संक्षिप्त परिचय:
डॉ. सत्येन्द्र श्रीवास्तव
जन्म : ५ अगस्त, १९५३ आज़म गढ़(उत्तर प्रदेश), भारत
प्रारंभिक शिक्षा : वाराणसी, पूना विश्वविद्यालय (1953-57), पी.एच. डी.- लंदन विश्वविद्यालय, यू.के(1978)।
(चित्र :साहित्यिक पुरस्कारों सहित)
विश्विद्यालयों में अध्यापन : टोरोंटो विश्वविद्यालय (कनाडा), लंदन विश्वविद्यालय, लंदन, सिटी विश्वविद्यालय, लंदन,२५ वर्षों तक केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के अध्यापन के बाद, अवकाश प्राप्त.अवकाश प्राप्ति के बाद भारत, थाईलैंड, मलेशिया, केनिया, दक्षिण अफ्रीका, जाम्बिया, रूस, जापान आदि देशों में व्याख्यान और हिन्दी एवं अंग्रेजी कविताओं का पाठ.
नियमित कॉलम लेखन : धर्मयुग (साहित्य वातायन), नवभारत टाइम्स लंदन से सन्डे मेल, लंदन की चिट्ठी, प्रभात खबर, आउटलुक, नया सवेरा. हिन्दी और अंग्रजी दोनों में प्रचुर लेखन और प्रकाशन.
पुस्तकें :जलतरंग, एक किरण का फूल, स्थिर यात्राएं, मिसेज जोन्स और वह गली, सतह की गहराई, कुछ कहता है यह समय (सभी काव्य संग्रह) टेम्स में बहती गंगा की धार (ब्रिटेन में बसे भारतीयों की संघर्ष गाथा), कन्धों पर इन्द्रधनुष (यात्रा डायरी), शहीद ऊधम सिंह,उनका समय, उनकी क्रांति, बेगम समरू, मिस वर्ल्ड अनडिक्लेयर्ड (सभी नाटक). आज स्थिर है ज्वार (कविता संग्रह), हिन्दी- कहीं क्षितिज कहीं लहरें.
English: Sir Winston Churchill knew my Mother (London- 2006)
सम्मान :अनेक सम्मानों और पुरस्कारों से सम्मानित। यह उल्लेखनीय है कि डॉ सत्येन्द्र श्रीवास्तव को "प्रवासी भारतीय हिन्दी भूषण सम्मान" से समलंकृत कर पुरस्कार स्वरूप एक लाख रुपये की धनराशि भेंट करते हुए "उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान" हर्षित एवं गौरान्वित है।
डॉ. सत्येन्द्र श्रीवास्तव जी को द यूनिवर्सिटी ऑव सेन्ट्रल फ्लोरिडा (यू.एस.ए.) बुक फैस्टिवल उत्सव के उद्घाटन पर एकल कविता पाठ के लिए आमंत्रित किया गया है जहाँ राष्ट्र कवि उपस्थित होंगे. इसके अतिरिक्त प्रतिष्ठित साहित्यकारों के साथ भी उनका काव्य पाठ होगा.
प्रसिद्ध महाकवि हर्बर्ट लोमस जो Guinness Poetry Competition, Cholmondeley Award और Order of the White Rose of Finland जैसे प्रुस्कारों से सम्मानित हैं, डॉ. श्रीवास्तव जी के लिए कहते हैं:
'His (Dr.Satyendra Srivastav) poetic stories send up the wisdom of the East and make it new. The writing has a slight Indian accent that only adds to its charisma. I'd exchange a lot of the current blather of much English poetry for these liqueurs of distilled surrealism.'
डॉ. सत्येन्द्र श्रीवास्तव
दागने वाले सैनिक ही
ईश्वर के चुने हुए जीव नहीं होते
इस प्राय: प्यासी धरती पर
हम सभी कहीं
खूनी खेलों के
खिलाड़ी हैं
हम सब के लिए कहीं
एक दुश्मन ताना हुआ खड़ा होता है
वास्तविक या काल्पनिक
और हमसब
कन्धों पर
बंदूकें रखे बढ़ते रहते हैं
ये कंधे चाहे अपने हों
या किसी और के
प्राय: होते हैं किसी और के ही
और यों हम सदा रहते हैं तत्पर
गोली दागने के लिए
विशेषतया उन क्षणों में
जब हम सहसा
कुछ पाने से चूक जाते हैं
या जिसके पाने के लिए
खर्च होते हैं संघर्षरत
या हमारे स्वप्न
टूटकर बिखर जाते हैं
खण्ड-खण्ड.
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डॉ. सत्येन्द्र श्रीवास्तव
कोने में खड़े एक अन्धे के प्रति
शोर मचाते घूंसा दिखाते
एक दूसरे को धकिआते कुचलते
पर वह खड़ा रहा.
