पूर्णिमा वर्मन
सरसों के रंग सा
महुए की गंध सा
एक गीत और कहो
मौसमी वसंत का।
होठों पर आने दो रुके हुए बोल
रंगों में बसने दो याद के हिंदोल
अलकों में झरने दो गहराती शाम
झील में पिघलने दो प्यार के पैगाम
अपनों के संग सा
बहती उमंग सा
एक गीत और कहो
मौसमी वसंत का।
मलयानिल झोंकों में डूबते दलान
केसरिया होने दो बाँह के सिवान
अंगों में खिलने दो टेसू के फूल
साँसों तक बहने दो रेशमी दुकूल
तितली के रंग सा
उड़ती पतंग सा
एक गीत और कहो
मौसमी वसंत का।
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बसंत हंसता आया
पुष्पा भार्गव – लंदन
मौसम की नई उमंगों में
बल खाती मलय बयार चली
मुस्कानों की रंगरलियों में
नन्हें फूलों की कली खिली
सौंदर्य अनूठा बिखरा कर
हर राही का मन भरमाया
अगला बसंत हंसता आया।
सुरभित समीर के झोंकों में
हरेक बगिया झूली, महकी
मधु रितु के मद में डूबा मन
बातें करता बहकी बहकी
मतवाला बन, गुन गुन करता
भौंरा फूलों पर मंडराया
अगला बसंत हंसता आया।
पीले परिधानों में छुप कर
सरसों की खेती लहराई
फूलों से लिपटे नव पल्लव
जब मधुर प्रेम की रित आई
उपवन में कूक उठी कोयल
उसने पंचम सुर में गाया
अगला बसंत हंसता आया
पुष्पा भार्गव – लंदन
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लावण्या शाह - यू.एस.ए
कोकिला ओ कोकिला
ऋतु वसंत ने पहने गहने-
झूम रहीं वल्लरियाँ।
मधु गंध उड़ रही चहुँ दिशि
बहे मीठे जल की निर्झरियाँ
आ गया आ गया वसंत
कूक उठी है कोकिला।
शतदल-शतदल खिली कमलिनी
मधुकर से है गुंजित नलिनी
केसर से ले अंगराग
नाच रही चंचल तितली
रति अनंग का गीत प्रस्फुटित
बोल उठी है कोकिला।
झूल रहीं बाला उपवन में
बजती पग में किंकिणियाँ
चपल चाल से मृदुल ताल से
हँसती खिलती हैं कलियाँ
नाच रहा जग नाच रहा मन
झूम उठी है कोकिला।
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अमानत लखनवी
है जलवा-ए-तन से दर-ओ-दीवार बसंती
पोशाक जो पहने है मेरा यार बसंती
गैंदा है खिला बाग़ में मैदान में सरसों
सहरा वो बसंती है ये गुलज़ार बसंती
गैंदों के दरख़तों में नुमाया नहीं गेंदे
हर शाख़ सर पे है ये दस्तार बसंती
मुंह ज़र्द दुप्पट्टे के आंचल में ना छुपाओ
हो जाए ना रंग-ए-गुल-ए-रुख़सार बसंती
फिरती है मेरे शौक़ पे रंग की पोशाक
ऊदी, अगरी चंपई गुलनार बसंती
है लुत्फ़ हसीनों की दो रंगी का 'अमानत'
दो चार गुलाबी हों तो दो चार बसंती
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नज़ीर लुधियानवी की नज़्मः
देखो बसंत लाई है गंगा पे क्या बहार
सरसों के फूल हो गए हर सिम्त आशकार
है कितनी खुशगवार हवा कोहसार की
हिन्दोस्ताँ में है यही इक रुत बहार की
हिन्दोस्तान का ये पुराना शिआर है
सदियों से अपने देस की ये यादगार है
आओ वतन का हक़्क़े-मुहब्बत अदा करें
हम आंसुओं से प्रेम का बूटा हरा करें
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प्राण शर्मा- कवेन्ट्री, यू.के.
