Saturday 6 June 2009

पिंगलाचार्य श्री आर. पी. शर्मा 'महरिष' की दो ग़ज़लें - दो रंग

पिंगलाचार्य आर. पी. शर्मा 'महरिष

न्म : मार्च १९२२ को गोंडा में (.प्र.)
उपनाम महरिष है और आप मुंबई में निवास करते हैं। अपने जीवन-सफर के 87 वर्ष पूर्ण कर चुके हैं किंतु श्री शर्मा जी की साहित्यिक रुचि आज भी निरंतर बनी हुई है। ग़ज़ल रचना के प्रति आप की सिखाने की वृति माननीय है।
प्रकाशित पुस्तकें : 1) हिंदी गज़ल संरचना-एक परिचय (सन् १९८४ में उनके द्वारा इल्मे- अरूज़उर्दू छंद-शास्त्र) का सर्व प्रथम हिंदी में रूपांतर। 2)गज़ल-निर्देशिका, 3) ग़ज़ल-विद्या 4) गज़ल-लेखन कला, 5) व्यहवारिक छंद-शास्त्र (पिंगल और इल्मे- अरूज़ के तुलनात्मक विश्लेषण सहित), 6)नागफनियों ने सजाईं महफिलें (ग़ज़ल-संग्रह), 7) गज़ल और ग़ज़ल की तकनीक, 8) मेरी नज़र में (लेखकों, कवियों और ग़ज़लकारों पर समीक्षाओं का संग्रह।)
सम्मान : काव्य शोध संस्थान द्वारा हिंदी भवन, नई दिल्ली में श्री आर.पी. शर्मामहरिषको माननीय श्री विष्णु प्रभाकर और श्री कमलेश्वर के हाथोंपिंगलाचार्य की उपाधि से विभूषित श्री भारतेंदु समिति, कोटा राजस्थान द्वारा ग़ज़ल विधा और छंद शास्त्र पर अभिनव कार्य के लिए सम्मान श्रीसाई दास बालूजा साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा साहित्य की समृद्धि हेतु उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रशस्ति पत्र.

ग़ज़ल

उनका तो ये मज़ाक रहा हर किसी के साथ
खेले नहीं वो सिर्फ़ मिरी ज़िंदगी के साथ

आज़ाद हो गये हैं वो इतने, कि बज़्म में
आए किसी के साथ, गए हैं किसी के साथ

अपनों की क्या कमी थी कोई अपने देश में
परदेस जा बसे जो किसी अजनबी के साथ

फिरते रहे वो दिल में ग़लतफ़हमियाँ लिये
ये भी सितम हुआ है मिरी दोस्ती के साथ

'महरिष' वो हमसे राह में अक्सर मिले तो हैं
ये और बात है कि मिले बेरुख़ी के साथ.

*********************************

ग़ज़ल

बहारें हैं फीकी, फुहारें हैं नीरस
न मधुमास ही वो, न पहली-सी पावस

हवाएँ भी मैली, तो झीलें भी मैली
कहाँ जाएँ पंछी, कहाँ जायें सारस

उन्हें चाहिये एक सोने की लंका
न तन जिनके पारस, न मन जिनके पारस

वो सम्पूर्ण अमृत-कलश चाहते हैं
कि है तामसी जिन का सम्पूर्ण मानस

जो व्रत तोड़ते हैं फ़क़त सोमरस से
बड़े गर्व से ख़ुद को कहते हैं तापस

हुआ ईद का चाँद जब दोस्त अपना
तो पूनम भी वैसी कि जैसी अमावस

अखिल विश्व में ज़हर फैला है 'महरिष'
बने नीलकंठी, है किसमें ये साहस.

******************************



गामी अंक: १३ जून २००९

भारत से विजय कुमार सपत्ति

की दो कविताएं

29 comments:

"अर्श" said...

आदरणीय महावीर जी सादर प्रणाम,
बहोत ही ये तो कल्याण की बात है हमारे लिए के इस तरह के उम्दा गज़लकारों से आप मुलाक़ात कराते रहते हैं... जनाब पिंगलाचार्य जी के ग़ज़ल के मतले ने ही लूट के रख लिया बड़ी आदायगी से उन्होंने अपनी ताज़र्बाकारी की बातें करी है ... और एक ये शे'र अपने आप में एक पूर्ण ग़ज़ल प्रतीत है ....

