राखी के मंगलमय पर्व
पर सभी बहनों और भाईयों को शुभकामनाएं
सीहोर, मध्यप्रदेश का नाम आते ही पंकज सुबीर जी का नाम स्वत: ही ज़बान पर आजाता है जो कवि सम्मेलन के मंचों पर ओज की कविताओं के माध्यम से पहचाने जाते हैं । अब तक सुबीर जी की सौ से ज्यादा साहित्यिक रचनाएँ कहानियाँ, कविताएँ, ग़ज़लें, लेख तथा व्यंग्य लेख आदि देश भर की शीर्ष साहित्यिक पत्रिकाओं हंस, वागर्थ, नया ज्ञानोदय, कथाक्रम, आधारशिला, जबात, सेतु, लफ़्ज़, संवेद वाराणसी, समरलोक, कादम्बिनी, अर्बाबे कलम और समाचार पत्रों के साहित्यिक पृष्ठों में प्रकाशित हो चुके हैं। इन्टरनेट पर सुबीर संवाद सेवा के द्वारा ग़ज़ल की कला सिखाने की निःशुल्क सेवा को भुलाया नहीं जा सकता. कितने ही नवकुसुम ग़ज़लकार सुबीर जी के आशीर्वाद से ग़ज़ल की दुनिया में अपना अस्तित्व देख रहे हैं.
प्रकाशित रचनाएँ: आचार्य रामधारी सिंह दिनकर स्मृति न्यास दिल्ली द्वारा प्रकाशित स्मारिका में दो वर्षों से संस्कृति के चार अध्याय पर शोध पत्र प्रकाशित । पार्श्व गायिका सुश्री लता मंगेशकर पर लिखे गये कई शोधात्मक लेख पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित । कहानी आंसरिंग मशीन का पंजाबी में तथा घेराव का तेलगू में अनुवाद किया गया है । वर्ष 2009 में प्रथम कहानी संग्रह ईस्ट इंडिया कम्पनी का प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा किया गया।
प्रकाशाधीन: एक कहानी संग्रह शिवना प्रकाशन के माध्यम से
प्रकाशनाधीन । भागो ह्यूरोज़ आया, उपन्यास पर कार्यरत । एक व्यंग्य संग्रह बुध्दिजीवी सम्मेलन, तथा खंड काव्य तुम्हारे लिये प्रकाशन की प्रक्रिया में।
सम्मान: संकल्प पत्रिका के संपादन के लिये मध्यप्रदेश सरकार द्वारा सम्मान । हंस में प्रकाशित कहानी और कहानी मरती है के लिये प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा सम्मान प्रदान । पंडित जनार्दन शर्मा स्मृति कविता सम्मान । कहानी संग्रह ईस्ट इंडिया कम्पनी ज्ञानपीठ नवलेखन के लिये अनुशंसित।
पत्र भेजने के लिए उसने हरकारे के रूप में चयन किया है सावन के बादल को।
और उसको एक एक कर संदेस दे रही है कि मायके में जाकर उसको क्या क्या
करना है और किस किस से क्या कुछ कहना है। ये बेटी इस बार राखी पर
अम्मा के घर नहीं जा पा रही है। और एक एक करके प्रतीकों के मध्यम से
उसको याद आ रही है सबकी।
ओ सावन के बादल जाकर देना इतनी सिर्फ निशानी ।
भय्या के हाथों को छूकर देना इन आंखों का पानी ॥
बाबूजी से पीर मेरी कोई भी मत कह देना सुन ले ।
कहना गुड्डी बिटिया तो हो गई है अब ससुराल की रानी ॥
मेरा नाम सुनेंगीं जब तो हुलस हुलस कर वो रोऐंगीं ।
अम्मा की आंखों से ममता बह निकलेगी बनकर पानी॥
पिंजरे का हीरामन अब भी गुड्डी-गुड्डी रटता होगा ।
कह देना तेरी वो गुड्डी हो गई है अब बहू सयानी॥
घर के इक कोने में मेरी गुड़िया भी रक्खी हो शायद।
कहना याद बहुत आती है तेरी लाडो बिटिया रानी ॥
