Monday 20 July 2009

दो कवि - दो रंग. प्राण शर्मा और आचार्य 'सलिल' की रचनाएँ


प्राण शर्मा की ग़ज़ल:

तितलियाँ

होते ही प्रातःकाल आजाती हैं तितलियां
मधुबन में खूब धूम मचाती हैं तितलियां


फूलों से खेलती हैं कभी पत्तियों के संग
कैसा अनोखा खेल दिखाती है तितलियां


बच्चे, जवान, बूढ़े नहीं थकते देख कर
किस सादगी से सब को लुभाती हैं तितलियां


सुन्दरता की ये देवियां परियों से कम नहीं
मधुबन में स्वर्ग लोक रचाती हैं तितलियां


उड़ती हैं किस कमाल से फूलों के आर पार
दीवाना हर किसी को बनाती हैं तितलियां


वैसा कहां है जादू परिंदों का राम जी
हर ओर जैसा जादू जगाती है तितलियां


इनके ही दम से 'प्राण' हैं फूलों की रौनकें
फूलों को चार चांद लगाती हैं तितलियाँ


प्राण शर्मा

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आचार्य संजीव 'सलिल' की गीतिका

यादों की बारात तितलियाँ.

क़ुदरत की सौगात तितलियाँ..

बिरले जिनके कद्रदान हैं.

दर्द भरे नग्मात तितलियाँ..

नाच रहीं हैं ये बिटियों सी

शोख़-जवां जज़्बात तितलियाँ..

बद से बदतर होते जाते.

जो, हैं वे हालात तितलियाँ..

कली-कली का रस लेती पर

करें न धोखा-घात तितलियाँ..

हिल-मिल रहतीं नहीं जानतीं

क्या हैं शह औ' मात तितलियाँ..

'सलिल' भरोसा कर ले इन पर

हुईं न आदम-जात तितलियाँ

आचार्य संजीव 'सलिल'

****************************

अगला अंक: २७ जुलाई 2009
अमेरिका से
डॉ. सुधा ओम ढींगरा और

लावण्या शाह
की रचनाएँ

29 comments:

रविकांत पाण्डेय said...

दोनों ही रचनाएं प्रीतिकर लगीं। बिल्कुल ताजगी भरी हुई।

इनके ही दम से 'प्राण' हैं फूलों की रौनकें
फूलों को चार चांद लगाती हैं तितलियाँ

बहुत सुंदर!

सलिल' भरोसा कर ले इन पर
हुईं न आदम-जात तितलियाँ

दिल के करीब लगी ये।

नीरज गोस्वामी said...

फूलों से खेलती हैं कभी पत्तियों के संग
कैसा अनोखा खेल दिखाती है तितलियां

उड़ती हैं किस कमाल से फूलों के आर पार
दीवाना हर किसी को बनाती हैं तितलियां

आदरणीय प्राण साहेब ने तितलियों को शब्द दे दिए हैं...हर शेर को पढ़ कर एक खूबसूरत मंजर सामने आ जाता है...ये उनके शेर कहने के हुनर का ही कमाल है...प्राण साहेब की ग़ज़ल की तारीफ शब्दों में करना असंभव है...उन्हें पढ़ कर एक सुखद अनुभूति होती है जिसे सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है...

सलिल साहेब की इन पंक्तियों ने तो मजा ही ला दिया है..."
नाच रहीं हैं ये बिटियों सी
शोख़-जवां जज़्बात तितलियाँ. और
सलिल' भरोसा कर ले इन पर
हुईं न आदम-जात तितलियाँ
वाह वा...लाजवाब...बहुत बहुत शुक्रिया आपका महावीर जी इन विलक्षण रचनाओं को पढ़वाने के लिए....
नीरज

रज़िया "राज़" said...

इनके ही दम से 'प्राण' हैं फूलों की रौनकें
फूलों को चार चांद लगाती हैं तितलियाँ
बहोत खूब।
और.....
'सलिल' भरोसा कर ले इन पर
हुईं न आदम-जात तितलियाँ

सुंदर रचनाऎ।

Murari Pareek said...

बहुत सुन्दर रचना चलिये तितलियों को भी गरूर है की कोई इनकी महिमा करता है ! तितलियों की तरफ से में साधुवाद दिए देता हूँ !

बवाल said...

आदरणीय प्राण साहब,
ये तितलियों पर की गई जुगलबंदी तो कमाल ही कर गई साहब। बहुत बहुत बधाई आप दोनों को और बहुत बहुत आभार आप दोनों का इस बेहद ही ख़ूबसूरत तितलीनामें पर।

बलराम अग्रवाल said...

मुझे दोबारा यह लिखना पड़ रहा है और आगे भी शायद लिखते रहना पड़े कि प्राण शर्मा जी की नज्में नजीर अकबराबादी जैसी लयात्मकता से ओत-प्रोत होती हैं। भाई सलिल जी का भी जवाब नहीं--
हिल-मिल रहतीं नहीं जानतीं
क्या हैं शह औ' मात तितलियाँ..