आज़ाद हो गये हैं वो इतने, कि बज़्म में
आए किसी के साथ, गए हैं किसी के साथ..

कितनी बारीक नज़र से करी गयी है ये बात....
और दूसरी बे-रदीफ़ ग़ज़ल की अपनी ही बात है... जो कम ही कहीं पढने को मिलती है... इनसे तथा इनके ग़ज़ल से रूबरू कराने के लिए बहोत बहोत आभार आपका..


अर्श

Vinay said...

महरिष साहब रचनाएँ पढ़वाने का शुक्रिया

---
तख़लीक़-ए-नज़र

राज भाटिय़ा said...

महवीर जी वाह क्या बात है,

उनका तो ये मज़ाक रहा हर किसी के साथ
खेले नहीं वो सिर्फ़ मिरी ज़िंदगी के साथ

मै दिल से नमन करता हुं पिंगलाचार्य आर. पी. शर्मा 'महरिष जी को , ओर आप का भी धन्यवाद

वीनस केसरी said...

उनका तो ये मज़ाक रहा हर किसी के साथ
खेले नहीं वो सिर्फ़ मिरी ज़िंदगी के साथ

ऐसा मतला और कौन कह सकता है आर पी शर्मा जी के सिवा
सभी शेर पसंद आये
खूबसूरत गजल पढ़वाने के लिए धन्यवाद
वीनस केसरी

manu said...

आज़ाद हो गये हैं वो इतने, कि बज़्म में
आए किसी के साथ, गए हैं किसी के साथ

कमाल लिखा है साहब,,,
लाजवाब शे'र

निर्मला कपिला said...

आज़ाद हो गये हैं वो इतने वज़्म मे कि
आये किसी के साथ और गये किसी के साथ
बहुत सटीक और उमदा शे अर है बहुत बहुत बधाई

kavi kulwant said...

Guru Ji aap ko saadar naman...
Khuda kare aap swastha rahen..
kulwant singh

सतपाल ख़याल said...

shaji ko saadar pranam!
अखिल विश्व में ज़हर फैला है 'महरिष'
बने नीलकंठी, है किसमें ये साहस.
bilkul vazib baat !

बलराम अग्रवाल said...

'महरिष' वो हमसे राह में अक्सर मिले तो हैं
ये और बात है कि मिले बेरुख़ी के साथ.
तथा
अखिल विश्व में ज़हर फैला है 'महरिष'
बने नीलकंठी, है किसमें ये साहस.
'महरिष' जी न सिर्फ उम्र में बल्कि क़लाम में भी उस्ताद हैं। उन्हें सौ-सौ नमन! वे हमेशा स्वस्थ रहें और कहते रहें, कहते रहें।

दिगम्बर नासवा said...

उनका तो ये मज़ाक रहा हर किसी के साथ
खेले नहीं वो सिर्फ़ मिरी ज़िंदगी के साथ

आप का धन्यवाद है जो आप लाजवाब गज़लकारों से आप मुलाक़ात कराते रहते हैं... पिंगलाचार्य जी की ग़ज़ल लाजवाब है ... और सब के सब शेर खूबसूरत हैं

परमजीत सिहँ बाली said...

दोनो गज़ले बहुत बढिया हैं।बधाई स्वीकारे।

Udan Tashtari said...

महर्षि साहेब की किताब गज़ल पर पढ़कर पहले ही आनन्द ले चुका हूँ..आज गज़ल पढ़कर आनन्द आ गया.

नीरज गोस्वामी said...

