ग़ज़ल - प्राण शर्मा
नादान दोस्तो , पढ़ो ये बात ध्यान से
सोना निकलता है सदा सोने की खान से
लो ,हो गया धुआँ ही धुँआ हर मकान में
फैला धुआँ कुछ इस तरह से इक मकान से
तुम करते हो तरक्की तो अच्छा लगे बड़ा
ज्यों पंछी प्यारा लगता है ऊँची उड़ान से
सारे का सारा शहर भले छान मारिये
मिलता नहीं है चैन किसी भी दुकान से
कितना है बदनसीब वो इन्सान दोस्तो
अनजान ही रहा है जो दुनिया के ज्ञान से
उम्मीद उससे क्यों न बंधे लोगों को जनाब
अब तक तो वो फिरा नहीं अपनी ज़बान से
कब तक छुपाता ही रहेगा अपने जुर्म को
कब तक बचेगा ` प्राण ` वो झूठे बयान से
7 comments:
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति।
Priya bhai Pran Sharma jee aapki bahut hee sundar gajal padne ko mili,
kitna hai badnaseeb vo insaan doston
anjaan hee rahaa hai jo doonia ke gayaan se.
man ko chhu gaee yeh rachnaa,badhai.
कितना है बदनसीब वो इन्सान दोस्तो
अनजान ही रहा है जो दुनिया के ज्ञान से
Bahut hI umda Ghazal jiska har sher ek mukamil sandesh de raha, padhkar man mein sanjone jaisi. Ati Uttam
आदरणीय प्राण जी ,
देरी से आने के लिये माफ़ी :
सारे का सारा शहर भले छान मारिये
मिलता नहीं है चैन किसी भी दुकान से
इस शेर के क्या कहने , वैसे तो सारी गज़ल ही सुन्दर बन पढ़ी है , लेकिन इस शेर ने बहुत खुश किया है .. मन में बस गया ..
आपका शुक्रिया प्राण जी
आपका
विजय
तुम करते हो तरक्की तो अच्छा लगे बड़ा
ज्यों पंछी प्यारा लगता है ऊँची उड़ान से
आ. शर्मा जी की ग़ज़लें पढ़ कर आनंद आता है।
सभी के सभी शेर लाजवाब....
बेहतरीन ग़ज़ल ...
वाह !!!
नादान दोस्तो , पढ़ो ये बात ध्यान से
सोना निकलता है सदा सोने की खान से
क्या बात है।
अनुराग
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