होते ही प्रातःकाल आजाती हैं तितलियां
मधुबन में खूब धूम मचाती हैं तितलियां
फूलों से खेलती हैं कभी पत्तियों के संग
कैसा अनोखा खेल दिखाती है तितलियां
बच्चे, जवान, बूढ़े नहीं थकते देख कर
किस सादगी से सब को लुभाती हैं तितलियां
संदरता की ये देवियां परियों से कम नहीं
मधुबन में स्वर्ग लोक रचाती हैं तितलियां
उड़ती हैं किस कमाल से फूलों के आर पार
दीवान हर किसी को बनाती हैं तितलियां
वैसा कहां है जादू परिंदों का राम जी
हर ओर जैसा जादू जगाती है तितलियां
इनके ही दम से 'प्राण' हैं फूलों की रौनकें
फूलों को चार चांद लगाती हैं तितलियां
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कलियों को बनते सुमन मधुमास में
देखिए कुदरत का फन मधुमास में
ख़ुशबुएँ ही ख़ुशबुएँ हैं हर तरफ़
क्यों ना इतराए चमन मधुमास में
धरती दुल्हन लगती है हर एक पल
दूल्हा लगता है गगन मधुमास में
छेड़खानी करता है हर फूल से
कितना नटखट है पवन मधुमास में
कब भला महसूस होती है थकन
चुस्त हर एक का है मन मधुमास में
क्यों ना मोहे हर किसी को आप ही
प्राण धरती की फबन मधुमास में
प्राण शर्मा - कवेन्ट्री, यू.के.
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आते बसंत को जब देखा, हो विकसित कवि का मन बोला
आई उपवन में हरियाली, सुमनों ने दृग अंचल खोला
मुस्का कर देखा ऊपर को, जहां अंशुमालि थे घूम रहे
अपनी आल्हादित किरणों से, सुमनों के मुख को चूम रहे
मधुमास में उनकी किरणों से पल्लव श्रृंगार बनाते हैं।
कवि की वीणा के सुप्त तार भी वसंत राग अब गाते हैं।
महावीर शर्मा - लन्दन
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26 comments:
आदरणीय महावीर जी ,
सादर नमस्कार -
बसँत की अल्हडता,
मादकता, सुगँध
और फूल तितलियाँ
नदी, कोकिला,
सारे प्राकृतिक तत्त्व समेटे
यह बसँत का स्वागत
मन को बहुत भाया
सविनय, स -स्नेह,
- लावण्या
सादर नमन, आपके ब्लाग का लिंक माननिया लावण्या जी ने अभी भेजा.
सोचता हूं अगर वो नही भेजती तो आज बसन्तोत्सव के दिन इतनी मन को आल्ल्हादित करने वाली रचनाओं से वंचित रहता.
बहुत सुंदर रचनाएं. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
इन सुंदर रचनाओं को पढ़ ह्रदय आनंदित हो उठा. आपको नमन. आभार..
sari rachanaye bahut sundar hai jaise khud basant ho,waah
aadarniya mahaveer ji ,
aapne itni saari rachnao ko ek saath prastuth karke maano , basant ritu ko hamaare kareeb la diya ho.. aur ye sach bhi hai .. rachnao ko padhkar , hum prakruti ke saundarya men kho jaaten hai ..
aapka aabhaar.
aur main poornima varman ji , pushpa bhargav ji , lawanya ji , pran ji,najeer ji, amanat ji ko badhai deta hoon ki unhone itni sundar rachnaayen likhi , un sabhi ke lekhan ko mera salaam..
aur anth men di gayi aapki pankatiyaan " कवि की वीणा के सुप्त तार भी वसंत राग अब गाते हैं। " jaise kaha rahe ho ki ,is basant men nahi likha to kabh likhonge.....
wah ji wah
aapka dhanywad..
aapka
vijay
aadarniya mahaveer ji ,
mere blog par shabdyudh : aatankwad ke viruddh likha hai ..
aapke bahumulay comments ki pratiksha hai ..
aapka
vijay
बसंत कई मोहक रंग लिए मन आँगन में उतर गया........
हर रचना फूलों की टोकरी-सी मोहक लगी
तितली के रंग सा
उड़ती पतंग सा
एक गीत और कहो
मौसमी वसंत का।
purnima ji ki kavita ki jitnee taareef karuN utnee kam hai, kavita me khas andaz aur ras bharna bakhoobe janti hain purnima ji, aisee sundar kavita ke liye dhanyavad.
इनके ही दम से 'प्राण' हैं फूलों की रौनकें
फूलों को चार चांद लगाती हैं तितलियां
pran ji ki ghazal bhi khoob hai.
har kavita lajwab hai. mahavir ji sach me bahut sundar kavitayen hain.
saadar
AADARNIY MAHAVIR JEE,
BASANT PANCHMI KE SHUBH
AVSAR PAR AAP AUR SABHEEKO BADHAAEE.IS SUNEHREE RITU MEIN
RANG-BARANGEE KAVITAYEN PADHKAR MUN
BHEE BASANTEE HO GAYAA HAI.
