आगामी पोस्ट - 23 अप्रैल: दिव्या माथुर के काव्य संग्रह "झूठ,झूठ और झूठ" (जिसका लोकार्पण 25 अप्रैल, 2009 को नेहरू सेन्टर, लन्दन में होगा) पर प्राण शर्मा का आलेख।
तेजेंद्र शर्मा की दो गज़लें
मुझ को चोरी से निगाहों को मिलाने वाले
ख़ूब है तू मुझे दीवाना बनाने वाले
तू कहीं दूर ना हो, मुझ को गुमां होता है
मेरे हर ख़्वाब को हर रोज़ सजाने वाले
घर था वीरान मेरा, उसमें अकेला था मैं
क्या कहूँ क्या न कहूं अपना बनाने वाले
गहरी इक फाँस सी चुभती है मेरे सीने में
हाथ हर एक से हर रोज़ मिलाने वाले
तुम मेरे कौन हो ये जान नहीं पाया हूँ
इतनी आसानी से हक़ मुझ पे जताने वाले
तुझ से किस मुंह से मैं कह दूँ कि पराया है तू
प्यार की खुश्बू मेरे दिल में बसाने वाले
इतना आसान नहीं होता मुहब्बत का सफ़र
थाम कर हाथ मेरा साथ निभाने वाले
तेजेंद्र शर्मा
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ज़िन्दगी आई जो कल मेरी गली
बंद किस्मत की खिली जैसे कली
ज़िन्दगी तेरे बिना कैसे जीऊँ
समझेगी क्या तू इसे ऐ मनचली
देखते ही तुझ को था कुछ ज्यूं लगा
मच गई थी दिल में जैसे खलबली
मैं रहूँ करता तुम्हारा इंतज़ार
तुम हो बस मैं ये चली और वो चली
तुमने चेहरे से हटाई ज़ुल्फ़ जब
जगमगाई घर की अंधियारी गली
छोड़ने की बात मत करना कभी
मानता हूँ तुमको मैं अपना वली
चेहरा यूँ आगोश में तेरे छिपा
मौत सोचे वो गई कैसे छली
तेजेंद्र शर्मा
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४ अप्रैल २००९ को तेजेन्द्र शर्मा की नई पुस्तक
'वक़्त के आइने में'
दिल्ली के राजेन्द्र भवन सभागार में आयोजित
लोकार्पण समारोह की रिपोर्ट: नूपुर अहूजा
“तेजेन्द्र शर्मा की कहानियां मण्टो की तरह हमें झकझोर देती हैं : कृष्णा सोबती”
“तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों से गुज़रते हुए हम यह शिद्दत से महसूस करते हैं कि लेखक अपने वजूद का टेक्स्ट होता है। तेजेन्द्र के पात्र ज़िन्दगी की मुश्किलों से गुज़रते हैं और अपने लिये नया रास्ता तलाशते हैं। वह नया रास्ता जहां उम्मीद है। तेजेन्द्र की कहानियों के ज़रिये हिन्दी के मुख्यधारा के साहित्य को प्रवासी साहित्य से साझेपन का रिश्ता विकसित करना चाहिये। हम उनकी जटिलताएं, उनके नज़िरये और उनके माहौल के हिसाब से समझें।” ये बातें मूर्धन्य उपन्यासकार एवं कथाकार कृष्णा सोबती ने आज चर्चित कथाकार तेजेन्द्र शर्मा के लेखन और जीवन पर केन्द्रित पुस्तक ‘तेजेन्द्र शर्माः वक़्त के आइने में’ के राजेन्द्र भवन सभागार में आयोजित लोकार्पण समारोह में कहीं।
कृष्णा सोबती ने तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों के शिल्प विधान पर चर्चा करते हुए कहा कि उनकी कहानी ‘टेलिफ़ोन लाइन’ का अन्त हमें मण्टो की कहानियों की तरह झकझोर देता है। जहां एक ओर निर्मल वर्मा की कहानियां अंतर्यात्रा की कहानियां होती हैं जिनमें मोनोलॉग का इस्तेमाल होता है, वहीं तेजेन्द्र शर्मा बाहरी दुनियां की कहानियां लिखते हैं जिनमें चरित्र होते हैं और डॉयलॉग का ख़ूबसूरत प्रयोग किया जाता है।