वह अन्धा...
उसने जो देखा
भीतर देखा
जो सुना भीतर पढ़ा
उसके अन्धे जगत में
किसी मकान में आग नहीं लगी
किसी ने गुस्से से , घृणा से
पेट्रोल बम नहीं फेंका,
जलते मकान में
रहने वालों की भगदड़
उसके भीतरी जगत में नहीं मची.
उसका संसार
खुशहाल था
वहीँ एक बसन्त गुनगुना रहा था
पक्षियों की गूंजों में जश्न के गीत थे
जिस पानी को उसने देखा
उसमें सड़ती लाशें नहीं तैर रही थीं
दीप प्रवाहमान थे
इसीलिए
उसके होठों पर मुस्कान थी
इसीलिए वह चुप था
सारा हंगामा
सारी भगदड़
शोर-शराबा
उसकी अंधी दुनिया की
चीज नहीं थी
वह उन सबसे
ऊपर था, बड़ा था
इसीलिए बेशुमार हलचल के
आर-पार खड़ा था.
अपनी जमीन पर अड़ा था.
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11 comments:
अलग-अलग भावों को लेकर लिखी गयीं दोनों ही कवितायें एक विशिष्ट छाप छोड़ती हैं मन पर.. लेकिन दोनों ही संवेदनाओं से जुड़ी हैं इसलिए दोनों ही विश्वस्तरीय कवितायें हैं..
आदरणीय महावीर सर को ऐसी कवितायेँ पढ़ाने के लिए आभार और डॉ. सत्येन्द्र जी का शुक्रिया.
डॉ.सत्येन्द्र श्रीवास्तव की कविताएं अच्छी लगीं। बधाई !
वह उन सबसे
ऊपर था, बड़ा था
इसीलिए बेशुमार हलचल के
आर-पार खड़ा था.
देवमणि पाण्डेय (मुम्बई)
दोनों ही रचनाएँ अतिप्रभोत्पदक एवं विलक्षण हैं....
पढ़कर मन चिंतन धार में प्रवाहित होने लगता है....
mahaveer jii
sadar pranam, acchi rahnaon ke liye aap ko badhae aur dr, satyendra jee kio sadhuwad,
saadar
श्रद्धेय महावीर जी, सादर प्रणाम.
”हम सभी कहीं...खूनी खेलों के..खिलाड़ी हैं...”
चिंतन करने लायक रचना की सबसे बड़ा सवाल लिये हैं ये पंक्ति. दोनों कविताएं बहुत अच्छी रहीं. लेखक को बधाई.
चिंतनप्रधान मर्मस्पर्शी रचनाएँ. साधुवाद.
श्रधेय महावीर जी को सादर प्रणाम,
आपका मेल मिला और दुःख हुआ यह जान कर के आप ज्यादा ही बीमार हिया मगर यह देख
दंग हूँ के आप इतनी ब्यास्ताता के बाद भी ब्लॉग पर मूल रूप से सक्रिय हैं...
डा . सत्येन्द्र जी की दोनों ही कवितायेँ बेहद खुबसूरत हैं , हालातों को जिस तरह से
इन्होने अपनी कवितावों में रखा है और आक्रोशित हैं वो लाजमी भी है ...
पहली कविता ने जहां खुद को और आस पास को देखने पे मजबूर किया और उन हालातों के लिए सोचने पर भी वहीँ दूसरी कविता ने तो आश्चर्यचकित कर दिया ...
उस निःस्वार्थ मन को जिसने ये सारी चीजे नहीं देखि है और अडिग है क्युनके उसे भय नहीं कारण यह के इन सभी चीजों से वो अछूता है ... कमाल की बात की है उन्होंने इन दोनों ही कीटों में ... बधाई...
अर्श
सत्य के करीब दो अच्छी कवितायें।
bahut achchhi tathaa prabhavshaalee kavitaen hain jo kaheen n kaheen hamare andar ke gusse ko hee vyakt kartee hue dikhaae detee hai, badhai.
सत्येन्द्र श्रीवास्तव की रचनाएं मानवीय संवेदनाओँ को झकझोरने मेँ सक्षम हैँ।इनके रचाव मेँ भारतीयता की महक आती है।आपका ब्लाग यू.के.मेँ भारतीयता संरक्षक सरीखा है।बधाई!
omkagad.blogspot.com
आदरणीय महावीर जी,
सादर वन्दे!
आपके प्रयासोँ को नमन!आप हिन्दी साहित्य की उल्लेखनीय सेवा कर रहे हैँ।आप स्वस्थ, प्रसन्न एवं मस्त रहेँ; ईश्वर से कामना है।
omkagad.blogspot.com
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