Saturday 13 March 2010

यू.के. से प्राण शर्मा की दो ग़ज़लें


ग़ज़ल
प्राण शर्मा

माना कि आदमी को हंसाता है आदमी
इतना नहीं कि जितना सताता है आदमी

माना गले से सबको लगाता है आदमी
दिल में किसी किसी को बिठाता है आदमी

सच्चाई उसकी सामने आए तो किस तरह
ख़ामी को अपनी ख़ूबी बताता है आदमी

सुख में लिहाफ़ ओढ़ के सोता है चैन से
दुःख में हमेशा शोर मचाता है आदमी

हर आदमी की ज़ात अजीबो-ग़रीब है
कब आदमी को दोस्तो भाता है आदमी

दिल का अमीर हो तो कभी देखिये उसे
क्या क्या ख़ज़ाने धन के लुटाता है आदमी

दुनिया से खाली हाथ कभी लौटता नहीं
कुछ राज़ अपने साथ ले जाता है आदमी
प्राण शर्मा
*************************************

ग़ज़ल
प्राण शर्मा

खुशी अपनी करे सांझी बता किस से कोई प्यारे
पड़ौसी को जलाती है पड़ौसी की खुशी प्यारे

चलो पहले बिसारें हम पुरानी दुश्मनी प्यारे
मिला कर हाथ आपस में करें फिर दोस्ती प्यारे

कभी कोई शिकायत है कभी कोई शिकायत है
बनी रहती है अपनों की सदा नाराज़गी प्यारे

कोई शै छिप नहीं सकती निगाहों से कभी इनकी
कि आँखें ढूँढ़ लेती हैं सुई खोई हुई प्यारे

कोई चाहे कि ना चाहे यह सब के साथ रहती है
किसी की दोस्ती प्यारे किसी की दुश्मनी प्यारे

तुम्हारे घर के रोशनदान ही है बंद बरसों से
तुम्हारे घर नहीं आती करे क्या रोशनी प्यारे

सवेरे उठ के जाया कर बगीचे में टहलने को
कि तुझमें भी ज़रा आए कली की ताजगी प्यारे
प्राण शर्मा
***************************

26 comments:

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

श्रद्धेय महावीर जी, सादर प्रणाम
आदरणीय प्राण शर्मा जी की.....
दोनों ग़ज़लों में कमाल के अश’आर हैं....
पहली ग़ज़ल में-
हर आदमी की ज़ात अजीबो-ग़रीब है
तब आदमी को दोस्तो भाता है आदमी
और-
दुनिया से खाली हाथ कभी लौटता नहीं
कुछ राज़ अपने साथ ले जाता है आदमी..
********************************
दूसरी ग़ज़ल में-
कभी कोई शिकायत है कभी कोई शिकायत है
बनी रहती है अपनों की सदा नाराज़गी प्यारे
या फिर-
सवेरे उठ के जाया कर बगीचे में टहलने को
कि तुझमें भी ज़रा आए कली की ताजगी प्यारे
वाह वाह.....
दाद के लिये ऐसे अल्फ़ाज़ नाकाफ़ी हैं.......
ये उरूज हर किसी को हासिल नहीं होता....
बस...
सलाम....सलाम....सलाम.

Sarwar A. Raz said...

Pran jee:namaste!

aap kee GhazleN dekheeN aur pasand aayeeN. Urdu se aap kaa prem aur shauq dekh kar dil bohat Khush huwaa. maiN Hindi likh paRh letaa hooN agar woh aasaan ho. GhazleN bhejne ke liYe aap kaa aabhaaree hooN.
Sarwar A. Raz

संजय भास्‍कर said...

आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।

मनोज कुमार said...

बहुत-बहुत धन्यवाद

इस्मत ज़ैदी said...

मोहतरम ,अदाब
आज की खूब्सूरत ग़ज़लें पढ़वाने के लिये बहुत बहुत शुक्र्गुज़ार हूं
चलो पहले बिसारें हम पुरानी दुश्मनी प्यारे
मिला कर हाथ आपस में करें फिर दोस्ती प्यारे

माना गले से सबको लगाता है आदमी
दिल में किसी किसी को बिठाता है आदमी

निखरे खयालात की खूब सूरत अदाएगी बहुत ख़ूब

तिलक राज कपूर said...

