Saturday 23 May 2009

यू. के. से वरिष्ठ ग़ज़लकार, कहानीकार और समीक्षक 'प्राण शर्मा' की 'दो ग़ज़लें - दो रंग'


ग़ज़ल
ओढ़ने के वास्ते गर रेशमी चादर नहीं
क्या हुआ दोस्तो गर मख़मली बिस्तर नहीं

रहने को बंगला नहीं, कोठी नहीं तो क्या हुआ
इतना क्या कम है कि मेरे यार हम बेघर नहीं

रास आएगी बहुत ये इक न इक दिन आपको
ज़िन्दगी है ज़िन्दगी कोई सड़ी गाजर नहीं

देखते ही पंख वाले पंछी तो उड़ जाएंगे
वे बिचारे क्या उड़ें जिन पंछियों के पर नहीं

यूं तो इंसानों में रिश्ते हैं सभी सुंदर बड़े
कोई रिश्ता माँ के रिश्ते से मगर बढ़ कर नहीं

'जी' भी कहना छोड़ दे उनको सभी के सामने
गर बुजुर्गों के लिए मन में तेरे आदर नहीं

बाँध कर सर पर कफ़न घर से चला था 'प्राण' तू
चंद ईंटें रास्ते में देखकर अब डर नहीं
प्राण शर्मा
**********************

ग़ज़ल
शिक्षा दीक्षा और पंडिताई क्या देती
हम को मूरख की अगवाई क्या देती

नाहक ढूंढ रहा था मैं चप्पा चप्पा
अंधियारे में सूई दिखाई क्या देती

उसके नीचे मैं क्या बैठता ऐ यारो
सूखी डाल मुझे परछाई क्या देती

क्या क्या मैंने पाया नहीं तन्हाई में
कहने को मुझ को तन्हाई क्या देती

मेरी खुशियां मेरा साथ निबाह न सकीं
यारो मुझको खुशी पराई क्या देती

लिखने को लिख देता पोथे पर पोथा
मुझको लेकिन लेख लिखाई क्या देती

भाषण का था शोर शराबा 'प्राण' बड़ा
इक बुढ़िया की चीख़ सुनाई क्या देती
प्राण शर्मा
************************



अगला अंक: ३० मई २००९
यू.के. से पुष्पा भार्गव की दो कविताएं

31 comments:

रवि शर्मा एक जागरूक पत्रकार said...
This comment has been removed by the author.
कडुवासच said...

मेरी खुशियां मेरा साथ निबाह न सकीं
यारो मुझको खुशी पराई क्या देती
... अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति ... दूसरी गजल के सभी शेर प्रभावशाली व प्रसंशनीय हैं ... शुक्रिया ... बधाईंयाँ।

Prakash Badal said...

वाह महावीर जी दूसरों को पढ़वाना किसी किसी के ही बस की बात है। प्राण जी की को बढ़िया ग़ज़लें।

vijay kumar sappatti said...

aadarniya mahaveer ji aur aadarniya pran ji , namaskar...

main to hamesha se hi pran shaheb ka follower hoon . unki gazalen sirf gazalen hi nahi hoti hai , balki samaaj ka aaina bhi hoti hai ...

यूं तो इंसानों में रिश्ते हैं सभी सुंदर मगर
कोई रिश्ता माँ की ममता से कभी बढ़ कर नहीं

ab is sher me jo kaha gaya hai .. uski kya koi tulna kare .. ye tareef ki saari hado se badhkar kaha gaya sher hai .. is sher par main pran ji ki lekhni ko salaam karta hoon aur unhe pranam karta hon ..

aur ye sher..

क्या क्या मैंने पाया नहीं तन्हाई में
कहने को मुझ को तन्हाई क्या देती

ek sufism haunting hai .. in do lines me to saari kaaynat chupi hui hai ... ..dhoondh lo to bhagwaan bhi tanhai me hi milte hai aur mehbooba ki yaaden bhi ...

main nishabd hoon pran shaheb ki lekhni par ,main adna sa banda unki kya tareef kar sakta hoon , phir bhi une nmana hai , unki lekhni ko naman hai ..

aur aapko bhi , ki aapne itni acchi prastuti ki hai ..

aapka

vijay

दिगम्बर नासवा said...

