महावीर शर्मा
- जन्मः १९३३ , दिल्ली, भारत। निवास-स्थानः लन्दन, य़ू.के. शिक्षाः एम.ए.: पंजाब विश्वविद्यालय, भारत। लन्दन विश्वविद्यालय:गणित,ऑडियो विज़ुअल एड्स। ब्राइटन विश्वविद्यालय :स्टेटिस्टिक्स। उर्दू का भी अध्ययन। कार्य-क्षेत्रः १९६२ -१९६४ तक स्व: श्री ढेबर भाई जी के प्रधानत्व में भारतीय घुमन्तूजन सेवक संघ के अन्तर्गत राजस्थान रीजनल ऑर्गनाइज़र के रूप में कार्य किया । १९६५ में इंग्लैण्ड के लिये प्रस्थान । १९८२ तक भारत, इंग्लैण्ड तथा नाइजीरिया में अध्यापन। तीन वर्षों तक एशियन वेलफेयर एसोशियेशन के जनरल सेक्रेटरी के पद पर सेवा देते रहे। १९९२ में स्वैच्छिक पद से निवृत्ति के पश्चात अंतिम श्वांस तक लन्दन में ही उनका स्थाई निवास स्थान रहा। १९६० से १९६४ तक महावीर यात्रिक के नाम से हिन्दी और उर्दू की मासिक तथा साप्ताहिक पत्रिकाओं में कविताएं, कहानियां और लेख प्रकाशित। कादम्बिनी, सरिता, गृहशोभा, पुरवाई(लंदन),हिन्दी चेतना(अमेरिका), पुष्पक, गर्भनाल, इन्द्र दर्शन आदि हिंदी पत्रिकाओं में कविताएं, कहानियां और लेख प्रकाशित। इंटरनेट पर अनेक जालघरों पर भी रचनाएं प्रकाशित। "महावीर" ब्लॉग पर प्रतिष्ठित रचनाकारों की रचनाओं के साथ साथ नए रचनाकारों की रचनाएं भी सम्मलित करने का प्रयास करते रहे। हमारे प्रिय आदरणीय श्री महावीर जी को मरणोपरांत मार्च २०११ में उनकी पत्रकारिता के क्षेत्र में उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए हाईकमीशन लन्दन ने हज़ारी प्रसाद द्विवेदी सम्मान प्रदान कर इस सम्मान के गौरव में वृद्धि की. सम्मान को महावीर जी के सुपुत्र श्री राज शर्मा ने ग्रहण किया.
ऑन लाईन मुशायरा : आज हमारी ख़ुशकिस्मती है कि अमेरिका से इस मंच पर बरखा पर अपनी कविता से आपके दिलों में आनंद का संचार करने के लिए श्रीमती लावण्या शाह जी आ रही हैं। मैं देख रहा हूं कि लावण्या जी का नाम सुनते ही तालियों के शोर में मेरी आवाज़ ऐसे गुम हो गई जैसे नक्कारख़ाने में तूती की आवाज़। मैं जानता हूं कि आप उनकी कविता के लिए बेज़ार हो रहे हैं। हों भी क्यों ना, जिनकी ख्याति उनके ब्लॉग अंतरमन और http://www.lavanyashah.com/
कितने ही जालघरों, पत्रिकाओं, कवि-सम्मेलनों आदि में फैली हुई है। आप जानते ही हैं कि लावण्या जी महाकवि स्व. पंडित नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री हैं । पंडित जी के विषय में कुछ कहना तो सूरज के सामने दीपक दिखाने वाली बात होगी। लीजिए, लावण्या जी माइक पर आगई हैं-
http://mahavir.wordpress.com/
” पाहुन “
बरखा स -ह्रदया,
उमड घुमड कर बरसे,
तृप्त हुई, हरी भरी बन्, शुष्क धरा,
बागोँ मेँ खिल उठे कँवल - दल
कलियोँ ने ली मीठी अँगडाई !
फैला बादल दल , गगन पर मस्ताना
सूखी धरती भीग कर मुस्काई !
मटमैले पैरोँ से हल जोत रहा
कृषक थका गाता पर उमग भरा
” मेघा बरसे मोरा जियरा तरसे,
आँगन देवा, घी का दीप जला जा !”
रुन झुन रुन झुन बैलोँ की जोडी,
जिनके सँग सँग सावन गरजे !
पवन चलये बाण, बिजुरिया चमके
सत्य हुआ है स्वप्न धरा का आज,
पाहुन बन हर घर बरखा जल बरसे !
