Friday 18 November 2011

महावीर जी को लावण्या शाह जी की श्रद्धांजलि


कल अर्थात १७ नवम्बर को हम सबके चहेते श्री महावीर जी की प्रथम पुण्यतिथि थी जिसको ध्यान में रखते हुए आप सभी गुणीजनों के समक्ष इस सम्पूर्ण सप्ताह को 'महावीर स्मृति सप्ताह' के रूप में मनाने का विचार रखा था. विचार को संबल देते हुए अमेरिका से आदरणीया लावण्या शाह जी ने महावीर जी को स्मरण करते हुए इस सप्ताह का प्रथम आलेख भेजा जो कि आपके समक्ष प्रस्तुत है.. उम्मीद है कि अन्य साथियों से भी सहयोग मिलेगा--
लावण्या शाह जी का पत्र-
दरणीय महावीर जी की उपस्थिति हिन्दी ब्लॉग लिखनेवालों के मध्य ऐसे थी मानों अनगिनत सितारों के बीच एक पवित्र ' आकाशगंगा ' का विस्तार हो . आज उनकी खामोशी हिन्दी ब्लॉग जगत व् साहित्य प्रेमी लोगों के लिए एक निरंतर प्यास बन चुकी है . मैं उनके परिवार के हरेक सदस्य से अपना नाता मान कर अपने आपको ' बृहत महावीर शर्मा परिवार का सदस्य ' ही कहती हूँ और उन्हें मेरे स्नेह व् छोटों को आशिष भेज रही हूँ .
आईये हम हमारे महावीर जी से एक बार फिर , परिचित हो लें -

महावीर शर्मा

  • जन्मः १९३३ , दिल्ली, भारत। निवास-स्थानः लन्दन, य़ू.के. शिक्षाः एम.ए.: पंजाब विश्वविद्यालय, भारत। लन्दन विश्वविद्यालय:गणित,ऑडियो विज़ुअल एड्स। ब्राइटन विश्वविद्यालय :स्टेटिस्टिक्स। उर्दू का भी अध्ययन। कार्य-क्षेत्रः १९६२ -१९६४ तक स्व: श्री ढेबर भाई जी के प्रधानत्व में भारतीय घुमन्तूजन सेवक संघ के अन्तर्गत राजस्थान रीजनल ऑर्गनाइज़र के रूप में कार्य किया । १९६५ में इंग्लैण्ड के लिये प्रस्थान । १९८२ तक भारत, इंग्लैण्ड तथा नाइजीरिया में अध्यापन। तीन वर्षों तक एशियन वेलफेयर एसोशियेशन के जनरल सेक्रेटरी के पद पर सेवा देते रहे। १९९२ में स्वैच्छिक पद से निवृत्ति के पश्चात अंतिम श्वांस तक लन्दन में ही उनका स्थाई निवास स्थान रहा। १९६० से १९६४ तक महावीर यात्रिक के नाम से हिन्दी और उर्दू की मासिक तथा साप्ताहिक पत्रिकाओं में कविताएं, कहानियां और लेख प्रकाशित। कादम्बिनी, सरिता, गृहशोभा, पुरवाई(लंदन),हिन्दी चेतना(अमेरिका), पुष्पक, गर्भनाल, इन्द्र दर्शन आदि हिंदी पत्रिकाओं में कविताएं, कहानियां और लेख प्रकाशित। इंटरनेट पर अनेक जालघरों पर भी रचनाएं प्रकाशित। "महावीर" ब्लॉग पर प्रतिष्ठित रचनाकारों की रचनाओं के साथ साथ नए रचनाकारों की रचनाएं भी सम्मलित करने का प्रयास करते रहे। हमारे प्रिय आदरणीय श्री महावीर जी को मरणोपरांत मार्च २०११ में उनकी पत्रकारिता के क्षेत्र में उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए हाईकमीशन लन्दन ने हज़ारी प्रसाद द्विवेदी सम्मान प्रदान कर इस सम्मान के गौरव में वृद्धि की. सम्मान को महावीर जी के सुपुत्र श्री राज शर्मा ने ग्रहण किया.
ज्ञानवान, सौम्य व्यक्तित्त्व के धनी सुशिक्षित , सुसंस्कृत आत्मीय स्वजन ,ऐसे पूज्य महावीर जी जो गजल के नियम भी आसानी से सिखला देते थे या अपने सुलझे हुए सुझावों से दूसरों को सही राह सुझा देते थे - फिर भी आपने कभी दम्भ न किया और न विद्वत्ता का प्रदर्शन ही किया ! वे इतने सरल व् सहज थे कि सभी को उनके बनाए जाल घरों पे आमंत्रित किया करते, दूसरे रचनाकारों की रचनाएं , शानदार ढंग से उनके जालघर पर प्रस्तुत किया करते और ई मेल से साहित्यरसिकों को इनके बारे में सूचित भी किया करते थे ! होगा कोई ऐसा अपनत्व देने वाला ? इतना उदार शायद ही कोई दूसरा ब्लॉग स्वामी होगा जैसे वे थे !
उनके ब्लॉग पे मुशायरा , कवि सम्मेलन इन सभी का आयोजन भी अक्सर होता रहता था जिसके लिए वे रचनाकारों से रचनाएं मंगवाते और सहर्ष सुंदर रीति से प्रस्तुत भी किया करते देखिये ना मानो वास्तव में मुशायरा जारी हो इस तरह महावीर जी द्वारा , यहाँ संचालन हो रहा है,

