Saturday 17 January 2009

प्राण शर्मा की दो ग़ज़लें



प्राण
शर्मा आजकल 'साहित्य शिल्पी' पर 'ग़ज़ल-स्थाई स्तंभ' के अंतर्गत हर सोमवार अपने लेखों द्वारा ग़ज़ल-संरचना सिखा रहे हैं। यदि किसी कारण उनके पिछले अंक ना पढ़ सके होतो नीचे दिए लिंक से उन्हें आसानी से पढ़ सकते हैं :-




उर्दू ग़ज़ल बनाम हिन्दी (खूबियां और ख़ामी) - २२ दिसंबर २००८

बहर और छंद - २९ दिसंबर २००८

शब्दों का वज़न और नए छंद-प्रयोग - ५ जनवरी २००९

मतला, मक़ता, क़ाफ़िया और रदीफ़ - १२ जनवरी २००९

भाषा की शुद्धता–१९ जनवरी २००९>

क्रिया के प्रयोग संबंधी दोष - २६ जनवरी २००९


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ग़ज़लः

प्यार, मुहब्बत,यारी दोस्ती वाली सारी बातें जी
अपनी कुछ भूलों से हम क्यों खोएं ये सौगातें जी


उजियालों के दिन हों चाहे हों अंधियारी रातें जी
तेरे मेरे बीच में कुछ तो हो प्यारी सी बातें जी


कल आई थी हर आंगन पर आहिस्ता ही आहिस्ता
राम करे के आज भी आएं वैसी ही बरसातें जी


जिसके घर की जो बातें हैं घर में उसी के रहने दो
मेरे घर में किसी के घर की क्यों हो कुछ भी बातें जी


रो के सहो या हंस के सहो, 'प्राण' पड़ेगी सहनी सब
कुछ किस्मत की, कुछ दुनिया की, कुछ घर की आघातें जी।

प्राण शर्मा
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ग़ज़ल :

नाम उसका तेरे लब पर आया, तेरे मुंह में घी शक्कर
तू ने कैसा जादू जगाया, तेरे मुंह में घी शक्कर


ख़ुश ख़बरी साजन की लाया, तेरे मुंह में घी शक्कर
तू जैसे रब बनकर आया, तेरे मुंह में घी शक्कर


तेरा बोल जिसे सुनने को कान तरसते थे मेरे
लगा कि तूने सुर को सजाया, तेरे मुंह में घी शक्कर


मेरे हमदर्द हमेशा तूने मेरे साजन का
मुझ तक सन्देशा पहुंचाया, तरे मुंह में घी शक्कर


क्यों ना ढिंढोरा पीटू जग में, तेरे मीठे बोलों से
मन को क्या क्या रास ना आया, तेरे मुंह में घी शक्कर
प्राण शर्मा
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21 comments:

राज भाटिय़ा said...

जिसके घर की जो बातें हैं घर में उसी के रहने दो
मेरे घर में किसी के घर की क्यों हो कुछ भी बातें जी
महावीर साहब जी बहुत सुंदर कविताऎ लाये आप , ओर बहुत सुंदर भाव लिये है.
प्राण साह्ब को हमारी तरफ़ से धन्यवाद.
आप का भी धन्यवाद इन्हे हम तक पहुचाने के लिये

राजीव रंजन प्रसाद said...

आदरणीय प्राण सर की गज़ले अनुभव देती हैं, गहरी होती हैं और शिल्प की सुदृढ बुनावट के कारण प्रवाह भरी होती हैं।

ये शेर विशेष पसंद आये:

कल आई थी हर आंगन पर आहिस्ता ही आहिस्ता
राम करे के आज भी आएं वैसी ही बरसातें जी

जिसके घर की जो बातें हैं घर में उसी के रहने दो
मेरे घर में किसी के घर की क्यों हो कुछ भी बातें जी
----
ख़ुश ख़बरी साजन की लाया, तेरे मुंह में घी शक्कर
तू जैसे रब बनकर आया, तेरे मुंह में घी शक्कर


तेरा बोल जिसे सुनने को कान तरसते थे मेरे
लगा कि तूने सुर को सजाया, तेरे मुंह में घी शक्कर

Kavita Vachaknavee said...