इस अवसर पर प्रख्यात आलोचक प्रो. नामवर सिंह ने कहा कि “मुर्दाफ़रोश लोग हर जमात में होते हैं। और पूंजीबाद में तो ऐसे शख़्सों की इंतेहा है। वे मज़हब बेच सकते हैं, रस्मो-रिवाज़ बेच सकते हैं। तेजेन्द्र शर्मा ने अपनी लाजवाब कहानी ‘क़ब्र का मुनाफ़ा’ में वैश्विक परिदृश्य में पूंजीवाद की इस प्रवृत्ति को यादगार कलात्मक अभिव्यक्ति दी है।” उन्होंने इस आयोजन के आत्मीय रुझान की चर्चा करते हुए कहा - यह बेहद आत्मीयतापूर्ण आयोजन है जहां लोग अपने प्रिय कथाकार से मिलने दूर दूर से आए हैं। यह समारोह प्यार मुहब्बत और ख़ुलूस की मिसाल है।”
इस पुस्तक का संपादन सुपरिचित कथाकार व रचना समय के संपादक हरि भटनागर और ब्रजनारायण शर्मा ने किया है।
इससे पूर्व नामवर सिंह, राजेन्द्र यादव और कृष्णा सोबती ने इस पुस्तक का लोकार्पण किया। राजेन्द्र यादव ने तेजेन्द्र शर्मा की कथावाचन शैली की सराहना करते हुए कहा कि तेजेन्द्र को आर्ट ऑफ़ नैरेशन की गहरी समझ है। तेजेन्द्र बख़ूबी समझते हैं कि स्थितियों को, व्यक्ति के अन्तर्द्ववों, सम्बन्धों की जटिलताओं को कैसे कहानियों में रूपान्तरित किया जाता है। प्रवासी लेखन के समूचे परिदृश्य में तेजेन्द्र की कहानियां परिपक्व दिमाग़ की कहानियां हैं।
हरि भटनागर ने पुस्तक में लिखी अपनी भूमिका का पाठ करते हुए बताया कि तेजेन्द्र आदमी की पीड़ा को रोकर और बिलख कर नहीं बल्कि हंस-हंस कर कहने के आदी है। उनकी कहानियां दो संस्कृतियों के संगम की कहानियां हैं।
वरिष्ठ कथाकार नूर ज़हीर ने पुस्तक में शामिल अमरीका की सुधा ओम ढींगरा का एक ख़त पढ़ते हुए कहा कि तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों का असर एक प्रबुद्ध पाठक पर कैसा हो सकता है, इस ख़त से साफ़ पता चलता है।
इससे पूर्व बीज वक्तव्य देते हुए अजय नावरिया ने कहा कि यह पुस्तक अभिनंदन ग्रन्थ नहीं है क्योंकि यहां अन्धी प्रशंसा की जगह तार्किक्ता है। मोहाविष्ट स्थिति की जगह मूल्यांकन है। अजय ने तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों के बहाने हिन्दी कथा साहित्य पर चर्चा करते हुए कहा कि इन कहानियों के मूल्यांकन के लिये हमे नई आलोचना प्रविधि की दरकार है।”
कार्यक्रम का संचालन अजित राय ने किया। समारोह में राजेन्द्र प्रसाद अकादमी के निदेशक बिमल प्रसाद, मैथिली भोजपुरी अकादमी के उपाध्यक्ष अनिल मिश्र, असग़र वजाहत, कन्हैया लाल नन्दन, गंगा प्रसाद विमल, लीलाधर मण्डलोई, प्रेम जनमेजय, प्रताप सहगल, मुंबई से सूरज प्रकाश, सुधीर मिश्रा, राकेश तिवारी, रूप सिंह चन्देल, सुभाष नीरव, अविनाश वाचस्पति, अजन्ता शर्मा, अनिल जोशी, अल्का सिन्हा, मरिया नगेशी (हंगरी), चंचल जैन (यू.के.), रंगकर्मी अनूप लाथर (कुरुक्षेत्र), शंभु गुप्त (अलवर), विजय शर्मा (जमशेदपुर), तेजेन्द्र शर्मा के परिवार के सदस्यों सहित भारी संख्या में साहित्य-रसिक श्रोता मौजूद थे।
रिपोर्ट: नूपुर अहूजा
प्रकाशकः हरि भटनागर, रचना समय प्रकाशन,
197 सेक्टर-'बी', सर्वधर्म कॉलोनी, कोलार रोड, भोपाल- 42
मोबाइलः 00-44-9424418567
पृष्ठ संख्याः 412, मूल्य (पेपरबैक - रु.400/- मात्र)*******************