Saturday, 28 November 2009

भारत से देवमणि पांडेय की दो ग़ज़लें


देवमणि पांडेय


ग़ज़ल
दर्द का इक फ़साना थी कल ज़िंदगी
तेरी निस्बत से है अब ग़ज़ल ज़िंदगी

एक मुद्दत से रूठी हुई है मगर
तुम जो मिलते तो जाती बहल ज़िंदगी

आजतक ज़िंदगी से जो महरूम हैं
काश उनको मिले एक पल ज़िंदगी

फूल से खेलती तितलियाँ देखकर
एक बच्चे सी जाए मचल ज़िंदगी

दुःख में हँसते रहो,ग़म भुलाकर जिओ
मुसकराहट के लाई है पल ज़िंदगी

प्यार से इसका दामन सजाते रहो
आज है हो न हो साथ कल ज़िंदगी

देवमणि पांडेय

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ग़ज़ल
डूब चुके हैं बार-बार हम इन आंखों के पानी में
नाम तलक न आया मेरा फिर भी किसी कहानी में

जीवन अपना बीत रहा है कुछ यूँ दुख के साए में
जैसे फूल खिला हो कोई कांटों की निगरानी में

छीन लिया दुनिया ने सब कुछ फिर भी मैं आबाद रहा
जब जब मुझको हंसते देखा लोग पड़े हैरानी में

जिसको देखो ढूँढ रहा है काश ज़िंदगी मिल जाए
जाने कैसी कशिश छुपी है इस पगली दीवानी में

दुनिया जिसको सुबह समझती तुम कहते हो शाम उसे
कुछ सच की गुंजाइश रक्खो अपनी साफ़ बयानी में


ख़ुदग़र्ज़ी और चालाकी में डूब गई है ये दुनिया
वरना सारा ज्ञान छुपा है बच्चों की नादानी में

देवमणि पांडेय

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अगला अंक: ४ दिसम्बर २००९
पंकज सुबीर की कविता
"आदमी"

24 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

Behad khubsoorat gajal pahlee waalee, doosree bhee achchee lagee !

नीरज गोस्वामी said...

बहुत कम लोग होते हैं जो जैसे दीखते हैं वैसे ही होते हैं...देव मणि जी वैसे ही विलक्षण इंसान हैं...जितना मजा इनसे मिल कर आता है उतना ही इन्हें पढ़ कर...क्या लिखते हैं ...वाह..सीधे सरल शब्दों में कमाल करते हैं:

दुःख में हँसते रहो,ग़म भुलाकर जिओ
मुसकराहट के लाई है पल ज़िंदगी

प्यार से इसका दामन सजाते रहो
आज है हो न हो साथ कल ज़िंदगी

वाह...बहुत खूब..

*****

और ये शेर तो मैंने चुरा कर अपने पास रख लिए हैं:

जीवन अपना बीत रहा है कुछ यूँ दुख के साए में
जैसे फूल खिला हो कोई कांटों की निगरानी में

ख़ुदग़र्ज़ी और चालाकी में डूब गई है ये दुनिया
वरना सारा ज्ञान छुपा है बच्चों की नादानी में

इश्वर उन्हें हमेशा खुश रखे और हमें उनकी कलम से निकले लाजवाब अशार पढने के मौके देता रहे...ये ही कामना करता हूँ...
आप का बहुत बहुत शुक्रिया महावीर जी जो देव साहब की ग़ज़लों को पढने का मौका दिया.
नीरज

"अर्श" said...

देवमणि जी ने जिस तरह से शब्दों के बुनावट में ज़िंदगी को ढाला है वो आपने आप के काल की बात कही है उन्होंने पहली ग़ज़ल के वेसे तो सारे ही शे'र एक से बढ़ कर एक हैं मगर जब बात की जाए इस खुबसूरत शे'र की तो दिल से वाह वाह वाली बात हो जाती है
प्यार से इसका दामन सजाते रहो
आज है हो न हो साथ कल ज़िंदगी..
और दूसरी ग़ज़ल के क्या कहने जिस ताजगी और नफीसी से उन्होंने अश'आर कहे हैं वो उनकी गज़ल्गोई को उच्चस्तर तक पहुचाने में कोई कसर नहीं छोड़ती ...
छीन लिया दुनिया ने सब कुछ फिर भी मैं आबाद रहा
जब जब मुझको हंसते देखा लोग पड़े हैरानी में
और एक और शे'र जिसे नीरज जी ने भी कोट किया है , हर जुबान पर चढ़ कर बोलने वाला है यह शे'र
ख़ुदग़र्ज़ी और चालाकी में डूब गई है ये दुनिया
वरना सारा ज्ञान छुपा है बच्चों की नादानी में
वाह किस सरलता से इतनी बड़ी बात की है देवमणि जी ने .... बढ़ाई उनको मेरे तरफ से भी ... और आदरणीया महावीर जी सादर चरणस्पर्श ....

