"यू.के. के कवियों की रचनाओं की शृंखला" में स्वर्ण तलवाड़ की दो रचनाएँ
स्वर्ण तलवाड़
परिचय:
यू.के. के बर्मिंघम शहर में पिछले तीन दशकों से रहने वाली स्वर्ण तलवाड़ की शिक्षा दीक्षा दिल्ली तथा आगरा विश्वविद्यालय में हुई. बर्मिंघम विश्वविद्यालय से बी.एड. की डिग्री की तथा पन्द्रह वर्ष तक स्कूलों में अध्यापन कार्य किया.
B.B.C. T.V Asian network में 1980-1990 तक Freelance Artiste का काम किया. सामाजिक, सांस्कृतिक तथा साहित्यिक क्षेत्र में बहुत से प्रतिष्ठित कार्यक्रमों का आयोजन और संयोजन किया. पिछले तेरह वर्ष से आप गीतांजलि बहुभाषीय साहित्यिक समुदाय यू.के. से सक्रीय रूप से जुड़ी हैं. गीतांजलि समुदाय द्वारा आयोजित 'अंतर्राष्ट्रीय बहुभाषीय सम्मलेन' 2005 तथा 'अंतर्राष्ट्रीय २२वे रामायण सम्मलेन' 2006 में आप सांस्कृतिक कार्यक्रम की अध्यक्ष थीं तथा अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मलेन की संचालिका थीं. पिछले दो दशकों से आप हिन्दी शिक्षण तथा उसके प्रचार प्रसार में जुड़ी हुई हैं.
समय समय पर आपने B.B.C. Radio पर कविता पाठ किया है. आपकी कवितायें, कहानियाँ एवं यात्रा संस्मरण हिन्दी की जानी मानी पत्रिकाओं 'पुरवाई', 'गगनांचल', 'प्रवासी संसार' तथा 'अक्षरम संगोष्ठी' में प्रकाशित होती रहती हैं. 'गीतांजलि साहित्यिक समुदाय' द्वारा प्रकाशित कविता संग्रह 'धनक' 1999, 'East & West' 2002, 'Oasis Poems' 2003, 'काव्यतरंग' 2006 तथा 'सूरज की सोलह किरणें' 2007 में आपकी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं.
आपका काव्य संग्रह 'कविता तुम कौन हो?' जुलाई 2007 में प्रकाशित हुआ जिसे भारतीय दूतावास, लन्दन में डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी साहित्यिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया. आजकल आप 'Indian Ladies Club Birmingham' की अध्यक्ष, U.K. Hindi Development Forum की सचिव, U.K. A.W.C. तथा गीतांजलि साहित्यिक समुदाय की Executive member हैं.
दर्पण और यौवन
स्वर्ण तलवाड़
...
उन्मादित और उल्लासित्
यौवन ने दर्पण में झाँका
दर्पण ने यौवन से पूछा
'तुमने मुझमें क्या-क्या देखा'
यौवन बोला, 'कुछ भी नहीं
केवल मैं हूँ और मैं ही हूँ'
दर्पण बोला, 'ध्यान से देखो
तनिक पीछे की ओर
जब तुम छोटे से बच्चे थे
कितने कोमल, कितने निश्चल
कितने प्यारे ओर सच्चे थे'
यौवन बोला मस्ती में
'नहीं सोचना मुझको व्यर्थ
जो बीत गया सो बीत गया
नहीं उसका अब कोई अर्थ'
दर्पण बोला, 'अब तनिक देखो आगे की ओर
जीवन संघर्ष, प्रौढ़ावस्था
फिर आगमन
और जीवन का अंतिम छोर'
यौवन बोला हो मदमस्त,
'नहीं सोचना नहीं जानता मैं हूँ व्यस्त
भविष्य है अनिश्चित और अस्तव्यस्त '
दर्पण बोला कितनी संकुचित कितनी छोटी है सोच तुम्हारी
उन्माद और उल्लास में तल्लीन
हो चुके तुम दृष्टिविहीन
याद रखना एक पते की बात
तुम्हारे कन्धों पर है समाज का भार
अपनी संकुचित सोच का करना होगा विस्तार.
