Monday, 6 July 2009

अमेरिका से देवी नागरानी की दो ग़ज़लें


जन्म: ११ मई १९४१, कराची (तब भारत)
निवास-स्थान: न्यू जर्सी, यू.एस.
शिक्षा: बी.. (अर्ली चाइल्डहुड) - न्यू जर्सी, यू.एस.
सम्प्रति: शिक्षिका, न्यू जर्सी, यू.एस..
प्रकाशित कृतियाँ: 'ग़म में भीगी ख़ुशी' (सिन्धी ग़ज़ल-संग्रह,2004), चराग़े-दिल (हिंदी ग़ज़ल-संग्रह २००७),उड़ जा पंछी (सिन्धी भजनावली, २००७), आस की शामअ (सिन्धी ग़ज़ल-संग्रह २००८), दिल से दिल तक (हिंदी ग़ज़ल-संग्रह २००८), The Journey (English Poetry 2009).
सम्मान: देश-विदेश में अनेक प्रतिष्ठित संस्थाओं से सम्मानित की गई हैं. न्यू यार्क की कई संस्थाओं द्वारा Eminent Poet, proclamation Honor Award, काव्य रत्न, कवि मणि परुस्कार. भारत में छत्तीसगढ़ की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था द्वारा 'सृजन-श्री' सम्मान, महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी का पदक सुमन द्वारा सम्मानित आदि.
प्रसारण: पत्र-पत्रिकाओं में गीत, ग़ज़ल, कहानियां; कवि-सम्म्लेलन, मुशायरों में भाग लेने के अतिरिक्त कई जालघरों में भी अभिरुचि.


ग़ज़लः

मिलने की हर घड़ी में बिछड़ने का ग़म हुआ
फिर भी हमें ख़ुशी थी, कि उनका करम हुआ.

नज़रें मिली तो मिलके, वो झुकती चली गईं
फिर भी हया का बोझ कुछ उनपे कम हुआ.

कुछ और भी गुलाब थीं आंखें ख़ुमार में
कुछ और भी हसीन वो मेरा सनम हुआ.

कुछ तो चढ़ा था पहले ही हम पर नशा, मगर
कुछ आपका भी सामने आना सितम हुआ.

आती नहीं है प्यार की ख़ुशबू कहीं से अब
खिलना ही जैसे प्यार के फूलों का कम हुआ.

नज़रों से दूर दूर था अरमान का शहर
फिर भी वो आस पास था, ऐसा भरम हुआ.

'देवी' वफ़ा पे जिसकी हमें नाज़ था बहुत
वो बेवफ़ा हुआ तो, बहुत हमको ग़म हुआ.

देवी नागरानी
न्यू जर्सी, यू.एस..
*******************

ग़ज़लः
याद की डोली उठी थी हर पहर बरसात में
जख़्म दिल के थे हरे उस चश्मे-तर बरसात में

याद की हर शाख़ पर हो ख़ुशनुमा कोई सुमन
ये ज़रूरी तो नहीं आए नज़र बरसात में

आग पानी में भी लग जाए तो कोई क्या करे
आग दिल में जो लगी हो तर बतर-बरसात में

रात-रानी जिस तरह महकाए रातों को मिरी
उस तरह महके मेरा ज़ख़्मे-जिगर बरसात में

लोरियाँ गा गा के रिमझिम मुझको सहलाती रहीं
नींद आकर भी आई रात भर बरसात में

वो शजर जिसके तले तरसा किए हम छाँव को
टूट करदेवीगिरा था वो मगर बरसात में
देवी नागरानी
न्यू जर्सी, यू.एस..
*******************

अगला अंक: १३ जुलाई २००९
डा. ग़ुलाम मुर्तज़ा शरीफ़ की दो कवितायें:
'अनुराग'; 'मजबूरी'

19 comments:

"अर्श" said...

आदरणीय श्री महावीर जी ,
हलाकि देवी नागरानी साहिबा के बारे में पहले भी सुनी थी मगर उनकी लेखनी से वाकिफ न था आपने ये उपकार कर दिया आज.. पहले ग़ज़ल के हर शे'र पे दिल वाह वाह कर रहा है और खूब दिल से दाद दिए जा रहे है जितना खुबसूरत मतला है वेसे ही खूबसूरती उन्होंने मकते में भी दी है मगर इस शे'र पे तो हम निछावर हो गए ...

कुछ और भी गुलाब थीं आंखें ख़ुमार में
कुछ और भी हसीन वो मेरा सनम हुआ.

क्या खुबसूरत शे'र पढ़े है उन्होंने ... दुसरे ग़ज़ल में भी बहोत ही खुबसूरत रदीफ़ के साथ अपना हक़ अदा किया है उन्होंने... बहोत बहोत बधाई देवी जी को और आपका तहे दिल से आभार....


अर्श

बलराम अग्रवाल said...

देवी नागरानी कलामसिद्ध ग़ज़लगो हैं। हर शेर वजनदार, हर मतला बोलता है। बधाई।

निर्मला कपिला said...

पहली बार देवि नाग्रानी जी की गज़लें पढी कमाल की लेखनी है उनका परि्चय् जान कर बहुत अच्छा् लगा दोनो गज़लें बहुत खूबसूरत हैं बहुत बहुत बधाई आभार्

वीनस केसरी said...

