Thursday, 29 October 2009

अमेरिका से 'देवी' नागरानी की दो ग़ज़लें

देवी नागरानी
ग़ज़लः
चमन में ख़ुद को ख़ारों से बचाना है बहुत मुश्किल
बिना उलझे गुलों की बू को पाना है बहुत मुश्किल

किसी भी माहरू* पर दिल का आना है बहुत आसाँ
किसी के नाज़ नख़रों को उठाना है बहुत मुश्किल

छोड़ी चोर ने चोरी, छोड़ा सांप ने डसना
ये फ़ितरत है तो फ़ितरत को बदलना है बहुत मुश्किल

किसी को करके वो बरबाद ख़ुद आबाद हो कैसे
चुरा कर चैन औरों का तो जीना है बहुत मुश्किल

गले में झूठ का पत्थर कुछ अटका इस तरहदेवी
निगलना है बहुत मुशकिल, उगलना है बहुत मुश्किल
(*माहरू: चाँद जैसे चेहरे वाला)
'देवी' नागरानी
************************************
ग़ज़लः

कभी महसूस की गुलशन में तुमने ख़ार की ख़ुशबू
कहीं कागज़ के फूलों से है आती प्यार की ख़ुशबू

कहा किसने कि कोरे काग़ज़ों से कुछ नहीं मिलता
कहानी पढ़ने से आये कभी किरदार की ख़ुशबू

कभी ऐसा भी होता है पराये अपने लगते हैं
जहां अपनों में हम है ढूंढते आधार की ख़ुशबू

ज़रा सी बात दिल दिल से कभी तोड़े, कभी जोड़े
अगर दरकार है दिल को तो बस सहकार की ख़ुशबू

कभी इनकार करता दिल, कभी इकरार करता दिल
अजब उस प्यार से आती है अब इज़हार की ख़ुशबू

महकती रात की उस तीरगी में जागना देवी
सहर सांसों में भर देगी वो गीता सार की ख़ुशबू

बजी घट में वो शहनाई, हुई झंकार वीणा की
उसी मदहोश आलम से उठी मल्हार की ख़ुशबू

छवि जिसके तसव्वुर की बसी है आँख में देवी
है दिल में जुस्तजू बस ये, मिले दीदार की ख़ुशबू
'देवी' नागरानी
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अगला अंक:
8 नवम्बर 2009
महावीर शर्मा
की दो ग़ज़लें

20 comments:

Smart Indian said...

बहुत सुन्दर रचनाएं. हर एक शेर में बेबाक सचाई भी!

Unknown said...

इन ग़ज़लों को

इन नायाब ग़ज़लों को

लिखने वाला धन्य !
छपने वाला धन्य !
बांचने वाला धन्य !

___________धन्य हो देवी नाग रानीजी !
___________धन्य हो महावीर जी !

कहा किसने इन कोरे काग़ज़ों से कुछ नहीं मिलता
कहानी पढ़ने से आये कभी किरदार की ख़ुशबू

__मैं तोह ये शे'र बाँच कर ही धन्य हो गया !

रूपसिंह चन्देल said...

Nagarani ji ki dono Gazaleyen padhakar unaki pratibha ka kayal ho gaya.

Bahut adbhut gazaleyen hain.

Chandel

Divya Narmada said...

देवी जी!
वन्दे मातरम.
आपकी दोनों गजलें मन को को गयीं. हर अशआर जिंदगी की सचाई का आइना है साधुवाद.

Anonymous said...

देवी जी की दोनों ग़ज़लें अच्छी लगीं । बहुत अच्छे शेर हैं-

चमन में ख़ुद को ख़ारों से बचाना है बहुत मुश्किल
बिना उलझे गुलों की बू को पाना है बहुत मुश्किल

किसी भी माहरू पर दिल का आना है बहुत आसाँ
किसी के नाज़ नख़रों को उठाना है बहुत मुश्किल

देवमणि पाण्डेय, मुम्बई

Udan Tashtari said...

देवी जी को पढ़ना और सुनना हमेशा सुखद होता है.