सुख में लिहाफ़ ओढ़ के सोता है चैन से
दुःख में हमेशा शोर मचाता है आदमी
और
कोई शै छिप नहीं सकती निगाहों से कभी इनकी
कि आँखें ढूँढ़ लेती हैं सुई खोई हुई प्यारे

कोई चाहे कि ना चाहे यह सब के साथ रहती है
किसी की दोस्ती प्यारे किसी की दुश्मनी प्यारे

जीवन की सच्‍चाईयॉं बयान करते अशआर।

खुशी अपनी करे सांझी बता किस्से कोई प्यारे
पड़ौसी को जलाती है पड़ौसी की खुशी प्यारे
ग़ज़ल कहना सीखने वालों के लिये काफिया प्रयोग का उस्‍तादाना उदाहरण।
दो बेहतरीन ग़ज़लों के लिये आभार।

सुभाष नीरव said...

प्राण साहिब की ग़ज़लें पढ़कर एक सुकून मिलता है। कोई कोई शे'र तो ज़ेहन से उतरता ही नहीं।
अब इस शे'र को ही देखिये-

तुम्हारे घर के रोशनदान ही है बंद बरसों से
तुम्हारे घर नहीं आती करे क्या रोशनी प्यारे…

गौतम राजऋषि said...

एक अंतराल के बाद प्राण साब की ग़ज़लें पढ़ने को मिली हैं।...और दोनों ही ग़ज़लें बेमिसाल हैं। पहली ग़ज़ल का रदीफ़ और उसके साथ तमाम अशआरों का निर्वहन प्राण साब जैसा उस्ताद ही कर सकता है। खास आखिरी शेर की फिलोसोफी ने मन मोह लिया...सदियों से चली आ रही बात को कि मरने के बाद तो हर कोई खाली हाथ ही जाता है को एकदम से झुठलाते हुये...वाह!


दूसरी ग़ज़ल भी लाजवाब बनी है। मेरे ख्याल से मतले में टंकण-त्रुटि हो गयी है तनिक कि मिस्रा उअला में "किस से" होना चाहिये शायद।

प्राण साब की ग़ज़लों से रुबरु करवाने का आभार महावीर जी!

रश्मि प्रभा... said...

कोई चाहे कि ना चाहे यह सब के साथ रहती है...
इस ग़ज़ल की खासियत ही यही है

kavi kulwant said...

sidhi saadi sundar gazalen...

निर्मला कपिला said...

कई दिन बाद भाई साहिब की गज़ल पढने को मिली। उनकी गज़लों पर भला मै क्या कह सकती हूँ मै तो खुद उनसे सीखती हूँ। पहली गज़ल का मतला ही दिल को छू लेता है \ पहली गज़ल के अशआर
हर आदमी की ज़ात अजीबो-ग़रीब है
तब आदमी को दोस्तो भाता है आदमी

दिल का अमीर हो तो कभी देखिये उसे
क्या क्या ख़ज़ाने धन के लुटाता है आदमी
और आखिरी शेर के लिये गौतम जी ने सही कहा हैकितनी आसानी से सदियों से चली आ रही बात को झुठला दिया और ये बात सही भी लगती है वाह! और दूसरी गज़ल तो और भी कमाल है

कोई चाहे कि ना चाहे यह सब के साथ रहती है
किसी की दोस्ती प्यारे किसी की दुश्मनी प्यारे

खुशी अपनी करे सांझी बता किस्से कोई प्यारे
पड़ौसी को जलाती है पड़ौसी की खुशी प्यारे
वैसे ये तो पूरी की पूरी गज़ल कोट करने का मन है। भाई साहिब को बहुत बहुत बधाई और अपका भी धन्यवाद इसे पढाने के लिये।

haidabadi said...