दिलकश गजलें हैं, पढ़ कर आनंद आ गया
वीनस केसरी

कडुवासच said...

... खुशनुमा गजलें !!!!!!!

दिगम्बर नासवा said...

आती नहीं है प्यार की ख़ुशबू कहीं से अब
खिलना ही जैसे प्यार के फूलों का कम हुआ.

आदरणीय श्री महावीर जी ,
देवी नागरानी जी की लाजवाब गज़लें हैं ........... लाजवाब शेर हैं.......शुक्रिया

mehek said...

bahut hi sunder gazal hai dono bhi.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

देवी जी की गज़लें , हमेशा दिल की गहराईयों से उभरतीं हैं !
- बहोत अच्छी लगीं मुझे - -
उन्हें शुभकामना और आदरणीय महावीर जी को शुक्रिया !
सादर, स - स्नेह,

- लावण्या

kavi kulwant said...

बहुत खूबसूरत..
देवी जी को सुनने क सौभाग्य भी कई बार प्राप्त हुआ... हमेशा खुशबू से सराबोर उनकी गज़लें...

PRAN SHARMA said...

DEVI JEE KEE DONO GAZALEN MUN KO
CHHOOTEE HAIN.UMDAA BHAAV HAIN
UNMEIN.

Dr. Sudha Om Dhingra said...

देवी जी,
खूबसूरत ग़ज़लें हैं-
लोरियाँ गा गा के रिमझिम मुझको सहलाती रहीं
बहुत खूब,
बधाई!

बवाल said...

आग दिल में जो लगी हो तर बतर-बरसात में
आदरणीय शर्मा साहब,
पहले तो हमारी तरफ़ से आभार स्वीकृत कीजिएगा इतनी लाजवाब ग़ज़लों के लिए। मुकम्मिल बात और कलात्मकता के साथ। क्या कहना !

गौतम राजऋषि said...

देवी नागरानी जी को अक्सर पढ़ता रहता हूँ पत्रिकाओं में और उनकी ग़ज़लों को शुरू से पसंद करता रहा हूँ।
इन दो शेरों पर तो अपनी आह-हाय निकलती रही देर तलक
"कुछ और भी गुलाब थीं आंखें ख़ुमार में
कुछ और भी हसीन वो मेरा सनम हुआ"

और

"कुछ तो चढ़ा था पहले ही हम पर नशा, मगर
कुछ आपका भी सामने आना सितम हुआ"

इश्क की नज़ाकत वाले ऐसे शेर तो अब कम ही देखने को मिलते हैं।

महावीर said...

देवी जी के ग़ज़ल-संग्रह 'चरागे-दिल' और 'दिल से दिल तक' में ये ग़ज़लें कुछ सालों पहले पढ़ी थी, निहायत खूबसूरत लगीं थीं और आज भी इनकी वही ताज़गी है. उनके दोनों संग्रह वाक़ई व्यक्तिगत लाइब्रेरी की ज़ीनत हैं. दोनों संग्रहों की ग़ज़लें सहेजने के क़ाबिल हैं. मैंने उनके ग़ज़ल-संग्रह की प्रस्तावना में लिखा था कि उनकी शब्दावली, कल्पना और भाषा की अद्भुत पकड़ देखने वाली है. वे आज भी जो ग़ज़लें लिखती हैं, उनकी ग़ज़लों में वही गज़लियत आज भी बरक़रार है.
देवी जी, आपकी नई पुस्तक The Journey के लिए हमारी शुभकामनाएं.

Randhir Singh Suman said...

good

Dr. Ghulam Murtaza Shareef said...

Deviji,

Hamesha ki tarah is bar bhi achchey ashaar padhaney ko miley.

Dhanyawad.

Dr. Shareef
Karachi (Pakistan)
gms_checkmate@yahoo.com

Devi nangrani said...

महावीर जी के मँच पर अपने आप को स्थापित कर पाना ‌एक सौभाग्य है महावीर जी और श्री प्राण शर्मा जी के आशीष शब्द मेरे संग्रह "दिल से दिल तक " को एक दिशा दे गए जिनके पद चिन्हों पे चलना मेरे हित में है. मैं सुधाजी की, बहन लावण्या की, और अर्श की व सभी कविगण की दिल से शुक्रगुज़ार हूँ., जो अपने स्नेहिल शब्दो से मेरे प्रयास को पढ़ा.
सस्नेह
देवी नागरानी

रंजना said...

कुछ तो चढ़ा था पहले ही हम पर नशा, मगर
कुछ आपका भी सामने आना सितम हुआ.

आती नहीं है प्यार की ख़ुशबू कहीं से अब
खिलना ही जैसे प्यार के फूलों का कम हुआ.

क्या कहा जाय........

ऐसी रचनाएँ कुछ कहने लायक छोड़ती कहाँ हैं........लाजवाब !!! वाह !!!

Devi Nangrani said...

रंजना जी प्रोत्सहन के लिए बहुत आभारी हूँ. कलम तो एक मात्र जरिया है अपने मनोभावों को सतह पर लेन के लिए और महावीरजी ने मंच प्रदान करके उन्हें कुछ कहने का मौका दिया है.
मैं दिगम्बर जी की, बलराम जी की और गौतम राजरिशी जी की आभारी हूँ जो हौसला बनाये रखने की राह पर ला खडा कर दिया
सस्नेह
देवी नांगरानी