प्राण साहब के बारे में, उनकी ग़ज़लों के बारे में कहना, सूरज को रौशनी दिखाना है ........उनकी गज़लों में .............. आज के समय का परिवेश..........जीवन दर्शन बाखोबी नज़र आता है

पंकज सुबीर said...

प्राण साहब की कुछ ग़ज़लें नया ज्ञानोदय में देखने का भी सौभाग्‍य मिला । और आपके ब्‍लाग पर भी आज उनकी ये दो ग़ज़लें । हम जैसे नये सीखने वालों के लिये ये ग़ज़लें काफी कुछ हैं । ग़ज़ल पर किन्‍हीं सज्‍जन द्वारा की गई टिप्‍पणी से मैं सहमत नहीं हूं । निवेदन है कि अपने ब्‍लाग पर माडरेशन लगायें क्‍योंकि इन दिनों बड़े लोगों की रचनाओं पर अभद्र कमेंट करने का चलन बढ़ रहा है । माडरेशन आज की तारीख में आवश्‍यक है । प्राण जी से कभी सीधे बात करने का सौभाग्‍य नहीं मिला लेकिन आपके ब्‍लाग के माध्‍यम से उनकी रचनाओं से परिचय होता रहता है ।

श्रद्धा जैन said...

रहने को बंगला नहीं, कोठी नहीं तो क्या हुआ
इतना क्या कम है कि मेरे यार हम बेघर नहीं

Ye sher bhaut sach sanotosh se badh kar kuch nahi


देखते ही पंख वाले पंछी तो उड़ जाएंगे
वे बिचारे क्या उड़ें जिन पंछियों के पर नहीं
Wah udhaan ke liye pankh to zaruri hai
soch ke pankh


यूं तो इंसानों में रिश्ते हैं सभी सुंदर मगर
कोई रिश्ता माँ की ममता से कभी बढ़ कर नहीं

ye sher bus .......... kamaal
'जी' भी कहना छोड़ दे उनको सभी के सामने
गर बुजुर्गों के लिए मन में तेरे आदर नहीं

bahut sach sir ji bahut sach

बाँध कर सर पर कफ़न घर से चला था 'प्राण' तू
चंद ईंटें रास्ते में देखकर अब डर नहीं
Man mein thaan li to manzil mile yaa paththar bus ab to nikal hi gaye hain bahut achha sher

**********************

ग़ज़ल
शिक्षा दीक्षा और पंडिताई क्या देती
हम को मूरख की अगवाई क्या देती

bahut alag soch hai


नाहक ढूंढ रहा था मैं चप्पा चप्पा
अंधियारे में सूई दिखाई क्या देती

kya baat hai bahut khoob

उसके नीचे मैं क्या बैठता ऐ यारो
सूखी डाल मुझे परछाई क्या देती

wah

मेरी खुशियां मेरा साथ निबाह न सकीं
यारो मुझको खुशी पराई क्या देती

लिखने को लिख देता पोथे पर पोथा
मुझको लेकिन लेख लिखाई क्या देती

भाषण का था शोर शराबा 'प्राण' बड़ा
इक बुढ़िया की चीख़ सुनाई क्या देती

Is gazal ke ek ek sher mein bahut khoobsurat baat kahi hai apane
aapko padhkar waqayi khushi hoti hai

Apna khyaal rakhiyega

Mahavir ji Pran ji ki gazalen padhwane ke liye bahut bahut shukriya

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wah..Sir..wah आप दोनों का अभिवादन

महावीर said...

