Monday, 5 October 2009

यू.के. से सोहन "राही" की दो ग़ज़लें

संक्षिप्त परिचय
सोहन 'राही
' का जन्म लगभग ७३ वर्ष पूर्व पंजाब के एक ख़ूबसूरत गाँव लसाड़ा, जिला जालंधर में हुआ.
प्रारम्भिक शिक्षा फगवाड़ा, जिला कपूरथला (पंजाब) में हुई. सन् १९५० से इनका शायरी का सफ़र आरम्भ हुआ. प्रेम वारबर्टनी और मौलाना माहिर-उल-क़ादरी का आशीर्वाद सोहन 'राही' को मिला. अब सन् १९६३ से यू.के. में ही रह रहे हैं.
इनके हिन्दी में २ संग्रह 'सुर-रेखा' और 'आरती वंदन' तथा ७ उर्दू के संग्रह "ज़ख्मों के आँगन", "घूँघट के पट","धूप की तख़्ती","ज़ख़्म,घूँघट,धूप", "खिड़की भर आसमान", "कागज़ का आईना", "गीत हमारे ख़्वाब" प्रकाशित हो चुके हैं और ६ संग्रह "पत्तियां", "साहिल,सीप,समंदर", "पानी की हथेली", "किकली" पंजाबी कलाम, "हर्फ़ हर्फ़ तेरा", "तुम केसर हम क्यारी" शीघ्र प्रकाश्य है.
'राही' जी ने कितनी ही संस्थाओं की नींव रखी जिनमें उल्लेखनीय हैं: १९५२ में 'नवयुवक सभा', १९५३ में फगवाड़ा में 'बज्म-ए-अदब', लन्दन में १९७६ में 'हल्का-ए-अहले-सुख़न', १९७८ में 'इदारा-ए-अदब
लन्दन' आदि. उसी काल में उर्दू त्रैमासिक पत्रिका 'अदब' का शुभारम्भ किया.
सोहन 'राही' १९७१ से १९८९ तक ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कार्पोरेशन (BBC) में सीनियर आर्किटेक्चरल असिस्टेंट रहे.
सम्मान: टी.वी. चैनल ४ के ग़ज़ल प्रतियोगिता १९९३, एशियन आर्टिस्ट्स एसोशियेशन ग्लासगो १९९३, संत कबीर अवार्ड, हिन्दी समिति, लन्दन १९९९, साहिर कल्चरल अकादमी अदीब अवार्ड, लुधियाना २०००, यूरोपियन उर्दू राइटर्ज़ यू.के.: साहिर लुधयानवी अवार्ड २०००, शायरी सेवा के लिए इंडियन ओवेर्सीज़ कांग्रेस यू.के.-लन्दन के मैडल २००१ और २००६.





















ग़ज़ल

अपने बारे में न यूं सोचा करो

ज़ात के जंगल से भी निकला करो


इस धुएँ के फैलते पर काट दो

आसमाँ को और मत मैला करो


नोच लेगी यह तुम्हारे जिस्म को

इस क़दर तन्हाई मत पहना करो


लहर हो बादल हो कि दरिया कोई

राबता हर एक से रक्खा करो


दोस्ती का लम्स शीरीं ही सही

दुश्मनी का ज़ह्र भी चक्खा करो


भूल जाता हूँ मैं हर इक सानहा

ज़ख़्म-ए-दिल को और भी गहरा करो

सोहन 'राही' , यू.के.


ग़ज़ल

मैं इक ऐसा जुगनू हूँ या वीराँ घर का एक दिया

जिसने अपना ख़ून जलाया, जिसने अपना ख़ून पिया


ख़्वाबों में शोले बरसाए चलती फिरती एक चिता,

दिन के सह्रा पी जाते हैं आँखों से घनघोर घटा


जिस दिन प्रेम कला का जोबन की वादी से गीत सुना

उससे अगले रोज़ था हमने शोलों का इक जाल बुना


नग़मों का दरबार सुहाना, गीतों का इक बिंदराबन

तेरी मीठी मीठी मुस्कानों ने हम को आज दिया


मस्ती, महकें, अग्नि, चन्दन, मधमाती ग़ज़लें, संगीत

तेरे तन की हरियाली महराबों में क्या क्या न मिला


आखिर रूप उजारा नाचा, नज़रों की नीलाहट में

कितने आशा के तारों का हमने कैसा ख़ून किया


हमने माटी के बदले ही सौत के हीरे बेचे हैं

लेकिन जग वालों ने हम से बात बात का मोल लिया.

सोहन 'राही' , यू.के।


(आरम्भ में वर्तनी की कुछ त्रुटियां हो गईं थीं, अब सुधार दी गई हैं. इन त्रुटियों के

लिए मैं श्री सोहन 'राही' से क्षमा चाहता हूँ.)
महावीर शर्मा

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अगला अंक:
: 11 अक्टूबर 2009
महावीर शर्मा
की ग़ज़ल/कविता

14 comments:

ashok andrey said...

iss dhuen ke phelte par kaat do
aasmaan ko aur mat maelaa karo.
sohan raahi jee ki bahut achchhi gajal padne ko mili
meri aur se badhai sveekaren

ashok andrey

"अर्श" said...