ऑन लाईन मुशायरा : आज हमारी ख़ुशकिस्मती है कि अमेरिका से इस मंच पर बरखा पर अपनी कविता से आपके दिलों में आनंद का संचार करने के लिए श्रीमती लावण्या शाह जी आ रही हैं। मैं देख रहा हूं कि लावण्या जी का नाम सुनते ही तालियों के शोर में मेरी आवाज़ ऐसे गुम हो गई जैसे नक्कारख़ाने में तूती की आवाज़। मैं जानता हूं कि आप उनकी कविता के लिए बेज़ार हो रहे हैं। हों भी क्यों ना, जिनकी ख्याति उनके ब्लॉग अंतरमन और http://www.lavanyashah.com/ ालवण्यम्` ~अन्तर्मन्`

कितने ही जालघरों, पत्रिकाओं, कवि-सम्मेलनों आदि में फैली हुई है। आप जानते ही हैं कि लावण्या जी महाकवि स्व. पंडित नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री हैं । पंडित जी के विषय में कुछ कहना तो सूरज के सामने दीपक दिखाने वाली बात होगी। लीजिए, लावण्या जी माइक पर आगई हैं-

http://mahavir.wordpress.com/2008/07/15/mushaira-part-1/

” पाहुन “

बरखा स -ह्रदया,

उमड घुमड कर बरसे,

तृप्त हुई, हरी भरी बन्, शुष्क धरा,

बागोँ मेँ खिल उठे कँवल - दल

कलियोँ ने ली मीठी अँगडाई !
फैला बादल दल , गगन पर मस्ताना

सूखी धरती भीग कर मुस्काई !

मटमैले पैरोँ से हल जोत रहा
कृषक थका गाता पर उमग भरा

” मेघा बरसे मोरा जियरा तरसे,

आँगन देवा, घी का दीप जला जा !”
रुन झुन रुन झुन बैलोँ की जोडी,

जिनके सँग सँग सावन गरजे !

पवन चलये बाण, बिजुरिया चमके
सत्य हुआ है स्वप्न धरा का आज,

पाहुन बन हर घर बरखा जल बरसे !

