Sunday, 30 August 2009

यू.के. से दिव्या माथुर की रचनाएँ

सोंधी मिट्टी
कभी ये
बैरी
थपेड़ा था
लू का

आया आज
ख़याल तेरा
सोंधी मिट्टी की
खुश्बू सा
*******
ग्रीष्म ऋतु

धूप में चलते
पाँव जले
पाँव जले
बैठ गई
तब मैं थक के

ढेर से बादल
लाया ठेल
खड़ा किया
इक भव्य महल

हवा के रुख को
तोड़ा मोड़ा
बालों में
फूलों को जोड़ा

बूंदों से
छिड़काव कराया
कलियों का
कालीन बिछाया

गीष्म ऋतु भर
ख़याल ने तेरे
ख़याल रखा
इतना मेरा
******
संबल


जाड़े की
ठिठुरन में
हुक्का ही
इक संबल था

आया आज
ख़याल तेरा
गरम मुलायम
कम्बल सा
***************

लानत

थोड़ा सा
छेड़ा भर था

रूठ गया
और लौटा

लानत भेजी
तो भी गया

तुझ से अच्छा
है ख़याल तेरा
**********
दिव्या माथुर


आगामी अंक: ६ सितम्बर 2009
दो कवि - दो रंग
प्राण शर्मा और तेजेंद्र शर्मा

की रचनाएँ


सितंबर से सितंबर २००९ तक

प्राण शर्मा की दो लघुकथाएं
-
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21 comments:

प्रकाश पाखी said...

जाड़े की
ठिठुरने में
हुक्का ही
इक संभल था

आया आज
ख़याल तेरा
गरम मुलायम
कम्बल सा
आदरणीय महावीर जी,
प्रणाम !
आपके ब्लॉग पर श्रेष्ठ रचनाकारों और रचनाओं को पढ़ कर सुकून मिलता है...
आभार स्वीकार करें.
प्रकाश

"अर्श" said...

श्रधेय श्री महावीर जी को मेरा सादर प्रणाम,
दिव्या जी की तीनो जी कवितायेँ पढ़ी बहुत आनंद आया ... पहली कविता जैसे ही पढ़ी स्तब्ध रह गया और सोचने लगा के आखिर किस उचाई तक सोच की उड़ान है जिसका कहीं कोई हद नहीं ... दुसरे और तीसरे कविता ने भी इसी तरह प्रभावित किया ... बहुत बहुत आभार दिव्या जी की कवितावों को पढ़वाने के लिए...

आपका
अर्श

Meenu Khare said...

तीनों रचनाएँ उच्चस्तरीय लगीं. दिव्या जी और महावीर जी दोनो को धन्यवाद और बधाई.

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह.. बेहतरीन प्रस्तुति.. आपको व दिव्या जी को नमन..

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचनाएं प्रेषित की हैं।बधाई स्वीकारें।

Randhir Singh Suman said...

nice

kavi kulwant said...

bahuta Khoob.. Divya ji ko pranam..
Mavavir ji aap ko hardik dhanyawaad.. Divya Ji ko yahan laane ke liye..

Unknown said...

वाह !
उत्कृष्ट काव्य का उपहार,,,,,,,,,,,,,,,,,
वाह !
अनुपम कवितायें
बधाई दिव्याजी को....

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर कवितायें है। दिव्या जी को शुभकामनायें आपका भी बहुत बहुत आभार जो हमेैतनी अच्छी रचनाओं और कवियों से परिचय करवातेहैं

देवमणि पांडेय (ई मेल द्वारा) said...

बहुत सुंदर कविताएं हैं !

''आया आज ख़याल तेरा
गरम मुलायम कम्बल सा''

रंजना said...

अल्प शब्दों में भावों की सुन्दर सरिता बहा दी आपने...बहुत बहुत भावपूर्ण एवं सुन्दर रचनाओं का रसास्वादन कराने हेत आभार.

नीरज गोस्वामी said...

दिव्या जी के अनूठे लेखन से मैं भी बहुत प्रभावित हूँ ..मार्च २००८ में मैंने भी अपने ब्लॉग पर (http://ngoswami.blogspot.com/2008/03/blog-post_17.html. ) उनकी रचनाएँ पोस्ट की थीं...बहुत कम शब्दों में बहुत गहरी बात करने का हुनर उन्हें अपने समकालीन लेखकों से अलग और विशिष्ठ करता है...
नीरज

बलराम अग्रवाल said...

कम शब्द, गहरा और बेजोड़ प्रभाव।

Divya Narmada said...

गागर में सागर सी कवितायेँ..कवयित्री और प्रस्तुतकर्ता दोनों साधुवाद के पात्र हैं.

दिगम्बर नासवा said...

LAJAWAAB HAIN SAB RACHNAAYEN .....

Dr. Sudha Om Dhingra said...

दिव्या जी,
बहुत खूब--

आया आज
ख़याल तेरा
गरम मुलायम
कम्बल सा
वाह क्या बात है...
बधाई!

PRAN SHARMA said...

BHAVABHIVYAKTI ATI SARAS HAI.
DIVYA MATHUR CHOTEE KAVITAYEN
KAHNE MEIN DAKSH HAIN.GAGAR MEIN
SAGAR BHAR DETEE HAIN VE.

शरद कोकास said...

दिव्या जी की कविता अच्छी लगी ।

Dr. Ghulam Murtaza Shareef said...

दिव्या जी ,

न सागर है न गागर है
फिर भी
मुठ्ठी भर शब्दों में

समों दिया है सागर

डॉ. गुलाम मुर्तजा शरीफ
कराची ( पाकिस्तान )

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

दिव्या जी की कवुताएं पहली बार पढ़ रही हूँ और बहुत पसंद आयीं - मेरी और से सस्नेह बधाई व शुभकामनाएं तथा आ. महावीर जी , आप का धन्यवाद जो एक उम्दा कवियत्री की कृति से साक्षात्कार करवाया आपने

-- सादर
- लावण्या

ashok andrey said...

man ko chhuti inn achchhi kavitaon ke liye mei divya jee ko badhai detaa hoon

ashok andrey