स्वर्ण तलवाड़
बर्मिंघम, यू.के.
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आवाज़
स्वर्ण तलवाड़
...
बरसों पहले
पहाड़ की ऊंची चोटी से
तुमने ऊंची
आवाज़ में केवल एक शब्द कहा
जिसकी गूँज
समस्त घाटियों में
वृक्षों, फूलों और पत्तों में समा गई.
वह गूँज
कदाचित् , शांत होकर
पत्थरों में निर्जीव हो गई.
शायद तुमने प्रकृति से
ऎसी ही माँग की थी
जिसे पूरा करने में असमर्थ थी वह.
तुम्हारी माँग, तुम्हारी गूँज
अब
अहिल्या की तरह पत्थर बन चुकी है.
अब या तो स्वयं राम आएँ
या तुम स्वयं राम बनो
तुम्हारी गूँज को
फिर से प्राण मिलेंगे
वह गूँज
जिसने कदाचित् एक नहीं
दो शब्द थे
शान्ति ! शान्ति !
स्वर्ण तलवाड़
बर्मिंघम, यू.के.
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15 comments:
कविता बहुत सुन्दर है ... पर शायद गलती से दो की जगह केवल एक ही कविता छप गई है ...
इन्द्रनील "सैल" जी
गलती से अवगत कराने के लिए बहुत धन्यवाद.
दूसरी कविता 'आवाज़' ठीक कर दी गई है.
महावीर शर्मा
Bahut hi achi lgi dono hi rchnayein..
पहली कविता के लिए कहा जाएगा सदा
शुभ वर्तमान
और दूसरी कविता की आवाज
पर्यावरण के लिए चुनौती बन उभरी है।
कविता अच्छी लगी |
wah wah kyaa vaat hai ati sundar..
SWARN TALWAD JEE KEE KAVITAAON NE
MUJHE HAMESHA PRABHAVIT KIYA HAI.
YE KAVITAAYEN BHEE MUJHE PRABHAVIT
KIYE BINAA NAHIN RAH SAKEE HAIN.
SUNDAR AUR SAHAJ BHAVABHIVYAKTI KE
LIYE SWARN JEE KO BADHAAEE AUR
SHUBH KAMNA.
काव्य का आनंद कुछ और ही बढ़ जाता है जब उसमें चिंतन का पुट हो। दोनों कवितायें सफल रही हैं कवियित्री के चिंतन को प्रस्तुत करने में।
Kavita vastav me bhaut sahi hai es kavita ne etihaas ki kuch yaado ko oojaagar kar diya hai............
Swarn talwaad ko Padna ek sukhad anubhuti hai. Akarshak shilp Bimb ko sajeev banane mein saksham rahta hai hamesha ki tarak. UK ke kahinkaron aur rachnakaron ka sahitya mein ek visesh yogdaan hai jo kabile tareef hai
daad ke saath
Devi Nangrani
swaran mem ko behad badhe ek lay liye rachnaon ke liye , haala ki thora aur chahe to kaviyatree jee kar sakti hai jis se lay me puri ki puri ravangi rahe , phir bhi mubarak bad/
Mahabir Sharmaji, Pran Sharmaji aur sabhi pathko ko meri kavitao ki sarahana ke liye meri aur se bahut bahut dhanyavad.
Swaran Talwar
swaranjee ki dono kavitaen achchhi lageen , badhai
अच्छा लगा बेहतरीन रचनाएँ पढ़कर.
तुम्हारे कन्धों पर है समाज का भार
अपनी संकुचित सोच का करना होगा विस्तार.
अरे आप तो इतना कुछ इतने सारे पदों पर आश्चर्य...और बधाई, शब्द और रचनाओं का ताल-मेल अद्भूत है
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