- लावण्या
तो इस तरह महावीर जी ने मुझे गौरव दिलाया जो कविता प्रस्तुत करने का अवसर दिया !
हां महावीर जी के संग मेरे , बड़े भाई श्री प्राण शर्माजी जो शायद ' प्रवासी भारतीयों ' की लम्बी शृंखला में सबसे पहले परदेस स्थायी हुए और हिन्दी / उर्दू में लेखन कार्य किया वे हमारे अग्रणी कहे जायेंगें और प्राण भाई साहब भी गजल विधा में माहिर हैं और लघु कथाएँ लिखने में भी सिध्ध हस्त हैं , उन्होंने भी ' मंथन ' हिन्दी ब्लॉग में महावीर जी के संग , सम्पादक की महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है जिसके लिए वे भी बधाई के हक्कदार हैं
मैं आज आदरणीय महावीर जी को श्रद्धापूर्वक याद करते हुए , प्राण भाई व् अब उनका हाथ बंटाने का निर्णय लेकर हिन्दी ब्लॉग जगत को पुनः महावीर जी के ब्लॉग की पताका साहित्य जगत में फहराती हुई रखने के लिए कमर कसने वाले युवा रचनाकार दीपक ' मशाल ' जी का भी सच्चे ह्रदय से अभिनंदन करती हूँ और मेरे हिन्दी ब्लॉग ' लावण्यम - अंतर्मन ' से , विविध प्रविष्टीयों से कुछ महावीर जी के लिखे हुए शब्द , आ. महावीर जी के ही वाक्यों को यहाँ उनकी पावन स्मृति में , श्रध्धा सुमन स्वरूप , प्रस्तुत कर रही हूँ
आदरणीय महावीर जी की वाणी आज भी हमारे संग है मानों महावीर जी के आशीर्वाद भी हमारे संग हैं , मैं तो ऐसा , ही महसूस कर रही हूँ ..
ईश्वर उन्हें अपने प्रकाश में समाहित किये आत्मा को सद्गति दे कर प्रसन्न हैं और वे सदा स्थूल नही परंतु सूक्ष्म स्वरूप में , उनके उच्च लेखन के जरिए हमारे साथ रहेंगें ऐसा मेरा विश्वास है
अत: सादर प्रणाम करते हुए अब प्रस्तुत कर रही हूँ आदरणीय श्री महावीर जी के चुने हुए शब्द
आदरणीय महावीर जी के शब्द :
महावीर said...

लावण्या
कुछ दिनों बाद तुम्हारी इस साइट को खोला तो इतना गंभीर और साथ ही सत्य घटनाओं के आधार पर यह उपन्यास(?) पढ़ कर ऐसा लग रहा था कि सब सामने हो रहा हो।
Blog archive पर चेप्टरों को देने के कारण कहानी को क्रमशः पढ़ने में आसानी हो गई थी। आशा है यह उपन्यास के रूप में कागज के पन्नों में सुसज्जित कर एक पुस्तक के रूप में भी पाठकों को मिले, जिस से हर बार कंप्यूटर खोले बिना कहीं भी पार्क में, सोते समय या कहीं भी जब समय मिले तो आनंद उठा सकें।
दूसरे, एक और पोस्ट के लिए बधाई देना चाहूंगा। यूसुफ़ साहब (दिलीप कुमार) के विषय में बहुत ही सुंदर लिखा है। बार बार पढ़ने को जी करता है। उनके विषय में इतना कुछ लिखा है कि इस सामग्री को बटोरने में ना जाने कितना परिश्रम किया होगा! कुछ नायाब तस्वीरें देख कर उनकी पुरानी यादें ताज़ा हो गईं। एक बार फिर बधाई और धन्यवाद!
सस्नेह
महावीर

JULY 6, 2007 10:44 AM
Lavanyam -Antarman said...

आदरणीय महावीर जी,
सादर नमस्कार !
आपका आना ,
मेरे जाल घर पर और मेरे प्रयासोँ को देखना, फिर उन्हेँ सराहना .
मैँ कृतार्थ हो गयी कि आपको मेरे प्रयास पसँद आये हैँ --
ये कथा मेरे,एक मित्र को अर्पित भावाँजलि स्वरुप है -
जो हम से बिछुड जाते हैँ वे हमारी स्मृति
मेँ सदा जीवित रहते हैँ
है ना ?
सादर,स स्नेह,
-- लावण्या

JULY 7, 2007 10:15 PM
महावीर said...