अर्श

PRAN SHARMA said...

DEVMANI PANDEY JEE PURANE KAVI HAIN.
GEET,KAVITA KE ALAAVAA VE BAHUT
ACHCHHEE GAZALEN BHEE KAHTE HAIN.
UNKEE IN DONO GAZALON KO PADH KAR
BADAA LUTF AAYAA HAI.BACHCHON KEE
NADANEE PAR UNKE SHER KO PADHKAR
MUJHE APNA EK SHER YAAD AA GAYAA
HAI---
BAALIG KARTAA KOEE GALTEE
GUSSA KARNAA JAAYAZ THAA
KAESA GUSSAA MERE BHAI
BACHCHON KEE NADANEE PAR
ACHCHHEE GAZALON KE LIYE
DEVMANI PANDEY JEE KO BADHAAEE AUR
SHUBH KAMNA.

Rohit Jain said...

Dev ji Aapki dono Rachnayein bahut hi achchhi hain.............

Rohit Jain said...
This comment has been removed by the author.
दिगम्बर नासवा said...

डूब चुके हैं बार-बार हम इन आंखों के पानी में
नाम तलक न आया मेरा फिर भी किसी कहानी में

JEEVAN KI SACHHAI KO DEVMANI JI NE KHOOBSOORAT SHABD LE KAR IS GAZAL MEIN UTAARA HAI ... BAHUT HI KAMAAL KI GAZLEN HAIN DONO .....

निर्मला कपिला said...

प्यार से इसका दामन सजाते रहो
आज है हो न हो साथ कल ज़िंदगीवाह बहुत सुन्दर
जीवन अपना बीत रहा है कुछ यूँ दुख के साए में
जैसे फूल खिला हो कोई कांटों की निगरानी में

ख़ुदग़र्ज़ी और चालाकी में डूब गई है ये दुनिया
वरना सारा ज्ञान छुपा है बच्चों की नादानी में
लाजवाब गज़लें हैं ये शेर तो दिल को छू गये पाँडे जी को बहुत बहुत बधाई

Udan Tashtari said...

दोनों ही गज़लें बेहद खूबसूरत बन पड़ी हैं.

फूल से खेलती तितलियाँ देखकर
एक बच्चे सी जाए मचल ज़िंदगी


कितना सच कहा.

पढ़कर मन प्रफुल्लित हो गया.

Devi Nangrani said...

Devmani ji ko robaro sunna ek lashani tajurba hai, bina kisi kagaz ke shron ki barssat kiye jaate hai.

जीवन अपना बीत रहा है कुछ यूँ दुख के साए में
जैसे फूल खिला हो कोई कांटों की निगरानी में
Nagina hai khoob tarasha.
daad ke saath

Devi Nangrani

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

''ख़ुदग़र्ज़ी और चालाकी में डूब गई है ये दुनिया
वरना सारा ज्ञान छुपा है बच्चों की नादानी में''
बेशकीमती शेर है जनाब,
दरअसल उर्दू शायरी में ''ख़ुदग़र्ज़ी'' की जगह
''खुद ग़रज़'' लफ्ज़ इस्तेमाल किया जाता यहां..
इसे फन का कमाल कहें,
या खूबसूरत इत्तेफाक...
देवमणि पांडेय जी की ग़ज़ल में इस जगह दोनों ही लफ्ज़ फिट हो रहे हैं..
दोनों ग़ज़लें बार बार पढने और दूसरों को सुनाने के लायक हैं
ग़ज़ल क्या, यूं कहिये
ज़िन्दगी के कई फलसफे पेश किये गये हैं
श्रद्देय महावीर जी,
मार्गदर्शन करें
''का के लागो पाय''???
और हां...
जिसको देखो ढूँढ रहा है काश ज़िंदगी मिल जाए
जाने कैसी कशिश छुपी है इस पगली दीवानी में
इस शेर का पहला मिसरा,
जाने क्यों
फिर से गौर करने की गुज़ारिश करता नज़र आ रहा है !!!
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

कडुवासच said...

