Tuesday 8 November 2011

पूर्णिमा वर्मन जी की एक कविता


आप सबके स्नेह को पाकर अभिभूत हूँ साथ ही आश्वस्त भी कि आदरणीय प्राण जी एवं आप सभी अग्रजों के रहते श्री महावीर जी की स्थूलरूप से अनुपस्थिति का अहसास नहीं होगा और उनके द्वारा प्रारंभ किया गया यह ब्लॉग पुनः अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए गति पकड़ सकेगा. कल आप लोगों का आह्वाहन करते ही जिस तरह से आप सभी का आशीर्वाद और प्रोत्साहन मिला उससे लगा ही नहीं कि एक लम्बे अंतराल के लिए इस श्रंखला में विराम लगा था.
आज आपके लिए पूर्णिमा वर्मन जी की एक कविता लेकर आया हूँ. आनंद उठाइएगा..


सन्नाटों में आवाज़ें

सन्नाटों में भी आवाज़ें
खुशियों में भी दर्द छुपे हैं

शब्दों ने
कुछ और कहा है
अर्थों ने
कुछ और गुना है
समझ बूझकर चलने वाले
रस सागर में डूब चुके हैं

तोल-मोल है
बड़ा भाव है
दुनिया आडंबर
तनाव है
झूठे खड़े मंच पर ऊँचे
हाथ जोड़कर संत झुके हैं

जग की बस्ती
में दीवाने
ईश्वर अल्ला को
पहचाने
मन के सादे बाज़ारों में
हम यारों बेमोल बिके हैं

पूर्णिमा वर्मन

प्रस्तुतकर्ता- दीपक मशाल

8 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सत्य का यही पक्ष तो भ्रमित करता है

Devi Nangrani said...

पहले मैं श्री प्राण शर्मा जी व् स्नेही दीपक मशाल को बधाई देना चाहती हूँ उस आँगन के दरवाज़े खुलना के लिए जो दिलों का घर आंगन बना हुआ था. आप श्री महावीर जी के ब्लॉग को पूर्णिमा वेर्मन जी की रचना से सजाया है, निश्चित ही अब यह गुलशन अब पहलगा, फूलेगा और महकाएगा.
सन्नाटों में भी आवाज़ें
खुशियों में भी दर्द छुपे हैं
क्या कहूं इस मुए दर्द के बारे में
दर्द नहीं सीने में जिनके
खाक वो जीते, ख़ाक वो मरते
ढेर सारी शुभ्कमानों के साथ

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

Saraahneey !

नीरज गोस्वामी said...

पूर्णिमा जी की कविता अद्भुत है...आदरणीय महावीर जी के ब्लॉग पर अरसे बाद आकार लगा जैसे अपने घर लौट आये हैं...उनकी यादें दिल में हमेशा ताज़ा रहेंगी...दीपक जी आपने ये बहुत नेक काम हाथ में लिया है...इश्वर आपको सफलता प्रदान करे

नीरज

neera said...

मन के सादे बाज़ारों में

हम यारों बेमोल बिके हैं

कवियों के साथ अक्सर यही होता है...अच्छी कविता के लिए बधाई हो पूर्णिमाजी...


दीपक ने परदेस में हिंदी लिखने वालों को सोते से जगाया है और उनके शब्दों को सूरज कि रौशनी दिखाने का आश्वासन देकर नयी उम्मीदें जगाई हैं ...
महावीरजी द्वारा प्रज्वलित जोत को जलाए रखने का जो बीड़ा तुमने उठाया है उसके लिए ढेर सारी शुभकामनाएं...

pran sharma said...

SUSHREE PURNIMA VARMAN KEE KAVITA
NE MAN MOH LIYA HAI . UNKEE SUNDAR
KAVYABHIVYAKTI KE LIYE UNHEN DHERON
BADHAAEEYAN AUR SHUBH KAMNAYEN .
SHRI DEEPAK MASHAL KO BHEE NAANAA
BADHAAEEYAN . UNHONNE MERE PARAM
AADARNIY SHRI MAHAVIR SHARMA JI KEE
YAAD KO TAAZAA KAR DIYA HAI -

YEH KAESEE BADLEE CHHAAYEE HAI
LO , YAAD TUMHAAREE AAYEE HAI

रंजना said...

महावीर जी के ब्लॉग का पुनः सञ्चालन....यह कैसी अनुभूति दे रहा है अभी, बिलकुल ही बता नहीं सकती...

संचालक मंडल का कोटि कोटि आभार...

पूर्णिमा जी की रचना पर तो क्या कहें...??

अद्वितीय !!!!

Udan Tashtari said...

दीपक एवं प्राण जी को इस पुण्य कार्य हेतु साधुवाद!!!

पूर्णिमा जी रचना बहुत सुन्दर है.