अमरूदों के बाग में जाकर माली काका से कहना ये।
चोरी के अमरूदों की यादें हैं अब तो सिर्फ कहानी ॥
पिछवाड़े के नीम पे झूला डाला होगा काकाजी ने ।
उस झूले पर बैठ हुमकना पुरवय्या होगी मस्तानी ॥
नदिया के कानों में थोड़ा शरमा कर ये बतला देना।
आते माघ पूस तक बन जाएगी तू अम्मा से नानी ॥
आंगन के तुलसी चौरे पर कर आना तू संजा बाती ।
और कहना आशीष बनाए रखना तुलसी माता रानी।।
पंकज सुबीर
स्वतंत्रता-दिवस अंक
१० अगस्त २००९
नेता जी सुभाष चंद्र बोस, चंद्र शेखर 'आज़ाद'
और जाँ निसार अख्तर की रचनाएँ
25 comments:
saavan k baadal ko maadhyam banaa kar bhaarteeya kavita shaili ke paaramprik prateek prayog karke ek atyant marmsparshi aur bhaavbheena geet shri pankaj subir ji ne rachaa hai ....is geet ka main tahe-dil se abhinandan kartaa hoon ...aur aadarneey mahaavirji ko baarambaar badhaai deta hoon ki ek itnee umdaa rachnaa hamen uplabdh karaai....
saral komal aur sundar shabdon k prayog se is geet ki geytaa me aur bhi pravaah aa gayaa hai.........
ek sashakt rachnaakar ki yahi pahchaan hai ki jab vah kisi rachnaa ka srijan kartaa hai to mukammal taur par kartaa hai
panktiyaan dohraane ki meri aadat nahin hai lekin is geet ki kuchh panktiyaan to seedhe seedhe antarman me halchal karne me saksham hain
badhaai pankaj subir ji !
badhaai mahaavir ji !
___HAARDIK ABHINANDAN !
वाह क्या खूबसूरती से किसी नवेली के मन की बातें कह दी हैं आपने । बधाई ।
AAJKAL AESE SARAS AUR MARMIK GEET
KAHAN PADHNE KO MILTE HAIN? EK-EK
PANKTI MEIN JEEVANT KAHANI CHHIPEE
HAI SUBEER PANKAJ JEE KE IS GEET
KEE.UNKEE LEKHNI KE AAGE MAIN
NATMASTAK HOON.
पंकज जी की नाम से कोई भी ब्लोगेर नावाकिफ न होगा.................. उनका चरित्र, उनका समर्पण उन्हें ग़ज़ल गुरु ke नाम से विख्यात करता है ................... ये गीत भी उनकी कलम को सार्थक करता है............. लाजवाब, मार्मिक, आँखों को स्वतः ही नम कर गया ये गीत, मेरे जैसे प्रवासी को अन्दर जाट झकझोड़ गया है ये,,,,,,,,, प्रणाम है गुर देव
अमरूदों के बाग में जाकर माली काका से कहना ये।
चोरी के अमरूदों की यादें हैं अब तो सिर्फ कहानी ॥
-अति मार्मिक और अद्भुत गीत!
पंकज भाई को प्रणाम!
kshamaa chaahtaa hoon pankaj ji,
subah jab aapko padhaa toh itnaa magan ho gayaa ki bhaan hi na rahaa ki main geet padh rahaa hoon ya ghazal....
usee lahar me mast ho kar maine apni tippani me aapko badhjaai bheji thi jisme bhoolvash ghazal ko geet likh diya tha voh toh abhi maine dobaara padhaa toh ehsaas hua ki mujhse chook ho gayi...
sorry...i am so sorry...
aapki ghazal naayaab hai...
par ghazal ko geet likhne wale
albela ka dimaag kharaab hai
isliye muaaf karnaa.....
