उषा वर्मा, यॉर्क, यू.के जन्म : बाराबंकी लखनऊ, भारत शिक्षा : एम.ए दर्शनशास्त्र लखनऊ,पी.जी.सी.ई ब्रैडफ़र्ड, यू.के. कृतियां : क्षितिज अधूरे, कोई तो सुनेगा(काव्य संग्रह)सांझी कथा यात्रा, प्रवास में पहली कहानी,(संपादन)कारावास(कहानी संग्रह)
मैं तुम्हारा प्रतिबिम्ब हूं
उषा वर्मा
मैं तुम्हारा प्रतिबिम्ब हूं
तुम्हें मुंह चिढ़ाता हुआ
इस भूखंड पर खड़ा हुआ
और नहीं कुछ,
केवल तुम्हारा ही आईना हूं
तुम चाहो तो अपनी छवि सुधार लो
मैं तुम्हारे पाप पुण्य का
परिणाम नहीं हूं न मैं
बीज से उपजा हुआ फल हूं
मैं तो तुम्हारी छवि का एक असत्य प्रतिमान हूं
तुम एक पल को हट जाओ
तो मेरा असितत्व समाप्त हो जाता है
मैं तो एक पुल हूं तुम्हारे
और तुम्हारे बिम्ब के बीच
जब जब यह पुल टूट जाता है
यह प्रतिबिम्ब झूठा हो जाता है
किन्तु तुम्हारा सत्य
यानी तुम मरते नहीं
क्यों कि तुण बिम्ब नहीं बिम्ब के आधार हो।
उषा वर्मा
"कर्ज़ है कविता का"
उषा वर्मा,यॉर्क,यू.के.
उषा वर्मा,यॉर्क,यू.के.
कविताएं नहीं बंधती है,
देश की सीमाओं में।
वे चली जाती हैं सीमाओं के पार।
न देश का नाम, न लोगों का नाम
वे नहीं बंधती हैं
मन के बंधन में।
उड़ जाती हैं ऊपर ऊपर
लांघ कर मन की दीवार।
वे बात करती हैं रूहों से, आत्माओं से
वे रहती हैं स्वतंत्र बंधनहीन अनाम।
कोई भी उन्हें पढ़ सकता है,
इसीलिये लोग लिखते हैं कविता
कि शायद वे किसी का मन छू लें ,
किसी को बता दें
अपना पता अपना घर,
जहां कोई पढ़ना चाहे ,
तो आ-जा सकता है,
रह सकता है इन घरों में ,
यह सुख, कर्ज है कविता का।
उषा वर्मा
यॉर्क,यू.के.
************************
देश की सीमाओं में।
वे चली जाती हैं सीमाओं के पार।
न देश का नाम, न लोगों का नाम
वे नहीं बंधती हैं
मन के बंधन में।
उड़ जाती हैं ऊपर ऊपर
लांघ कर मन की दीवार।
वे बात करती हैं रूहों से, आत्माओं से
वे रहती हैं स्वतंत्र बंधनहीन अनाम।
कोई भी उन्हें पढ़ सकता है,
इसीलिये लोग लिखते हैं कविता
कि शायद वे किसी का मन छू लें ,
किसी को बता दें
अपना पता अपना घर,
जहां कोई पढ़ना चाहे ,
तो आ-जा सकता है,
रह सकता है इन घरों में ,
यह सुख, कर्ज है कविता का।
उषा वर्मा
यॉर्क,यू.के.
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16 comments:
कर्ज है कविता का-बहुत बढ़िया लगी यह रचना. आभार आपका और उषा जी को बधाई.
सामायिक सार्थक रचना.
nice
कविताएं नहीं बंधती है,
देश की सीमाओं में।
वे चली जाती हैं सीमाओं के पार।aur lati hain bhawnaaon ke rishte, hai na?
achchhi kavita ke liye badhai
उषा जी ,
कविताएं नहीं बंधती है,
देश की सीमाओं में।
वे चली जाती हैं सीमाओं के पार
कविता सुगंध है , कविता पवन है जिसे रोका नहीं जा सकता ,
आपने सच कहा इनकी सीमाएं नहीं होतीं
गुलाम मुर्तजा शरीफ
अमेरिका
dono kavitayen ek saarthak soch liye huye..
श्रद्धेय महावीर जी, सादर प्रणाम
दोनों कविताएं बहुत अच्छी हैं, लेखिका को बधाई
adar jog mahaver ji,
sadar pranam,
acchi kavitao ke liya aap ko aur usha ji ko sadhuwad
कोमल भावों को कोमलता से अभिव्यक्त करती दोनों ही रचनाएं मनोहारी हैं...
अनुभूति और सोच से जन्मी दो अच्छी कविताओं के लिये बधाई की पात्र हैं लेखिका औश्र आप प्रस्तुति के लिये।
उषा जी, सुन्दर शब्द चयन, भावों से ओतप्रोत, प्रवाहपूर्ण दोनों कवितायेँ बहुत ही सुन्दर हैं.
ऎसी उच्चकोटि की रचनाओं के लिए आपको 'महावीर' ब्लॉग परिवार की ओर से हार्दिक धन्यवाद.
achchhi kavita ke liye badhai
Usha ji ki dono kavitayein bahut pasand aayeein
sadar sa sneh,
- Lavanya
I m very glad to know about this interesting personality.. in today's generation the people like her cannot find easily............
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