Friday, 11 December 2009

सुबीर जी को शादी की सालगिरह की शुभकामनाएं और मेजर गौतम राजरिशी की दो ग़ज़लें

शादी की सालगिरह पर पंकज सुबीर जी और रेखा जी को
हमारी
और 'महावीर' तथा 'मंथन' ब्लॉग के सहयोगियों की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं
कल (१० दिसंबर) सालगिरह के सुखद क्षणों के कुछ चित्र देखिये:

परिचय :
नाम - गौतम राजरिशी
जन्म - 10 मार्च 1976
जन्म-स्थल - सहरसा, बिहार
वृति - सैन्य अधिकारी
साहित्य-परिचय - उभरते ग़ज़लकार के रूप में पहचान। कई ग़ज़लें हंस, वागर्थ, कादंबिनी, लफ़्ज़, वर्तमान साहित्य, शेष, प्रयास, काव्या,नई ग़ज़ल,ग़ज़ल के बहाने आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित। जल्द ही एक कहानी भी मासीक पत्रिका पाखी में प्रकाशित होने जा रही हैं। कुछ वर्षों से ग़ज़ल के शिल्प और संरचना के गुरु, साहित्यकार श्री पंकज सुबीर से बारीकियां सीख रहें हैं.

ग़ज़ल

गौतम राजरिशी


एक मुद्‍दत से हुये हैं वो हमारे यूं तो

चाँद के साथ ही रहते हैं सितारे, यूं तो


तू नहीं तो न शिकायत कोई, सच कहता हूं

बिन तेरे वक्त ये गुजरे न गुजारे यूं तो


राह में संग चलूँ ये न गवारा उसको

दूर रहकर वो करे खूब इशारे यूं तो


नाम तेरा कभी आने न दिया होठों पर

हाँ, तेरे जिक्र से कुछ शेर सँवारे यूं तो


तुम हमें चाहो न चाहो, ये तुम्हारी मर्जी

हमने साँसों को किया नाम तुम्हारे यूं तो


ये अलग बात है तू हो नहीं पाया मेरा

हूँ युगों से तुझे आँखों में उतारे यूं तो


साथ लहरों के गया छोड़ के तू साहिल को

अब भी जपते हैं तेरा नाम किनारे यूं तो

*********************

ग़ज़ल

गौतम राजरिशी


राह में चाँद उस रोज चलता मिला

दिल का मौसम चमकता, दमकता मिला


देखना छुप के जो देख इक दिन लिया

फिर वो जब भी मिला तो झिझकता मिला


जाने कैसी तपिश है तेरे जिस्म में

जो भी नजदीक आया पिघलता मिला


रूठ कर तुम गये छोड़ जब से मुझे

शह्‍र का कोना-कोना सिसकता मिला


किस अदा से ये कातिल ने खंजर लिया

कत्ल होने को दिल खुद मचलता मिला


चोट मुझको लगी थी मगर जाने क्यों

रात भर करवटें वो बदलता मिला


टूटती बारिशें उस पे यादें तेरी

छू के देखा तो हर दर्द रिसता मिला

**********************

34 comments:

vandana gupta said...

टूटती बारिशें उस पे यादें तेरी

छू के देखा तो हर दर्द रिसता मिला

behtreen jazbaat.

मनोज कुमार said...

रूठ कर तुम गये छोड़ जब से मुझे

शह्‍र का कोना-कोना सिसकता मिला
ग़ज़लें दिल को छू गई।
बेहद पसंद आई।

श्यामल सुमन said...

नाम तेरा कभी आने न दिया होठों पर
हाँ, तेरे जिक्र से कुछ शेर सँवारे यूं तो

बहुत खूबसूरत भाव और पंक्तियाँ गौतम जी।

यूं तो आसान नहीं गौतम के जैसा लिख पाना
होगी कोशिश भी नयी जब मिले सहारे यूं तो

शुभकामना।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Unknown said...

मन प्रसन्न हुआ बाँच कर...........

दोनों ग़ज़लें उम्दा
दोनों ग़ज़लें बेहतरीन........

गौतम राजरिशी जी को बधाई !

निर्मला कपिला said...