बसंत के आगमन पर इससे बढ़िया स्वागत और क्या हो सकता था....
आपके आभारी हैं हम सब महावीर जी
महावीर जी चरणस्पर्श, हर कविता बहुत सुन्दर है, हृदय के बहुत समीप! अपना आशीर्वाद मुझपर बनाये रखें!
महावीर जी बहुत सुंदर इतनी सर्दी मे भी आप ने बसंत के आगमन की याद दिला कर भारत के त्योहारो की याद ताजा कर दी, धन्यवाद इन सुंदर कविताओ के लिये
वसंत पर यह गुलदस्ता बहुत अच्छा लगा। इस प्रस्तुति का आभार।
***राजीव रंजन प्रसाद
मान्यवर शर्मा जी,
वंसत पर पूर्णिमा वर्मन की कविता मनोमुग्धकारी है. पुष्पा भार्गव और लावण्या शाह की कविताएं भी प्रभावकारी हैं.
प्राण शर्मा जी की ’तितली’ (मेरे अनुसार इसका शीर्षक तितलियां होना चाहिए था) उल्लेखनीय है.
सभी को बधाई.
रूपसिंह चन्देल
आदरणीय रूपसिंह चन्देल जी
यह मेरी ग़लती थी कि टाईप करते हुए प्राण शर्मा जी की ग़ज़ल का शीर्षक 'तितिलियां' न लिख कर 'तितली' लिख दिया जिसके लिए मैं प्राण शर्मा जी और पाठकों से क्षमा चाहता हूं।
चन्देल जी, इस ग़लती की ओर ध्यान दिलाने के लिए मैं आपका आभारी हूं। शीर्षक ठीक कर दिया गया है।
सब ही टिप्पणीकारों को हार्दिक धन्यवाद।
महावीर शर्मा
Purnima varman ji ki kavita bahut achhi lagi
Lavayna ji pushpa bhargav ji ki kavita bhi bhaut man bhavan rahi
मुंह ज़र्द दुप्पट्टे के आंचल में ना छुपाओ
हो जाए ना रंग-ए-गुल-ए-रुख़सार बसंती
Amanat ji ka ye sher bahut bahut pasand aaya
puri gazal hi bahut achhi lagi
है कितनी खुशगवार हवा कोहसार की
हिन्दोस्ताँ में है यही इक रुत बहार की
bhaut achhi nazm
Pran ji ki gazal titliyan bahut achhi lagi
वैसा कहां है जादू परिंदों का राम जी
हर ओर जैसा जादू जगाती है तितलियां
khas kar ye sher bahut achha laga
Basant panchmi par hardik subhkamanye
आओ वतन का हक़्क़े-मुहब्बत अदा करें
हम आंसुओं से प्रेम का बूटा हरा करें
बेहद खूबसूरत सा खयाल, साथ ही आप सब का ये वासंती तोहफ़ा , दिल गुलेगुलज़ार हो गया.
धनयवाद.
बसन्तोत्सव का तोहफ़ा..मनोमुग्धकारी प्रस्तुति
आप सादर आमंत्रित हैं, आनन्द बक्षी की गीत जीवनी का दूसरा भाग पढ़ें और अपनी राय दें!
दूसरा भाग | पहला भाग
महावीर जी
नमस्कार, खिलते बसंत के इतने मोहक रूप में बाँधने वाली इतनी खूबसूरत कविताएँ वो भी एक साथ................सार्थक हो गया ये बसंत. आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आप मेरे ब्लॉग पर आए और मुझे इतने महकते ब्लॉग से परिचित होने का मौका दिया. एक से बढ़ कर एक कवितायें जैसे अलग अलग रंग की फूल एक ही उपवन में खिले हों.
मुझे आशा है आप का स्नेह बना रहेगा.
अरे वाह, यहाँ तो पूरी बसंत रितु ही विराज मान है। इतनी प्यारी रचनाएं पढवाने काहार्दिक आभार।
आदरणीय सर, वसंत पंचमी के अवसर पर एक से एक गीतों का संग्रह प्रस्तुत करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार। बहुत आनन्द्पूर्ण आशीर्वाद पाया आज आपसे।
aapne apni kavitaao se fiza mein ek rang naya ghol diya,
shabdo ke madhyam se aapna pinjada sa khol diya...
- Kajal
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http://merastitva.blogspot.com
Vasant ka khubsurat agaz hai...!!
bahut sundar post lag, dil khush kar diya aapne
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