... dono hi gajalen, bahut khoob !!!

kavi kulwant said...

Pandey ji ko rubaru sunane ka avsara kai baar mila hai..
aaja unki galjalen padh kar bahut achcha laga..

विधुल्लता said...

दुनिया जिसको सुबह समझती तुम कहते हो शाम उसे
कुछ सच की गुंजाइश रक्खो अपनी साफ़ बयानी में
badhai ..badhiyaa ..panktiyan

अजय कुमार झा said...

बहुत सुंदर गज़लें हैं दिल को सुकून पहुंचाने वाली

वाणी गीत said...

दोनों गजलों को एक साथ पढ़ना रोचक रहा ....
फूल से खेलती तितलियाँ देखकर
एक बच्चे सी जाए मचल ज़िंदगी

बच्चे सी मचल ही रही थी जिंदगी की अगली पंक्तिओं पर ठहर गयी

डूब चुके हैं बार-बार हम इन आंखों के पानी में
नाम तलक न आया मेरा फिर भी किसी कहानी में
अब इस कहानी पर आँखों में पानी भर आता कि

ख़ुदग़र्ज़ी और चालाकी में डूब गई है ये दुनिया
वरना सारा ज्ञान छुपा है बच्चों की नादानी में

बच्चों की नादानी बड़ों की समझदारी पर भारी होती है इसीलिए तो ताउम्र बच्चों से ही बना रहना चाहते हैं ...!!

Arshia Ali said...

ख़ुदग़र्ज़ी और चालाकी में डूब गई है ये दुनिया
वरना सारा ज्ञान छुपा है बच्चों की नादानी में।

सभी शेर लाजवाब हैं, पर उपरोक्त शेर को सवाशेर कहना चाहिए।

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भीड़ है कयामत की, फिरभी हम अकेले हैं।
इस चर्चित पेन्टिंग को तो पहचानते ही होंगे?

Dr. Sudha Om Dhingra said...

दोनों ग़ज़लें बहुत सुंदर हैं -

आजतक ज़िंदगी से जो महरूम हैं
काश उनको मिले एक पल ज़िंदगी

फूल से खेलती तितलियाँ देखकर
एक बच्चे सी जाए मचल ज़िंदगी

छीन लिया दुनिया ने सब कुछ फिर भी मैं आबाद रहा
जब जब मुझको हंसते देखा लोग पड़े हैरानी में
बहुत -बहुत बधाई.

योगेन्द्र मौदगिल said...

दोनों ही ग़ज़लें बेहतरीन हैं... देवमणी भाई को बधाई.... और आपकी प्रस्तुति को नमन..

गौतम राजऋषि said...

देवमणी साब की ग़ज़लों के बारे में कुछ कहना, तो उफ़्फ़्फ़्फ़!

शुक्रिया महावीर साब इन दो ग़ज़लों से मिलवाने के लिये!

रंजना said...

डूब चुके हैं बार-बार हम इन आंखों के पानी में
नाम तलक न आया मेरा फिर भी किसी कहानी में!!!

Uff kya kahun ...lajawaab !!! dono hi rachnayen mugdh kar dene waale...

Prastut karne ke liye bahut bahut aabhar..

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

देर से यहां पहुँचने पर मुआफी चाहती हूँ ..पर , इतनी बारीकी से
खूबसूरत लफ़्ज़ों में पिरोये हर शेर को पढ़ते जो लुफ्त आया है उसे
शब्दों में कैसे बयाँ करुँ ? वाह बहुत खूब ...शुक्रिया आ. महावीर जी

विनीत ,--
- लावण्या

deepa joshi said...

pandey ji dono hi gazals bahut achchi lagi

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

देवमणि पांडेयजी को पहले सुना और फिर पढने को मिला.
बहुत प्रभावित किया है उनकी ग़ज़लों ने मुझे.