नाम तेरा कभी आने न दिया होठों पर

हाँ, तेरे जिक्र से कुछ शेर सँवारे यूं तो


तुम हमें चाहो न चाहो, ये तुम्हारी मर्जी

हमने साँसों को किया नाम तुम्हारे यूं तो
kकिस किस शेर की तारीफ करूँ हर एक शेर लाजावाब हैऔर फिर इस गज़ल ने तो दोल छू लिया
चोट मुझको लगी थी मगर जाने क्यों

रात भर करवटें वो बदलता मिला


टूटती बारिशें उस पे यादें तेरी

छू के देखा तो हर दर्द रिसता मिला

रूठ कर तुम गये छोड़ जब से मुझेइस हीरे को और इसे तराशने वाले हाथों को सलाम है। बहुत बहुत आशीर्वाद। इसकी चमक से ये धरती यूँ ही चमकती रहे।
सुबीर जी को और रेखा भाभी जी को बहुत बहुत बधाई।भाभी को काला टीक लगा कर फोटो खिंचवानी चाहिये थी,जमाना बहुत खराब है नज़र लग जाती है। दोनो को बहुत बहुत आशीर्वादिनका दांम्प्त्य जीवन खुशियों से भरपूर रहे।

शह्‍र का कोना-कोना सिसकता मिला

निर्मला कपिला said...

नाम तेरा कभी आने न दिया होठों पर

हाँ, तेरे जिक्र से कुछ शेर सँवारे यूं तो


तुम हमें चाहो न चाहो, ये तुम्हारी मर्जी

हमने साँसों को किया नाम तुम्हारे यूं तो
kकिस किस शेर की तारीफ करूँ हर एक शेर लाजावाब हैऔर फिर इस गज़ल ने तो दोल छू लिया
चोट मुझको लगी थी मगर जाने क्यों

रात भर करवटें वो बदलता मिला


टूटती बारिशें उस पे यादें तेरी

छू के देखा तो हर दर्द रिसता मिला

रूठ कर तुम गये छोड़ जब से मुझेइस हीरे को और इसे तराशने वाले हाथों को सलाम है। बहुत बहुत आशीर्वाद। इसकी चमक से ये धरती यूँ ही चमकती रहे।
सुबीर जी को और रेखा भाभी जी को बहुत बहुत बधाई।भाभी को काला टीक लगा कर फोटो खिंचवानी चाहिये थी,जमाना बहुत खराब है नज़र लग जाती है। दोनो को बहुत बहुत आशीर्वादिनका दांम्प्त्य जीवन खुशियों से भरपूर रहे।

शह्‍र का कोना-कोना सिसकता मिला

Divya Narmada said...

दोनों गजलें मन को छू गईं. बधाई..

तिलक राज कपूर said...

एक परिपूर्ण ग़ज़ल। किस किस शेर का उल्‍लेख हो।

'नाम तेरा कभी आने न दिया होठों पर
हाँ, तेरे जिक्र से कुछ शेर सँवारे यूं तो'

पर अर्ज करता हूँ कि:
इस ज़माने की निगाहों से बचाये रखना
दिल का रिश्‍ता है मगर, इसको निभाये रखना।

'तुम हमें चाहो न चाहो, ये तुम्हारी मर्जी
हमने साँसों को किया नाम तुम्हारे यूं तो'
का समर्पण बतौर-ए-खास आकर्षक है।

'देखना छुप के जो देख इक दिन लिया
फिर वो जब भी मिला तो झिझकता मिला'
क्‍या संकोच और क्‍या समर्पित झिझक है

'चोट मुझको लगी थी मगर जाने क्यों
रात भर करवटें वो बदलता मिला'

क्‍या नज़ाकत है रिश्‍तों की।

बधाई।

तिलक राज कपूर

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

pahlee ghazal lajawaab
doosri bhi theek hai

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

गौतम भाई की दोनों ग़ज़लों को पढ़कर वाह वाह कहने से अपने को रोक न पाई
बेहतरीन अभिव्यक्ति है

- लावण्या
&

सौ. रेखा बहुरानी ,
हमारे प्रतिभा संपन्न अनुज पंकज भाई ,
वाह ...
बड़ी बहन होने के नाते,
आप दोनों को, सच्चे मन से ,
आप सदा सुखी रहें और परिवार उन्नति करते हुए , हरेक सुख भोगे यही आशिष दे रही हूँ ........
with warmest regards & all good wishes , always.......
- लावण्या

नीरज गोस्वामी said...
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नीरज गोस्वामी said...

मेजर गौतम ग़ज़ल के आकाश पर उभरते वो सितारे हैं जो अपनी चमक से लोगों की आँखें चौंधियां देंगे...ये दोनों ग़ज़लें मेरे इस कथन की पुष्टि करती हैं...एक एक शेर कमाल का कहा है उन्होंने...सबसे बड़ी बात है उनके कहने का अंदाज़ न सिर्फ निराला बल्कि बेहद दिलकश है...रोज मर्रा की छोटी छोटी बातों को ग़ज़ल में पिरोना एक हुनर है जो मेजर को खूब आता है. वो नित नयी ऊचाईयां छूएं ये ही इश्वर से कामना करता हूँ.

