ बोल जो मेरे हवा में
स्यात् उनकी कुछ भनक तुम को लगी हो,
स्वप्न की निशि होलिका में रंग घोले
स्यात् तेरी नींद की चूनर रंगी हो,
भेज दी मैं ने तुम्हें लिख ज्योति पाती,
सांझ बाती के समय दीपक जलाने के बहाने।
यह शरद का चांद सपना देखता है
आज किस बिछड़ी हुई मुमताज़ का यों,
गुम्बदों में गूंजती प्रतिध्वनि उड़ाती
आज हर आवाज़ का उपहास यह क्यों?
संगमरमर पर चरण ये चांदनी के
बुन रहे किस रूप की सम्मोहिनी के आज ताने।
छू गुलाबी रात का शीतल सुखद तन
आज मौसम ने सभी आदत बदल दी,
ओस कण से दूब की गीली बरौनी,
छोड़ कर अब रिमझिमें किस ओर चल दीं,
किस सुलगती प्राण धरती पर नयन के,
यह सजलतम मेघ बरबस बन गए हैं अब विराने।
प्रात की किरणें कमल के लोचनों में
और शशि धुंधला रहा जलते दिये में,
रात का जादू गिरा जाता इसी से
एक अनजानी कसक जगती हिये में,
टूटते टकरा सपन के गृह-उपगृह,
जब कि आकर्षण हुए हैं सौर-मण्डल के पुराने।
स्वर तुम्हारे पास पहुंचे या न पहुंचे कौन जाने!
महावीर शर्मा
26 comments:
टूटते टकरा सपन के गृह-उपगृह,
जब कि आकर्षण हुए हैं सौर-मण्डल के पुराने।
स्वर तुम्हारे पास पहुंचे या न पहुंचे कौन जाने!
सुंदरतम रचना. बहुत नमन आपको.
रामराम.
भेज दी मैं ने तुम्हें लिख ज्योति पाती,
सांझ बाती के समय दीपक जलाने के बहाने।
... प्रसंशनीय व प्रभावशाली अभिव्यक्ति है, जय हिन्द !!!!!
बहुत बहुत सुंदर भाव।
हर पंक्ति का रस लिया, बहुत सुन्दर कृति!
KAVITA-GEET VAH HAI JISE PADHTE-PADHTE MAN AANAND MEIN DOOB JAAYE.
AESEE HEE HAI YAH SASHAKT RACHNAA.
MAHAVIR JEE,AAP JITNE ACHCHHE
GAZALKAAR HAIN UTNE HEE ACHCHHE
GEETKAAR.
आदरणीय महावीरजी
हिंदी की कोमल और ह्रदय स्पर्शी रचना है. हर शब्द से जैसे रस टपक रहा हो...
"प्रात की किरणें कमल के लोचनों में
और शशि धुंधला रहा जलते दिये में,
रात का जादू गिरा जाता इसी से
एक अनजानी कसक जगती हिये में...."
बहुत दिनों के बाद आप मेरे ब्लॉग पर आये और अपनी टिपण्णी से मुझे प्रोत्साहित किया. मै स्वयम को धन्य मानता हूँ. .
सच कहू तो आपकी होसला आफजाई मेरे लिए आपका आशीर्वाद है. प्रयत्न करूंगा कुछ अच्छा लिखते रहने का.समय निकाल कर आप मुझे अपनी राय जरूर देते रहे, आभारी रहूँगा
प्रात की किरणें कमल के लोचनों में
और शशि धुंधला रहा जलते दिये में,
रात का जादू गिरा जाता इसी से
एक अनजानी कसक जगती हिये में,
...........
raat ka jaadu aapki rachna me mukhrit hai,aur aapke vyaktitw ki jhalak anupam hai......
उड़ गए कुछ बोल जो मेरे हवा में
स्यात् उनकी कुछ भनक तुम को लगी हो,
स्वप्न की निशि होलिका में रंग घोले
स्यात् तेरी नींद की चूनर रंगी हो,
bahut sundar bhav aur vaise hi sundar abhivyaaki...kitane sundar rango se ranga hai aapne es kavita ko.
Regards
यह शरद का चांद सपना देखता है
आज किस बिछड़ी हुई मुमताज़ का यों,
गुम्बदों में गूंजती प्रतिध्वनि उड़ाती
आज हर आवाज़ का उपहास यह क्यों?
प्रमाण महावीर जी
इतनी सुंदर, सार गर्भित, धारा प्रवाह shashakt रचना.गीत के रूप में पूरी की पूरी एक बार में ही पढ़ गया, जीवन के सत्य को, आनंद को निचोड़ कर लिखा है
धन्यवाद ऐसे कृति के लिए
"छू गुलाबी रात का शीतल सुखद तन
आज मौसम ने सभी आदत बदल दी
ओस कण से दूब की गीली बरोनी
छोड़ कर अब रिमझिमें किस और चल दीं"
मन की सुकोमल मधुरिम भावनाओं की बहुत ही सुन्दर अभ्व्यक्ति ...
गीत-शैली की समृद्ध कला को परिभाषित करती हुई मनोहारी रचना ...
एक-एक शब्द आकाश में जड़े दमकते सितारे जैसा .....
इतनी अच्छी सार्थक रचना के लिए अभिवादन स्वीकार करें . . . .
---मुफलिस---
आदरणीय महावीर जी
चरण-स्पर्श !
