Sunday 13 September 2009

यू.के. से डॉ. गौतम सचदेव की ग़ज़लें

संक्षिप्त परिचय:
जन्म स्थान : मंडी वारबर्टन (पंजाब का वह भाग, जो अब पाकिस्तान में हैं)
शिक्षा : एम. ए., पी. एच डी (दिल्ली विश्वविद्यालय)
कार्यक्षेत्र : बीबीसी हिन्दी सर्विस में २२ वर्षों से अधिक समय तक काम करते रहे. दिल्ली विश्वविद्यालय में २१ वर्षों से अधिक समय तक हिन्दी साहित्य का अध्यापन और शोध निर्देशन किया. कुछ समय केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में भी हिन्दी साहित्य का अध्यापन किया।
प्रकाशित रचनाएँ : प्रेमचन्द: कहानी शिल्प (शोध प्रबन्ध), अधर का पुल, एक और आत्मसमर्पण(कविता संग्रह), गीतों भरे खिलौने(राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित बालगीतों का संग्रह), सिन्दूर की होली कसौटी पर(आलोचना), गबन समीक्षा(आलोचना सहलेखन), नवयुग हिन्दी व्याकरण(सहलेखन), सच्चा झूठ(व्यंग्य संग्रह), साढ़े सात दर्जन पिंजरे(कहानी संग्रह), बूंद बूंद आकाश(ग़ज़लों और दोहों का संकलन), अटका हुआ पानी (कहानी संग्रह), त्रिवेणी(तीन उपनिषदों - ईश, केन और कठ - की मुक्त छंद में काव्यात्मक पुनर्रचना).
सम्मान : गीतों भरे खिलौने बालगीत संग्रह पर राष्ट्रीय पुरस्कार, तितली कहानी पर हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा अखिल भारतीय पुरस्कार, हमसे पूछिए नामक रेडियो कार्यक्रम की वर्षों तक उत्कृष्ट प्रस्तुति पर बीबीसी हिन्दी सेवा द्वारा विशेष पुरस्कार, 'हिन्दी समिति' द्वारा 'हिन्दी सेवा सम्मान', भारत सरकार की ओर से भारतीय उच्च आयोग लंदन द्वारा प्रदत्त (हिन्दी के सर्वोच्च साहित्यकार का सम्मान, जिसका नाम है) - डॉ. हरिवंश राय बच्चन सम्मान, निष्काम सेवी ट्रस्ट द्वारा प्रदत्त निष्काम सेवी सम्मान, कथा यू.के. द्वारा प्रदत्त पद्मानन्द साहित्य सम्मान और 'एक और आत्मसमर्पण' कविता संग्रह पर 'डॉ. लक्ष्मी मल सिंघवी इंटरनेशनल अवार्ड'..


दो गज़लें-

गौतम सचदेव

परिंदे दरख्तों का दुःख जानते हैं

जड़ों में दबा दर्द पहचानते हैं


बुलंदी अगर कल्पना हो तो क्या है

गगन हम ख़्यालों का घर मानते हैं


नहीं जानते हम कहाँ पर खुदा है

है दिल आदमी का जहाँ जानते हैं


फ़रिश्ते बनें या वे मज़हब चलायें

मगर बैर दुनिया से क्यों ठानते हैं


सितारे नहीं मिल सकें दोस्तों को

मिली है धरा तोड़ना जानते हैं


लिया है गगन इन भुजाओं में हमने

गले जब लगें वे यही मानते हैं


मिलेंगे कहाँ ख़ाक में जानने को

बहुत ख़ाक दर-दर की हम छानते हैं

************

उमड़ा है बरस पाए न बादल मेरे मन में

गीला सा सुलगता रहे जंगल मेरे मन में


नन्ही सी तमन्ना कभी झांके जो नज़र से

ये ओंठ लगा जाते हैं सांकल मेरे मन में


आया था कभी चोर इरादे की तरह वो

आहट सी गया छोड़ के हर पल मेरे मन में


किरणों में उमड़ता है, मचलता है लहर में

आँखों से ढुलकता हुआ काजल मेरे मन में


जीवन का नगीना हुआ सपनों का सितारा

खुशबू सा उड़ा दर्द का आँचल मेरे मन में


फुर्सत नहीं चाहत का ये मौक़ा भी नहीं है

क्यों बोल रही याद की कोयल मेरे मन में

गौतम सचदेव

******************


'महावीर' का आगामी अंक:
२० सितम्बर २००९:

यू.के. से पुष्पा भार्गव की रचना









'मंथन' का आगामी अंक
:
१६ सितम्बर २००९

रूप सिंह चन्देल की कहानी

"भेड़िये"

13 comments:

kavi kulwant said...