गुरुदेव को पत्नी, बच्चों के संग हँसते खेलते देख कर बहुत आनंद आया, इश्वर इस परिवार को सदा यूँ ही हँसता खिलखिलाता रखे...
नीरज

kavi kulwant said...

khoobsurat gazalen..
pankaj ji ko badhayee...

ashok andrey said...

in bahut achchhi gajlon ke liye badhai detaa hoon-
chot mujhko lagee thee magar jaane kyon
raat bhar karvaten vo badaltaa milaa
sundar.
ashok andrey

ashok andrey said...
This comment has been removed by the author.
कडुवासच said...

जाने कैसी तपिश है तेरे जिस्म में
जो भी नजदीक आया पिघलता मिला

टूटती बारिशें उस पे यादें तेरी
छू के देखा तो हर दर्द रिसता मिला
...बहुत खूब !!!!

योगेन्द्र मौदगिल said...

Gautam g ki dono GAZALEN behtreen hain...

Subeer g or Bhabhi g ko badhai....

aapki prastuti kp naman

दिगम्बर नासवा said...

पंकज जी के चित्र उनकी प्रसन्नता बयान कर रहे हैं .......... बहुत बधाई उनको ........

और गौतम जी तो कमाल के शायर हैं ...... ग़ज़ब की अदाएगी है उनके शेरों में ........ साँचे में ढले हुवे .........

तुम हमें चाहो न चाहो, ये तुम्हारी मर्जी
हमने साँसों को किया नाम तुम्हारे यूं तो

Hight of love

चोट मुझको लगी थी मगर जाने क्यों
रात भर करवटें वो बदलता मिला

Again hight of love ......

हरकीरत ' हीर' said...

राह में संग चलूँ ये न गवारा उसको
दूर रहकर वो करे खूब इशारे यूं तो


लाजवाब.....!!
पहले भी पढ़ी थी ....पर अच्छी चीजें जितनी बार निकाल कर देखो इक नया अर्थ दे जातीं हैं .....!!

तुम हमें चाहो न चाहो, ये तुम्हारी मर्जी
हमने साँसों को किया नाम तुम्हारे यूं तो


सुभानाल्लाह ....!!
मेजर साहब ...नमन है इस शे'र पे .....!!


साथ लहरों के गया छोड़ के तू साहिल को
अब भी जपते हैं तेरा नाम किनारे यूं तो


वाह....वाह.....वाह.......!!

न जाने कहाँ से ढूंढ कर लाते हैं लफ्जों को .......!!

और हाँ गुरु जी की तस्वीरें बस देखती रह गयी .....रब्ब मेहर करे ...खूब नाम रौशन हो उनका ....!!

Devi Nangrani said...

गौतम जी
ग़ज़ल की विधा ही ऐसी है की अपने मन की बात शब्दों में पिरोकर पेश की जाये
हर शेर एक पैगाम लिए हुए हैं आपकी ग़ज़ल में
रूठ कर तुम गये छोड़ जब से मुझे

शह्‍र का कोना-कोना सिसकता मिला

उस सिसिकते दौर में भी हौसला बरक़रार रहे इसी दाद में यह शेर

रूठकर दूर कोई क्यों तुमसे गया

जो मनाने था आया कहाँ खो गया

देवी नागरानी

Devi Nangrani said...

सुबीर जी
बधाई बधाई !!
अपनी खुशिओं में शामिल करने का अवसर दिया उसके लिए आभारी
नए साल की शुभकामनाओं के साथ
देवी नागरानी

Alpana Verma said...

'रूठ कर तुम गये छोड़ जब से मुझे
शह्‍र का कोना-कोना सिसकता मिला'
waah!
sabhi sher ek se ek hain!
Gautam ji ki dono gazalen bahut umda lagin.

-Subeer ji ko shadiki saalgirah par badhaayee.

mehek said...

किस अदा से ये कातिल ने खंजर लिया

कत्ल होने को दिल खुद मचलता मिला


चोट मुझको लगी थी मगर जाने क्यों

रात भर करवटें वो बदलता मिला
bahut hi sunder,ek se badhkar ek sher.dono gazal bahut pasand aayi.
ahut dino baad major ji ki gazal padhne ka mauka mila.

subir ji ko aur bhabhi ji ko bahut badhai.

Meenu Khare said...

देखना छुप के जो देख इक दिन लिया

फिर वो जब भी मिला तो झिझकता मिला


जाने कैसी तपिश है तेरे जिस्म में

जो भी नजदीक आया पिघलता मिला

...बहुत खूब !!!!

"अर्श" said...