आज़ाद हो गये हैं वो इतने, कि बज़्म में
आए किसी के साथ, गए हैं किसी के साथ

अपनों की क्या कमी थी कोई अपने देश में
परदेस जा बसे जो किसी अजनबी के साथ

जिस खूबसूरती से दिल की बात इन शेरों में कही गयी है उसे इस तरह कहना सिर्फ एक उस्ताद शायर के बस की ही बात है. इश्वर उन्हें स्वस्थ और सलामत रक्खे...शुक्रिया आपका आदरणीय महावीर जी जो उन्हें पढने का मौका दिया.
मैंने जितना भी कुछ लिखना सीखा उसमें महर्षि साहेब की किताब "ग़ज़ल लेखन कला" का बहुत बड़ा योगदान रहा...पंकज जी से भेंट होने से बहुत पहले ये किताब मुझे मेरे एक शुभचिंतक ने मुझे दी और उसे ही पढ़कर मैंने कहना सीखा...यूँ समझें की महिर्षि जी द्रोणाचार्य थे और मैं एकलव्य...
मुझे उनके सामने देवी नागरानी जी की किताब के विमोचन के अवसर पर ग़ज़ल पढने का मौका मिल चूका है...वो दिन मैं कभी भूल नहीं सकता..

नीरज

गौतम राजऋषि said...

महरिष जी के तो हम जैसे कितने ही शागिर्द हैं...और उनकी इन दो नायाब गज़लों से मुलाकात करवाने का बहुत-बहुत शुक्रिया महावीर जी।
संकलन करने योग्य गज़लें..

कडुवासच said...

... उम्दा गजलें, शुक्रिया-शुक्रिया !!!!

संजीव 'सलिल' said...

दोनों गज़लें अपनी-अपनी भावः-भूमि की श्रेष्ठ रचनाएँ हैं. साधुवाद.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आदरणीय महावीर जी सादर नमस्ते - सतत उत्कृष्ट रचनाकारोँ से हमेँ रुबरु करवाने का बहुत बहुत आभार - आचार्य महरिष जी की कलम को नमन करते हुए, उनके रचनाओँ का रसास्वादन कर रही हूँ - सादर स स्नेह, - लावण्या

vijay kumar sappatti said...

aadarniya mahaveer ji,

deri se aane ke liye maafi chahunga ...main tour par tha .


maharshiji , ek mahaan lekhak hai ,unki gazlao ki kuch bhi tareef karna , bus sooraj ko diya diklaane wali baat hongi..

mujhe unke do sher pasand aaye..

आज़ाद हो गये हैं वो इतने, कि बज़्म में
आए किसी के साथ, गए हैं किसी के साथ

अपनों की क्या कमी थी कोई अपने देश में
परदेस जा बसे जो किसी अजनबी के साथ

unko mera pranaam hai aur aapko meri badhai ki aapne itni acchi gazlo se rubooru karwaya..

dhanyawad.
aapka
vijay

PRAN SHARMA said...

ACHARYA MAHARISH JEE KAA HAR SHER
AANAND DE RAHAA HAI.AESE GURUON KO
PADH KAR GYAAN MEIN VRIDDHI HOTEE
HAI.MERA NAMAN.

Devi Nangrani said...

अपनों की क्या कमी थी कोई अपने देश में
परदेस जा बसे जो किसी अजनबी के साथ
Shabd kya shri adarneeya Maharishji ke tasvur ke karreb jaa payenge. Unki ilm ki taksaal is vidha mein ek anubhuti hai. sarlata aur unka gahana hai, itna hi kah sakti hoon. Unhein mera naman.
Aur khas Mahavirji ji shukraguzaar jo unhein is Manch par prastut kiya.
Sadar
Devi Nangrani

कंचन सिंह चौहान said...

आज़ाद हो गये हैं वो इतने, कि बज़्म में
आए किसी के साथ, गए हैं किसी के साथ

bahut khoob...!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

"आज़ाद हो गये हैं वो इतने, कि बज़्म में
आए किसी के साथ, गए हैं किसी के साथ..
अपनों की क्या कमी थी कोई अपने देश में
परदेस जा बसे जो किसी अजनबी के साथ"
बहुत सुंदर...भाव से परिपूर्ण शेर..बहुत अच्छा लगा आप के ब्लाग पर आकर

महावीर said...

आदरणीय श्री आर. पी. शर्मा 'महरिष' जी की अमूल्य ग़ज़लों के लिए मैं हार्दिक रूप से आभारी हूँ. साथ ही आप सभी टिप्पणीकारों और अन्य पाठकों का भी धन्यवाद करता हूँ.

Dr. Ghulam Murtaza Shareef said...

