Monday, 27 April 2009

यू .के. से प्राण शर्मा की दो ग़ज़लें


आगामी अंक: ३ मई २००९
लुधियाना (पंजाब), भारत से 'मुफ़लिस' साहब की एक ग़ज़ल










ग़ज़ल
:

ज़रा ये सोच मेरे दोस्त दुश्मनी क्या है
दिलों में फूट जो डाले वो दोस्ती क्या है

हज़ार बार ही उलझा हूँ इसके बारे में
कोई तो मुझको बताये कि जिन्दगी क्या है


खुदा की बंदगी करना चलो ज़रूरी सही
मगर इंसान की ऐ दोस्त बंदगी क्या है


किसी अमीर से पूछा तो तुमने क्या पूछा
किसी गरीब से पूछो कि जिंदगी क्या है


नज़र में आदमी अपनी नवाब जैसा सही
नज़र में दूसरे की "प्राण" आदमी क्या है

प्राण शर्मा

*********************

ग़ज़ल:

यारों से मुंह को मोड़ना कुछ तो ख़याल कर
बरसों की यारी तोड़ना कुछ तो ख़याल कर


अपनों से गांठ तोड़ना यूं ही सही मगर
गैरों से गांठ जोड़ना कुछ तो ख़याल कर


जग का ख़याल कर भले ही रात दिन मगर
घर का ख़याल छोड़ना कुछ तो ख़याल कर


उनके भी दिल धड़कते हैं दिल की तरह तेरे
नित डालियां झंझोड़ना कुछ तो ख़याल कर


माना कि ज़िन्दगी से परेशान है तू पर
पत्थर से सर को फोड़ना कुछ तो ख़याल कर


जो कर गए हैं काम जहां में बड़े बड़े
नाम अपना उन से जोड़ना कुछ तो ख़याल कर


हाथों में तेरा हाथ लिया है किसी ने 'प्राण'
झटका के हाथ दौड़ना कुछ तो ख़याल कर

प्राण शर्मा
******************

28 comments:

रूपसिंह चन्देल said...

आदरणीय प्राण जी,

’किसी गरीब से पूछो कि ज़िन्दगी क्या है’

मार्मिक है...

जिन्दगी के अर्थ तलाशती दोनों गज़लें उल्लेखनीय हैं. महावीर जी और आपको बधाई.

रूपसिंह चन्देल

Divya Narmada said...

प्राण की ग़ज़लों में, दर्द है जहान का.
मेरा नहीं, बयान है हिन्दोस्तान का.

Ahmad Ali Barqi Azmi said...

प्राण शर्मा की ग़ज़लेँ हैँ बेहद हसीँ
उनका तर्ज़े बयाँ है बहुत दिल नशीँ

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

रश्मि प्रभा... said...

दोनों ही ग़ज़लें बहुत अच्छी हैं.....

हरकीरत ' हीर' said...

हज़ार बार ही उलझा हूँ इसके बारे में
कोई तो मुझको बताये कि जिन्दगी क्या है ...

वाह......!!!

किसी अमीर से पूछा तो तुमने क्या पूछा
किसी गरीब से पूछो कि जिंदगी क्या है

वाह...वाह...बहुत खूऊऊऊउब .......!!

"अर्श" said...

गुरु देव जी को मेरा सादर प्रणाम,
गुरु देव आपने ग़ज़ल पितामह की ग़ज़लों को पढ़वाकर जैसे उपकार कर दिया है उनके गज़लागोई के क्या कहने पहले ग़ज़ल का ये शे'र क्या खूबसूरती से बयाँ करी गयी है ...

किसी अमीर से पूछा तो तुमने क्या पूछा
किसी गरीब से पूछो कि जिंदगी क्या है

और दुसरे ग़ज़ल के ये शे'र ... उफ्फ्फ ...

जग का ख़याल कर भले ही रात दिन मगर
घर का ख़याल छोड़ना कुछ तो ख़याल कर

मुझ जैसे अदना अगर कुछ कहे तो पाप कर बैठेगा ...
आपका आभार

अर्श

बलराम अग्रवाल said...

वादा था डमी होंगे सभी शेर यां मगर
हर शेर में है प्राण कुछ तो खयाल कर

प्राणजी सिद्ध शायर हैं और उनकी ये दोनों ही ग़ज़लें लाजवाब हैं। आपको व प्राणजी को बहुत-बहुत बधाई!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आदरणीय महावीर जी का उदार ह्र्दय हमारे लिये
साहित्यकारोँ की नित नयी
रचनाओँ को प्रस्तुत कर
हमेँ सुकुन दीलाता है
आज "प्राण भाई साहब की
बेहतरीन गज़लोँ का भी ऐसा ही असर तारी है ..
शुक्रिया आप दोनोँ का ...
स स्नेह,
- लावण्या

गौतम राजऋषि said...