रोचकता, जानकारी और पुरानी यादें सब ही इस में हैं। पढ़ने में आनंद आगया।
सज्जाद साहब ने केवल १४ फ़िल्मों का संगीत देकर यह सिद्ध कर दिया कि quantity नहीं,
quality का महत्व है। इसी लिए आज भी लोग उनके संगीत को भुला ना पाए। एक ऐसा संगीतकार जिसने बचपन में ही सितार, वीणा, वायलिन, बांसुरी, मेन्डोलीन, जलतरंग, बैंजो, अकॉर्डियन, स्पेनिश गिटार आदि साज़ों पर महारत कर ली थी। स्वयं जीते जागते आर्केस्ट्रा थे।
इस प्रकार की जानकारी देती रहिए।

Lavanyam -Antarman said...

आदरणीय महावीर जी,

प्रणाम !

सही कहा आपने -- वन मेन ओर्केस्टा ही कहलायेँगे सज्ज्जाद साहब -

और आज के युग के गँधर्व - है ना ?

टिप्पणी के लिये धन्यवाद -- यूँ ही स्नेह रखेँ -

स -स्नेह,

--लावण्या

JULY 20, 2007 1:22 PM
महावीर said...

तिनकोँ से सजाये नीड, ख्वाबोँ से सजीले,
पलते विहँग जहाँ कोमल परोँ के बीच,
एक एका, आपा अपना, विश्व सपना सुहाना,
ऐसा लगे मानोँ, बाजे मीठी प्राकृत बीन !

उत्कृष्ट कलात्मक शैली में उच्च कोटि का शब्द विधान, बहुत ही सुंदर रचना है।

OCTOBER 1, 2007 5:46 PM
Lavanyam - Antarman said...

आदरणीय महावीर जी ,
आपका आना और मेरी कविता से ये पँक्तियोँ को आशिष देना मेरे लिये बहुत बडा तोहफा है ~`
ऐसे ही स्नेह व कृपा बनायेँ रखेँ -
सादर ,स - स्नेह,
-- लावण्या

OCTOBER 5, 2007 2:18 P
महावीर said...

"जब नरेन्द्र आये, तो उन्होँने जीवन की ऐसी अनुभूतियोँ को वाणी दी, जिनको छूने का साहस,जिनको कहने का साहस, लोगोँ मेँ नहीँ था".
स्व.पण्डित नरेन्द्र शर्मा जी के काव्य में "सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम्" का पूर्ण
सामंजस्य देखा जा सकता है। उन महान प्रतिभाशाली व्यक्ति के संग संग छायावादी
कवियों के सिरमौर श्री सुमित्रानन्दन पंत जी और आदरणीय डा. हरिवंश राय
बच्चन जी को बार बार नमन!
लावण्या, अगर विकीपीडिया पर श्री नरेन्द्र जी के विषय में पूर्ण रूप से नहीं
लिखा हो तो इस कार्य को पूरा जरूर करना क्योंकि इस में तुम ही सक्षम हो।


महावीर शर्मा

NOVEMBER 29, 2007 11:25 ऍम
महावीर said...

बहुत ही अच्छी जानकारी है। पढ़ कर पुरानी यादें ताज़ा हो गईं जब १९७८ में नाइजीरिया में छः मास तक रहा था। इतनी जानकारी देने के लिए धन्यवाद।

DECEMBER 21, 2007 11:55 ऍम
महावीर said...

मलिका पुखराज के बारे में जानकारी पढ़ कर पुरानी यादें ताज़ा कर दीं। उसके लिए धन्यवाद। हां, मलिका पुखराज का एक गाना था जो उन दिनों बहुत ही मकबूल हुआ था - 'अभी तो मैं जवान हूं'। जहां तक मुझे याद है कि इसकी धुन शायद मशहूर फिल्म संगीतकार 'हुसनलाल भगत राम' ने दी थी। इस गाने को उनकी बेटी ताहिरा ने भी बड़ी खूबसूरती से गाया। गाना इतना मशहूर था कि मलिका-ए-तरन्नुम 'नूरजहां' ने भी एक फ़िल्म में गाया था।
ऐसी जानकारी देते रहिए, बड़ा अच्छा लगता है, विशेषतयः हिंदी में पढ़ कर।
एक बार फिर धन्यवाद।

FEBRUARY 16, 2008 2:29 PM
महावीर said...