-albela
इस रचना को पढ कर जाने कितनी देर रोती रही मुझे अपनी विदेश मे रह रही बेटी की याद आ गयी मुझे लगा की शायद ये रचना मेरे लिये ही लिखी गयी है बौत मार्मिक अभिव्यक्ति है ऐसी रचना सुबीर जी की कलम ही लिख सकती है बौत बहुत धन्यवाद सुबीर जी को बधाई इस सामयिक रचना के लिये
Pankaj ji,
Badi marmik kavita likhi hai aapney,
aapka hardik swagat hai.
Dr. Shareef
Karachi (Pakistan)
gms_checkmate@yahoo.com
आज जब मेरी बात आदरणीय श्री महावीर जी से हो रही थी तो जिक्र आज की पोस्ट का आया के मैंने पढ़ी है के नहीं ... पढ़ने को तो मैं सुबह ही पढ़ चुका था मगर इस बेमिशाल मार्मिक गीत और उस पर से अपने ही गुरु देव के बारे में कुछ कहना एक टिपण्णी के बारे में मेरे बस और हिम्मत से कोसो दूर है के मैं अपने गुरु के रचना पे कुछ टिपण्णी कर सकूँ इस यह पाप तो कभी नहीं कर सकता... मेरी तो हिम्मत नहीं हो रही थी आज इस गीत के बारे में कुछ बही कहने से .... कितनी संवेदनशीलता से और किरदार में डूब कर गुरु देव लिखते है वो इस नायाब गीत को पढ़ कर अंदाजा भी नहीं लायाग्य जा सकता... बस यही कहूँगा के गुरु देव को सादर चरण स्पर्श मेरे बस में नहीं है कुछ पौन....
अर्श
सिर्फ़ कहूँ ये गीत लिखा है है अनुभूति के छलके जल से
तो संभव है सब ये कह दें, मैं दोहराता बात पुरानी
किन्तु सुनिश्चित सावन की भीगी टीसों को जो सहेज कर
किया आपने चित्रि, वह है अनुभव की ही एक निशानी
पलटे हैं अतीत के पन्ने, तो कुछ ऐसा ही पाया है
जैसी गाथा निम्न पंक्ति में पंकजजी ने खूब बखानी
घर के इक कोने में मेरी गुड़िया भी रक्खी हो शायद।
कहना याद बहुत आती है तेरी लाडो बिटिया रानी ॥
Mahavirji
Is prastuti ke liye aap badhayi ke patra hai
पिंजरे का हीरामन अब भी गुड्डी-गुड्डी रटता होगा ।
कह देना तेरी वो गुड्डी हो गई है अब बहू सयानी॥
सुबीर जी का वर्णन धागे में पाये गए मोती की तरह शब्दों में ढल गए हैं और दिल को छूते हुए मन मष्तिष्क को भी झिंझोड़ने में अपनी दक्षता दिखा रहे हैं
मंगलकामनाओं के साथ
देवी नांगरानी
पंकज भाई का लेखन
हमेशा मन को छू जाता है
वे कई युवा ,
उभरते रचनाकारों के " गुरु जी " भी हैं
निस्वार्थ भाव से
साहित्य सेवा तथा साहित्य साधना में रत
पंकज जी
बहुआयामी व्यक्तित्त्व के धनी हैं
उनकी साधना जारी रहे ,
फले , फूले ये मेरी शुभेच्छा है --
राखी के मंगल पर्व पर
मुझ से छोटे भैया पंकज भाई के लिए
सप्रेम आशिष व पावन स्नेह :)
और ये पाती ,
बादलों पे सवार होकर
" नये युग का मेघदूत मय सन्देश "
पहुंचाने में सफल होगी .........
ये ऐसी दुनिया की गुडिया है
जो न जाने कब चुपके से
गुड्डी से सयानी और फिर
माँ और नानी बन जातीं हैं
के पता ही नहीं चलता !