शुक्रिया महावीर जी प्राण साब की इन दो अद्‍भुत गज़लों के लिये

वीनस केसरी said...

दोनों गजल के तेवर अच्छे लगे

वीनस केसरी

Dr. Sudha Om Dhingra said...

प्राण भाई साहिब की ग़ज़लें हमेशा की तरह अपना नया रंग रूप लिए हैं.
किसी गरीब से पूछो कि जिंदगी क्या है- बहुत खूब.
दर्द से भरपूर दोनों ग़ज़लें जीवन के प्रति नई सोच, नए अर्थ तलाशती और हम लोगों को नई परिभाषाएं सिखलाती....
आभारी हूँ महावीर जी की जो समय -समय पर प्राण भाई की ग़ज़लें पढ़वा कर हमें समृद्ध कर देतें हैं.

Sushil Kumar said...

आदरणीय प्राण साहब की गजलों की तासीर और तितिक्षा ही अलग है, दिल और दिमाग पर गहरे असर डालती है। मानवीय अंतर्संबंधों मे आज टूटन और बिखराव गोचर हो रहा है,उसका इतना जीवंत चित्रण मैं बिरला ही गजलों में पाता हूँ। इनकी भाषा इतनी संयत-सहज और भाव इतने संश्लिष्ट होते हैं कि वह अपने में कई अर्थों को पूरी सघनता से सहेजने-समटने में कोई कोर-कसर नहीं रखती। इसे इनके दीर्ध काल-खंड के अपने गजल लेखन-अनुभव की फलश्रुति ही कहूँगा!दोनों ही गजलें जन-सामान्य के सुख-दु:ख के इन्द्रियबोध को पाठक के समक्ष रखकर अपनी प्रभान्विति छोड़ती है। -
सुशील कुमार ,
अक्षर जब शब्द बनते हैं

Vinay said...

अ हा लाजवाब रचनाएँ, दिल बाग़-बाग़ हो गया!

---
तख़लीक़-ए-नज़र

seema gupta said...

हज़ार बार ही उलझा हूँ इसके बारे में
कोई तो मुझको बताये कि जिन्दगी क्या है

माना कि ज़िन्दगी से परेशान है तू पर
पत्थर से सर को फोड़ना कुछ तो ख़याल कर
"आदरणीय प्राण जी की गज़लों से जो जिन्दगी और रिश्तो की धार बहती है वो अपने साथ डूबा ले जाती है.....जिन्दगी को तलाशती ये गजले...सोचने पर मजबूर कर देती हैं...."

regards

kavi kulwant said...

प्राण जी की गजलें हमेशा कि तरहा उम्दा...

ashok andrey said...

priya bhai pran jee aapki gajlen padin man ko inhone gehre tak chhoo liya inke madhyam se aap aam admi ke dard ko jis tarah se aapni gajlon main piro dete hain veh hamare man ko jhinjhod detin hain tatha sochne ko majboor karti hain
kisi garib se poochho ki jindagi kya hai tatha
hathon me tera hath liye hai kisi ne pran
jhatka ke hath dhodna kuchh to khayal kar
in gajlon me satya soundarya ban kar ubhra hai jiske liye me aap ko tahe dil se badhai dete hoon

कडुवासच said...

... प्रसंशनीय व प्रभावशाली गजलें हैं !!!!!

Gautam Sachdev said...

यह सादगी यह ताज़गी उनके बयान मे
तारे बिखेरते है वो आसमान मे
Gautam Sachdev, London

vijay kumar sappatti said...

aadarniy pran ji aur mahaveer ji , aap dono ko mera pranaam .

pran ji ki dono gazalo ki main kya tareef karun . zindagi se jodti hui aur apne aap me utsaah badhati hui..

किसी अमीर से पूछा तो तुमने क्या पूछा
किसी गरीब से पूछो कि जिंदगी क्या है

जग का ख़याल कर भले ही रात दिन मगर
घर का ख़याल छोड़ना कुछ तो ख़याल कर

mujhe nahi lagta hai ki mere paas koi shabd hai ,inki tareef ke liye .. they are ultimate and timeless jwels ....

aapko bahut badhai ..

vijay

महावीर said...

श्री जय प्रकाश मानस, सम्पादक, सृजनगाथा ने ई मेल द्वारा 'प्राण शर्मा' जी के लिए यह सन्देश दिया है:

"धन्यवाद । ग़ज़लकार को मेरी बधाईयाँ कहें । सादर"

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

हर एक शेर खूबसूरत और लाजवाब है.
प्राण शर्मा की ग़ज़लें पढ्ना जीवन के व्यापक अर्थों से एकदम रूबरू होने जैसा है.
सारी की सारी पहली ग़ज़ल बहुत पसन्द आई और
दूसरी ग़ज़ल का यह शेर बहुत ज़्यादा ख़ास लगा.