दोनों महानुभावों को बहुत-बहुत बधाई!

निर्मला कपिला said...

इनके ही दम से 'प्राण' हैं फूलों की रौनकें
फूलों को चार चांद लगाती हैं तितलियाँ
प्राण साहिब की रचनायें तो हमेशा ही खूब सूरत और दिल को छू लेने वली होती हैं आज कई दिन बाद पढा है इन्हें इन से गुज़रिश है कि जल्दी गज़ल ले कर आयें
और सलिल जी ने तो निशब्द कर दिया
सलिल भरोसा कर ले इन पर
हुई ना आदमजात तितलियाँ बहुत सुन्दर रचनाओं के लिये आपका धन्यवाद्

कडुवासच said...

...तितलियाँ-ही-तितलियाँ... वाह-वाह ... बहुत खूब !!!

Devi nangrani said...

प्रण जी के शेर दीवानगी के आसार और बढ़ रहे हैं

उड़ती हैं किस कमाल से फूलों के आर पार
दीवाना हर किसी को बनाती हैं तितलियां
सोच की उड़ान और ताज़गी..अद्भुत!!
और
नाच रहीं हैं ये बिटियों सी
शोख़-जवां जज़्बात तितलियाँ..
रिशतों में जकड,ने का सफल प्रयास इस शेर में आचार्य सलिल जि ने बखूबी किया है. बधाई हो
सादर
देवी नागरानी

Sushil Kumar said...

गजल के उस्ताद आदरणीय प्राण शर्मा जी और आचार्य संजीव सलिल जी की तितलियाँ पर गजलें अत्यंत मनभावन और हृदयस्पर्शी लगीं।
आपको इस विधा में माहिर फ़न हासिल है।

kavi kulwant said...

dono hi umda rachnaakaar hain..
bahut achcha laga..
kulwant singh

दिगम्बर नासवा said...

वाह दोनों ही सम्राट हैं आज के दौर के............ तितलियों पर इतनी गहरी सोच और उस सोच से निकली लाजवाब रचनाएं......... शुक्रिया आपका

पंकज सुबीर said...

इनके ही दम से 'प्राण' हैं फूलों की रौनकें
फूलों को चार चांद लगाती हैं तितलियाँ
ये शेर समझने वाले के लिये है कि उसमें कितना गहन भाव छुपा है । प्राण जी जैसे किसी उस्‍ताद के ही बस का है ऐसे शेर लिखना । कई मायने और कई सारे अर्थ छुपाए है ये शेर । आदरणीय महावीर जी का आभार उस्‍ताद शायर की एक और बेहतरीन ग़ज़ल से परिचय कराने के लिये ।

PRAN SHARMA said...

YUN TO ACHARYA " SALIL" JEE KEE HAR
PANKTI KHOOBSOORAT HAI LEKIN IN
CHAAR PANKTIYON KEE BAANGEE KE KYA
KAHIYE--
HIL-MIL RAHTEE,NAHIN JAANTEE
KYA HAIN SHAH AU MAAT TITLIYAN
----------
"SALIL" BHROSA KAR LE IN PAR
HUEE N AADAM-ZAAT TITLIYAN

vijay kumar sappatti said...

आदरणीय महावीर जी , सबसे पहले तो देरी से आने के लिए माफ़ी चाहूँगा ....

आदरणीय प्राण जी और आदरणीय सलिल जी की ये शानदार प्रस्तुति किसी भी तारीफ़ से बढ़कर है

प्राण साहेब की ग़ज़ल पढ़ते पढ़ते तो मैं वाकई में किसी मधुबन में जा पहुंचा

सलिल साहेब की बात भी निराली है ....

तितलियों पर दो महान लेखको की रचनाये एक साथ पढना अपने आप में बहुत सुखद अनुभव है. मुझे तो इतना आनंद प्राप्त हुआ की क्या कहूँ , सारी की सारी थकान उतर गयी ...

महावीर जी , आपको बहुत धन्यवाद् इस लाज़वाब प्रस्तुती के लिए

मैं प्राण जी और सलिल जी को प्रणाम करता हूँ

आभार

विजय

Unknown said...

आदरणीय प्राण जी की कविता तित्लियो के माध्यम से रुमानियत और सौन्दर्य की बहुत ही मनभावन कहानी है. पूरी कविता बहुत अच्छी है खासकर ये -
"सुन्दरता की ये देवियां परियों से कम नहीं
मधुबन में स्वर्ग लोक रचाती हैं तितलियां"

श्री सलिल जी की कविता मे़ बहुत हद तक यथार्थवाद है और ये भी एक बहुत सुन्दर कविता है.

श्रद्धा जैन said...