महावीर जी
प्रणाम
आज बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आने का
मौका मिला हिंदी ग़ज़ल के महान ग़ज़ल-गो श्री प्राण साहिब
की ग़ज़लों को देखने और पढने का अवसर मिला रूह को सकून
मिला एक मुद्दत के बाद एक फूल की सूरत में चंद अल्फाज़
प्राण साहिब के नाम
मेरे वजूद में बन के दिया वोह जलता रहा
वोह एक ख्याल था रौशन ज़हन में पलता रहा
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क

देवमणि पांडेय - ई मेल द्वारा said...

ग़ज़लें अच्छी लगीं। ग़ज़ल ज़िदगी से बातचीत है। प्राण शर्मा हमेशा इसे साकार करते हैं।

सच्चाई उसकी सामने आए तो किस तरह
ख़ामी को अपनी ख़ूबी बताता है आदमी

सुख में लिहाफ़ ओढ़ के सोता है चैन से
दुःख में हमेशा शोर मचाता है आदमी

खुशी अपनी करे सांझी बता किससे कोई प्यारे
पड़ौसी को जलाती है पड़ौसी की खुशी प्यारे

--
Devmani Pandey (Poet-Lyricist)

पंकज सुबीर said...

दोनों ग़ज़लें नये सीखने वालों के लिये रदीफ काफिया की जुगलबंदी के अच्‍छे उदाहरण है । औश्र वो इसलिये कि दोनों ही ग़ज़लों में रदीफ को लक्ष्‍यपरक रखा गया है । बहुत ही सुंदर ग़ज़लें हैं दोनों । इन दिनों अपने कम्‍प्‍यूटर प्रशिक्षण संस्‍थान पर आने वाले समर वेकेशन सीजन की तैयारियों में जुटा हूं ब्‍लाग जगत से दूर हूं लेकिन प्राण भाई साहब का नाम देखकर लोभ संवरण नहीं कर पाया । क्‍योंकि प्राण जी की ग़ज़लों को पढ़ने नहीं आता मैं बल्कि कुछ सीखने आता हूं । आज का पाठ भी सीख कर और नोट करके जा रहा हूं कि ग़ज़ल जितनी सरल होगी उतनी ही पैठ करेगी । ग़ज़ल में बातचीत का लहजा जितना अधिक होगा वो उतनी ही आम के निकट होगी । सही कहा है किसीने कि उस्‍तादों से कुछ सीखना हो तो और कुछ न करो बस उनकी ग़ज़लें पढ़ लो, जो कुछ सीखना है वो खुद ही मिल जायेगा । दादा भाई को आभार और प्राण भाई साहब को आभार । आप दोनों गुणिजनों की संगत में शायद मेरे जैसे लोग भी शब्‍द जोड़ने की कला और तुक मिलाना सीख जायें । दादा भाई आपका स्‍वास्‍थ्‍य कैसा है अब । आपके स्‍वास्‍थ्‍य को लेकर सदा ही चिंता लगी रहती है । अपना खयाल रखें । आप दोनों अग्रजों को मेरा प्रणाम ।

sunil gajjani said...

तुम्हारे घर के रोशनदान ही है बंद बरसों से
तुम्हारे घर नहीं आती करे क्या रोशनी प्यारे
इस शेर के साथ ही आप को सादर प्रणाम प्राण साब, दोनों सुंदर गज़लें थी,आप को साधुवाद उम्दा गज़लें पढ़ाने के लिए ,
आदर जोग महावीर जी का भी बहुत बहुत आभार.
सादर

Dr. Sudha Om Dhingra said...

भाई साहब, बहुत बार पहले भी लिख चुकीं हूँ, अब फिर लिखूंगी कि आप की ग़ज़लें मुझे बहुत कुछ सिखा जाती हैं और आज भी मेरी झोली में बहुत कुछ डाल गईं हैं...

दुनिया से खाली हाथ कभी लौटता नहीं
कुछ राज़ अपने साथ ले जाता है आदमी
और
तुम्हारे घर के रोशनदान ही है बंद बरसों से
तुम्हारे घर नहीं आती करे क्या रोशनी प्यारे
मेरे लिए एक पुखराज है तो दूसरा पन्ना...
बधाई

शरद कोकास said...

बढ़िया गज़ल है

वीनस केसरी said...