लावण्या
कुछ दिनों बाद तुम्हारी इस साइट को खोला तो इतना गंभीर और साथ ही सत्य घटनाओं के आधार पर यह उपन्यास(?) पढ़ कर ऐसा लग रहा था कि सब सामने हो रहा हो।
Blog archive पर चेप्टरों को देने के कारण कहानी को क्रमशः पढ़ने में आसानी हो गई थी। आशा है यह उपन्यास के रूप में कागज के पन्नों में सुसज्जित कर एक पुस्तक के रूप में भी पाठकों को मिले, जिस से हर बार कंप्यूटर खोले बिना कहीं भी पार्क में, सोते समय या कहीं भी जब समय मिले तो आनंद उठा सकें।
दूसरे, एक और पोस्ट के लिए बधाई देना चाहूंगा। यूसुफ़ साहब (दिलीप कुमार) के विषय में बहुत ही सुंदर लिखा है। बार बार पढ़ने को जी करता है। उनके विषय में इतना कुछ लिखा है कि इस सामग्री को बटोरने में ना जाने कितना परिश्रम किया होगा! कुछ नायाब तस्वीरें देख कर उनकी पुरानी यादें ताज़ा हो गईं। एक बार फिर बधाई और धन्यवाद!
सस्नेह
महावीर
आदरणीय महावीर जी,
सादर नमस्कार !
आपका आना ,
मेरे जाल घर पर और मेरे प्रयासोँ को देखना, फिर उन्हेँ सराहना .
मैँ कृतार्थ हो गयी कि आपको मेरे प्रयास पसँद आये हैँ --
ये कथा मेरे,एक मित्र को अर्पित भावाँजलि स्वरुप है -
जो हम से बिछुड जाते हैँ वे हमारी स्मृति
मेँ सदा जीवित रहते हैँ
है ना ?
सादर,स स्नेह,
-- लावण्या
रोचकता, जानकारी और पुरानी यादें सब ही इस में हैं। पढ़ने में आनंद आगया।
सज्जाद साहब ने केवल १४ फ़िल्मों का संगीत देकर यह सिद्ध कर दिया कि quantity नहीं,
quality का महत्व है। इसी लिए आज भी लोग उनके संगीत को भुला ना पाए। एक ऐसा संगीतकार जिसने बचपन में ही सितार, वीणा, वायलिन, बांसुरी, मेन्डोलीन, जलतरंग, बैंजो, अकॉर्डियन, स्पेनिश गिटार आदि साज़ों पर महारत कर ली थी। स्वयं जीते जागते आर्केस्ट्रा थे।
इस प्रकार की जानकारी देती रहिए।
Lavanyam -Antarman said...
आदरणीय महावीर जी,
प्रणाम !
सही कहा आपने -- वन मेन ओर्केस्टा ही कहलायेँगे सज्ज्जाद साहब -
और आज के युग के गँधर्व - है ना ?
टिप्पणी के लिये धन्यवाद -- यूँ ही स्नेह रखेँ -
स -स्नेह,
--लावण्या
तिनकोँ से सजाये नीड, ख्वाबोँ से सजीले,
पलते विहँग जहाँ कोमल परोँ के बीच,
एक एका, आपा अपना, विश्व सपना सुहाना,
ऐसा लगे मानोँ, बाजे मीठी प्राकृत बीन !
उत्कृष्ट कलात्मक शैली में उच्च कोटि का शब्द विधान, बहुत ही सुंदर रचना है।
आदरणीय महावीर जी ,
आपका आना और मेरी कविता से ये पँक्तियोँ को आशिष देना मेरे लिये बहुत बडा तोहफा है ~`
ऐसे ही स्नेह व कृपा बनायेँ रखेँ -
सादर ,स - स्नेह,
-- लावण्या
"जब नरेन्द्र आये, तो उन्होँने जीवन की ऐसी अनुभूतियोँ को वाणी दी, जिनको छूने का साहस,जिनको कहने का साहस, लोगोँ मेँ नहीँ था".
स्व.पण्डित नरेन्द्र शर्मा जी के काव्य में "सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम्" का पूर्ण
सामंजस्य देखा जा सकता है। उन महान प्रतिभाशाली व्यक्ति के संग संग छायावादी
कवियों के सिरमौर श्री सुमित्रानन्दन पंत जी और आदरणीय डा. हरिवंश राय
बच्चन जी को बार बार नमन!