'मतदान सर्वे तथा विश्लेषण' की टिप्पणी पढ़ कर विस्मित हूं। महोदय ने अपना नाम नहीं दिया जिसके कारण उचित रूप से संबोधित नहीं कर सका।
महोदय, आपने जो कुछ भी लिखा है, वे आपके निजी विचार हैं और यह भी ज़रूरी नहीं है कि हर व्यक्ति आपके विचारों से सहमत हो।
प्राण शर्मा की यह दोनों रचनाएं ग़ज़ल की श्रेणी में आती हैं। ग़ज़ल में तख़्खयुल और तग़ज्जुल में ही उसकी ख़ूबसूरती मानी गई है। उपमा, प्रतीक आदि भी तख़्खयुल के ही अंग हैं।

‘ओढ़ने के वास्ते गर रेशमी चादर नहीं
क्या हुआ ऐ दोस्तो गर मख़मली बिस्तर नहीं’:-
आपने लिखा है कि 'गर' की दोनों मिसरों में दोहराना उचित नहीं है। आप विश्लेषक हैं तो आप जानते ही होंगे कि ग़ज़ल में 'तक़रारे-लफ़ज़ी' का बड़ा महत्व है। मौलाना हसरत मोहानी ने इसे हुस्ने-बयान क़रार दिया है।
'मोमिन' का ये दो अशआर मुलाहिज़ा फ़रमाईए जिन में 'आप' और 'आंख' शब्दों की ख़ूबसूरत 'तक़रार' है:
'पान में ये रंग कहां आप ने.
आप मिरे खून का दावा किया।'
मोमिन

'आंख न लगने से सब अहबाब ने
आंख के लग जाने का चर्चा किया।'
मोमिन
------------------
आपने पूछा है कि 'बंगला' और 'कोठी' में क्या अंतर है।
आप यह तो जानते ही हैं कि हिंदी का प्रसार पूरे संसार में फैल गया है और विदेशी शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है। 'बंगला' (Bungalow) एक अंग्रेज़ी का शब्द है। बंगला एक ही धरातल (फ़र्स्ट फ़्लोर) पर बनाया जाता है जब कि कोठी (mansion) में एक से ज़्यादा मंज़िलें भी बन सकती हैं।
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'इतना क्या कम है कि मेरे यार हम बेघर नहीं।':-

शायर (प्राण शर्मा) ने 'मेरे यार' यार को संबोधित किया है और 'हम बेघर नहीं' से स्पष्ट हो जाता है
कि यह घर दोनों का है। यदि 'प्राण जी' हमारा या हमारे यार लिखते तो ग़लत हो जाता।
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'ज़िन्दगी है ज़िन्दगी कोई सड़ी गाजर नहीं।':-

शायर की नज़र में ज़िन्दगी का बड़ा महत्व है, वह उसको 'सड़ी गाजर' के समान हीं समझता कि
वह सड़ी गाजर की तरह फेंक दी जाए।
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'देखते ही पंख वाले पंछी तो उड़ जाएंगे।':-

ज़रा इस वाक्य को देखिए: 'गवाह को देखते ही उसके चेहरे के रंग उड़ गए।' तो कहने का तात्पर्य है कि 'देखते ही' और देखते देखते' एक ही बात है।
-------------------------------------------------
'यूं तो इंसानों में रिश्ते हैं सभी सुंदर मगर
कोई रिश्ता माँ की ममता से कभी बढ़ कर नहीं।':-

दर-असल यह शेअर इस तरह से है जो अब ठीक कर दिया गया है:
'यूं तो इंसानों में रिश्ते हैं सभी सुंदर बड़े
कोई रिश्ता माँ के रिश्ते से मगर बढ़ कर नहीं।'
(देखिए यहां भी दोनों मिस्रों में 'रिश्ते' की ख़ूबसूरत 'तक़रार' है।)
--------------------------
'जी' भी कहना छोड़ दे उनको सभी के सामने'।:-

क्योंकि 'जी' भी के बाद 'कहना' लिख देने से 'जीभी' को कोई भी बिना किसी कठिनाई के समझ सकता है कि 'जी' से क्या तात्पर्य है। ग़ज़ल में इस क़िस्म की चीज़ें ख़ास स्थान रखती हैं वर्ना हमारे
पुराने दिग्गज शायरों की शायरी डस्ट-बिन में होतीं।
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चंद ईंटें रास्ते में देखकर अब डर नहीं।':-

काव्य में चाहे कविता हो या फिर ग़ज़ल आदि हो,
उसमें उपमा, प्रतीक, अलंकार आदि गहनों की भांति होते हैं। यहां 'ईंटें' किसी इमारत की ईंटों की बात नहीं हो रही है, बल्कि 'ईंटें' 'रुकावटों' का प्रतीक है।
महावीर

Dr. Sudha Om Dhingra said...