बस यही अंतर है, लोग चले जाते हैं और समय की चादर का आवरण उनकी यादों तक को ढांप लेती है। किन्तु, महान व्यक्तियों के अस्तित्व और व्यक्तित्व के अमरत्व के सामने काल हार कर हथियार डाल देता है। वे सदैव जीवित रहते हैं।
श्रद्धेय पंडित जी आज भी उनके गीतों, कविताओं, सिने-जगत और टी.वी. में अमूल्य योगदान, अतीत के संस्मरणों और साहित्य में जीवित हैं, कल भी रहेंगे।
आज फिल्मों में स्तरीय गीतों के अभाव में श्रद्धेय पंडित जी की रिक्तता बहुत ही महसूस होती है।
उनकी पुण्य-तिथि पर मेरी ओर से श्रद्धाञ्जलि।

FEBRUARY 11, 2008 1:41 PM
महावीर said...

पंडित नरेंद्र शर्मा जी कालजयी साहित्यकार .. 'थे' शब्द कहने में मुझे संकोच हो रहा है. उनका साहित्य अमर है, उनकी कवितायेँ और अन्य रचनाएं आज भी लता जी और कितने ही महान संगीतकारों के स्वरों में एक नया स्वर देती रहीं. , कवि-सम्मेलनों में, चल-चित्रों, रेडियो, टी.वी. के महाभारत जैसे अद्वितीय सीरियलों में हर घर में, ज़मीन पर और ख़ला में उनकी वाणी आज भी गूँज रही है. उनके चित्रों में आज भी सशरीर साकार दिखाई देते हैं, केवल भीतर की आँखे खोलकर देखने की बात है. फिर भी परंपरावादिता के अनुसार पंडित जी को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित है.
लावण्या, (आज तुम्हारे नाम के साथ 'जी' नहीं लगाऊंगा क्योंकि अपने बच्चों, छोटी बहनों, भतीजियों आदि के नामों से 'जी' जोड़ने से न जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है जैसे 'अपनापन' सा छीन लिया गया हो), यही कहूँगा कि आज इस पुण्यतिथि पर मेरी श्रद्धांजलि के साथ यही आशीर्वाद है कि तुम पंडित जी के पदचिन्हों को संभालते हुए साहित्य जगत में देदीप्यमान होकर अपनी और स्व. पंडित जी की साहित्यिक-कृतियों द्वारा इसी प्रकार साहित्य-सेवारत रहो.

FEBRUARY 11, 2010 9:02 AM
अंत में यही कहूँगी , आदरणीय महावीर जी , हम आपको कभी ना भूल पायेंगें
मेरे स्व. पिता पण्डित नरेंद्र शर्मा जी की पंक्तियाँ दुहराती हूँ ,
' आज के बिछुड़े मन जाने कब मिलेंगें ' ?
सादर श्रध्धा सहित नमन व भावभरी अश्रुपूरित श्रध्धान्जली
- लावण्या दीपक शाह
सीनसीनाटी , ओहायो , यू. एस. ए.

प्रस्तुतकर्ता- दीपक मशाल

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

संवाद की सहजता और गहनता व्यक्तित्व को समूचा प्रस्तुत कर देती है।

PRAN SHARMA said...

SUSHREE LAVANYA SHAH JI KAA SANSMARAN PADH KAR MAN PASEEJ GYAA
HAI . BADEE AATMEEYATAA SE UNHONNE
SHREE MAHAVIR SHARMA JI KE KRITITV V VYAKTITV KO UJAAGAR KIYAA HAI .

Udan Tashtari said...

लावण्या जी का संस्मरण...एकदम जीवंत. महावीर जी की याद में आँख नम हो आई.

श्रद्धासुमन!!

Devi Nangrani said...

Lavanya ji ka sansmaran padhte lag raha hai ki Param Adarneey Mahavirji hamare aas paaas hi hain.
Is Blog ko revive karne ke liye bahut bahut dhanywaad