समय का दरिया ,
रवानी से बहता
इस सुन्दर मर्मस्पर्शी कृति में ,
ढल जाता है
आदरणीय महावीर जी
आपका पुन: आभार
इस प्रस्तुति के लिए --
सादर, स - स्नेह,
- लावण्या
आंगन के तुलसी चौरे पर कर आना तू संजा बाती ।
और कहना आशीष बनाए रखना तुलसी माता रानी।
गुरु जी की रचना पर शिष्य को टिप्पणी करने में हमेशा ही परेशानी हुई होगी जैसा की मुझे हो रही है
इस रचना को आत्म सात करने के लिए सोच की बहुत गहराई चाहिए और मै ये अच्छी तरह जानता हूँ की अभी मुझमे सामर्थ नहीं है की कुछ कह सकूं
मौन हो कर आनंद ले रहा हूँ
वीनस केसरी
पंकज भाई,
इसे पढ़ तो सुबह ही लिया था पर इतनी रुलाई छूटी कि कुछ भी लिखने की हिम्मत नहीं हुई.
पिंजरे का हीरामन अब भी गुड्डी-गुड्डी रटता होगा कह देना तेरी वो गुड्डी हो गई है अब बहू सयानी॥
घर के इक कोने में मेरी गुड़िया भी रक्खी होशायद।
कहना याद बहुत आती है तेरी लाडो बिटिया रानी॥
अगर मैं मौन रह कर कह दूँ कि मेरे भाव आप ने कैसे इतनी बखूबी से लिख दिए?
आदरणीय महावीर जी के ब्लाग पर रचना लगने का अर्थ होता है मानों कोई परिपत्र सदन के पटल पर रखा जा रहा हो । यहां पर गुणी लोगों को उस पर विचार करना है । पहली बार ये सौभाग्य पाकर वैसा ही लग रहा है जैसा तब लगा था जब पहली बार अपनी कहानी को किसी जगह पर प्रकाशित हुए देखा था । आदरणीय महावीर जी का साहित्य के प्रति समर्पण देख कर कभी कभी अपने आप पर शर्म आने लगती है । उस पर ये कि इस कविता को ISO-9000 नंबर दिया एक ग़ज़ल के उस्ताद ने और एक गीत के विद्वान ने आदरणीय श्री प्राण शर्मा जी और श्रद्धेय श्री राकेश खण्डेलवाल जी की टिप्पणियां मेरे लिये क्या मायने रखती हैं ये शब्दों में नहीं बता सकता । चूंकि गीत महिलाओं के लिये लिखा गया है इसलिये मेरे लिये बहुत सुखद क्षण् है कि मेरी बड़ी बहनों आदरणीय लावण्य जीजी, सुधा जीजी, निर्मला जीजी और देवी नागरानी बुआ जी का स्नेह इस कविता को मिला । निर्मला जीजी और सुधा जीजी ने जब कहा कि इस कविता ने उनको रुला दिया तो बस मेरी ये कविता सफल हो गई । मेरी कोई सगी बहन नहीं है किन्तु ब्लाग जगत पर ये जो बहनें मिली हैं इनका स्नेह अब उस टीस को दूर कर रहा है । बहुत अच्छे मित्र और अग्रज आदरणीय समीर लाल जी तथा अलबेला खत्री जी इन दोनों के साथ ही संयोग से सीहोर के कवि सम्मेलन में रचनापाठ किया है उनकी टिप्पणियां स्नेह से परिपूर्ण हैं । ग़ज़ल की पाठशाला के होनहार छात्र प्रकाश अर्श, दिगम्बर नासवा और वीनस केसरी जिनसे मुझे बहुत उम्मीदे हैं उनके द्वारा यहां दिये गये सम्मान के प्रति आभारी हूं । कराची से आई डाक्टर शरीफ की टिप्पणी से ऐसा लगा मानों मेरी इस बात का बल मिला है कि सीमाएं इन्सान बनाते हैं और रिश्ते उन सीमाओं को तोड़ते हैं । आदरणीय आशा जी की टिप्पणी के लिये उनका आभार ।
आभार परम श्रद्धेय श्री महावीर दादा भाई का भी जिन्होंने इस गीत का अपने सदन के पटल पर रखे जाने के योग्य समझा । मैं धन्य हुआ कि रक्षा बंधन पर लिखा गया मेरा ये गीत सही स्थान पर सही हाथों से अनावरित हुआ । पुन: सबका आभार ।
क्या कहूं ?