प्राण भाई साहब की दोनों ग़ज़लें पढ़ीं. हमेशा की तरह बेहद खूबसूरत. रतन जड़ित--एक हीरा, तो दूसरी पन्ना-संजो कर रखने वालीं. महवीर जी,
आप की बहुत -बहुत आभारी हूँ, जो समय-समय पर आप प्राण जी की ऐसी प्राणवान
ग़ज़लें पढ़वातें हैं, जो अंतर्मन तक को तृप्त कर जाती हैं.
उसके नीचे मैं क्या बैठता ऐ यारो
सूखी डाल मुझे परछाई क्या देती
वाह खूब --
मेरी खुशियां मेरा साथ निबाह न सकीं
यारो मुझको खुशी पराई क्या देती
आप दोनों को बहुत -बहुत बधाई.

वीनस केसरी said...

महावीर जी
होता अक्सर ये है की हम जब भी कोई दो वास्तु एक विचार की या जिसकी वास्तु धर्म एक हो पाते है तो उनकी तुलना करने लगते हैं मैं भी ऐसा अक्सर करता हूँ आजभी किया मगर आज मैं खुद को बता नहीं पाया की पहली गजल ज्यादा सुन्दर है या दूसरी

आपका वीनस केसरी

Udan Tashtari said...

दोनों ही गज़लें बहुत ही उम्दा हैं, शब्दों की मेरे मजबूरी है कि वो अपने आपको इन गज़लों की तारीफ करने की योग्यता नहीं रखते. प्राण जी की गज़लें तो हमेशा ही प्रिय रही हैं और दिल के बिल्कुल पास..आज का यह शेर:

यूं तो इंसानों में रिश्ते हैं सभी सुंदर बड़े
कोई रिश्ता माँ के रिश्ते से मगर बढ़ कर नहीं

--अपने आपमें एक महाकाव्य है. बहुत आभार के साथ नतमस्तक हूँ.

बहुत शुभकामनाऐं.

Divya Narmada said...

पूछ रहे मुझसे तन्हाई क्या देती?
गीत, गजल, दोहा रूबाई क्या देती?

प्राण न शर्मा, कर ले सच स्वीकार जरा.
लगे सुहानी परी परायी, क्या देती?

पीठ फेर, मुंह मोड़ जिन्हें जाना ही है.
उनसे पलभर हाथ मिलाई क्या देती?

संप्राणित है अलंकार से हर रचना.
रस के बिन नीरस कविताई क्या देती?

'सलिल' धन्य पढ, कहे प्राण जिंदा गजलें.
बिना भाव के कलम-घिसाई क्या देती?

शानदार और जानदार गज़लों के लिए साधुवाद.

Divya Narmada said...

पूछ रहे मुझसे तन्हाई क्या देती?
गीत, गजल, दोहा रूबाई क्या देती?

प्राण न शर्मा, कर ले सच स्वीकार जरा.
लगे सुहानी परी परायी, क्या देती?

पीठ फेर, मुंह मोड़ जिन्हें जाना ही है.
उनसे पलभर हाथ मिलाई क्या देती?

संप्राणित है अलंकार से हर रचना.
रस के बिन नीरस कविताई क्या देती?

'सलिल' धन्य पढ, कहे प्राण जिंदा गजलें.
बिना भाव के कलम-घिसाई क्या देती?

शानदार और जानदार गज़लों के लिए साधुवाद.

निर्मला कपिला said...

pran ji ki gazalen paathhak me pran foonk deti hain lajavaab

गौतम राजऋषि said...