लावण्या, अगर विकीपीडिया पर श्री नरेन्द्र जी के विषय में पूर्ण रूप से नहीं
लिखा हो तो इस कार्य को पूरा जरूर करना क्योंकि इस में तुम ही सक्षम हो।
महावीर शर्मा
बहुत ही अच्छी जानकारी है। पढ़ कर पुरानी यादें ताज़ा हो गईं जब १९७८ में नाइजीरिया में छः मास तक रहा था। इतनी जानकारी देने के लिए धन्यवाद।
मलिका पुखराज के बारे में जानकारी पढ़ कर पुरानी यादें ताज़ा कर दीं। उसके लिए धन्यवाद। हां, मलिका पुखराज का एक गाना था जो उन दिनों बहुत ही मकबूल हुआ था - 'अभी तो मैं जवान हूं'। जहां तक मुझे याद है कि इसकी धुन शायद मशहूर फिल्म संगीतकार 'हुसनलाल भगत राम' ने दी थी। इस गाने को उनकी बेटी ताहिरा ने भी बड़ी खूबसूरती से गाया। गाना इतना मशहूर था कि मलिका-ए-तरन्नुम 'नूरजहां' ने भी एक फ़िल्म में गाया था।
ऐसी जानकारी देते रहिए, बड़ा अच्छा लगता है, विशेषतयः हिंदी में पढ़ कर।
एक बार फिर धन्यवाद।
बस यही अंतर है, लोग चले जाते हैं और समय की चादर का आवरण उनकी यादों तक को ढांप लेती है। किन्तु, महान व्यक्तियों के अस्तित्व और व्यक्तित्व के अमरत्व के सामने काल हार कर हथियार डाल देता है। वे सदैव जीवित रहते हैं।
श्रद्धेय पंडित जी आज भी उनके गीतों, कविताओं, सिने-जगत और टी.वी. में अमूल्य योगदान, अतीत के संस्मरणों और साहित्य में जीवित हैं, कल भी रहेंगे।
आज फिल्मों में स्तरीय गीतों के अभाव में श्रद्धेय पंडित जी की रिक्तता बहुत ही महसूस होती है।
उनकी पुण्य-तिथि पर मेरी ओर से श्रद्धाञ्जलि।
पंडित नरेंद्र शर्मा जी कालजयी साहित्यकार .. 'थे' शब्द कहने में मुझे संकोच हो रहा है. उनका साहित्य अमर है, उनकी कवितायेँ और अन्य रचनाएं आज भी लता जी और कितने ही महान संगीतकारों के स्वरों में एक नया स्वर देती रहीं. , कवि-सम्मेलनों में, चल-चित्रों, रेडियो, टी.वी. के महाभारत जैसे अद्वितीय सीरियलों में हर घर में, ज़मीन पर और ख़ला में उनकी वाणी आज भी गूँज रही है. उनके चित्रों में आज भी सशरीर साकार दिखाई देते हैं, केवल भीतर की आँखे खोलकर देखने की बात है. फिर भी परंपरावादिता के अनुसार पंडित जी को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित है.
लावण्या, (आज तुम्हारे नाम के साथ 'जी' नहीं लगाऊंगा क्योंकि अपने बच्चों, छोटी बहनों, भतीजियों आदि के नामों से 'जी' जोड़ने से न जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है जैसे 'अपनापन' सा छीन लिया गया हो), यही कहूँगा कि आज इस पुण्यतिथि पर मेरी श्रद्धांजलि के साथ यही आशीर्वाद है कि तुम पंडित जी के पदचिन्हों को संभालते हुए साहित्य जगत में देदीप्यमान होकर अपनी और स्व. पंडित जी की साहित्यिक-कृतियों द्वारा इसी प्रकार साहित्य-सेवारत रहो.
4 comments:
संवाद की सहजता और गहनता व्यक्तित्व को समूचा प्रस्तुत कर देती है।
SUSHREE LAVANYA SHAH JI KAA SANSMARAN PADH KAR MAN PASEEJ GYAA
HAI . BADEE AATMEEYATAA SE UNHONNE
SHREE MAHAVIR SHARMA JI KE KRITITV V VYAKTITV KO UJAAGAR KIYAA HAI .
लावण्या जी का संस्मरण...एकदम जीवंत. महावीर जी की याद में आँख नम हो आई.
श्रद्धासुमन!!
Lavanya ji ka sansmaran padhte lag raha hai ki Param Adarneey Mahavirji hamare aas paaas hi hain.
Is Blog ko revive karne ke liye bahut bahut dhanywaad
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