राही साहिब की दोनों ही गज़लें अपने आप में परिपूर्ण ग़ज़ल की किताब कहूँ तो गलत ना होगा... अपनी ताज़र्बाकारी की बातें जिस तरह से उन्होंने ग़ज़लों में कही है वो पढ़ते ही बँटा है हम नए के लिए यह एक सिखाने और सहेजने के लिए है ... आपने जिस तरह से हमें पढ़ने के मौका दिया है हमेशा बड़े बड़े गुनी लेखकों का वो तो शब्दों में कह पाने की बात नहीं है ... आभार आपका और सादर प्रणाम...

अर्श

बलराम अग्रवाल said...

इस धुएँ के फैलते पर काट दो

आसमाँ को और मत मैला करो

बहुत ही खूबसूरत बात है और बहुत दूर तक जाती है। दोनों ही ग़ज़लें प्यारी हैं। पहली ग़ज़ल में कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग हुआ है जिनके अर्थ भी साथ होने चाहिए थे।

Devi Nangrani said...

Sohan rahi saheb
Bahut hi margdarshak hai har ik sher in nayaab gazalon ka

नोच लेगी यह तुम्हारे जिस्म को

इस क़दर तन्हाई मत पहना करो

Assman par naksh chodti hui har pankti..bahut hi sunder
Devi nangrani

neera said...

सोहन जी, एक बार आपको लीड्ज़ में सुना था कुछ साल पहले... आज आपकी ग़ज़ल पढ़ बहुत ख़ुशी हो रही है..

महावीर जी, सोहन जी से दोबारा मिलवाने का बेहद शुक्रिया .. उम्मीद करती हूँ आप उन्हें अपने ब्लॉग पर बुलाते रहेंगे...

Dr. Amar Jyoti said...

'अपने बारे में…'
'इस धुएं के……'
'नोच लेगी…'
सभी एक से बढ़ कर एक।
बेहतरीन।
हार्दिक आभार पढ़वाने के लिये।

vijay kumar sappatti said...

mahaveer ji ;

sabse pahle to main kaan pakad kar aapse aur praan ji se maafi maanta hoon ki main itne din bahar raha aur aapke blog par nahi aa saka .. mujhe maaf kar dijiye ,main kuch uljha hua tha zindagi ke jhamelo me ..

maine raahi ji ki dono gazale padhi . bahut baar padhi


नोच लेगी यह तुम्हारे जिस्म को

इस क़दर तन्हाई मत पहना करो
aur

ख़्वाबों में शोले बरसाए चलती फिरती एक चिता,

दिन के सहरा पी जाते हैं आँखों से घनघोर घटा


ye dono sher to ultimate hai .. padhkar bahut accha laga

regards

vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आभार आदरणीय महावीर जी -
- इतनी खूबसूरत गज़लें पढ़वाने के लिए
सादर,
- लावण्या

haidabadi said...

जनाबे महावीर साहिब

राही साहिब की ग़ज़लें आपके ब्लॉग पर देखी
दिल बाग़ बाग़ हो गया और तबियत बशिश्त ही गई
दोआबा बिस्त जालंधर की सोंधी सोंधी खुशबू
का एहसास हुआ

आदाब

चाँद हदियाबादी
डेनमार्क

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत ही बढिया गज़लें प्रेषित की हैं।अच्छी गज़ले पढवाने ले लिए आभार।

Dr. Ghulam Murtaza Shareef said...

सोहन राहीजी ,
आप जैसे लोगों का इस परिवार में शामिल होना , टंडी हवा के झोंके की तरह है !
आपकी रचना अच्छी लगी !

महावीर said...

जनाब 'राही' साहब
'महावीर' ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
आपकी दोनों ही ग़ज़लें दिलकश हैं. कुछ नई सोचों को क़लमबंद किया है आपने. आपके कलाम पढ़ते पढ़ते हुए दिल में जज़्बात करवट बदलने लगते हैं. सही
बात तो यह है की आपकी ग़ज़लों पे तो इज़हार-ए-राय करने की गुंजाईश नहीं है. दोनों ग़ज़लों के तमाम आशा'र एक से एक बढ़कर हैं, लिहाज़ा ये आशा'र तो दिल में से तीर बन कर निकल गए:
दूसरी ग़ज़ल के मक़ते को हासिल-ए-ग़ज़ल शेर कहा जाये तो शायद बेजा न होगा.
मैं इक ऐसा जुगनू हूँ या वीराँ घर का एक दिया
जिसने अपना ख़ून जलाया, जिसने अपना ख़ून पिया

ख़्वाबों में शोले बरसाए चलती फिरती एक चिता,
दिन के सह्रा पी जाते हैं आँखों से घनघोर घटा

धुएँ के फैलते पर काट दो
आसमाँ को और मत मैला करो

मेरी मुबारकबाद कूबूल करें.
महावीर शर्मा

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...
This comment has been removed by the author.
द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

अपने बारे में न यूं सोचा करो
ज़ात के जंगल से भी निकला करो

इस धुएँ के फैलते पर काट दो
आसमाँ को और मत मैला करो

नोच लेगी यह तुम्हारे जिस्म को
इस क़दर तन्हाई मत पहना करो

Sohan raahi ji ko bahut bahut badhaae.

bahut hee khoobsoorat sheroN ke liye.