आहहाहा.....प्राण साब की खूबसूरत दो गज़लों एक साथ
एकदम नये अनूठे अंदाज़ की पहली ग़ज़ल। मक्‍ते ने मन मोह लिया....
और दूसरी ग़ज़ल के चंद नायाब काफ़ियों ने और उनके ग़ज़ब के इस्तेमाल ने सम्मोहन का असर किया है
"लिखने को लिख देता पोथे पर पोथा" में उस्ताद शायर का एक अनूठा ही रूप दिख रहा है। वाह !

आपका बहुत-बहुत शुक्रिया महावीर जी इस दो ग़ज़लो के लिये भी और इस विस्तृत टिप्पणी के लिये भी....

Ahmad Ali Barqi Azmi said...

तर्जुमान-ए-दर्द-ए-दिल है प्राण शर्मा की ग़ज़ल
गर्दिश-ए--हालात पर यह तबसेरा है बर महल

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

अक्षर जब शब्द बनते हैं said...

प्राण साहब की चंद गजलों पर तैतीस वर्षीय एक अनुभवहीन युवा श्री रवि शर्मा (मतदान सर्वे तथा विश्‍लेषण विभाग) की टिप्पणी और उस पर महावीर शर्मा जी का विश्लेषण भी पढ़ा।
गजल पर आने से पहले मैं रवि शर्मा की बात करता हूं। इनका परिचय यहां पर है-
http://www.blogger.com/profile/14867244472378217822

और इनका दो ब्लॉग है -
http://ravisharmadelhi.blogspot.com/
http://mpelection.blogspot.com/

पहला ब्लॉग नाम का है। इस पर कोई पोस्ट नहीं, और बंद होने के कगार पर।
दूसरे पर पिछले नवम्बर माह में मात्र दो पोस्ट, उसका भी साहित्य से कोई लेना-देना नहीं।...
ऐसे लोग अगर चाँद को देखकर कहें कि उसमें दाग़ है, और सूरज को देखकर कहें कि उसमें आग है तो क्या अचरज?
आदरणीय महावीर शर्मा जी ने जब अपनी ओर से स्पष्टीकरण दे ही दिया है तो पुन: शायद इसकी जरूरत नहीं। पर रवि शर्मा जैसे गैर-साहित्यिक व्यक्ति से बातें करना दरो-दीवार से टकराकर अपने को लहुलुहान करना और अपनी उर्जा नष्ट ही करना होगा।
**********************

प्राण साहब की पहली गजल -‘ओढ़ने के वास्ते गर रेशमी चादर नहीं’ जीवन की महक़ से उब-डूब होती बेजोड़ गजल है। वैसे मैं गजलों के कला-पक्ष पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं करता क्योंकि गजल के कला-पक्ष से मैं काफ़ी नावाकिफ़ आदमी हूँ! पर इसका भाव-पक्ष भी काफ़ी सबल है। यहां जीवन को शिद्यत से जीने की जिजीविषा मौजूद है, उसके नकारात्मक पक्षों को गहरी चुनौती है यहाँ।

दूसरी गजल ‘ शिक्षा दीक्षा और पंडिताई क्या देती’
भी बहुत खूबसूरत गजल है।
इसमें ये पंक्तियां-
लिखने को लिख देता पोथे पर पोथा
मुझको लेकिन लेख लिखाई क्या देती
- जिन्दगी के गहरे भाव-बोध को व्यक्त करती है।
इनकी प्राय: सभी गजलों माटी की सोंधी गंध से सनी होती हैं।

कहा जा सकता है कि प्राण शर्मा ने गजल की दशा-दिशा को समकालीन कविता के भाव-बोध और सौंदर्य-सृष्टि के करीब लाकर इस विधा को मध्ययुगीन दरबारी प्रवृतियों से मुक्त करने में कोई कोए-कसर नहीं छोड़ी है जो गजल के सही दिशा में आगे जाने की बेहतर संभावना और एक शुभलक्षण है और इसने इसकी प्रतिष्ठा मूल्यपरक साहित्य में बढ़ा दी है। महावीर शर्मा जी को इस अन्यतम प्रस्तुति के लिये कोटिश: बधाई।-
सुशील कुमार