बधाई प्राण जी। सदा की तरह, जीवन व अनुभवजन्य दर्शन कहें या व्यावहारिकता को दर्शाती गज़ल कही। इस बार तो बहर भी बड़ी है और वर्णिक छन्द का-सा आभास देती है।
दूसरी गज़ल में भी आपने लोक के कहन-सा काफ़िया चुना है।
महावीर जी! आपको धन्यवाद इन्हें हम तक पहुँचाने के लिए। आपसे औपचारिक मिलना ही हो पाया था लन्दन के भारतभवन में भारतीय उच्चायोग के कार्यक्रम में। आपको संभवत: स्मरण हो। इंडियन हाई कमीशन से राकेश दुबे जी अब भारत आ गए हैं। गत सप्ताह ८,९ व १० को वे नगर आए थे पार्लियामेंट्री कमेटी में तो ८ को हमारे आवास पर भी आए। आप सभी को हमने खूब याद किया। अगस्त से पुन:लन्दन ही रहना होने वाला है,.....शेष कल किसने देखा !

Udan Tashtari said...

जिसके घर की जो बातें हैं घर में उसी के रहने दो
मेरे घर में किसी के घर की क्यों हो कुछ भी बातें जी


--बहुत उम्दा. आनन्द आ गया. आपको पढ़ना हमेशा सुखद और सीख देने वाला होता है. दूसरी गज़ल में रदीफ के तौर पर मुहावरे का उपयोग-नायाब लगा. बधाई और महावीर जी का आभार.

seema gupta said...

pyar mohbat yari dosti wali batey ji.. Kitne sadgi or sundarta se gazlo mey shabdo ka prvah hai, jindgi ke choti choti magar anmol bato or khushiyo ko darshati dono gazle lajwab hain. Pran ji ko padhna hmesha hi ek shukhad anubhav rha hai, jis trh pran ji sbka margdarshan or protsahan krte hai vo unke vyktitv ke khas pehchan hai. Adrniy Mahavir ji in gazlon se rubru krane ka apka bhut bhut abhar. Regards

अविनाश वाचस्पति said...

ग़ज़लद्वय का स्‍वाद मन में बस गया जी
ग़ज़क का स्‍वाद जिव्‍हा पर रच गया जी

हौले हौले से मन को मीठा कर गया जी
मन भी तर मानस भी तर कर गया जी

योगेन्द्र मौदगिल said...

दोनों ही ग़ज़लें बेहतरीन हैं दादा... क्या बात है... और इस शानदार प्रस्तुति के लिये महावीर जी को साधुवाद.

रूपसिंह चन्देल said...

प्राण जी की ग़जलें एक वरिष्ठ ग़जलकार के रूप में उनकी प्रतिष्ठा को प्रमाणित करती हैं. हिन्दुस्तान से बाहर बैठकर भी वह अपनी जमीन से जुड़े हुए हैं और हिन्दी ग़जल विधा को समृद्ध कर रहे हैं . बड़ी बात है. आप दोनों को बधाई.

चन्देल

गौतम राजऋषि said...

आब प्राण साब की गज़लों पर कुछ कहना तो...

अनूठी गज़लें दोनों की दोनों.घर-आंगन की सहज बातें और इतनी आसानी से बहर पे बांधी हुई और खास कर दूसरे गज़ल का एकदम अजूबा-सा रदीफ़
कि पढ़कर सचमुच मुँह में घी-शक्कर घुलते हुये.

नमन है प्राण साब और आदरणीय महावीर जी का कोटिशः धन्यवाद !!!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आदरणीय महावीर जी की साहित्यिक प्रस्तुतियाँ अब हिन्दी ब्लोग जगत के लिये अविस्मरणीय धरोहर सी बनती जा रहीँ हैँ
आज ही देखिये,
श्री प्राण शर्मा जी की २ गज़लेँ , इतनी सुँदर, जीवन का यथार्थ और सच बुने हुए, सुघड शिल्प लिये, सशक्त , कितनी मनमोहक
कि, वाकई मुँह मेँ घी शक्कर की तरह मिठास घोल देतीँ हैँ
- बहुत आनँद आया :)
प्राण भाई तो इसी तरह हमेँ एक से बढकर एक गज़लेँ पढवातेँ रहेँ और आ. महावीर जी की सृजनशीलता , जारी रहे !
बधाई व शुभकामना सहित,
स स्नेह
- लावण्या

Reetesh Gupta said...