KUCHCH TO MAJBOORIYAN RAHI HONGI,
YOUN KOI BEWAFA NAHEIN HOTA.

Sharmaji, Aapka wayktitwa hi itna pujyaneey hai ki kuchch kahna surya ko deepak dikhaney ke barabar hai.
Ghazlein kafi sarahneey hain.

Dr. Shareef
Karachi (Pakistan)
gms_checkmate@yahoo.com

Unknown said...

mahavir ji,
In ghazalon ko sammilit karne ke liye bahaut bahut dhanyavaad.
tahe dil se sabhi rachnakaron ka bhi shukriya karna chchta hun. aap sabhi ke comment padh kar bahut protsahan mila hai
Devi Nangrani ka dhanyavaad jinhonein is link ke jariye sabhi ke comments padhne ka mauka diya.

R.P. sharma Mehrish

Devi Nangrani said...

आदरणीय महरिष जी
सादर नमन
आपके पड़ने वालों की उकीता आपको इस मंच तक ले आई है येः एक सुखद आश्चर्य है. मेरा प्रयास भी सफल हुआ और इस उपस्थिति में श्री महावीर शर्मा एवं श्री प्राण शर्मा जी का प्रयास भी शामिल है.
सादर
देवी नागरानी

तिलक राज कपूर said...

आदरणीय 'महरिष' जी,
ग़ज़ल कहने का यह अंदाज अगर अन्‍य जिज्ञासुओं को हस्‍तॉंतरित न कर पाये तो आप स्‍वयं को माफ़ नहीं कर पायेंगे। यूँ तो आपने इस विषय पर पुस्‍तकें लिखकर अपना कर्तव्‍य पूरा कर लिया है लेकिन ये पुस्‍तके हैं कहाँ, पूरा भोपाल छान मारा नहीं मिलीं।
आप इसे मेरा बालहठ मानते हुए प्रकाशक से कहें कि मेरे पते पर आपके द्वारा लिखी निम्‍न पुस्‍तकें किसी भी तरह पहुँचाये:
1) हिंदी गज़ल संरचना-एक परिचय
2) गज़ल-निर्देशिका
3) ग़ज़ल-विद्या
4) गज़ल-लेखन कला
5) व्यहवारिक छंद-शास्त्र
6) नागफनियों ने सजाईं महफिलें
7) गज़ल और ग़ज़ल की तकनीक
8) मेरी नज़र में
मेरा पता प्राप्‍त करने के लिये प्रकाशक महोदय kapoor.tilakraj@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं। भुगतान की जो विधि प्रकाशक को मंजूर हो, अवगत करादें।
सादर
तिलकराज कपूर

तिलक राज कपूर said...

आदरणीय 'महरिष' जी,
ग़ज़ल कहने का यह अंदाज अगर अन्‍य जिज्ञासुओं को हस्‍तॉंतरित न कर पाये तो आप स्‍वयं को माफ़ नहीं कर पायेंगे। यूँ तो आपने इस विषय पर पुस्‍तकें लिखकर अपना कर्तव्‍य पूरा कर लिया है लेकिन ये पुस्‍तके हैं कहाँ, पूरा भोपाल छान मारा नहीं मिलीं।
आप इसे मेरा बालहठ मानते हुए प्रकाशक से कहें कि मेरे पते पर आपके द्वारा लिखी निम्‍न पुस्‍तकें किसी भी तरह पहुँचाये:
1) हिंदी गज़ल संरचना-एक परिचय
2) गज़ल-निर्देशिका
3) ग़ज़ल-विद्या
4) गज़ल-लेखन कला
5) व्यहवारिक छंद-शास्त्र
6) नागफनियों ने सजाईं महफिलें
7) गज़ल और ग़ज़ल की तकनीक
8) मेरी नज़र में
मेरा पता प्राप्‍त करने के लिये प्रकाशक महोदय kapoor.tilakraj@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं। भुगतान की जो विधि प्रकाशक को मंजूर हो, अवगत करादें।
सादर
तिलकराज कपूर

Unknown said...

मुझे इस किताब पढने की जिज्ञासा है
कहाँ उपलब्घ है बतायें
प्रकाशक का नाम भी