परिंदे दरख्तों का दुःख जानते हैं
जड़ों में दबा दर्द पहचानते हैं
************
उमड़ा है बरस पाए न बादल मेरे मन में
गीला सा सुलगता रहे जंगल मेरे मन में
Dono gazale bahut bhavuk karti hain..

निर्मला कपिला said...

नहीं जानते हम कहाँ पर खुदा है

है दिल आदमी का जहाँ जानते हैं


फ़रिश्ते बनें या वे मज़हब चलायें

मगर बैर दुनिया से क्यों ठानते हैं
आया था कभी चोर इरादे की तरह वो

आहट सी गया छोड़ के हर पल मेरे मन में
जीवन का नगीना हुआ सपनों का सितारा

खुशबू सा उड़ा दर्द का आँचल मेरे मन में
लाजवाब गज़लें हैं विदेश की इतनी व्यस्त ज़िन्दगी मे भी साहित्य के प्रति लगाव बहुत खूब गौतम जी को बहुत बहुत बधाई

PRAN SHARMA said...

Dr.GAUTAM SACHDEV KEE LEKHNEE
SAHITYA KEE HAR VIDHAA MEIN
BKHOOBEE CHALTEE HAI.VE AESE
SAHITYAKAAR HAIN JINKEE VIDVTAA
KA SIKKAA HAR KOEE MAANTA HAI.
UNKEE DONO GAZALON KAA JAADOO
SAR PAR CHADHKAR BOLTA HAI.DHERON
BADHAAEEYAN UNKO.

Dr. Ghulam Murtaza Shareef said...

नहीं जानते हम कहाँ पर खुदा है
है दिल आदमी का जहाँ जानते हैं
गौतम जी.............
सर्वस्य चाहं हृदि संनिविष्टो,
मत्त: स्मृतिर्ज्ञनमपोहनं च।
लेकिन..........................
खुदा हमसे इतने करीब है के हम उसे देख नहीं पाते

डॉ. गुलाम मुर्तजा शरीफ
कराची

रंजना said...

भावुक मनमोहक दोनों ही रचनाएँ ह्रदय भूमि का स्पर्श कर अपने रसधार में बहा लेने वाली हैं.

प्रेषित करने हेतु बहुत बहुत आभार..

Vinay said...

बहुत सुन्दर ग़ज़लें हैं

शरद कोकास said...

दोनो गज़ले अच्छी लगीं

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

"नहीं जानते हम कहाँ पर खुदा है
है दिल आदमी का जहाँ जानते हैं"
हर शेर लाजवाब...उम्दा ग़ज़ल....बहुत बहुत बधाई....
मैनें अपने सभी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग "मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी"में पिरो दिया है।
आप का स्वागत है...

प्रकाश पाखी said...

बेहतरीन गजलों से परिचय कराने के लिए आभार!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Gautam Sach dev ji ki DONO GAZALEIN bahut umda lageen ...

Aadarniy Mahavir ji ,

inhe preshit karne ka bahut shukriya .

गौतम राजऋषि said...

सचदेव साब को इससे पहले भी खूब पढ़ा है...

"नन्ही सी तमन्ना कभी झांके जो नज़र से
ये ओंठ लगा जाते हैं सांकल मेरे मन में"

लाजवाब शेर !

महावीर said...

डॉ. गौतम सचदेव जी
'महावीर' ब्लॉग पर इन दोनों खूबसूरत ग़ज़लों की पोस्ट के लिए हम आपके आभारी हैं.
दोनों ही ग़ज़लें सुन्दर ख़यालात, शब्द-चयन, कथ्य, बहर आदि हर तरह से उच्च श्रेणी की ग़ज़लें हैं.
बुलंदी अगर कल्पना हो तो क्या है
गगन हम ख़्यालों का घर मानते हैं

नन्ही सी तमन्ना कभी झांके जो नज़र से
ये ओंठ लगा जाते हैं सांकल मेरे मन में
बहुत सुन्दर.
महावीर शर्मा

Pushpa Bhargava said...

Sachdev ji ki dono gazlen bahut
pasand aai. unki kalam se asi hi
gazlen nikalti rahen aur aap unko
apne blog par deten rahen to bahut
meherbani hogi.
aabhar Pushpa Bhargava