माथे पर छोटी सी बिंदिया
तीन क्षणिकाएँ - तीन रंग
महावीर शर्मा
दुल्हन
अलसाये नयनों में निंदिया भावों के झुरमुट मचलाए
घूंघट से मुख को जब खोला आंखों का अंजन इतराए
फूल पर जैसे शबनम चमके दुल्हन के माथे पर बिंदिया।
मुस्काए माथे पर बिंदिया।
मुजरा
तबले पर ता थइ ता थैया, पांव में घुंघरू यौवन छलके
मुजरे में नोटों की वर्षा, बार बार ही आंचल ढलके
माथे से पांव पर गिर कर, उलझ गई घुंघरू में बिंदिया
सिसक उठी छोटी सी बिंदिया !
सीमा के रक्षक दूर दूर तक हिम फैली थी, क्षोभ नहीं था किंचित मन मे
गर्व से 'जय भारत' गुञ्जारा, गोली पार लगी थी तन में
सूनी हो गई मांग प्रिया की बिछड़ गई माथे से बिंदिया।
छोड़ गई कुछ यादें बिंदिया।
अगला अंक: 14 फ़रवरी 2010
यू.के. से हिन्दी की चर्चित कहानीकार और कवयित्री
उषा राजे सक्सेना की दो रचनाएं
25 comments:
दूर दूर तक हिम फैली थी, क्षोभ नहीं था किंचित मन मे
गर्व से 'जय भारत' गुञ्जारा, गोली पार लगी थी तन में
.... बहुत सुन्दर, प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!
छोड़ गई कुछ यादें बिंदिया...
बहुत मार्मिक ... संवेदनशील लिख है .... वैसे तीनों में अपना अपना रंग है ..... बहुत ही सुंदर महावीर जी ......
bahut hi marmik aur samvedansheel.
बहुत सुन्दर महावीर जी .. तीनो ही रग अपनी अपनी खूबसूरती लिये हैं ।
सादर
कवि के भावों की इस दुनिया, में जब आती है इक बिंदिया
तो घूँघट की ओट से चलकर, घुँघरु बन पॉंवों में बँधकर
गोली से घायल फौजी तन, औ उसमें बाकी स्पंदन
क्या-क्या ना कह जाये बिंदिया।
मुस्काए माथे पर बिंदिया।
सिसक उठी छोटी सी बिंदिया !
छोड़ गई कुछ यादें बिंदिया।
अविस्मरणीय क्षणिकाऍं।
आपकी रचनायें पुष्टि करती हैं कि अच्छी रचना के लिये वैचारिक स्पष्टता होना आवश्यक है।
बहुत समय बाद क्षणिकाऍं पढ़ने को मिलीं।
साधुवाद
is ak bindiya ne nari ke sare sansar ko shrngar de diya bhut khubsurat rachna .utkrasht .
TEEN RANG AUR TEENON HEE ATI UTTAM.
YE CHHOTEE-CHHOTEE KAVITAYEN MUN
MEIN UTAR GAYEE HAIN.
एक ही वि
षय को लेकर तीन अलग अलग रंग की रचनाएं और वो भी तीनों बिल्कुल ही नये शिल्प में । कवि को कहा जाता है कि वो प्रयोगवादी होता है । प्रयोगवादी का मतलब ये कि वो कुछ न कुछ नया अपने लिये तलाश करता रहता है । नये का मतलब है नयी जमीन और नया कथ्य । आपकी ये तीनों क्षणिकाएं उसी नये की तलाश की कविता हैं । प्रयोगवाद जब सही प्रयोगकर्ता के हाथ में होता है तो वो कुछ न कुछ पाता है । दादा भाई आपके गीतों को पढ़ने की तलब है ।
श्रद्धेय महावीर जी, सादर प्रणाम
बिन्दिया...बिन्दिया...बिन्दिया
जिन शब्दों में आपने ये तीन रूप दिखाये हैं, वहां तक तो हम शायद जिन्दगी भर सोच ही नहीं पाते.
आपको और आपकी क़लम को सलाम
एक ही जीवन के तीन रंग बिन्दी के प्रतीक मे बहुत हे सुन्दर बन पडी हैं तीनो क्षनिकायें आपकी कलम हो और सभी रंग न समेटे ये कैसे हो सकता था ।लाजवाब । धन्यवाद और शुभकामनायें
बहुत ही उम्दा रचनाएँ....!तीन कविता और तीनो ही अलग अलग भाव लिए हुए...!'सीमा के रक्षक' मुझे बहुत ही पसंद आई..