जो कर गए हैं काम जहां में बड़े बड़े
नाम अपना उन से जोड़ना कुछ तो ख़याल कर

बहुत- बहुत बधाई,
सादर
द्विज

महावीर said...

नवभारत टाइम्स के भुवेन्द्र त्यागी की ई मेल द्वारा टिप्पणी:

आपकी ये दोनों ग़ज़लें बेहतरीन है। १९५८ की भी ये अभी अभी तोड़े फूल की मानिन्द ताज़ा हैं।
शेष फिर
आपका
भुवेन्द्र त्यागी
नवभारत टाइम्स
मुम्बई

श्रद्धा जैन said...

जो कर गए हैं काम जहां में बड़े बड़े
नाम अपना उन से जोड़ना कुछ तो ख़याल कर


wah kya baat hai kamaal ka sher kaha hai

Aadarneey pran ji ki gazal padhi bahut hi achhi lagi

Dr. Mahendra Bhatnagar said...

ग़ज़ल-शिल्पी प्राणनाथ जी की ग़ज़लें व्यक्‍ति के मनोविज्ञान को प्रतिबिम्बित करती हैं।
शायर ने अपने अनुभवों को परस्पर विरोधी तत्त्वों के माध्यम से अभिव्यक्‍त कर, अपने कथ्य को रोचक और प्रभावी बनाया है। यथा — दुश्मनी-दोस्ती, ख़ुदा-इंसान, अमीर-ग़रीब, ख़ुद-अन्य, जग-घर, तोड़ना-जोड़ना आदि। विलोम-प्रयोग उनकी शायरी के प्राण हैं।
* महेंद्रभटनागर
www.professormahendrabhatnagar.blogspot.com

महावीर said...

देवमणि पाण्डेय जी की ईमेल द्वारा भेजी हुई टिपण्णी:

2009/5/1 Devmani Pandey devmanipandey@gmail.com

आदरणीय प्राणजी, नमस्कार । दोनों ग़ज़लें बहुत अच्छी लगीं । ख़ासतौर से ये शेर तो लाजवाब हैं -
हज़ार बार ही उलझा हूँ इसके बारे में
कोई तो मुझको बताये कि जिन्दगी क्या है

किसी अमीर से पूछा तो तुमने क्या पूछा
किसी गरीब से पूछो कि जिंदगी क्या है
नज़र में आदमी अपनी नवाब जैसा सही
नज़र में दूसरे की "प्राण" आदमी क्या है

दिव्याजी की कविताओं पर आपकी टिप्पणी भी अच्छी लगी। किसी का शेर है-

वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से
मैं एतबार न करता तो और क्या करता

महावीर said...
This comment has been removed by the author.
महावीर said...

प्राण शर्मा जी की ग़ज़लों की सदैव ही प्रतीक्षा रहती है। हर बार आपकी ग़ज़लों से कुछ सीखने को मिलता है।
दोनों ही ग़ज़लें भावों, शब्द-चयन, प्रवाह और हर प्रकार से उच्च कोटि की ग़ज़ल है।
श्री रूप सिंह चन्देल, श्री आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी,श्री सुशील कुमार, श्री जय प्रकाश मानस,श्री अशोक आंद्रेय, डा. गौतम सचदेवा, डा.महेन्द्र भटनाहर,श्री देवमणि पांडेय, श्री बलराम अग्रवाल, नवभारत टाइम्स के श्री भुवेन्द्र त्यागी, लावण्या जी, श्री द्विजेन्द्र 'द्विज', रश्मि प्रभा जी, हरकीरत हक़ीर,श्री 'अर्श', श्री गौतम राजरिशी, डा. सुधा ओम ढींगरा,श्री विनय, सीमा गुप्ता जी,
कवि कुलवंत,श्री श्याम 'उदय', श्री विजय कुमार सपत्ति, श्रद्धा जैन एवं सभी पाठकों को हौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक धन्यवाद।
श्री प्राण शर्मा को अपनी ग़ज़लों के अमूल्य ख़ज़ाने से चुने हुए नगीनों से 'महावीर' ब्लाग को सजाने के लिए मैं आभारी हूं।
महावीर शर्मा

अविनाश वाचस्पति said...

दुश्‍मनी न हो
तो
समझ लो
दोस्‍ती का पता नहीं मिलता

बिना मौत जिंदगी का एक
सूखा पत्‍ता भी न खिलता

प्राण जी को उनके नेक विचार के लिए बधाई