कुछ कहने की स्थिति-कुछ कहना श्रेयष्कर नहीं लग रहा इतने सुंदर शब्दों से सजे इस गीत की प्रशंसा में अपने सस्ते शब्दों से।
"प्रात की किरणें कमल के लोचनों में/और शशि धुंधला रहा जलते दिये में/रात का जादू गिरा जाता इसी से/एक अनजानी कसक जगती हिये में"
वाह !!!
इस मुखर अभिव्यक्ति के लिये बधाई....
आदरणीय सर ,
यह गीत 1 साल और 8 महीने बाद एक बार फ़िर पढा़ पहले इसे आपके wordpress वाले ब्लोग पर पडा़ था ,आज भी इसे पढ़ कर उतना ही आनन्द आया ,
शायद यही वो पहला गीत था जो मैने आपका पढा़ था इस गीत के साथ ही आपके ब्लोग से एक रिश्ता बना था ।
पता ही नहीं चला कब इतना वक्त गुजर गया ।
आपसे बहुत कुछ सीखा है और आगे बहुत कुछ सिखना है ।
इस गीत को पढ़ते पढते आपकी कई रचनाये याद आ गई ।
बहुत बहुत धन्येवाद सर ......
सादर
हेम ज्योत्स्ना "दीप"
आदरणीय शर्मा साहिब
सादर प्रणाम.
बहुत दिनों से ब्लॉग पर नहीं आ सका हूँ .
आज यहाँ आपकी बहुत खूबसूरत रचना पढ़ने को मिली है.
एक-एक पँक्ति सुन्दर है
,जादू बुनते शब्द हैं... और
... अब क्या कहूँ...
"प्रात की किरणें कमल के लोचनों में
और शशि धुंधला रहा जलते दिये में
रात का जादू गिरा जाता इसी से
एक अनजानी कसक जगती हिये में"
वाह-वाह
Geet to gaye bahut jane anjane...swar tumhar paas pahunche ya na pahunche...atyant prabhavshali rachna..
Regards....
bahut sundar rachanaa hai.
छू गुलाबी रात का शीतल सुखद तन
आज मौसम ने सभी आदत बदल दी,
ओस कण से दूब की गीली बरौनी,
छोड़ कर अब रिमझिमें किस ओर चल दीं,
यह शरद का चांद सपना देखता है
आज किस बिछड़ी हुई मुमताज़ का यों,
गुम्बदों में गूंजती प्रतिध्वनि उड़ाती
आज हर आवाज़ का उपहास यह क्यों?
दिल से निकले शब्द, सीधे दिल में उतर गये।
महावीर जी प्रणाम
गीत ने इस बेमीटर को भी एक आनंद की अनुभूति करा दी आपका गीत आनंद की अनुभूति करा गया बहुत खूबसूरती से लिखा गया गीत।
आदरणीय महावीर जी....प्रणाम....आज बहुत दिनों बाद आप के ब्लॉग पर आना हुआ...इस गलती के लिए कान पकड़ कर माफ़ी मांगता हूँ...इस से नुक्सान मेरा हुआ क्यूँ की इस ब्लॉग पर उपलब्ध विलक्षण रचनाओं से मैं इतने दिनों दूर रहा...आज पूरी कसर निकाल ली है....एक तृप्ति का भावः मन में आ गया है...सब अब तक छूटी हुई रचनाएँ पढ़ कर...
आप की लिखी इस कविता के बारे में क्या कहूँ? कहाँ से शब्द ढूँढ कर लाऊं...असमंजस में हूँ...मेरा मौन नमन स्वीकार करें.
नीरज
Mai ek behad adna-si wyakti hun...naa lekhika na kavi..pehlee baar aapke blogpe aaye aur ye rachna padhee..
Aap jaise diggajke lekhanpe tippanee de sakun, aisee meree himmathi nahi..
Jo sabne kaha,uske alawa aur kya kahun?
Sirf itna kahungi ki,rachna behad alag hai un rachnaon se jo aajtak padheen...
aadarniya mahavirji,
aapki tippani mujhe zinda karti he. mujhme likhne ke prati ek nai shakti kaa sanchaar karti he, aour yahi ek shishya ke liye guru ka prataap he..
me to eklavay jesa hu jo aapki moorat rakh seekh raha hu.
yah geet mere bahut kareeb hai aur maine kai baar iska anand liya hai....maja aa gaya ...man jhoom utha ye geet parhkar....
mahaaveer ji,
namaskaar..
tussi vadde solid comment karde ho ji...
punjaabi kavitaaon pe...
great,,,,,,,!!!!!!!!!!!
ki tuhaade naal vee koi majboori haigee.............?
गीत तो गाए बहुत जाने अजाने
स्वर तुम्हारे पास पहुंचे या ना पहुंचे कौन जाने!
उड़ गए कुछ बोल जो मेरे हवा में
स्यात् उनकी कुछ भनक तुम को लगी हो,
स्वप्न की निशि होलिका में रंग घोले
स्यात् तेरी नींद की चूनर रंगी हो,
बेहद रोचक रचना । पढ़कर दिल खुश हो गया । लयबध्द तथा रोचक है । आभार
आदरणीय महावीर जी सादर प्रणाम,
इतनी खुबसूरत कविता और मैं पढने से वंचित रहा जैसे पाप कर दिया मैंने ... इतनी सरलता से और सशक्त अभिब्यक्ति की प्रशंसा ये अदना क्या करे... बस मैं तो धन्य हुआ .... आपका आशीर्वाद मिलता रहे यही उम्मीद करता हूँ....
अर्श
priya bhai mahaveer sharma jee aapki kavita geet to gaye bahut ne dil ko chho liya he jiske liye main aapko badhai deta hoon
ashok andrey
Post a Comment