बहुत ही ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! बड़े ही सुन्दरता से आपने प्रस्तुत किया है! इस उम्दा पोस्ट के लिए बधाई!
Bahut hee sunder!
Anootha!
Kuchh aisa jo sochne pe majboor karta hai...
Sadar...
ओह ! अभी देखा कि आप कहते हैं कि "Anonymus Identity" का प्रयोग न करें :)So now have specially logged in to write this...
वह ऊपर वाली टिप्पणी मेरी है महावीर जी, आफिस में काम करते-करते एक मिनट कुछ अच्छा पढ़ने का मन हुआ तो आपके ब्लॉग पे आयी थी, शायद ये बिंदिया ही बुला रही थी :) बहुत सुन्दर बिम्ब हैं... मन प्रसन्न हुआ!
सादर शार्दुला
teeno rachnaon ne bahut gehraa prabhav chhoda hei apne samaya kee sachchaae ko hee jeevant kiya hei jise hum log apne aas-paas ghatta hua dekhte hein ek akeli bindiya kis tarah se pristhitee badalte hee apnaa arth bhee badalne lagtee hei yahee iski gehraae ko aur sundar aayam de jaatee hei
सभी कविताएँ अच्छी हैं!
--
कह रहीं बालियाँ गेहूँ की - "मेरे लिए,
नवसुर में कोयल गाता है - मीठा-मीठा-मीठा!"
--
संपादक : सरस पायस
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
तीनों क्षणिकाएं बहुत ही अच्छी बनीं हैं बिंदी का अलग अलग उपयोग कभी प्रेम में सराबोर तो kabhi आँखों के जल से सराबोर वाह ...
इन तीनो क्षणिकाओं की विशेषता इसकी हेड लाइन ही कह रही है ...
तीनो में , एक मुस्काती दूसरी बेबस है और तीसरी यादों में खोयी बिंदिया
तीनो ही रचना कमाल की है गुरु वर ... ये रचना कैसे मेरे से छुट गयी समझ नहीं पा रहा ... गुरु देव पंकज सुबीर जी ने जो आग्रह किया है वही मैं फिर से दुहराता हूँ ... आपकी गीतों के लिए ...
सादर
अर्श
रचना पढ़ने और टिपण्णी के लिए आप सभी को हार्दिक धन्यवाद.
आदरणीय महावीर जी
आपकी क्षणिकाओं ने मन मोह लिया है.
तबले पर ता थइ ता थैया, पांव में घुंघरू यौवन छलके
मुजरे में नोटों की वर्षा, बार बार ही आंचल ढलके
माथे से पांव पर गिर कर, उलझ गई घुंघरू में बिंदिया
सिसक उठी छोटी सी बिंदिया !
ज़िन्दगी के इस पहलु पर उन्चुए भावों को बिम्ब में ढल कर मन का भाव शब्दों में अभिव्यक्त किया है. बहुत ही अच्छी लगी तीनों कि तीन.
mahaveer ji . namaskar
aapki rachnaaye padhi .... aakhri rachna ne aankho ko nam kar diyaa. aaj isi vishay par maine ek katha likhi hai ....
aapko naman..
aapka
vijay
आ. महावीर जी ,
ईन कवितायें , तीन रूप लिए ,
अनगिनती भाव जगा गयीं
आप की रचनाएं सदा ही उच्च सत्तर की होती हैं और मन में घर कर लेतीं हैं
सादर नमन सहित --
- लावण्या
Mahavir sharma ji ki teenchoti so chenikaye pdhi choti si to h lakin ghav ghembir kerti h.Bindiya k teeno roopo per Aap n bhut hi marmik or payra sa likha h.DIL K aas-pas k kavita h.
Kavita m sabhi rang h.payar ka vichednye ka.sewdnoyo ka Aap k teeno rang bhut hi sunder legye
Aap ko dil se sadhu-bad.
NARESH MEHAN
Mahavir sharma ji ki teenchoti so chenikaye pdhi choti si to h lakin ghav ghembir kerti h.Bindiya k teeno roopo per Aap n bhut hi marmik or payra sa likha h.DIL K aas-pas k kavita h.
Kavita m sabhi rang h.payar ka vichednye ka.sewdnoyo ka Aap k teeno rang bhut hi sunder legye
Aap ko dil se sadhu-bad.
NARESH MEHAN
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