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आदरणीय महावीर जी व प्राण भाई साहब,
आप दोनोँ को मेरी ढेरोँ बधाइयाँ !
दोनोँ गज़लेँ बेहद पसँद आईँ ..
ऐसे ही ,
उत्कृष्ट तरीके से
रचनाएँ तथा विश्लेषण करवाते रहेँ
आग्रिम आभार सहीत,
सादर, स -स्नेह,

-लावण्या

kavi kulwant said...

bahut Khoob..

नीरज गोस्वामी said...

सबसे पहले तो आदरणीय महावीर जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका जो हमें प्राण साहेब की ये बेमिसाल ग़ज़लें पढने का मौका दिया....प्राण साहेब के बारे में क्या कहूँ...सादा ज़बान में कितनी गहरी बात कर जाते हैं की पढने वाले को सिवा वाह वा करने के और कोई रास्ता बचता ही नहीं है...

यूं तो इंसानों में रिश्ते हैं सभी सुंदर बड़े
कोई रिश्ता माँ के रिश्ते से मगर बढ़ कर नहीं
'जी' भी कहना छोड़ दे उनको सभी के सामने
गर बुजुर्गों के लिए मन में तेरे आदर नहीं
ये दोनों शेर अपने साथ लिए जा रहा हूँ क्यूँ की दोनों ही अपनी शैली और कथ्य में बेमिसाल हैं...और ये करिश्मा सिवा प्राण साहेब के और किसी की बस की बात नहीं...

नीरज

रविकांत पाण्डेय said...

आदरणीय महावीर जी आपका शुक्रिया प्राण शर्मा जी के इन बेहतरीन गज़लों से रूबरू करवाने के लिये। एक-एक शेर बेहतरीन है।

ओढ़ने के वास्ते गर रेशमी चादर नहीं
क्या हुआ ऐ दोस्तो गर मख़मली बिस्तर नहीं

रास आएगी बहुत ये इक न इक दिन आपको
ज़िन्दगी है ज़िन्दगी कोई सड़ी गाजर नहीं

अतिसुंदर।
दूसरी गज़ल भी शानदार है।

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' said...

मुझे दूसरी गज़ल ज्यादा पसंद आई... गज़ल पिरामिड की तरह सुंदर से सुंदरतम होती गई है... और आखिरी दो शेरों पर आकर तो वो लाजबाब और अद्भुत हो जाती है....

लिखने को लिख देता पोथे पर पोथा
मुझको लेकिन लेख लिखाई क्या देती

भाषण का था शोर शराबा 'प्राण' बड़ा
इक बुढ़िया की चीख़ सुनाई क्या देती

manu said...

sunder lagaa .....

रंजना said...

यूं तो इंसानों में रिश्ते हैं सभी सुंदर बड़े
कोई रिश्ता माँ के रिश्ते से मगर बढ़ कर नहीं


आप जैसे गुनिजनो की रचना पर प्रतिक्रिया देने का सामर्थ्य हम जैसे मूढ़ में में नहीं...बस पढ़ कर उसमे डूबना और मुग्ध होना भर हम करते हैं..

daanish said...

"बाँध कर सर पर कफ़न घर से चला था 'प्राण' तू
चंद ईंटें रास्ते में देखकर अब डर नहीं.."

प्राण साहब का ये कहन अपने आप में एक दम
अनूठा और दमदार है ....
राह की दुश्वारियों से घबराना इंसान की फितरत में शामिल नहीं होना चाहिए ,,
ये पैगामभी मिल रहा है .

तमाम तब्सिरे भी अपने आप में पढने लायक हैं ...
कहीं ग़ज़ल की बुनावट पर निजी विचार ,
कहीं अनुभव-हीनता का इल्जाम ,
कहीं महावीर जी की विनम्रता का प्रसाद .