होते ही प्रातःकाल आजाती हैं तितलियां
मधुबन में खूब धूम मचाती हैं तितलियां


फूलों से खेलती हैं कभी पत्तियों के संग
कैसा अनोखा खेल दिखाती है तितलियां


बच्चे, जवान, बूढ़े नहीं थकते देख कर
किस सादगी से सब को लुभाती हैं तितलियां


सुन्दरता की ये देवियां परियों से कम नहीं
मधुबन में स्वर्ग लोक रचाती हैं तितलियां


उड़ती हैं किस कमाल से फूलों के आर पार
दीवाना हर किसी को बनाती हैं तितलियां


वैसा कहां है जादू परिंदों का राम जी
हर ओर जैसा जादू जगाती है तितलियां


इनके ही दम से 'प्राण' हैं फूलों की रौनकें
फूलों को चार चांद लगाती हैं तितलियाँ


Wah bahut sunder gazal hai Guru ji

श्रद्धा जैन said...

Wah salil ji

'सलिल' भरोसा कर ले इन पर

हुईं न आदम-जात तितलियाँ

kamaal ka sher kaha hai

महावीर said...

प्राण शर्मा जी और आचार्य 'सलिल' जी जैसे दो दिग्गज गुरुओं को एक साथ इस ब्लॉग पर पोस्ट करने में मुझे गर्व है और हार्दिक प्रसन्नता भी. एक साथ ही ऐसे महानुभावों की रचनाएँ देने में मुझे जो सुख और आनंद मिला है, शब्दों में कहना कठिन है.
दोनों रचनाएँ अत्यंत सुन्दर हैं. इसी प्रकार आचार्य जी और शर्मा जी का आशीर्वाद बना रहे.
सधन्यवाद
महावीर

Dr. Sudha Om Dhingra said...

भाई साहब,
हर नई ग़ज़ल आप का नया रूप पेश करती है.
इस में तो बंधुवर भाषा का सौंदर्य, भावनाओं की
चंचलता और उनकी खूबसूरत अभिव्यक्ति ने कमाल
कर दिया. अगर कहूँ कि फिर कुछ सीखने को मिला तो गलत नहीं होगा. ऐसी ही समृद्ध ग़ज़लें आप लिखते रहें.महावीर जी आप की आभारी हूँ इतनी बढ़िया ग़ज़ल पढ़वाने के लिए.

Dr. Sudha Om Dhingra said...

सलिल जी की गीतिका ने तितलियों के माध्यम से बहुत ही संवेदनशील चित्रण किया है. सलिल जी का कौशल तो भीतर से समृद्ध करता है. संजीव भाई सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Aadarniy Mahaveer ji,
Namaskar !

PRAN sahab aur Achary Sanjeev Saleel jee ki

Ek hee vishay - TITLIYON - per likhi dono

RACHNA itni sunder hain ki , padhker , anand

aa gaya !

Bahut bahut Shukriya, ees umda aur lajawab prastuti ka !

Aap , nit naveen prayog karte rehte hain --

Bahut badhiya laga ye bhee ....

Shubh kaamna va sadar sneh sahit ,

vineet,

- Lavanya

गौतम राजऋषि said...

दो-दो उस्ताद एक साथ..अहा!
तित्लियों के इतने हसीन रंग एक साथ एक जगह पहले कही नहीं दिखे होंगे...

हम शुक्रगुजार हैं महावीर जी आपके!

रंजना said...

तितलियाँ तो उड़ते हुए बहुरंगी फूल ही हैं,जो प्रकृति की अनुपन मनोहारी चित्रकारी है...

आप दोनों आचार्यवरों ने अपने कलम से इन्हें महिमामंडित कर एक तरह से उस परम चित्रकार की चित्रकारी का ही महिमामंडन किया है.......

दोनों ही रचनाएँ उन मोहक सुन्दर तितलियों सी मन को मोहने वाली हैं....

पढने का सुअवसर देने के लिए हार्दिक धन्यवाद..

Divya Narmada said...

तितलियों ने तितलियों से तितलियों की बात की.
तितलियों ने वाहवाही की 'सलिल' बरसात की.

तितलियों का तितलियों को शुक्रिया सौ बार है.
तितलियों के सिवा कुदरत में नहीं कुछ सार है.

Divya Narmada said...

हम बनें गर तितलियाँ तो दुनिया ये जन्नत बने.
द्वेष ईर्ष्या डाह न हो, भौंह कोई न तने.

फूल हों, कलियाँ हों, रस हो, शहद से ज़ज्बात हों.
स्नेह-सलिला में नहायें, हर कहीं नगमात हों.

रूपसिंह चन्देल said...

Pran ji aur Salil ji ki rachanayen adbud hain. Dono rachanakaron ko Pranam.

Chandel

महावीर said...

आचार्य 'सलिल' जी और प्राण शर्मा जी का दोनों अविस्मर्णीय रचनाओं के लिए मैं आभारी हूँ. टिप्पणीकारों और अन्य पाठकों का हार्दिक धन्यवाद.

ashok andrey said...

der se hii lekin priya bhai pran jee tatha salil jee ki rachna pad kar bahut achchha laga abhivaykti ke satar par adbhut hein man ko gehre chhuti hein
meri ore se badhai sweekaren
ashok andrey