अहा मेरे गुरु भाई के जलवे और तेवर यही तो मुझे खासा पसंद है ... क्या खूब दोनों ही गज़लें कहीं है इन्होने ... जो दोनों गज़लें पेश की हैं वो अपने आप में कमाल की बात है ... सच और हकीकत सेके नजदीक वो जिस तरह से ग़ज़लों में शामिल करते है वो उन्हें आज के नए गज़लकारों से अलग करती है ... पहली ग़ज़ल और मतला गज़ब ढा रहे हैं ... फिर ये शे'र ...
राह में संग चलूँ ये न गवारा उसको
दूर रहकर वो करे खूब इशारे यूं तो
और दूसरी ग़ज़ल के यह शे'र किस नजाकत से कही होगी इन्होने यही सोच रहा हूँ...क्या खूब नफीस खयालात डाले हैं इन्होने...
देखना छुप के जो देख इक दिन लिया
फिर वो जब भी मिला तो झिझकता मिला
दोनों ही ग़ज़ल मुक्कम्मल है और खूब पसंद आयी अल्लाह मियाँ से यही दुआएं करूँगा के उनकी ग़ज़लों को खूब बेहतर परवरिश दे...
और आदरणीया महावीर जी आप जिस तरह से हम नए ग़ज़ल लिखने वालों को तरजीह दे रहे हैं वो हमारा सौभाग्य है ... आपकी कुशलता की कमानावों के साथ


अर्श

"अर्श" said...

और हाँ गुरु जी के वैवाहिक वर्षगांठ पर दिल से समस्त शुभकामनाएं .. भगवान् उन्हें हमेशा खुश रखे और ऐसे ही वो सदा हस्ते रहे भाभी जी के साथ... बगल में बैठी नन्ही पारी और पंखुरी को दिल से आशीर्वाद ...गुरु देव को सादर प्रणाम

अर्श

PRAN SHARMA said...

JANAAB GAUTAM RAJRISHI KEE GAZALEN
ACHCHHE LAGEE HAIN.BADHAAEE.
PANKAJ SUBEER JI AUR REKHA JEE
KE VIVAH KEE VARSHGAANTH PAR SHUBH
KAMNA AUR BADHAAEE.

Dr. Sudha Om Dhingra said...

गौतम जी,
दोनों ग़ज़लें बहुत खूब -
साथ लहरों के गया छोड़ के तू साहिल को
अब भी जपते हैं तेरा नाम किनारे यूं तो
क्या बात है ...
टूटती बारिशें उस पे यादें तेरी
छू के देखा तो हर दर्द रिसता मिला
बहुत सुन्दर -बधाई

पंकज सुबीर said...

दादा भाई प्रणाम आपका ब्‍लाग अब एक ऐसा परिवार होता जा रहा है जहां पर आपके आशीष की छाया और आदरण्‍ीय प्राण भाई साहब के मार्गदर्शन में सभी को कुछ न कुछ सीखने को मिल रहा है । विवाह की वर्षगांठ पर आपके द्वारा ब्‍लाग पर जग दिये जाने से मैं और रेखा दोनों अभिभूत हैं । आभार इसलिये नहीं कहूंगा कि आभार कह के आपके अपार और अगाध प्रेम की बराबरी नहीं कर सकता और फिर ये तो मेरा अधिकार है छोटा भाई जो ठहरा । गौतम की ग़ज़लों पर कुछ इसलिये नहीं कहूंगा कि वही जो बड़री अंखियां निरख अंखियन को सुख होत वाली बात है ।

गौतम राजऋषि said...

इस हौसलाअफ़जाई से अभिभूत हूँ। आप सब का हृदय से शुक्रिया!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

किस अदा से ये कातिल ने खंजर लिया
कत्ल होने को दिल खुद मचलता मिला

गौतम जी, तारीफ़ के लिए शब्द नहीं है....

गुरूजी को सपरिवार बधाई.

प्रस्तुति भी दिलकाश है.

Asha Joglekar said...

देर से ही सही, पंकज सुबीरजी को बहुत बधाई । खुशियों मे दिन दूना रात चौगना इजाफा हो इस कामना के साथ .
मेजर गौतम की लेखनी में जादू है जो हर बार सिर चढ कर बोलता हे । आपका बहुत आभार ।

रंजना said...

किस शेर का जिक्र करूँ ,किसे छोड़ दूँ...दोनों ग़ज़लों के सभी शेर एक से बढ़कर एक नायाब रत्न हैं,जो अपनी चमक से मन को रौशन कर देने वाले हैं....
इसी तरह बेहतरीन लिखते रहें...मेरी अनंत शुभकामनायें...


पंकज जी सपरिवार के फोटोग्राफ देख मन अतीव आनंदित हुआ...यूँ तो अति विलम्ब से डे रही हूँ,परन्तु आशा है वे शुभकामनाएं स्वीकार करेंगे...उन्हें सपरिवार सुखी जीवन के लिए बहुत बहुत शुभकामनायें...

Anonymous said...

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