बहुत बहुत शुक्रिया ...इस नायाब प्रस्तुति के लिए
---मुफलिस---

'देव मणि पाण्डेय' (ई मेल द्वारा): said...

प्राण शर्मा जी की ग़ज़लें हमेशा की तरह शानदार हैं. ख़ासतौर से ये शेर तो लाजवाब हैं-

यूं तो इंसानों में रिश्ते हैं सभी सुंदर बड़े
कोई रिश्ता माँ के रिश्ते से मगर बढ़ कर नहीं

'जी' भी कहना छोड़ दे उनको सभी के सामने
गर बुजुर्गों के लिए मन में तेरे आदर नहीं

उसके नीचे मैं क्या बैठता ऐ यारो
सूखी डाल मुझे परछाई क्या देती


मेरी खुशियां मेरा साथ निबाह न सकीं
यारो मुझको खुशी पराई क्या देती

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' (ई मेल द्वारा) said...

शानदार और जानदार गज़लों के लिए साधुवाद.

उठाई गयी शंकाओं का महावीर जी ने सम्यक निराकरण किया है. मैं भी उन पर कुछ कहना चाहता था पर दोहराने से लाभ नहीं. आलोचना का स्वागत हो...सुबीर जी के प्रतिबन्ध के सुझाव से मेरी सहमति नहीं है...शेष शुभ...एपी दोनों को नमन.
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

प्रेषक - महावीर शर्मा

रूपसिंह चन्देल said...

प्राण जी की दोनों गज़लें अन्तर्मन को छू गईं. बहुत ही सुन्दर गज़लें कहते हैं प्राण जी. महावीर जी आप और प्राण जी दोनों को ही बधाई.


रूपसिंह चन्देल

"अर्श" said...

GURU DEV KO PRANAAM,
AUR AADANIYA PRAN SHARMAA JI KO BHI SAADAR PRANAAM, INKI DNO HI GAZAL AAPNE AAP ME ANUTHE HAI... INKI GAZALON KE BAARE ME KYA KAHANE HAI AUR INKI GAZALGOI KAUN NAHI JAANTAA ISLIYE TO MAIN INHE GAZAL PITAAMAH KAHTAA HUN....
AAP JIS TARAH SE PRASTUT KARTE HAI WAH APNE AAP ME PRASHANSANIYA HOTAA HAI AAP SABHI KE AASHIRVAAD SE HI HAM JAISE NAVSIKHIYE KHUCHH KUCHH SIKHTE RAHTE HAI... AAP SABHI KA AASHIRVAAD MILTAA RAHE YAHI CHAHUNGA AUR KUSHALATAA KI KAMANAA KARTAA HUN...

ARSH

महावीर said...

प्राण शर्मा जी की दोनों ग़ज़लें हमेशा की तरह नायाब हैं।
कितने ही ग़ज़लकारों ने 'ज़िन्दगी़' का नकारात्मक और निराशावादी रूप दिया है लेकिन प्राण जी इस शेर
में जिन्दगी का आशावादी पहलू देकर हारे हुए व्यक्ति को एक नई शक्ति प्रदान की है:-
रास आएगी बहुत ये इक न इक दिन आपको
ज़िन्दगी है ज़िन्दगी कोई सड़ी गाजर नहीं

दोनों ग़ज़लों में एक अनुभवी गूरू के दर्शन होते हैं।
इन दो अशार को तो मैंने बार बार पढ़ा:-

बाँध कर सर पर कफ़न घर से चला था 'प्राण' तू
चंद ईंटें रास्ते में देखकर अब डर नहीं

भाषण का था शोर शराबा 'प्राण' बड़ा
इक बुढ़िया की चीख़ सुनाई क्या देती

प्राण शर्मा जी हम पर हमेशा मेहरबान रहे हैं। आशा है कि आपके अनुभवों की छत्रछाया ऐसे ही मिलती रहेगी।
प्राण जी का आभार प्रकट करते हुए सभी टिप्पणीकारों का भी धन्यवाद करता हूं क्योंकि टिप्पणियां ही रचना का शक्ति -स्रोत है।
महावीर शर्मा