पुरुष हो कर स्त्रीमन की गाथा यूँ कहना....! आप द्वारा ही संभव था। कैसी थी कैसी नही ये कहना मेरे अधिकार क्षेत्र में नही है..मगर ये तो बता ही सकती हूँ कि हर महिला की तरह आँखें मेरी भी नम हो गईं।
और बार बार ये मत कहा कीजिये कि आपके कोई सगी बहन नही। बहन बस बहन होती है सगी, चचेरी, मुँहबोली कुछ नही। बताइये तो सुभद्रा का कृष्ण से क्या रिश्ता था। सगी तो वो भी नही थी। बार बार ये बात सुनकर आपकी इस शिष्या सह छोटी बहन को कष्ट होता है.....! मेरा कोई वज़ूद ही नही :(
मेरी कोई सगी बहन नहीं है
ये शब्द मैं वापस लेता हूं ।
Shaandaar geet.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
...अहा, गुरू जी की एक अद्भुत कृति...हम तो उनकी रचनाओं को सुनने-पढ़ने को तरसते ही रहते हैं...महावीर जी, हम सब ऋणि हैं आपके...
उधर सुबीर जी ने इसी रचना को अपना स्वर भी दिया जिसे मैं अभागा सुन नहीं पा रहा!
और दो भाई-बहन का इस टिप्पणी-बक्से में झगड़ा{?} देख कर मन प्रफ्फुलित हो गया...
और गुरूदेव की इन दो सुंदर पंक्तियों पे "नदिया के कानों में थोड़ा शरमा कर ये बतला देना/आते माघ पूस तक बन जाएगी तू अम्मा से नानी " बात को कहने के अंदाज ने, छुपे लाड़ ने....साष्टांग प्रणाम!
बेहतरीन रचना..... नमन करता हूं सुबीर जी..
सुबीर जी, मेरे ब्लॉग पर आपकी कमी सी महसूस हो रही थी जो आपके आने से पूरी हो गई है. इसके लिए आपको अनेक धन्यवाद.
ग़ज़ल की शैली में सुबीर जी का यह गीत किसी के भी हृदय को छूने में सक्षम है.
अक्सर प्रतीकों से अभिव्यक्ति में एक अस्पष्टता आ जाती है किन्तु इसके विपरीत सुबीर जी ने प्रतीक इस ढंग से प्रस्तुत किये हैं कि रचना और भी सहजग्राह्य और आत्मसात हो जाती है.
बहन की भावनाएं और अनुभूतियाँ बड़े ही सुंदर शब्दों में सावन के बादलों के माध्यम से की हैं. ज्यों ज्यों रचना आगे बढ़ती है, एक कुतूहल-मिश्रित वेदना उमड़ आती है.
मैं प्राण शर्मा जी से सहमत हूँ कि आजकल ऐसी सरस और मार्मिक गीत कहाँ पढ़ने को मिलते हैं?
ऎसी सुन्दर रचना के लिए पुन: धन्यवाद और बधाई.
बहुत बेहतरीन रचना...बधाई।
man ko choo gayi ji ye rachna ...
mahaveer ji bahut dino baad aaya hoon , maafi chahunga .
pankaj ji guruji hai , unke lekhan me yo baat hai , wo bahut kam dekhne ko milti hai ...
badhai
क्या बात है !!अंदर तक मन को छू लिया आपके गीत ने ...बहुत सुंदर ...बधाई
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