दुनिया से खाली हाथ कभी लौटता नहीं
कुछ राज़ अपने साथ ले जाता है आदमी

तुम्हारे घर के रोशनदान ही है बंद बरसों से
तुम्हारे घर नहीं आती करे क्या रोशनी प्यारे

सवेरे उठ के जाया कर बगीचे में टहलने को
कि तुझमें भी ज़रा आए कली की ताजगी प्यारे

सुन्दर भावाभिव्यक्ति बेहतरीन गजल

ashok andrey said...

priya bhai pran jee ki gajlon ne kaphii prabhavit kiya hai unki har pankti me koi n koi sandesh hota hai jo hame gehre chhu kar jhakjhor jataa hai-
duniya se khaali haath kabhii loutta nahee
kuchh raaj apne saath le jaata hai aadmii, tathaa-
tumhaare ghar ke roshandaan hee hen band barson se
tumhaare ghar nahee aatee kare kayaa roshnee payaare
mai unhen badhai deta hoon itnee achchhi gajlon ke liye

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

और आदरणीय प्राण भाई साहब की ग़ज़लों की रवानी और अपनी बात खूबसूरती से कह देने का अंदाज़ ऐसा है के बस पढ़ते ही जाओ
- स स्नेह सादर,
- लावण्या

"अर्श" said...

आजकल ब्लॉग से बेवजह की मसरूफियत के चलते दूर ही हूँ
और तभी ग़ज़ल पितामह की ग़ज़ल से दूर रह गया ... वाकई पहली ग़ज़ल में जिस तरह से काफिया और रदीफ़ को सजाया और सहेजा गया है वाकई अनमोल है ... गुरु देव सुबीर जी ने जो बात कही है इन ग़ज़लों के लिए वो सत्य है... अगर सिखनी है तो बस उस्तादों की गज़लें एक बार बस
पढ़ लो खुद बा खुद बातें समझ में आने लगेंगी.... दोनों ही गज़लें कमाल की हैं... श्रधेय महावीर जी को इन दोनों ग़ज़लों को पढवाने के लिए दिल से आभार और सादर प्रणाम...


अर्श

नीरज गोस्वामी said...

मैं गुरुदेव प्राण साहब की शायरी का तहे दिल से कायल हूँ...बेहद सादी ज़बान में गहरी बात कह जाना उनकी बहुत बड़ी खूबी है...उनके शेर पढ़ कर लगता है अरे कितनी आसानी से बात कही गयी है लेकिन इतनी आसान लगने वाली ज़बान में बात सलीके से कहना कितना बड़ा हुनर है ये लिखने वाला ही समझ सकता है...बरसों की साहित्य साधना के बावजूद भी ये नेमत किसी किसी को ही माँ सरस्वती बक्शती है... हम जैसे तालिबे इल्मों के लिए उनका लिखा हर मिसरा ग़ज़ल सीखने की किताब सा है...उनकी इन दोनों ग़ज़लों के लिए क्या कहूँ...लफ्ज़ ही नहीं हैं....बस पढ़ रहा हूँ और गुण रहा हूँ...इश्वर उन्हें हमेशा स्वस्थ रखे ये ही कामना करता हूँ...
नीरज

दीनदयाल शर्मा said...

प्राण साहब की दोनों ग़ज़लों ने बहुत ही प्रभावित किया.. माना कि आदमी को हँसाता है आदमी....ख़ुशी अपनी सांझी बता कोई किससे करे...वाह ! पढ़ कर मजा आ गया..

दीनदयाल शर्मा said...

प्राण साहब की दोनों ग़ज़लों ने बहुत ही प्रभावित किया.. माना कि आदमी को हँसाता है आदमी....ख़ुशी अपनी सांझी बता कोई किससे करे...वाह ! पढ़ कर मजा आ गया..
deen.taabar@gmail.com

Alpana Verma said...

कोई शै छिप नहीं सकती निगाहों से कभी इनकी
कि आँखें ढूँढ़ लेती हैं सुई खोई हुई प्यारे'

-वाह! कितना खूबसूरत ख्याल है!

-बहुत उम्दा लगीं दोनों ग़ज़लें.

अविनाश वाचस्पति said...

गजलों में भाव ही नहीं जीवन प्राण मौजूद हैं।