रो के सहो या हंस के सहो, ऐ 'प्राण' पड़ेगी सहनी सब
कुछ किस्मत की, कुछ दुनिया की, कुछ घर की आघातें जी।

बहुत खूब...बढ़िया गज़ल ..बधाई

vijay kumar sappatti said...

aadarneeya Mahaveer ji aur Pran ji , aap dono ko mera pranaam,

main mahaveer ji ko dhanyawad deta hoon ki unhone itni acchi gazlon seruburu karwaaya ..

Praan ji ,

aap ko maine guru maan liya hai .. kya kahun .. aapse seekh raha hoon..

sacchi kahun... maza aa gaya ..

प्यार, मुहब्बत,यारी दोस्ती वाली सारी बातें जी
अपनी कुछ भूलों से हम क्यों खोएं ये सौगातें जी

ऐ मेरे हमदर्द हमेशा तूने मेरे साजन का
मुझ तक सन्देशा पहुंचाया, तरे मुंह में घी शक्कर

these two shers are ultimate.. aur ek baat doosri gazal thodi meethi ho gayi ... ye naya andaaz bhi pasand aaya ..

aapka
vijay

vijay kumar sappatti said...

aadarneeya Mahaveer ji aur Pran ji , aap dono ko mera pranaam,

main mahaveer ji ko dhanyawad deta hoon ki unhone itni acchi gazlon seruburu karwaaya ..

Praan ji ,

aap ko maine guru maan liya hai .. kya kahun .. aapse seekh raha hoon..

sacchi kahun... maza aa gaya ..

प्यार, मुहब्बत,यारी दोस्ती वाली सारी बातें जी
अपनी कुछ भूलों से हम क्यों खोएं ये सौगातें जी

ऐ मेरे हमदर्द हमेशा तूने मेरे साजन का
मुझ तक सन्देशा पहुंचाया, तरे मुंह में घी शक्कर

these two shers are ultimate.. aur ek baat doosri gazal thodi meethi ho gayi ... ye naya andaaz bhi pasand aaya ..

aapka
vijay

vijay kumar sappatti said...
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महावीर said...

वस्तु और ग़ज़ल के हर पहलू से सुंदर मुकम्मल ग़ज़लें हैं। भाषा में कशिश है और 'तेरे मुंह में घी शक्कर' के समावेश से और पहली ग़ज़ल में भी 'जी' के रदीफ़ से समीप्य, आत्मीयता और अपनेपन का सा अनुभव होता है जैसे प्राण जी
सामने बैठे बातें कर रहे हों।
........ बातें जी,सौगोतें जी आदि।

ख़ुश ख़बरी साजन की लाया, तेरे मुंह में घी शक्कर
तू जैसे रब बनकर आया, तेरे मुंह में घी शक्कर
बधाई।

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...
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द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...
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द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

आदरणीय प्राण शर्मा जी

इतनी प्यारी ग़ज़लें कहने के लिए
और
आदरणीय महावीर शर्मा जी
इतनी दिलकश ग़ज़लें पढ़वाने के लिए

आप दोनों के भी
मुँह में घी शक्कर.
हमारे मुँह में ,दिलो दिमाग में तो इस घी शक्कर का ज़ायका हमेशा के लिए बस गया है.


सादर

द्विजेन्द्र द्विज

Vinay said...

अब हम क्या कहें बड़े-बड़े महारथी जब खुल के तारीफ़ कर चुके, सो बधाई दे रहें हैं, क़ुबूल करें


---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम

कडुवासच said...

जिसके घर की जो बातें हैं घर में उसी के रहने दो
मेरे घर में किसी के घर की क्यों हो कुछ भी बातें जी
... सुन्दर गजलें हैं।

सतपाल ख़याल said...

ख़ुश ख़बरी साजन की लाया, तेरे मुंह में घी शक्कर
mahavir ji aapke munH me bhi ghee shakkar..itne meethee ghazaloN ke liye.Pran ji ko saadar pranam.
khyaal