न छोड़ी चोर ने चोरी, न छोड़ा सांप ने डसना
ये फ़ितरत है तो फ़ितरत को बदलना है बहुत मुश्किल

क्या बात कही है!! वाह!!

सभी शेर एक से बढ़ कर एक.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बेहतरीन गजलें।
निम्न लिक देखें। इस पोस्ट को चर्चा में लगाया है।
http://anand.pankajit.com/2009/11/blog-post_02.html

परमजीत सिहँ बाली said...

बेहतरीन गजलें।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आ. महावीर जी,
नमस्ते,
हमारी देवी बहन की सच्चाई लिए ,
इतनी खूबसूरत गज़लें
पढ़वाने का ,बहोत शुक्रिया -
एक लम्बे तजुर्बे के बाद ही
कोइ इतने मुक्कमल शेर कह पाता है -
बधाई देवी जी :)
व स्नेह आपको,
- लावण्या

रंजना said...

Dono hi gazlen man ko chhoone jhakjhorne walee hain...
Behtareen gazlen....

Murari Pareek said...

bahut mushkil hai ki koi in rachnaaon ke mutabik comment de paaun !!! beshkimti!!!

शरद कोकास said...

देवी जी को बधाई कहें ।

शशि पाधा said...

देवी जी ,
जीवन के यथार्थ को कितने कोमल शब्दों में पिरोया है आपने अपनी गज़लों में । सच ही तो है
" बिना उलझे गुलों की बू को पाना है मुश्किल"
और सब से सुन्दर तो कहा है -
"कहा किसने कि कोरे काग़ज़ों से कुछ नहीं मिलता
कहानी पढ़ने से आये कभी किरदार की ख़ुशबू"
बहुत बधाई आपको तथा आदरणीय महावीर जी को सुन्दर रचनायें प्रस्तुत करने के लिये धन्यवाद ।
शशि पाधा

neera said...

कहा किसने कि कोरे काग़ज़ों से कुछ नहीं मिलता
कहानी पढ़ने से आये कभी किरदार की ख़ुशबू

शेर पढ़कर किरदार कि खुशबू ज़हन में भर गई..

ashok andrey said...

devee naagraanee jee kee dono gajlen apnaa achchha prabhav chhodtee hain
mahaktee raat kee us teergee men jaagnaa devee
sahar saanson men bhar degee vo geeta saar kee khushboo
badhai

ashok andrey

Dr. Sudha Om Dhingra said...

देवी दीदी,
कमाल कर दिया, इतनी खूबसूरत ग़ज़लें....

न छोड़ी चोर ने चोरी, न छोड़ा सांप ने डसना
ये फ़ितरत है तो फ़ितरत को बदलना है बहुत मुश्किल

कभी ऐसा भी होता है पराये अपने लगते हैं
जहां अपनों में हम है ढूंढते आधार की ख़ुशबू

कहा किसने कि कोरे काग़ज़ों से कुछ नहीं मिलता
कहानी पढ़ने से आये कभी किरदार की ख़ुशबू

सादगी से रचे गए , अनुभवों के शे'र ---
बधाई...बधाई ...बधाई...

Devi Nangrani said...

मैं आप सभी के स्नेह की पात्र बन पायी यह एक प्रेरणा का स्त्रोत्र है. बहुत ही आभारी हूँ आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर..धन्यवाद में आपके लिए ....
है फैली मुशकबू ही मुशकबू कि है गुलज़ार नो रंगी

करे वो बात बातिन से मिले गुफ़्तार की खुशबू

देवी नागरानी

Kavi Kulwant said...

umda gazalen..bahut achcha laga..

गौतम राजऋषि said...

"कहा किसने कि कोरे काग़ज़ों से कुछ नहीं मिलता
कहानी पढ़ने से आये कभी किरदार की ख़ुशबू"

देवी नागरानी जी की दोनों ही ग़ज़लें लाजवाब है, लेकिन इस एक शेर के आगे तो हम बिछ गये हैं।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

कहा किसने कि कोरे काग़ज़ों से कुछ नहीं मिलता
कहानी पढ़ने से आये कभी किरदार की ख़ुशबू
बेशकीमती है ये शेर...
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद